उमेश कुमार
भगत सिंह क्रांति के लिए विचारों की प्रखरता को अनिवार्य मानते थे. उनका मानना था कि विचारों के माध्यम से क्रांति के संदेश दूर तक पहुंचते हैं और उसका मकसद पूरा होता है. जब हम संताल परगना के क्रांतिकारी परिदृश्य का अध्ययन करते हैं तब भगत सिंह का दृष्टिकोण सही प्रतीत होता है. भले ही भगत सिंह के संताल परगना आने के साक्ष्य नहीं मिलते हों, पर उनकी विचार-धारा का गहरा प्रभाव यहां के क्रांतिकारियों पर पड़ा था. ये क्रांतिकारी भगत सिंह को अपना साथी ही नहीं, प्रेरक भी मानते थे.
भगत सिंह के इंकलाबी विचारों के साथ संताल परगना के रिश्तों की पड़ताल के लिए हमें अतीत के कुछ पन्ने फिर से पलटने होंगे. बात बीस के दशक की है. संयुक्त प्रांत में रहनेवाले बंगाली युवक योगेश चटर्जी, शचींद्रनाथ सान्याल और शायराना तबीयत के राम प्रसाद ह्यबिस्मिलह्ण ने अक्तूबर 1924 ई में कानपुर में ह्यहिंदुस्तानह्ण
रिपब्लिकन एसोसिएशनह्ण का गठन किया था. इस एसोसिएशन के सैनिक संगठन का नाम ह्यहिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मीह्ण था. इसका उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष द्वारा औपनिवेशिक सत्ता को समाप्त कर एक संघीय गणतंत्र की स्थापना करना था. एसोसिएशन को रक्तिम संघर्ष के लिए धन की जरूरत थी. इसके लिए एसोसिएशन ने 9 अगस्त, 1925 ई को लखनऊ के एक गांव काकोरी के पास 8 डाउन ट्रेन को रोक लिया और उसमें जा रहा सरकारी खजाना लूट लिया. इस लूटपाट में गोरी तथा अंग्रेजी सैनिकों से जूझने में अन्य क्रांतिकारियों के साथ भगत सिंह ने भी काफी दिलेरी दिखलायी. खजाने की इस लूट को ब्रिटिश सरकार ने काफी संजीदगी से लिया. फलस्वरूप, अधिकांश क्रांतिकारी पकड़ लिये गये. परंतु, जो साथी पुलिस की गिरफ्त से बाहर रहे, वे ह्यकाकोरी-कांडह्ण के बाद मृतप्राय ह्यहिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशनह्ण में नयी ऊर्जा भरने लगे. ऐसे जीवटवाले क्रांतिकारियों में सुरेंद्रनाथ भाचार्य तथा वीरेंद्रनाथ भाचार्य प्रमुख थे. उन्होंने नये सिरे से एसोसिएशन का पुनर्गठन किया. एसोसिएशन को उसके पुराने तेवर में लाने के लिए भाचार्य बंधुओं को एक ऐसी जगह की जरूरत थी जो आवागमन की दृष्टि से सुगम, पर वन प्रांतर से भरा-पूरा हो. संताल परगना का सुरम्य सैरगाह एवं धर्मस्थान देवघर इसके लिए एक उपयुक्त जगह थी. क्रांतिकारियों ने वर्तमान कचहरी रोड स्थित राउत परिवारों के अधिवास ह्यमधुसूदन छौरांटह्ण में स्थित एक मकान में एसोसिएशन का मुख्यालय बनाया. यहां ब्रिटिश सरकार की तख्ता पलट को लेकर रणनीतियां बनने लगीं. भगत सिंह के विचारों की रोशनी में क्रांतिकारी आगे बढ़ने लगे. यह संस्था असम से लेकर पंजाब तक फैली थी. जब सन् 1928 ई में पंजाब, संयुक्त टीम, आगरा, अवध तथा बिहार-ओडि़शा के क्रांतिकारी गुप्त संगठनों के सदस्य भगत सिंह, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद आदि ने ह्य हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशनह्ण का गठन किया तब देवघर में कार्यरत संगठन (एसोसिएशन) उसके साथ मिल गया. भगत सिंह का मानना था कि देश की जवान पीढ़ी को क्रांति के लिए तैयार करना एक बड़ी शर्त है. उन्हें पूंजीवादी और शोषणकारी व्यवस्था के विरुद्ध लामबंद करना भी एक कठिन चुनौती है. वे मजदूरों, किसानों और अन्य श्रमजीवियों के साथ सर्वहारा वर्ग की मुक्ति में यकीन रखते थे. तत्कालीन परिवेश में निम्न और मध्यमवर्गीय आय वाले परिवारों से आये युवा भगत सिंह के चिंतन को समझ रहे थे. लिहाजा, उनके विचारों की चमक संताल परगना तक भी फैली. उनके एसोसिएशन ने संताल परगना के