यह निर्विवाद है कि संताली भित्ति चित्रण में कला की अपार संभावनाएं हैं. पर न तो कभी किसी कला पारखी या सरकारी, गैर सरकारी संस्थानों द्वारा इसका सही आकलन और मूल्यांकन किया गया और न ही इस कार्य को करने वाले लोगों को किसी कलाकार के रूप में मान्यता ही मिल पायी. ऐसी स्थिति में आधुनिकता की दौड़ में 21वीं सदी में यह विलुप्त हो जाये तो आश्चर्य की कोई बात नहीं.
आरके नीरद
संतालों की ग्रामीण बस्तियों में जो एक बात सबसे पहले लोगों को आकर्षित करती है, वह उनके घरों की सज्जा है. मिी के बने घर और उसकी दीवारों पर चित्रांकन देख कर मन आादित हो जाता है. ये भित्ति चित्र संतालों की नैसर्गिक अभिरुचि का बोध तो कराती ही हैं, सांस्कृतिक विकास की कहानी भी कहती हैं.
मोर के चित्र सबसे सुहाने
संताली दीवार चित्रण में पशु-पक्ष, वानस्पतिक और ज्यामितिक आकारों के चित्रों की प्रधानता रहती है. पशुओं में घोड़ा, हाथी, बाघ और हिरण के चित्रों की प्रधानता रहती है. जबकि पक्षी में मोर की प्रमुखता रहती है. ज्यामितिक चित्रों में गोल, चौंकोेर, त्रिकोण, षटकोण एवं आड़ी तिरछी रेखाओं के कटाव की प्रधानता रहती है. बार्डर, रेखांकन और अलंकरण-संताली दीवार के चित्रण के तीनों प्रमुख भाग हैं. बार्डर का निर्माण उजली, काली या पीली मिी को लेप कर किया जाता है. दीवार पर रेखांकन करने के पूर्व इसकी जमीन को लीप पोतकर ठीक से तैयार किया जाता है, फिर उस पर रेखांकन किया जाता है. दीवार पर किये गये रेखांकन की लकीरों को सर्व प्रथम मिी देकर उभारा जाता है और उसके सूख जाने के बाद उसे रगड़कर चिकनाया जाता है. उसके बाद उसमें रंग भरने का काम किया जाता है. रंग के रूप में मिी के घोल या अपने से बनाये रंग अथवा बाजार से खरीदे हुए रंगों के उपयोग किये जाते हैं. संताली भित्ति चित्रण में महिलाओं की भूमिका विशिष्ट होती है. प्रत्येक संताली घर के निर्माण में पुरुष एवं महिला की भागीदारी बराबरी की होती है, पर चित्रकारी का काम मुख्यत: महिलाएं ही करती हैं. दीवार चित्रण के इनकी परंपराओं में शुमार होने के कारण हर घर में आपको चित्रकारी करने वाली कोई न कोई महिला अवश्य मिल जायेगी.
यदि हम कला की दृष्टि से संताली भित्ति चित्रण पर नजर डालें तो इनमें हमें भाव, विचार और संवेदना की बारीकी मिलेगी जिसमें सृजनशील अभिव्यक्ति छिपी हुई है.
ईश्वर को आंमत्रण देते हैं
दीवारों पर अंकित इन भित्ति चित्रों की कथा बड़ी रोचक है. संताली मान्यताओं के अनुसार जब ईश्वर ने पृथ्वी की रचना का कार्य पूरा कर लिया तो मनुष्यों से कहा कि अब मेरा काम यहां समाप्त हो गया, अब मैं अपने लोक में जाता हूं. यह सुन कर मानव समुदाय विल हो गया और ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि हे ईश्वर! आप इतने दिनों तक हमारे साथ पृथ्वी पर रहे, हमारी सुधि ली, अब हमारा पालन पोषण कौन करेगा. इस पर ईश्वर बोले हे मनुष्य, मैं पृथ्वी पर बाद में आऊंगा. जिसके घर के बाहर सुंदर-सुंदर चित्र बने होंगे, उसके घर मैं सबसे पहले आऊंगा. इस तरह घरों के बाहर दीवार पर चित्र बनाने की परंपरा प्रारंभ हुई. संताली लोक गीतों में भी वर्णित है कि एआय नाय दिसम के चाय-चंपा साम्राज्य के किले की दीवारों पर सुंदर-सुंदर चित्र बने हुए थे. माना जा रहा है कि सिंधु घाटी सभ्यता से संतालों के नजदीकी रिश्ते रहे हैं. उस सभ्यता के विनष्ट होने के बाद संतालों के पूर्वजोंं ने अपनी दीवारों पर चित्रण की परंपरा को बचाये हुए रखा. शोधकर्ता डा निर्मल वर्मा ने इन संताली चित्रण के साथ उनकी पूजा के करीब 3000 चिों का संकलन किया और उनके आधार पर एक वर्णमाला तैयार की जिससे उन्हें सिंधु लिपि को पढ़ने के सूत्र मिले. स्व. वर्मा के शोध परिणाम अत्यंत चौंकानेवाले हैं. पर उनकी मृत्यु से यह सहसा बाधित हो गया जिसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. संताली दिवाल चित्रण पर मधुपुर की संस्था ह्यलोग जागृति केंद्रह्ण ने सराहनीय कार्य किये एवं इसमें श्री शेखर और श्री प्रेम प्रभाकर की पहल प्रशंसनीय है
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