शुक्रवार, 14 जून 2013

अधिकार मिला नहीं कराया जा रहा है औकात का अहसास

संजीत मंडल
पंचायत चुनाव हुए एक साल से अधिक हो गया है, लेकिन अभी तक पंचायत प्रतिनिधियों को अधिकार नहीं मिला है. देवघर जिले में कुल 194 मुखिया अपनी पंचायत के विकास की बागडोर संभालने के लिए चुने गये हैं, लेकिन ये लोग अधिकारविहीन हैं. अधिकार के नाम पर इन लोगों को मनरेगा जैसी जटिल योजना का क्रियान्वयन दे दिया गया है, जिसमें इतनी पेचीदगियां हैं कि अधिकतर मुखिया समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन कैसे हो. छोटी-छोटी बातों पर प्रशासनिक स्तर से परेशानी झेलनी पड़ रही है.
खिया या अन्य पंचायत प्रतिनिधियों को अब तक सरकार अधिकार तो दे नहीं सकी है, लेकिन सरकार के नुमाइंदे इन लोगों को औकात का अहसास जरूर करवा रहे हैं. मुुखिया, पंसस अन्य प्रतिनिधियोंं पर सस्पेंशन, एफआइआर जैसी कार्र्रवाई शुरू हो गयी है. देवघर जिले में इसके अनेकों उदाहरण हैं.
हद तो तब हो गयी जब मधुपुर अनुमंडल अंतर्गत करौं प्रखंड के बधनाडीह की मुखिया कौशल्या देवी को देवघर डीसी ने पहले सस्पेंड कर दिया और बाद में स्पष्टीकरण पूछा. डीसी ने यह कहकर कौशल्या देवी को सस्पेंड कर दिया कि वे असामाजिक तत्वों के साथ साठगांठ रखती हैं, जिससे योजना के क्रियान्वयन में अनियमितता हो रही है. सस्पेंशन के बाद स्पष्टीकरण पूछा. यानी उक्त मुखिया को अपना पक्ष भी रखने का मौका नहीं दिया गया.
देवघर प्रखंड के चांदडीह पंचायत की मुखिया नूरजहां बेगम से इस बात का स्पष्टीकरण पूछा गया है कि मनरेगा के मस्टर रोल में जेल में रह रहे व्यक्ति का नाम मजदूर के रूप में कैसे है? जबकि मनरेगा का मस्टर रोल मेठ और रोजगार सेवक भरते हैं. बहरहाल, जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना, लेकिन सरकार ने अधिकार नहीं दिया. प्रशासन जिस तरह से एक-एक करके मुखिया अन्य पंचायत प्रतिनिधियों पर कार्रवाई कर रही है, ऐसे में देवघर जिले में पंचायती राज व्यवस्था का क्या होगा



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