बुधवार, 26 जून 2013

खेल-खिलाड़ी बेटियां

याद कीजिये फिल्म चक दे इंडिया का वह सीन, जब झारखंड की लड़कियां प्रैक्टिस कैंप में पहुंची थीं तो वे सहमी सी नजर रही थीं और दूसरे राज्यों की लड़कियां उन्हें किसी दूसरे ग्रह का प्राणी समझ रही थीं. मगर अब वक्त बदल चुका है. महिला हाकी टीम की कमान है झारखंड की असुंता के हाथ में है. वहीं दीपिका और झानू हांसदा जैसी तीरंदाज भी देश के लिए लंदन ओलिंपिक में उम्मीद की किरण हैं. हजारीबाग की शुभलक्ष्मी नेशनल क्रिकेट टीम में झारखंड का नाम रोशन कर रही हैं. दुनिया में झारखंड की बेटियों का दबदबा निस्संदेह दिल को गर्व से भर देने वाला है.

सिमडेगा की बेटी नेशनल टीम की कप्तान
भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर सकी, लेकिन इस टूर्नामेंट में फाइनल तक पहुंच कर अपनी मजबूत स्थिति का प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में कप्तान असुंता लाकड़ा का बेहतरीन योगदान रहा है. सिमडेगा के सुदूरवर्ती गांव की बेटी असुंता ने अपनी मेहनत के बल पर जो मुकाम हासिल किया है वह झारखंड वासियों के लिए गर्व की बात है. लकड़ी के डंडे से घर के आंगन में भाई-बहनों के साथ हॉकी खेलने वाली असुंता का पूरा परिवार हॉकी के लिए समर्पित है. उसकी भाभी भी नेशनल टीम की सदस्य रह चुकी है. हाल के दिनों में उसकी शादी के कई रिश्टे आये मगर उसके पिता ने यह कहते हुए उसे ठुकरा दिया कि पहले ओलिंपिक फिर शादी. असुंता आज भी अपने गांव जाती हैं तो अपने ही जैसी दूसरी असुंताओं को हॉकी के गुर सिखाती हैं, ताकि झारखंड से महिला हॉकी टीम में खिलाडि़यों का प्रवेश जारी रहे. असुंता मजबूत भी हैं और शार्प भी है. उनकी इसी खूबी ने उन्हंे इस ऊंचाई पर पहुंचाया है.


भारत के लिए बड़ी उम्मीद
महज सत्रह साल की तीरंदाज दीपिका लंदन ओलिंपिक में भारत के लिए बड़ी उम्मीद है. उसके अब तक के प्रदर्शन के आधार पर लोग कयास लगा रहे हैं कि वह भारत को एक मैडल तो दिला ही सकती है. रांची के एक ऑटो चालक की बेटी दीपिका ने 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को दो सोना दिलाया था.
एक निम्न वर्ग की लड़की दीपिका के लिए तीरंदाजी को कैरियर के रूप में चुनना आसान नहीं था. वह बांस के धनुष से अभ्यास किया करती थीं. उसके पिता को जब यह बात पता चला तो वे बहुत नाराज हुए मगर उसकी चचेरी बहन विद्या जो टाटा आर्चरी एकेडमी में तीरंदाज थी, ने उसे राह दिखायी और सहारा दिया.
2005 में महज 11 साल की उम्र में झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा द्वारा स्थापित संस्थान अर्जुन आर्चरी एकेडमी में उसे जगह मिली. अगले साल उसे टाटा आर्चरी एकेडमी में जगह मिल गयी. इसके बाद जो उसके अभ्यास का सिलसिला शुरू हुआ वह 2009 में कैडेट वर्ल्ड चैंम्पियनशिप जीतने के बाद ही खत्म हुआ. तीन साल बाद ही वह घर का मुंह देख पायी. इसके बाद की कहानी तो सर्वविदित है. कॉमनवेल्थ के दो-दो गोल्ड ने महज 16 साल की उम्र में बच्चे-बच्चे की जुबान पर उसका नाम ला दिया है. 2009 की कैडेट वर्ल्ड चैंपियन लंदन से देश के लिए सोना ले आये तो यह कोई हैरत की बात नहीं होगी.

महिला क्रिकेट की पेस बैटरी
हजारीबाग की शुभ लक्ष्मी भारतीय महिला क्रिकेट टीम में शामिल होकर वेस्टइंडीज गयी हुई हैं. जहां भारतीय टीम वेस्टइंडीज के साथ पांच मैचों की महिला टी 20 सीरीज खेल रही है. शुभ लक्ष्मी तेज गेंदबाज के रूप में टीम में शामिल हुई है.
शुभ लक्ष्मी हजारीबाग की रहनेवाली है. मैट्रिक तक पढ़ाई कार्मल स्कूल, इंटर की पढ़ाई अन्नदा कॉलेज से की. स्नातक की पढ़ाई श्रीराम इंफोटेक कोर्रा से कर रही हैं. पिता राजेंद्र प्रसाद शर्मा विशेष शाखा पुलिस विभाग में एएसआइ हैं. शुभ लक्ष्मी ने वर्ष 2004 में अंतर जिला महिला क्रिकेट प्रतियोगिता में भाग लिया. इसके बाद से लगातार झारखंड महिला क्रिकेट टीम से खेलकर पूर्वी क्षेत्र महिला टीम में स्थान बनाया. वर्ष 2009 और 2010 में पूर्वी क्षेत्र महिला क्रिकेट टीम में शामिल होकर बेहतर प्रदर्शन किया. इसके बाद भारतीय महिला क्रिकेट टीम में चयनित हुई.
शुभ लक्ष्मी कहती हैं, भारतीय तेज गेंदबाज जहीर खान की तरह बॉलिंग के क्षेत्र में अलग पहचान बनाना चाहती हूं. सफलता का श्रेय स्कूल के समय से केंद्रित होकर क्रिकेट खेली. संसाधनों की कमी और सामाजिक परिदृश्य से कभी नहीं घबरायी. कौन क्या कह रहा है इस पर ध्यान देने से ज्यादा क्रिकेट की बारिकियों को समझने और मेहनत करने में दिल दिमाग को लगा रही हूं.




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