युवाओं को गोलबंद कर पूरे देश में सरकार विरोधी अराजक गतिविधियों के संचालन की योजना तैयार की थी. एसोसिएशन ने विश्वव्यापी संपर्क स्थापित करने की दिशा में भी काम शुरू किया था. ब्रिटिश सरकार को इसका सुराग सन् 1927 ई में उस समय मिला जब प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बैद्यनाथधाम के ह्यदेवघर बोर्डिंग हाउसह्ण पर पुलिस ने छापा मारा. इस हाउस को ह्यराजेंद्र मित्र बोर्डिंग हाउसह्ण के नाम से भी जाना जाता था. यह हाउस वर्तमान टावर चौक के निकट अवस्थित था. हाउस में छापे के समय ब्रिटिश पुलिस को एक ह्यसाइफर कोडह्ण मिला. इस ह्यसाइफर कोडह्ण में कुछ सूचनाएं दर्ज थीं. पुलिस ने बड़ी बारीकी से इन सूचनाओं का अध्ययन और विश्लेषण किया. इसके बाद पुलिस ने एक साथ इलाहाबाद, कुमिल्ला, ढाका, चटगांव, चौबीस परगना, कोलकाता तथा जमशेदपुर में छापा मारा. इस कार्यवाही में भारी मात्रा में अस्त्र-शस्त्र, बम बनाने के सामान और प्रतिबंधित क्रांतिकारी साहित्य बरामद हुए. पुलिस की यह व्यापक कार्यवाही ह्यदेवघर षड्यंत्र मुकदमाह्ण का आधार बनी. खुफिया विभाग के तेज-तर्रार अधिकारी राय साहब नगेंद्रनाथ बागची ने देवघर से बरामद ह्यसाइफर कोडह्ण तथा असलहों के बारे में मि टीएफ डफ (खुफिया विभाग के विशेष सहायक) के पास पटना में एक टेलीग्राम भेजा. मिस्टर डफ 21 अक्तूबर, 1927
को देवघर आये और बरामद सामग्रियों का निरीक्षण किया. उन्होंने ह्यसाइफर कोडह्ण को कोलकाता के इंटेलिजेंस ब्यूरो के पास भेजा. वहां साइफर कोड में दर्ज संकेतों को पढ़ लिया गया. पता चला कि वह एक चातुर्यपूर्ण सांकेतिक भाषा थी जिसमें 60 व्यक्तियों के नाम दर्ज थे. साथ ही उनकी भावी क्रांतिकारी योजनाओं का वर्णन भी था. सांकेतिक पुस्तिका के साथ ह्यजेहोवाह्ण शब्द-सूत्र की व्याख्या भी कर ली गयी. देवघर में हुई छापे की कार्यवाही में क्रांतिकारी सुरेंद्रनाथ भाचार्य, वीरेंद्रनाथ भाचार्य तथा तेजेशचंद्र घोष पकड़े गये थे. इन्हें दुमका जेल में रखा गया था. इनकी शिनाख्त के लिए ह्यकाकोरी कांडह्ण में सरकारी गवाह बन गये बनवारीलाल के आने के बाद जेल में ही पहचान-परेड का आयोजन किया गया. पहचान-परेड के दौरान बनवारीलाल ने निडरता के साथ कह दिया गया वह इनमें से किसी को नहीं पहचानता ! वह केवल ऐसे बहादुर क्रांतिकारियों के दर्शन के लिए आया था. बनवारीलाल के बयान से काराबंदी क्रांतिकारियों को बड़ी शांति मिली. अपने कार्यों पर उन्हें गर्व की अनुभूति भी हुई. अंतत: भारतीय दंड संहिता की धारा 121 (क) के अंतर्गत कुल 20 अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल किया गया. तीन पर आर्म्स एक्ट की धारा 19 (ख) लगाया गया.
मुकदमें की सुनवाई के बाद सत्र न्यायालय ने क्रांतिकारी तेजेशचंद्र घोष, मनोरंजन भाचार्य, अहिभूषण सरकार, राधानाथ बर्मन, धरानाथ भाचार्जी, दयाल हरिपाल, मृगंका मोहन बनर्जी, बद्री नारायण हालदार, सुरेंद्रनाथ भाचार्य तथा वीरेंद्रनाथ भाचार्य को 8 वर्ष, शैलेंद्रनाथ चक्रवर्ती तथा उपेंद्र कुमार धर को 7 वर्ष, सुखेंदु विकास दत्ता, विजन कुमार बनर्जी, प्रसाद चंद्र चटर्जी तथा सुशील कुमार सेन को 5 वर्ष तथा अतुल कृष्ण दत्ता, लक्ष्मीकांत घोष, विश्वमोहन सान्याल तथा इंद्रचंद्र नारंग को 3 वर्ष कैद की सजा सुनायी. लेकिन, इन क्रांतिकारियों के इंकलाबी जज्बे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इन्होंने भगत सिंह के स्वर में स्वर मिलाकर कहा ह्यसूलियों में चढ़ कर चूमे आफताब को, आवाज देंगे आओ आज इंकलाब को ! ह्ण
(लेखक झारखंड शोध परिषद, देवघर के सचिव हैं
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