रविवार, 30 जून 2013

सुंदर-जीवन

वास्तव में मां-बाप पर दोगुनी जिम्मेवारी होती है. यदि उनका स्वभाव शीतल और अवस्था योग-युक्त होगी, तो उसका प्रभाव बच्चों पर भी पड़ेगा.
अगर पिताजी अपनी बात मनवाने के लिए माताजी से गुस्सा करते हैं तो बच्चा इस बात को देखता है और सोचता है कि यदि उसे भी अपनी बात मनवानी होगी तो वह भी ऐसे ही जोश से बात करेगा. अत: वह भी कल हाथ में छड़ी उठा लेता है. इस प्रकार वह अच्छी बात भी सीखता है और बुरी भी. इसलिए, गृहस्थ लोगों पर दुगुनी जिम्मेवारी है - अपने जीवन को पवित्र बनाने की भी और बच्चों का जीवन उच्च बनाने की भी. जंगल में झोंपड़ी बनाकर आश्रम बना लेने में कोई खास बात नहीं है, घर को आश्रम बनाने की बात बहुत ऊंची है. जंगल में तो मि˜, पत्थर और रोड़े लेकर आश्रम बन सकता है, परंतु घर को तो ईश्वरीय ज्ञान द्वारा ही आश्रम बनाया जा सकता है.
परंतु आज घर वालों को यह ज्ञान तो होता है कि घर में घी नहीं है और मि˜ का तेल खत्म हो गया है, इसलिए आज घी और तेल लाना है और राशन भी लाना है, लेकिन उन्हें यह पता नहीं है कि आत्मा की ज्योति बुझ रही है, उसमें ज्ञान-घृत डालना है; आत्मा को भोजन भी देना है. अभी दिन का भोजन बना है, फिर रात के भोजन की चिंता लग जाती है. इस प्रकार, मनुष्य भविष्य के विचार तो करता ही है. कोई आगे के दो दिनों की बात सोचता तो है ही, चाहे उसे कल का पता हो. वह दस-बीच रुपये भी इक करके रखता है कि कल बच्चों को काम आयेंगे. लेकिन क्या आपने कभी बैठक जीवन को विषय में भी सोचा है? भविष्य के लिए अविनाशी कमाई की बात पर भी ध्यान दिया है?
- सहज योग से साभार



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