गुरुवार, 6 जून 2013

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                                      पंचायत प्रशिक्षण केंद्र खस्ताहाल

                                                          नौ में से सात बंद

पुष्यमित्र

झारखंड के नव निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण का पहला चरण समाप्ति की ओर है. पिछले छह माह से चल रहे इस प्रशिक्षण को पूरा करने के लिए पंचायती राज निदेशालय लगभग पूरी तरह गैर सरकारी एजेंसियों पर निर्भर रहा. प्रशिक्षण कार्य के प्रबंधन और समन्वय की जिम्मेदारी जहां यूएनडीपी (यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम) के हाथों है, वहीं जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण को अंजाम देने के लिए  27 अलग-अलग एजेंसियों की सहायता ली गयी है, जिनमें से अधिकतर गैर सरकारी संस्थाएं हैं. निदेशालय द्वारा उठाया गया यह कदम एक ऐसे राज्य के लिए विडंबना है जहां हाल तक नौ पंचायत प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत थे. ये केंद्र रांची, देवघर, गुमला, पश्चिम सिंहभूम, पलामू, हजारीबाग, धनबाद, गिरिडीह और साहिबगंज में स्थित थे. इन संस्थानों में से सात को महालेखा निरीक्षक की आपत्तियों के बाद 2007 में पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव के आदेश पर बंद कर दिया गया है. आपत्तियां यह थीं कि इन केंद्रों पर अनावश्यक खर्च हो रहा है. सवाल यह उठता है कि क्या उस वक्त राज्य सरकार पंचायत व्यवस्था लागू करने के बारे में नहीं सोच रही थीं.

सरकार को एजी के सामने यह तर्क तो रखना चाहिये था कि राज्य बहुत जल्द पंचायत चुनाव कराने जा रहा है, ऐसे में इन केंद्रों की जरूरत पड़ेगी. ऐसा ही हाल रांची स्थित केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थान(सीआइटी) का हुआ. इसके परिसर को  2010 में  केंद्रीय विश्वविद्यालय को दे दिया गया. यह मानते हुए कि इस संस्थान को कोई खास उपयोगिता नहीं है. इस  कारण फिलहाल यह संस्थान बेघरों जैसी हालत में है. देवघर स्थित पीआइटी की कहानी तो अलग ही है. पर्याप्त संसाधन होने के बावजूद इसे प्रशिक्षण का काम नहीं दिया जा रहा. यहां दस जिलों के पंचायत सेवकों को प्रशिक्षण दिया जाता है, मगर जब पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने की बात आती है तो उसे महज देवघर जिले के प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी दी जाती है.

पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े प्रशिक्षण के कामकाज को अंजाम देने के उद्देश्य से बने इन अनुभवी संस्थानों को नयी व्यवस्था में अनुपयोगी मान लिया गया है. दोनों संस्थानों को जमीनी स्तर के प्रशिक्षण की छोटी-छोटी जिम्मेदारियां दी गयी हैं. प्रशिक्षण सामग्री तैयार करने से लेकर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देने तक के काम काज में इनकी कोई मदद नहीं ली गयी. मौजूदा प्रशिक्षण का काम संभाल रहे यूएनडीपी के अधिकारी कहते हैं कि अगर इन संस्थानों के भरोसे प्रशिक्षण की योजना बनी होती तो जो काम महज छह माह में पूरा हुआ वह अगले पांच सालों में भी शायद ही पूरा हो पाता. वे इसकी वजह इन संस्थानों में कुशल प्रशिक्षकों का अभाव और इनके काम करने के सरकारी रवैये को मानते हैं. लिहाजा प्रशिक्षण के लिए पीपीपी मोड को ही सबसे उपयुक्त बताते हैं.
सीटीएस के एक प्रशिक्षक बताते हैं, यूएनडीपी द्वारा चलाये जा रहे प्रशिक्षण अभियान की गुणवत्ता खुद सवालों के घेरे में है. अधिकतर प्रशिक्षकों की पंचायती राज व्यवस्था के बारे में न्यूनतम जानकारी होने की वजह से वे प्रशिक्षण के दौरान उठने वाले सवालों का जवाब नहीं दे पा रहे. यह प्रशिक्षण अभियान आनन-फानन में समाप्त तो हो गया, मगर प्रतिनिधियों ने क्या सीखा यह सवाल अनुत्तरित है.
राज्य के प्रशिक्षण संस्थानों के ट्रेनर वर्षों से यह काम करते आये हैं, ऐसे में उनके द्वारा यह काम करवाया जाता तो अधिक कारगर रहता.

हालांकि सरकारी मशीनरी की कार्यप्रणाली हमेशा संदिग्ध रही है, मगर हमारे पड़ोसी राज्य बिहार में जहां 2001 से पंचायती राज व्यवस्था लागू है, सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों पर ही भरोसा जताया गया है. वहां हर जिले में पंचायत प्रशिक्षण केंद्र खोले गये हैं. हर केंद्र में एक प्राचार्य और दो व्याख्याता नियुक्त किये गये हैं.

विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रतिनिधियों को पंचायती राज अधिनियम से जुड़े अपने अधिकार और कर्तव्य, योजनाओं की रूपरेखा तैयार करना, उन्हें लागू कराना, सरकारी योजनाओं के लाभ, उनका लाभ लेने के तरीके आदि की जानकारी देना प्रशिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है. ऐसे में दो-चार दिन के कैंप से उनकी जरूरत पूरी नहीं होने वाली. इस सतत प्रक्रिया को संचालित करने के लिए एक स्थायी संस्थान ही बेहतर उपाय है.

फिलहाल राज्य के तीन प्रमंडल मुख्यालयों पलामू, चाइबासा और हजारी बाग में प्रशिक्षण संस्थान खोले जाने की योजना है. बाद में केंद्र सरकार के जिला ग्रामीण विकास योजना के तहत हर जिले में प्रशिक्षण केंद्र खोले जायेंगे. सीआइटी के प्रशासनिक भवन की मरम्मत के लिए सर्ड को राशि उपलब्ध करा दी गयी है. उन्होंने कहा कि जब केंद्रीय विवि का अपना भवन तैयार हो जायेगा, तो सीआइटी को उसका भवन मिल जायेगा. इससे स्थिति बेहतर होगी.  गणेश प्रसाद
पंचायती राज निदेशक

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