रंगों का त्योहार होली सबको प्यारा है. आप वर्षो से अपने गांव, शहर व घर में होली खेलते-देखते आये हैं. पर कभी भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा-बरसाने की होली भी देख आइये. इस बार हम आपको मथुरा-वृंदावन-बरसाने की होली के महत्व, इसकी खूबियां व इसके इतिहास के बारे में बता रहे हैं :
अगर होली आपका पसंदीदा त्योहार है और आपने मथुरा-बरसाने की होली नहीं देखी, तो फिर क्या देखा? भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय भूमि बरसाने की होली खास होती है. भगवान श्रीकृष्ण व गोपियों के बीच खेली जाने वाली होली की परंपरा यहां के लोगों ने आज भी जीवित रखी है. यहां की होली और होली के माध्यम से लोक संस्कृति को देखने-समझने दुनिया भर से लोग आते हैं. आप होली देखने के बहाने मथुरा, वृंदावन व बरसाने की सैर भी कर आयेंगे. इस क्षेत्र में बसंत पंचमी के बाद से ही होली का रंग चढ़ जाता है और होली के कई दिनों बाद तक उसका सुरूर रहता है.
खास है बरसाने की होली
बरसाने की होली का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व है. मथुरा, वृंदावन, नंदगांव व बरसाने के पूरे क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का बचपन गुजरा था. आज भी आप जब इस क्षेत्र में घूमने जायेंगे, तो एक अजीब सा अहसास आपको होगा. बरसाने में हर साल फाल्गुन शुक्ल नवमी को खेली जाने वाली होली देखने व राधा-रानी के दर्शन पाने देश-विदेश से लोग आते हैं. इस दिन नंदगांव के कृष्ण सखा हुरियारे बन बरसाने होली खेलने आते हैं और बरसाने की महिलाएं लाठियों से उनका स्वागत करती हैं. हुरियारे लाठियों से बचने के लिए मजबूत ढाल लिये होते हैं. परंपरागत वेश-भूषा में सजे हुरियारे कमर में अबीर-गुलाल की पोटलियां लिये होते हैं.
वाराणसी की ही तरह मथुरा भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक है. विशेषज्ञ मथुरा से एथेंस की तुलना करते हैं. वाराणसी की ही तरह यहां भी कई घाट हैं. यहां का सबसे प्रमुख घाट है : विश्रम घाट. आप वहां पहुंच कर नौके से मथुरा नगरी के घाटों को देख सकते हैं. नाविक इस दौरान आपके लिए गाइड का काम करेंगे और भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कहानियां सुनायेंगे व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक चीजें दिखाते जायेंगे. इसी दौरान आप कंस के किले को भी देखेंगे.
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