गुरुवार, 27 जून 2013

चार प्रखडो मे खराब पड़े है वर्षामापी यत्र

पिमी सिहभूम  के चार प्रखडो मे लबे अरसे से वर्षामापी यत्र खराब पड़े है. इसके कारण इन प्रखडो मे होने वाली वास्तविक वर्षापात की जानकारी नही मिल पा रही है, लिहाजा जमीनी जरूरत के मुताबिक खेती के लिए योजनाए तैयार नही हो पाती है. मौसम वर्षा के अनुरूप ही किसानो को तैयार रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इस जिले के अधिकाश किसान वर्षा पर ही निर्भर रहते है. खूटपानी, झीकपानी, जगन्नाथपुर मनोहरपुर मे वर्षा मापक यत्र खराब पड़ा है. इसे ठीक कराने मे तो कृषि विभाग ही दिलचस्पी दिखाता है और ही साख्यिकी विभाग के लोगो ने इसके लिए कोई पहल की है. जगन्नाथपुर मे कृषि विज्ञान केंद्र मे लगे वर्षा मापी यत्र से काम चलाया जा रहा है.

प्रखडो मे नही है कृषि पदाधिकारी, कैसे होगा कृषि का विकास
झारखड के अधिकाश जिलो मे प्रखड कृषि पदाधिकारी पद रिक्त पड़ा है. सरकार द्वारा भी इन पदो को भरने के लिए नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नही की गयी है. ऐसे मे झारखड मे कृषि का विकास कैसे होगा. केंद्र से लेकर राज्य सरकार कृषि के विकास के लिए करोड़ो रूपये खर्च कर रही है. लेकिन जब आधारभूत सचरना का विकास ही नही हो रहा है, तो इन रुपयो को खर्च करने के बावजूद कृषि के क्षेत्र मे अपेक्षित विकास कैसे होगा. 18 प्रखडो वाले पिमी सिहभूम मे मात्र चार प्रखडो मे ही प्रखड कृषि पदाधिकारी पदस्थापित है. खूटपानी, गोइलकेरा, सदर मझारी प्रखड मे बीएओ कार्यरत है. लेकिन शेष प्रखंडो मे यह पद रिक्त रहने के कारण कृषि के क्षेत्र मे किये जा रहे विकास कार्य गति नही पकड़ पा रही है. किसानो को उत्प्रेरित करने से लेकर बीज  वितरण, खाद वितरण की निगरानी, समय पर बोआई, सिचाई कटाई, किसानो को समय-समय पर मोटिवेट करने की जिम्मेवारी इन्ही प्रखड कृषि पदाधिकारियो पर है. झारखड गठन के बाद से की बीएओ की बहाली की दिशा मे कोई कदम नही उठाया गया है. अधिकाश स्थानो पर जनसेवको (वीएलडब्ल्यू) को प्रखड कृषि पदाधिकारी का प्रभार दिया गया है. कृषि मे स्नात्तक कर चुके जनसेवको को प्रखड कृषि पदाधिकारी पर प्रोन्नति करने का प्रावधान है. कुल रिक्त पदो मे पचीस फीसदी पद कृषि स्नात्तक जनसेवको से ही भरना है. लेकिन झारखड गठन के बाद इसके लिए अबतक सरकार ने सकल्प जारी नही किया है. बिहार मे 50 फीसदी कृषि स्नात्तक जनसेवको को प्रखड कृषि पदाधिकारी के पद पर प्रोन्नति दी जा रही है. उन्हे दो वर्षो का कृषि का प्रशिक्षण भी दिये जाने की व्यवस्था की गई है. झारखड मे कृषि अभियत्रण का विभाग की खत्म कर दिया गया है.


उषा मार्टिन की स्वैच्छिक इकाई केजीवीके ने बराइबुरू महिला समिति समेत अन्य गांव के किसानों को कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है.
इस कार्य में विशेष रुचि एसके सिंह (उपाध्यक्ष उषा मार्टिन) स्वयं ले रहे हैं. उन्हीं के दिशा-निदश पर केजीवीके की टीम ने मनोज हेंब्रम, सनोज हेंब्रम, मंगल सिंह हेंब्रम, गुमान हेंब्रम (सभी टाटीबा), बुधराम बांकिरा, हाकिम पुरती (दोनों बरायबुरू), सुधीर चांपिया (दिरीबुरू), सुरेंद्र चातोंबा (खासजामदा), मंगल चांपिया (दिरीबुरू), रघुनाथ चातोंबा (कंतौडि़या) आदि को चाईबासा स्थित जयपुर गांव का दौरा कराया. जहां झारखंड सरकार के उद्यान विभाग के सहयोग से स्प्रिंकल ड्रीप सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल से मॉडर्न खेती की जा रही है. जयपुर गये सारंडा क्षेत्र के किसानों ने वहां के किसानों से मिल कर उद्यान विभाग के अधिकारियों से मिल खेती के नये तौर-तरीके सीखे.
इन किसानों को नोवामुंडी प्रखंड की सहायता से उद्यान विभाग से सरकारी अनुदान पर कृषि के लिए स्प्रिंकल मशीन ड्रिप एरिगेशन मशीन उपलब्ध कराने का प्रयास तेज कर दिया है.
बरायबुरू-टाटीबा गांव के ग्रामीणों ने इस वर्ष से कृषि के क्षेत्र में रुचि दिखाना शुरू कर दिया है. इस वर्ष ग्रामीणों ने दर्जनों हेक्टेयर भूमि पर टमाटर, फूल, बंदगोभी, मूली, पालक, हरा साग, सरसों की खेती की है. अब वे केजीवीके के प्रयास से मॉडर्न खेती की ओर बढ़ रहे हैं. महिलाएं भी इसमें रुचि दिखा रही हैं.  
(किरीबुरू से शैलेश सिह की रिपोर्ट)

