लगातार छह बार ओलिंपिक का गोल्ड जीतने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम के लिए पिछले कुछ साल संत्रास भरे थे. 2008
में पहली बार ऐसा हुआ जब टीम ओलिंपिक के लिए क्वालिफाय नहीं कर पायी. फेडरेशन की राजनीति ने भी टीम को गर्त में पहुंचाने में बड़ी भूमिका अदा की और धीरे-धीरे यह माना जाने लगा कि यह खेल अब पतन की ओर है और राष्ट्रीय खेल की अपनी हैसियत को खोता जा रहा है. मगर इस बार के ओलिंपिक क्वालिफायर में टीम ने जिस बिंदास अंदाज में अपनी बादशाहत साबित की है, उससे हॉकी को लेकर एक बार फिर उम्मीद जगी है. वर्ल्ड सीरीज हॉकी जैसी प्रतियोगिता का आयोजन भी इसी उम्मीद की परिणति है.
पंचायतनामा डेस्क
भारतीय खेल प्रेमियों के लिए नया साल बड़ा तकलीफ देह गुजर रहा था. अंदरूनी राजनीति से चरमराई भारतीय क्रिकेट टीम आस्ट्रेलिया में एक अदद जीत के लिए तरस रही थी. कप्तान और उप कप्तान मीडिया में एक दूसरे के खिलाफ बयान दे रहे थे और समाचार माध्यम कयासोंं और अफवाहों से भरे थे. उसी दौरान चुपके से हॉकी टीम ने गजब का करिश्मा कर दिखाया. फ्रांस को 8-1 से हराकर टीम ने हुंकार भरी, लंदन वालों हम आ रहे हैं. हालांकि छह बार लगातार ओलिंपिक गोल्ड जीतने वाली भारतीय टीम के लिए इसके क्वालिफायर को जीता कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए. मगर बीजिंग ओलिंपिक की दुखद यादें हमें बताती हैं कि यह जीत भारतीय हॉकी के लिए कितनी जरूरी थी. खास तौर पर इस लिहाज से कि राष्ट्रीय खेल होने के बावजूद हॉकी किस कदर अपने ही देश में अपनी चमक लगातार खोता चला जा रहा था.
2008 क्वालिफायर की कहानी
यह साल भारतीय हॉकी के लिए काला वर्ष के रूप में याद किया जायेगा. 1928
के बाद पहला मौका था जब भारतीय टीम ओलिंपिक नहीं जा पायी थी. क्वालिफायर टूर्नामेंट के फाइनल में वह ब्रिटेन से 2-0 से हार गयी थी. उस वक्त यह कह दिया गया था कि पहले क्रिकेट की चकाचौंध से बुरी तरह पिटी भारतीय हॉकी के ताबूत में यह आखिरी कील साबित होगी. मगर महज चार साल की कड़ी मेहनत से टीम ने साबित कर दिया कि वह अभी फिनिश नहीं हुई है. फीनिक्स चिडि़या की तरह अपनी राख से ही वह दुबारा उठ खड़ी हुई है.
दोहरी जीत
जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि 1928 से लगातार ओलिंपिक खेलने वाली भारतीय हॉकी टीम के लिए क्वालिफायर में जीत का बहुत महत्व नहीं है. इस जीत का महत्व इसलिए है कि यह एक तो उसके अस्तिव को चुनौती देने वाली ताकतों पर उसकी जीत थी और उससे भी बड़ी जीत अपने देश प्रेमियों के दिल पर थी जो क्रिकेट की चकाचौंध में अपने राष्ट्रीय खेल को भूल बैठे थे. 26 फरवरी की उस रात जब यह मैच शुरू हुआ था, भारतीय खेल प्रेमी क्रिकेट में मिली 87 रन की ताजातरीन हार से गमजदा था. मगर जैसे ही भारतीय हॉकी के रणबाकुरों ने फ्रांस के खिलाफ गोल पर गोल दागना शुरू किया खेल प्रेमियों के दिल पर जैसे मरहम लगता चला गया
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