सिल्क उत्पादन और व्यवसाय खरसावां की पांच हजार औरतों के लिए समृद्धि का वरदान साबित हो रहा है. ये महिलाएं कोकून गोटी की खेती से लेकर तसर सिल्क की बुनाई तक में जुटी हुई हैं. इनकी हुनर से प्रभावित होकर फ्रांस, अमेरिका और चीन से लगातार आर्डर आ रहे हैं. यहां की महिलाओं ने रिकार्ड कायम करते हुए इस साल लगभग चार करोड़ कोकून का उत्पादन किया. सिर्फ चीन से ही 15 करोड़ के सिल्क का आर्डर इन्हंे मिला है. पेश है खरसावां से शचिंद्र कुमार दाश की रिपोर्ट....
चाई सिल्क से खरसावां-कुचाई क्षेत्र की ढाई हजार महिलायें जहां तसर गोटी (कोकून) की खेती में जुटी हैं, वहीं कोकून से सूत कताई व बुनाई के कार्य में ढाई हजार महिलायें कार्य कर रही हैं. कताई और बुनाई के लिए इन महिलाओं को देश के प्रतिष्ठित फैशन प्रशिक्षण संस्थान निफ्ट, कोलकाता से प्रशिक्षण मिला है. 24 सामान्य सुलभ केंद्रों में सूत कताई कर रही ये महिलाएं रोजाना दो से ढाई सौ रुपये कमा रही हैं.
जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, टर्की, मलेशिया, इंगलैंड, चीन, थाईलैंड समेत करीब एक दर्जन देशों में खरसावां के ग्रामीण क्षेत्रों में तैयार हो रही सिल्क साडि़यों की मांग है. सिर्फ चीन ही 15 करोड़ रुपये के सिल्क के कपड़े मंगवाता है. सिल्क के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा रूरल टेक्नोलॉजी पार्क व सिल्क पार्क की स्थापना की जा रही है.
बाजार और सरकार से मिल रहे प्रोत्साहन के कारण क्षेत्र में कोकून गोटी का उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है. वित्तीय वर्ष
2006-07 में जहां 30 लाख कोकून का उत्पादन हुआ था, वहीं 2011-12 में चार करोड़ कोकून उत्पादित हुआ. सरकार की ओर से महिलाओं को सूत कताई के लिये 1500 मशीन उपलब्ध करायी जा रही है.
खरसावां-कुचाई को तसर जोन के रूप में विकसित किया जा रहा है. खरसावां में तसर की खेती के साथ साथ सूत कताई, बुनाई व कपड़ों की डिजाइनिंग का कार्य भी होने लगा है. अब यहां के उत्पाद को सीधे विदेशी बाजार में पहुंचाने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं. आने वाले दिनों में कुचाई सिल्क इस क्षेत्र के साथ-साथ पूरे राज्य की अर्थव्यवस्था बदलने में सक्षम होगी.
अर्जुन मुंडा, स्थानीय विधायक सह मुख्यमंत्री
पहले हमारे पास कोई काम नहीं था. घर पर ही सारा दिन बैठे-बैठे गुजर जाता था. आमदा में निफ्ट, कोलकाता की से सुत कताई-बुनाई का प्रशिक्षण लेने के बाद कोकून से सुत कताई का कार्य कर रही हूं. इससे प्रतिदिन औसतन 150 से 200 रुपये की कमाई हो जाती है.
सबिना कौशर, कदमडीहा
कोकून बैंक से कोकून लेने के पश्चात सूत कताई तक खरसावां पीसीसी में पांच सौ रुपया प्रति किलो की दर से बेचते हैं. तीन दिनों में एक किलो सूत तैयार हो जाता है. यहां से मिलने वाली राशि का कुछ हिस्सा घर में खर्च करते और कुछ पैसा बचत भी करते हैं. सिल्क उद्योग से रोजगार के साथ साथ समाज में सम्मान भी मिलने लगा है.
माला रानी तांती, खरसावां
सिल्क उद्योग से जुड़ने के बाद रोजगार तो मिला, साथ में इस बात की खुशी भी कि यहां के तैयार किये हुए कपड़े विदेशियों को भा रहे हैं. विदेशी बाजार में खरसावां-कुचाई के सिल्क कपड़ों की मांग बढ़ने के साथ ही रोजगार में भी इजाफा होने की संभावना है. सरकार को चाहिये कि कुचाई सिल्क को प्रमोट करने के साथ साथ कार्य कर रही महिलाओं को भी सुविधा उपलब्ध कराये.
कनीज फातमी, खरसावां
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