गुरुवार, 13 जून 2013

आमुख कथा 2



चायती राज के तहत दिसंबर 2010 में संपन्न चुनाव में एक ही झटके ने राज्य की करीब तीस हजार महिलाओ के वर्तमान भविष्य को बदल दिया. इनमें से ज्यादातर महिलाओ का साबका अपने घर-परिवार से था. वह अपने घर में बजट में मशगूल थी. आज अपने गांव, प्रखंड जिला का बजट बना रही हैंै, विकास योजनाओं का खाका खींच रही हैं और जरूरत पड़ने पर अधिकारी-कर्मचारी से सीधी बात करती हैं. नियम-कानून पूछती हैं और उन्हें लागू करने की कोशिश भी करती दिखती हैं.
घर के साथ उन्हें अपने गांव, पंचायत, प्रखंड जिले की फिक्र है. जिला, प्रखंड पंचायत स्तर पर शासन की बागडोर उनके हाथ में है.
पंचायत चुनाव के बाद  गांव की एक साधारण महिला मुनिया देवी गिरिडीह की जिला परिषद अध्यक्ष बन गयीं हैं. उनके दोनों बेटे बोकारो में पढ़ते हैं. उनके पति मृगांक कुमार , जिनका प्रोपट डीलर का कामकाज मां तारा हाउसिंग डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के तहत चलता है, वे अपनी पत्नी की नयी व्यस्ताओ से नाराज नहीं, खुश हैं. उनकी खुशी उनके बयान से झलकती . कहते हैं : मेरी पत्नी अब परिवार से ज्यादा सामाजिक गतिविधि में व्यस्त रहती हैं. बैठकों में अक्सर रांची भी जाना होता है. घर पर भी लोग अपनी समस्याओं को लेकर पहुंचते हैं. समाज के लोगों का नजरिया भी बदला है, अब आसपास के लोगों की भी उम्मीदें उनसे जुड़ गयी हैं. बातचीत के दौरान उनके पति इस बात का उल्लेख करना नहीं भूलते कि पंचायत प्रतिनिधियों को अधिकार नहीं मिलने के खिलाफ आजकल वे राज्य स्तर पर जिला मुख्यालयों के समक्ष होने वाले धरना-प्रदर्शन की तैयारी में लगी हैं. पत्नी की शिक्षा के संबंध में पूछने पर बहुत ही सकुचाते हुए बताते हैं, नन मैट्रिक है.
सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो इस बदलाव को सुसुप्त (अंडर करंट) सामाजिक क्रांति करार देती हैं. वह कहती हैं : महिलाएं अब घरों में कैद होकर रहना नहीं चाहती हैं, वे राज्य के विकास में अपनी भागीदारी तय कर रही हैं. पर, यह जरूरी है कि उन्हें उनके बुनियादी अधिकारों की जानकारी दी जाये. जैसे विभिन्न योजनाओं के पैसे कैसे खर्च होंगे, उनके कोष में आने वाली राशि का व्यय कैसे  होगा, योजनाएं कैसे पारित होंगी उनके क्या अधिकार कर्तव्य हैं. अगर ऐसा होता है, तो इसका फायदा पूरे राज्य को मिलेगा.
पंचायत चुनाव में जीत कर आयी महिलाओ के सामने कोई आसान रास्ता भी नहीं है. यह जीतकर आयीं प्रतिनिधियो को खूब समझ में भी आता है. कोल्हान का जिला है सरायकेला खरसांवा. यह जिला डायन के नाम पर सबसे अधिक मारी जाने वाली महिलाओ के कारण चर्चित रहता है. यहां से जिला परिषद की कमान शंकुतला महाली के हाथो में है. उनके ऊपर यह जिम्मेवारी है कि कैसे वह लोगों की मानसिकता बदलें अपने कामकाज से महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने में सफल हों. खूंटी, गुमला रांची जैसे हिंसाग्रस्त जिले हों या फिर पलामू, गढ़वा लातेहार जैसे अति नक्सल प्रभावित जिले उनकी कमान भी महिला के ही हाथ में. अपने-अपने काम से ये समाज में बड़े बदलाव की शुरुआत कर सकती हैं.
पंचायत से लेकर जिला परिषद तक के लिए चुनी गयीं महिलाओ से एक साल बाद भी बातचीत करते हुए यह जरूर लगता है कि उनमें अनुभव की कमी है. राजनीतिक तौर पर थोड़ी क्या, बहुत कच्ची हैं. योजना-परियोजना की समझ विकसित नहीं हुई है. फिर भी आपको उनकी लगन को देखकर उन्हें सलाम कहने का मन करेगा. मात्र 27 वर्ष की उम्र में पाकुड़ जिला परिषद की अध्यक्ष चुनी गयीं  गेमिलीना सोरेन पहली ही बातचीत में यह बताना नहीं भूलतीं कि वह अनिच्छा से राजनीति में आयीं हैं. उच्च शिक्षित गेमेलीना बनना कुछ और चाहती थी और गयी राजनीति में. इस मलाल के बावजूद वह पूरी ताकत से नयी व्यवस्था को समझने में लग गयी हैं. ऐसा नहीं है कि केवल इसी तरह के चेहरे हैं. रांची जिप की अध्यक्ष सुंदरी तिक और गढ़वा की सुषमा मेहताराजनीति जानती भी हैं और समझती भी हैं. उन्हें अपनी ताकत का पूरा अहसास है. राज्य की नयी तसवीर बनाने के संबंध में पूछने पर धारा प्रवाह अपनी योजनाएं बतातीं हैं और लंबा सफर तय करने की बात कहती हैं
राज्य में जिला परिषद से लेकर वार्ड सदस्य तक चुनी गयीं महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक पारिवारिक पृष्ठभूमि में काफी विविधता है. घरेलू अपेक्षाकृत कम पढ़ी-लिखी गुमला की सतवंती देवी से मुलाकात आपको नये झारखंड का परिचय भी देता है. अशिक्षा के बावजूद इनमें राजनीतिक चेतना की कमी नहीं है. ये अपने अधिकार काम को लेकर जागरूक हैं. देवघर की किरण कुमारी जैसी शिक्षित पर पारंपरिक गृहिणी भी हैं. पूरा परिवार शिक्षा से जुड़ा हुआ है. जब चुन कर आयीं, तो मंच पर चढ़कर बोलना सबसे असहज काम था. अब वह असहजता काफूर हो गयी है. मंच पर खड़ी होती हैं. माइक पकड़कर सरकार से लेकर नौकरशाहो को ललकारती है. इससे राज्य में पंचायत राज निकाय उसमें महिलाओं की उपस्थिति की एक बहुरंगी तसवीर बनती है. महज 25 साल की उम्र में लातेहार की जिला परिषद अध्यक्ष बनने वाली पूर्णिमा सिंह के पति कन्हाई सिंह कहते हैं : हमारी शादी हुई और उसके तुरंत बाद पंचायत चुनाव की घोषणा हो गयी और वे चुनाव लड़ जिप सदस्य बन गयीं.



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