मंगलवार, 25 जून 2013

जल-जीवन: जल है तो कल है

पानी हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन दुर्भाग्य है कि अबतक हमलोगों ने पानी को वह महत्व नहीं दिया, जो दिया जाना चाहिए. पानी के लिए मारपीट, शादी टूटने, जमीन मकान की कीमत गिरने की खबरें अक्सर अखबारों में छपती रहती हैं. ऐसे में जीवन के इस बेहद महत्वपूर्ण पक्ष की उपेक्षा नहीं की जा सकती. अपने प्रदेश झारखंड में जल संकट को लेकर खतरनाक संकेत हैं. इसलिए पंचायतनामा जल जागरूकता के लिए नियमित रूप से एक पृष्ठ प्रकाशित करेगा. इसमें आपकी सहभागिता भी लाभदायक होगी, अगर कहीं पानी के लिए किसी समूह, संस्था या व्यक्तिगत तौर पर बेहतर काम हो रहा हो, तो आप हमें बतायें. हम उस खबर को प्रकाशित करेंगे.

पानी बचाने के लिए
करें ये उपाय
वर्षाकाल में मकानों की छत पर गिरे जल को जमीन में पहुंचाने की व्यवस्था बनायें.
आंगन को कच्चा रखने की पुरानी परंपराओं को अपनायें. इससे बारिश अन्य माध्यम से आया जल आपकी जमीन में ही वापस चला जायेगा, जिससे जलस्तर बना रहेगा.
प्रति व्यक्ति कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाये. गांव में घर खेत के आसपास के क्षेत्र में वृक्ष जरूर लगायें.
हर स्तर पर पानी की बरबादी रोकें.
आप अपने घर में ऐसी व्यवस्था जरूर बनायें, जिससे जल का संभरण हो सके. यानी बारिश अन्य स्त्रोतों से आया पानी पुन: वापस
आपके घर की जमीन में जा सके. इससे आपके घर का जलस्तर बने रहने में मदद मिलेगी.
गांव में वाटर क्लब या जल समिति जैसी संरचना बनायी जा सकती है. हालांकि पंचायती राज व्यवस्था में सरकारी स्तर पर भी इस तरह की समिति के गठन का प्रावधान है, लेकिन गांव के जागरूक लोग सामुदायिक स्तर पर भी ऐसी समिति बना कर जल से जुड़ी समस्या पर विचार करके उपाय तलाश सकते हैं. अपने गांव घर को बचाने के लिए आपकी ओर से किया गया प्रयास सरकार प्रशासन की ओर किये गये बड़े से बड़े प्रयास से भी कई गुणा अधिक सार्थक साबित हो सकता है.

संजय सरदार
सरकार की ऐसी अनेक योजनाएं हैं, जो करोड़ों खर्च के बावजूद अनुपयोगी साबित हो रही हैं. वहीं हेंसड़ा पंचायत में मुखिया मद से बनाया गया कच्चा चेकडैम आज रोलाडीह एवं आसपास के गांव के लिए वरदान साबित हो रहा है.
यह योजना करोड़ों-लाखों के खर्च से नहीं, बल्कि महज 28.5 हजार रुपये की लागत से पूरी हुई. पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड में स्थित हंेसड़ा पंचायत के मुखिया सुबोध सरदार बताते हैं कि ग्रामीणों की मांग को देखते हुए टोमकिया नाला पर कच्चा चेकडैम बनाने की मंजूरी दी गयी. यह योजना कुछ ही सप्ताह में पूरी हो गयी. चेकडैम बन जाने से लगभग 50 परिवार के लोग 20 एकड़ भूमि पर सब्जी की बढि़या खेती कर रहे हैं. इस डैम में तीस फीट पानी जमा है और उसके दोनों ओर खेती हो रही है. गांव के किसान दिलीप महाकुड़, चित्तरंजन महाकुड़, ईशान महाकुड़, महेंद्र प्रधान, लखन हेंब्रम, शशोधर महाकुड़, आदि बताते हैं कि यह चेकडैम गांव के लिए वरदान बन गया हैइसके पानी से रोलाडीह के अलावा खापरसाई, टुटुकघुट, कुलडीहा आदि गांव के लोग भी खेती कर अपनी आजीविका चला रहे हैं. मुखिया सुबोध कुमार सरदार भी अपनी ढाई एकड़ जमीन पर इसके पानी से बेहतर खेती कर रहे हैं.

हेंसड़ा के लिए वरदान बना कच्चा चेकडैम

गांव तक पहुंचायेंगे पानी
मुखिया सुबोध कुमार सरदार कहते हैं कि अब इस डैम के पानी को जल एवं स्वच्छता विभाग के सहयोग से गांव तक पहुंचाया जायेगा घरों में इसकी आपूर्ति की व्यवस्था की जायेगी.
      सुबोध सरदार

ऐसी योजना को प्राथमिकता मिले
हेंसड़ा पंचायत के रोलाडीह गांव की योजना जन उपयोगी साबित हुई है. इस तरह के कार्य हर गांव में होने चाहिए, ताकि स्थानीय लोग कृषि से जुड़े रोजगार कर सकें. संजीव कहते हैं कि मनरेगा से भी ऐसी योजना ली जाये छोटी-छोटी नदियों का सर्वेक्षण कर श्रृंखलाबद्ध चेकडैम का निर्माण किया जाये.
संजीव सरदार   

जल प्रबंधन से बदली गांव की सूरत

फुलेंद्र कुमार साहू
रांची जिले के अनगड़ा प्रखंड में गेतलसूद डैम के पास स्थित गांव कांशीटोला की तसवीर जल प्रबंधन से बदल गयी है. इस कारण 19 घर लगभग 100 लोगों की आबादी वाले इस गांव से कोई व्यक्ति मजदूरी करने बाहर नहीं जाता है. बल्कि अपने गांव के तालाब कुओं में हर मौसम में उपलब्ध पानी से बेहतर खेती कर अच्छी आय अर्जित करता है.
गांव के 42 वर्षीय किसान महेंद्र महतो ने दृढ़ संकल्प कर पहले परती पड़ी बंजर भूमि को खेती के लायक बनाया. रामकृष्ण मिशन के सहयोग से इस गांव में एक तालाब दो कुआं खोदा गया. इससे इस गांव में पानी की कभी दिक्कत नहीं होती और लोग बेहतर खेती कर पाते हैं. यह गांव लघु सिंचाई का आदर्श पेश करता है. इस बदलाव की बुनियाद 1995 में तब पड़ी जब महेंद्र ने राजधानी रांची के मोरहाबादी स्थित दिव्यायन में 1995 में खेती का प्रशिक्षण पाया. उन्होंने इस कार्य के लिए छह अन्य युवकों को प्रेरित किया. दिव्यायन के कृषि सलाहकार लगातार गांव आकर लोगों को सलाह देने लगे जल संचयन कृषि के बारे में बताने लगे. बाद में यहां किसान क्लब का भी गठन किया गया. आज गांव के लोग रोजी-रोटी के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं हैं. गांव के लोगों की जीवटता का आकलन इसी बात से किया जा सकता है कि तीन माह पूर्व गांव के लोगों ने दो ट्रक मि˜ मोरम डालकर खुद सड़क की मरम्मत की.



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