सुरेंद्र मोहन
कभी गायिकी का हुनर सीखने के लिए प्रीतम किराये तक का जुगाड़ नहीं कर पाता था, आज नागपुरी संगीत के प्रेमियों के बीच उसकी आवाज के जादू की धूम है. सरल स्वभाव और मृदुभाषी व्यक्तित्व वाले गायक प्रीतम एक अच्छे किसान भी हैं. इन्होंने नागपुरी, कुड़ुख और मंुडारी भाषा में बने अलबम के गानों को स्वर दिया है. गांव के ही राजा अबुल हसन को वाद्य यंत्र (ट्रिपल व नाल) बजाता देख प्रीतम के मन में संगीत के प्रति रुचि जगी. तब प्रीतम अपने ननिहाल ओरमांझी प्रखंड के आनंदी गांव में कक्षा पांचवी के छात्र थे और नागपुरी गानों को सुनना अच्छा लगता था. राजा अबुल हसन के घर पहंुचे और गाना सीखने की इच्छा जतायी. श्री हसन ने प्रीतम की भेंट कला संस्था देवदीप सुर संगम (बूटी मोड़) के संचालक देवदास विश्वकर्मा से करायी. रोज रियाज और सुबह शाम गांव के खेतों में गीत गाने का अभ्यास. यह सिलसिला पांच वर्षों तक चला. पहला स्टेज प्रोग्राम डहुबरवे गांव में. अवसर था काली पूजा. प्रशंसकों से मिले सम्मान से मनोबल बढ़ा. फिर शुरुआत हुई ऑर्केस्ट्रा प्रोग्राम की. इस दौरान प्रीतम ने रांची, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, खूंटी, रामगढ़ और हजारीबाग में दर्शकों को अपने सुरों के जादू से मंत्रमुग्ध कर दिया. पहला सुपरहिट अलबम मोके शादी कराय दे (वर्ष 2005)
का गाना तोके बोलाय रहूं सेलेम लोहरदगा टीशन...खूब चला. अलबम अंबा दिने आबे सेलेम (वर्ष 2011)
के दो गाने दिला के संभरालो दिला नी संभरेला रे... व लाल पाइर साड़ी...काफी लोकप्रिय रहा. प्रीतम अब तक करीब 60-70 अलबम के गानों को स्वर दे चुके हैं. इनकी परवरिश ननिहाल में हुई. नाना प्रीतम के गाने बजाने के खिलाफ थे. कहते बढ़ईिगरी के काम में मन लगाओ. आर्थिक तंगी के कारण गाना सीखने के लिए संस्था पहुंचने का किराया तक नहीं होता था. ऐसे में गांव के मुस्कान अली ने काफी सपोर्ट किया. प्रीतम की प्रतिभा निखरती चली गयी. आर्थिक तंगहाली ने पीछा नहीं छोड़ा. गरीब परिवार. दसवीं में सफलता नहीं मिलने पर पढ़ाई छोड़ दी. परिचित रामकिशुन करमाली ने हौसला बढ़ाया. गायिकी के सफर में असम, कोलकाता, राउरकेला, दिल्ली, छत्तीसगढ़, पुरुलिया, बंगाल, सिलीगुड़ी में मधुर सुरों से दर्शकों का मन मोहने में सफलता पायी, लेकिन कला का मेहनताना कम पड़ा. आजीविका के लिए प्रीतम ने अपने पूर्वजों की विरासत को संभालने की ठानी. अब गायिकी व खेती किसानी का काम साथ-साथ. मन लगाकर खेतों में हल चलाना. धान व सब्जियां उगाकर परिवार का पालन पोषण. प्रीतम कहते हैं कि सरकार कलाकारों को सहयोग करे. झारखंड में अच्छे कलाकारों की भीड़ है. उन्हें पहचान मिलनी चाहिए. पहले ढोल मांदर पर ही गायिकी होती थी, लेकिन अब कई अत्याधुनिक वाद्ययंत्र पर गाने के धुन सेट किये जाते हैं. इससे संगीत की गुणवत्ता बढ़ी है. कला के बाजार को विस्तार की आवश्यकता है. अपने फैंस से कहना चाहते हैं कि आपके प्यार व सम्मान के लिए धन्यवाद. इससे आगे बढ़ने की ताकत मिलती है.
गाने हमेशा राग-रागनियां के साथ बनें. नागपुरी अलबमों में आज गानों से ज्यादा रिदम हावी हो गये हैं, जो सही नहीं हैं. यह कहना है नागपुरी गीतों की प्रसिद्ध गायिका मोनिका मुंडू का. मोनिका कहती हैं झारखंड की संस्कृति काफी धनी है. यहां के लोग सीधे सादे हैं. बिना भेदभाव के पर्व व त्योहारों में महिला-पुरुष एक साथ नाचते व गाते हैं. सुर व ताल के मेल से बने व झारखंड की माटी की खुशबू बिखरेते गानों को श्रोता भी पसंद करते हैं और कलाकार कोई भी हो, वह प्रशंसकों के सम्मान व प्यार का भूखा होता है.
मोनिका कहती हैं झारखंड में अभी भी एक बेहतर मंच की कमी है. मंच के मिल जाने पर कई छिपी हुई प्रतिभा उभरकर हमारे सामने आयेंगी. बड़े अफसोस की बात है कि जिन कलाकारों को राज्य से बाहर उनके प्रदर्शन पर काफी सम्मान व प्यार मिला, उन्हें अपने ही घर (झारखंड) में होनेवाले बड़े कार्यक्रमों में सिर्फ स्वागत गान तक ही स्थान दिया जाता है. झारखंड की माटी में आज भी ऐसे लोग हैं जो एक वक्त का खाना खाकर भी झारखंड की कला को बचाये रखने के लिए मशक्कत कर रहे हैं. कई बुजुर्ग कलाकार खेती-बारी में ही अपना समय गुजार देते हैं. उनकी कला का कद्र करनेवाला भी कोई नहीं. झारखंड में बननेवाले अलबमों के लिए एक बड़ी समस्या पायरेसी की भी है, जिसका नुकसान निर्माताओं व कलाकारों को झेलना पड़ रहा है. ऐसे में कलाकार का मनोबल गिरता है. इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है.
बचपन से ही गाना गाने व सुनने का शौक रखनेवाली मोनिका ने नागपुरी, खोरठा, संताली, हिंदी, बांगला, भोजपुरी, हो, पंचपरगनिया और मुंडारी समेत 11 भाषाओं में गाने गाये हैं. शास्त्रीय संगीत में प्रभाकर की उपाधि प्राप्त की. पहले गुरु हैं स्व गणेश मिश्रा. प्रयाग संगीत इलाहाबाद से सुगम संगीत की डिग्री प्राप्त की. गुरु उत्तम पाल से संगीत के गुर सीखे. पहला नागपुरी अलबम फ्लोरा 1992 में आया. प्रशंसकों का प्यार मिला और फिर सफलता की राह पर आगे बढ़ती गयीं. मोनिका बताती हैं कि गायकी भी लेखनी पर निर्भर करती है. गाने ऐसे भावनात्मक लिखे हों, जिसकी गायिकी सुननेवालों के दिल को छू जायें. हालांकि झारखंड में बन रहे अलबमों में भी अश्लीलता की शुरूआत हो चुकी है, इन पर रोक लगनी चाहिए. यह तभी संभव होगा, जब श्रोता ऐसे गानों को नकार दें. कलाकार कला व संस्कृति को बचाये रखने का दायित्व भी निभाता है.
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