गुरुवार, 13 जून 2013

आमुख कथा6: गुदड़ी की बागडोर दो महिलाओं के हाथ

पश्चिमी सिंहभूम जिला का नवसृजित गुदड़ी प्रखंड झारखंड का सबसे उपेक्षित प्रखंड है. सारंडा जंगल के बीहड़ क्षेत्र में बसे गुदड़ी प्रखंड पर अब तक राज्य सरकार की नजर नहीं पड़ी है. जिसका परिणाम है कि प्रखंड में अब तक प्रखंड कार्यालय तक स्थापित नहीं हो सका है. आज भी सोनुवा से ही गुदड़ी प्रखंड के कार्य संचालित हो रहे हैं. जिसकी दूरी 55 किलोमीटर है. पंचायत चुनाव के दौरान आदिवासी बहुल इस प्रखंड में जिला परिषद सदस्य एलीना बरजो और प्रमुख कुंवारी बरजो के खिलाफ कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं आया. दोनों ने निर्विरोध जीत दर्ज की. आज इन्हीं दो महिलाओं के जिम्मे प्रखंड की बागडोर है. जनता और सरकार के बीच ये दोनों महिलाएं सेतु बनी हुई हैं. प्रखंड की छह पंचायतों का काम ये दोनों ही अंजाम दे रही हैं. जिला परिषद सदस्य श्रीमती एलीना बरजो कहती हैं, राज्य सरकार जितनी भी घोषणा कर ले सारे गुदड़ी प्रखंड में आने के बाद फेल हो जाते हैं.
प्रखंड की किचिंडा गांव निवासी किसान रोलेन बरजो की पत्नी एलीना मैट्रिक पास है. जिप सदस्य चुनी जाने से पहले पूरी तरह गृहिणी थी. वह कहती हैं, मेरी कोशिश है कि महिलाओं के साथ प्रखंड वासी भी हक के लिये जागरूक हों. बिना किसी बड़े आंदोलन के अधिकार नहीं मिलने वाला है. कई बार उपायुक्त को स्मार पत्र सौंप कर गुदड़ी में प्रखंड कार्यालय खोलने की अपील की गयी है. प्रखंड में सड़क, पानी, बिजली और सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है.
गुदड़ी की प्रमुख कुंवारी बरजो कहती है कि गुदड़ी प्रखंड की उपेक्षा का सबसे बड़ा कारण विभागीय अधिकारियों का सहयोग नहीं मिलना है. सोनुवा प्रखंड कार्यालय में मुझे चैंबर मिला है, लेकिन गुदड़ी के लोग इतनी दूर ही नहीं पाते हैं. जिस कारण उनकी समस्याओं का समाधान नहीं निकलता दिखायी पड़ता है.

हर क्षेत्र में बेहतर कर रहीं महिलाएं
महिलाओं की भागीदारी से ही समाज में परिवर्तन आयेगा. बगैर नारी के हर बदलाव अधूरा है. आज महिलाएं घर के चौखट को लांघ कर समाज के हर क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रही हैं. हमारे जिले में जनप्रतिनिधि के रूप में बहुत-सी महिलाएं विभिन्न स्तरों पर काम कर रही हैं. निश्चित रूप से इससे बदलाव रहा है. महिलाओंका आत्मविश्वास भी मजबूत हुआ है. आने वाले दिनों में पंचायत राज निकाय में शामिल महिलाएं और भी कई नये काम कर मिसाल बनायेंगी. हम सब घर की चौखट को लांघ कर आज नया समाज बनाने के अभियान में जुटे हैं. पहले महिलाओं को घर की देहरी लांघने में संकोच होता था, पर आज स्थिति बदल गयी है.

बदली है अधिकारियों की सोच
जिला परिषद अध्यक्ष बनने के बाद शुरुआती दिनों में अधिकारी नजरअंदाज करते थे. पर, कुछ अधिकारियों पर कार्रवाई होने से अब स्थिति बदली है. उन्हें लग रहा है कि लोकतंत्र में चुने हुए जनप्रतिनिधि के प्रति अपनी जिम्मेवारियों से बच कर नहीं भाग सकते हैं. हालांकि मैं चाहती हूं कि अधिकारी जनप्रतिनिधि के बीच टकराव नहीं हो, क्योंकि इससे विकास बाधित होता है. सरकार को हमें और अधिकार देने की जरूरत है. पंचायतों को  समृद्ध किये बिना राज्य का विकास नहीं हो सकता. 32 सालों बाद अपने यहां पंचायत निकायों का गठन हुआ है. चुने हुए जनप्रतिनिधियों से बात कर उन्हें उनकी भूमिका समझाती हूं. मैं समझती हूं कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों के लिए व्यापक स्तर पर प्रशिक्षण की जरू रत है. अधिकारियों में यह प्रवृत्ति है कि मुखिया गलती करें उन्हें उसी बहाने फंसा दिया जाये. इससे सावधान रहने की जरूरत है. पंचायत चुनाव के बाद राज्य की महिलाएं नयी भूमिका में आयी हैं. उनकी जिम्मेवारी भी समाज के प्रति बढ़ी है. उन्हें आगे आना चाहिए



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