शुक्रवार, 14 जून 2013

फैंसी गहने बने रोजगार का जरिया

प्रशांत जयवर्द्धन
अंजुम के सधे हाथों से बनी मोतियों की माला और उसपर काले पत्थरों की बारीक लड़ी का मिश्रण आपको आश्चर्य में डाल देंगे और इससे भी ज्यादा आश्चर्य तब आपको होगा, जब अंजुम अपना नाम इशारों और अंगुलियों को घुमाकर बतायेगी. वह बोल नहीं सकती है. चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कान. अंजुम रामगढ़ जिले के पतरातू स्थित तालाताड़ गांव के किशोरी समूह से जुड़ी है. तरन्नुम, रूबी, अफसाना, सुषमा, अंजु, नसीम, पिंकी, नुफराना, अनीता और मुर्सरत इसकी सहेलियां हैं. सभी लड़कियां किशोरी समूह से जुड़ी हैं, जो कागज के फूलों और कृत्रिम गहनों को बनाने का काम करती हैं. समूह में शामिल 14 लड़कियों को कृत्रिम गहने बनाने के लिए प्रशिक्षण देने का कार्य केजीवीके ने शुरू किया था. केजीवीके की टीम से जुड़ी सेलिन होरो और राजश्री शर्मा के सहयोग से इन किशोरियों को कच्चा माल उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. इस समूह के अलावा दो और किशोरी समूह इसी प्रकार प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वरोजगार के नये रास्ते खोल रहे हैं. तालाताड़ किशोरी समूह की इन लड़कियों द्वारा तैयार कृत्रिम गहनों में मंगल सूत्र, मोतियों की माला, जड़ी किये गये रंगीन रिबन आदि के अलावा शादी-विवाह के समय दुल्हन सिंगार से जुड़े सभी उत्पादों की बिक्री आस पास के घरों में की जाती है. लड़कियों को प्रोत्साहित करने के लिए केजीवीके किशोरी समूह ने कृत्रिम गहनों को उचित दाम पर बेचने के लिए स्थानीय बाजारों में व्यवस्था की है.

महिलाएं बन गयीं साक्षर

पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती. इस बात को सच कर दिखाया है पतरातू के नेतुआ गांव की महिलाओं ने. सीमित संसाधनों के बीच इनका छोटा सा प्रयास अभियान का रूप ले चुका है. इसकी शुरूआत केजीवीके ने की थी. नेतुआ गांव की महिलाओं में शिक्षा की ललक को देखते हुए केजीवीके ने यहां प्रौढ़ शिक्षा केंद्र के संचालन का निर्णय लिया. यह अपने आप में एक अनोखा प्रयास था. शुरू-शुरू में महिलाएं कामकाज का बहाना बनाते हुए रोज आने से बचती थीं, लेकिन इस केंद्र में आनेवाली आशा देवी, सुशीला, सबीना, सुमिता देवी जैसी महिलाओं ने अपने साहस और सामाजिक बंधनों को पीछे छोड़ केंद्र में आना शुरू किया. इसके बाद यह केंद्र महिलाओं को खुद--खुद आकर्षित करने लगा और धीरे-धीरे यहां महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी.
केजीवीके ने इस आंदोलन को सहयोग दिया और केंद्र पहुंच रही महिलाओं को स्लेट, चौक, डस्टर, ब्लैक बोर्ड आदि देकर उनका उत्साह बढ़ाया. इस प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में पढ़ानेवाली सुमित्रा देवी कहती हैं कि आज इस केंद्र में आनेवाली महिलाओं की संख्या 26 से ज्यादा हो चुकी है. केंद्र को महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं अक्षर ज्ञान सिखाती हैं और खुद के किये जा रहे व्यवसाय का हिसाब-किताब रखती हैं. नेतुआ गांव में चल रहे कंचन स्वयं सहायता समूह ने इस प्रौढ़ शिक्षा केंद्र से अपनी साथ की महिला सदस्यों को जोड़कर अपना और अपने परिवार का भी विकास किया है. आज इस गांव की किशोरियां महाविद्यालयों में जाकर पढ़ाई कर रही हैं, जिनसे प्रेरणा लेकर और भी लड़कियां पढ़ने के लिए प्रेरित हो रही हैं



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