लघु सिचाई अनुमडल, नोवामुडी मे 33 उद्बह सिचाई योजनाए बिहार के जमाने से ही बद पड़े है. झारखड गठन के 11 वर्ष बीतने के बावजूद इसे चालू कराने की दिशा मे विभाग ने एक कदम भी आगे नही बढ़ाया है. इससे किसानो के खेतो तक सिचाई के लिए पानी नही जा पा रहा है. यहा कृषि पूरी तरह मानसून पर निर्भर है. सुखाड़ के दौरान किसानो को परेशानियो का सामना करना पड़ता है. अस्सी फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. सुखा़ड़ की स्थिति मे बड़ी सख्या मे ग्रामीण दूसरे राज्यो मे पलायन करते है. एकीकृृृृृृृृृृृृृृत बिहार के समय 1977 से उद्वह सिचाई योजना शुरू किया गया था. अनावृष्टि के बावजूद किसान खुशहाल थे. खरीफ रबी फसल उत्पादन कर किसान आत्मनिर्भर थे. झारखड गठन के बाद किसानो की उम्मीदो पर पानी फिर गया. पचायत राज व्यवस्था लागू होने के बाद किसानो मे यह उम्मीद जगी है.
इन योजनाओ मे अबतक बिजली आपूर्ति नही की गयी है. ट्रासफारमर लगाये गये है, पर खराब पड़े है. तार बिजली की खभे गायब हो चुके है.
इस योजना के शुरू होने से नोवामुडी जगन्नाथपुर प्रखड मे सैकड़ो हेक्टेयर खेतो मे पानी मिल सकेगी. विद्युत विभाग सिचाई योजनाओ मे बिजली आपूर्ति शुरू करने मे टालमटोल का रवैया अपनाये हुए है. कनीय अभियता बेचन राम के मुताबिक बद उद्बह सिचाई योजनाए चालू कराने के लिए ट्रासफारमर, तार, खभो का प्राक्कलन बनाकर कार्यपालक अभियता के पास भेजा गया है. स्वीकृति मिलने के बाद ही आगे कुछ हो सकता है. (नोवामुडी से रवींद्र यादव की रिपोर्ट और तसवीर)

पिमी सिहभूम मे होगी मसाले की खेती
पिमी सिहभूम की खेती अब मसालेदार होगी. यहा वैज्ञानिक विधि से धान, दलहन, सब्जी विभिन्न प्रकार के फलो की खेती के प्रयास तो किये ही जा रहे है. अब गरम मसाले की खेती को भी यहा बढ़ावा देने का प्रयास शुरू कर दिया गया है. इस वर्ष 25 हेक्टेयर भूमि पर मसाले की खेती की जाएगी. यह पहल जिला उद्यान विभाग ने की है. किसानो को मसाले की खेती के लिए प्रोत्साहन भी दिया जाएगा. प्रशिक्षण से लेकर तकनीकी सहायता उन्हे दी जाएगी. खेती की लागत का नब्बे फीसदी राशि सरकार बतौर सहायता देगी. इसके अलावा बीज, खाद अन्य उपकरणो पर जो कर लगेगे, वह किसानो को वहन करना पड़ेगा. प्रति हेक्टेयर 33 हजार रुपये सरकार की ओर से दिये जाएगे. दस फीसदी हिस्सेदारी अर्थात करीब साढ़े तीन हजार रुपये किसानो को लगाना है. लागत का करीब पाच फीसदी अतिरिक्त राशि किसानो को कर आदि के रूप मे वहन करना होगा. जिला उद्यान पदाधिकारी अरुण कुमार ने बताया कि इस साल 5-5 हेक्टेयर मे जिले मे तेजपत्ता, दालचीनी, काली मिर्च, बड़ी इलायची लौग की खेती होगी. इसके लिए किसानो का चयन शुरू कर दिया गया है. उन्होने बताया कि झारखड की जलवायु ऐसी है कि यहां सभी तरह की खेती की जा सकती है. केवल किसानो को जागरूक करने तकनीकी जानकारी देने की जरूरत है.
नही हो रहा उन्नत बीज का इस्तेमाल
पिमी सिहभूम के किसान उन्नत बीज का इस्तेमाल नही करते है. दरअसल इस जिले मे ज्यादातर किसान एक ही फसल उत्पादन करते है. बोआई के समय बीज उपलब्ध नही होने के कारण अपने घरो मे रखे बीज का ही वे इस्तेमाल करते है. सरकार राज्य स्तर पर बोआई की औसत तिथि 15 जून से 15 जुलाई को मानकर ही जिलो को बीज आपूर्ति कराती है. क्षेत्र विशेष की जरूरतो को ध्यान मे नही रखने के कारण जिस बीज पर सरकार करोड़ो रुपये खर्च कर कागजो मे अपनी उपलब्धि बताती है, उस बीज का लाभ किसान ही नही उठा पाते है. पिमी सिहभूम मे 15 जून के पूर्व ही अधिकाश खेतो मे धान की बीआई हो जाती है. यहा छीटा विधि से ही धान की खेती होती है. ऐसे मे किसान कहते है कि उन्हे 15 मई के पूर्व यदि बीज मिल जाए, तभी वे इसका इस्तेमाल करेगे. कृषि विभाग की ओर से कोई सहयोग नही मिलने के कारण वे अपने भरोसे ही खेती करना अधिक पसद करते है.



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