झारखंड के कृषि मंत्री सत्यानंद झा बाटुल का मानना है कि खरीफ के मौसम में बंपर उत्पादन का महत्वपूर्ण कारण मौसम व सरकार की नीतियां रहीं. इस बार सरकार ने कृषि को प्राथमिकता सूची में रखा था. झा कहते हैं कि मंत्री बनने के बाद यह उनकी जिम्मेदारी थी कि राज्य को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जाये. इसके लिए कई बादलाव की जरूरत थी, जो समय रहते हुआ भी इसका फायदा किसानों को हुआ. सरकार ने किसानों को सहयोग दिया. बदले में किसानों ने सरकार को तोहफा दिया. यह तोहफा ऐसा था, जो सरकार को पिछले 11 साल में नहीं मिला था. सरकार और किसानों के बीच तालमेल इसी तरह रहा, तो आनेवाले वर्षों में भी बेहतर परिणाम आयेंगे. खरीफ में करीब 65 लाख मिट्रिक टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ. इस मुद्दे पर हमारे वरीय संवाददाता मनोज सिंह ने कृषि मंत्री सत्यानंद झा बाटुल से विस्तृत बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत का प्रमुख अंश :
इस बार (खरीफ में) राज्य में खाद्यान्न का बंपर उत्पादन हुआ. यह उपलब्धि कैसे हासिल हुई?
जब मैं मंत्री बना था, तो तय किया था कि कुछ ऐसा करना है, जिससे पार्टी को मुझ पर गर्व हो. मेरी जिम्मेदारी राज्य को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की थी. यह मुश्किल काम था. लेकिन, कार्यकाल के पहले साल में ही यह संभव हो गया. इसके लिए भगवान के साथ-साथ राज्य की नीतियां भी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं. सबसे पहले हमलोगों ने बीज नीति बनायी. किसानों को समय पर बीज कैसे मिले, इसका प्रयास शुरू किया. बड़े-बड़े तालाबों का निर्माण पूरे राज्य में कराया. इसका फायदा हुआ कि किसानों को मुश्किल समय में भी पानी मिल गया. किसानों को अच्छा बीज देना मेरी प्राथमिकता थी. राष्ट्रपति शासन में किसानों को छला गया था. इस कारण मेरी जिम्मेदारी ज्यादा महत्वपूर्ण थी. हमने किसानों को खरीफ का अच्छा हाइब्रिड धान बीज दिलाया, यही कारण रहा कि किसानों को अच्छा उत्पादन मिला. उत्पादन को यहां तक पहुंचाने में किसानों की मेहनत और लगन को कम नहीं कहा जा सकता है. उनके कारण ही आज राज्य को यह गौरव हासिल हुआ.
बीज वितरण में गड़बड़ी रोकने के लिए सरकार की क्या नीति थी?
खरीफ फसल के दौरान बीज वितरण में गड़बड़ी रोकने के लिए सरकार की ठोस नीति थी. हमलोग सीधे तौर पर जिला स्तर पर बीज वितरण की निगरानी कर रहे थे. वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से किसानों के साथ-साथ अधिकारियों से बात करते थे. एक निगरानी टीम बनायी गयी थी. टीम को जिम्मेदार बनाया गया था. उनको कहा गया था कि किसी प्रकार की गड़बड़ी होने पर बख्शे नहीं जायेंगे. मैं खुद क्षेत्र में जाकर बीज वितरण का ध्यान रखता था. सीधे किसानों से बात करता था. कई बार वह खुद किसानों के खेत में भी गया. बीज की गुणवत्ता जांची. उनको मिल रही सुविधाओं की जानकारी ली. लैंपस-पैक्स से सीधे बात की गयी. गड़बड़ी मिलने पर सीधे अधिकारियों को निर्देश दिया गया.
रबी में सरकार की क्या तैयारी है?
रबी में भी सरकार ने जबरदस्त तैयारी की है. समय से किसानों को बीज पहुंचा दिया गया है. पहली बार है कि राज्य के किसी भी जिले से रबी बीज वितरण की एक भी शिकायत नहीं मिली है. खरीफ की तरह रबी के बीज वितरण की भी निगरानी की जा रही है.
अच्छा उत्पादन हुआ, फिर भी सबसे ज्यादा अधिकारी दंडित हुए हैं?
जो भी अधिकारी मेरे कार्यकाल में दंडित हुए हैं, उन पर राष्ट्रपति शासन में गड़बड़ी करने का मामला है. मैं अधिकारियों का हौसला बढ़ाना चाहता हूं. मैं नहीं चाहता कि अधिकारी भय में रह कर काम करें. भय से काम करेंगे तो विभाग का कामकाज प्रभावित होगा. एक बात स्पष्ट है कि सरकार के दिशा-निर्देश की अवहेलना करने वाले अधिकारियों को छोड़ेंगे नहीं. सरकार कभी नहीं चाहती है कि दबाव में काम हो. वह अधिकारियों को हर संभव सुविधा देने के पक्ष में है. उनका हौसला बढ़ाने के लिए जिला स्तर के प्रत्येक पदाधिकारी को नयी गाड़ी दी गयी. सरकार उनको सुविधा देगी, तो उनसे परिणाम भी चाहेगी. यह अधिकारियों को सोचना चाहिए.
केंद्र सरकार का सहयोग कैसा रहा?
जितनी उम्मीद केंद्र सरकार से है, उतना सहयोग नहीं मिल पाता है. खरीफ में हमें जितनी खाद चाहिए थी केंद्र सरकार ने नहीं दी. इस कारण अंतिम समय में किसानों को खाद की कमी भी हुई. अगर केंद्र सरकार पूरी तरह सहायता करे तो झारखंड में खाद्यान्न की कमी नहीं होगी. हमने केंद्र सरकार से कोल्ड स्टोरेज खोलने के लिए सब्सिडी देने की मांग की है. सब्सिडी 55 फीसदी से 40 फीसदी तक होनी चाहिए. हम राज्य में छोटा-छोटा कोल्ड स्टोरेज खोलने के पक्ष में हैं. केंद्र सरकार से परती और बंजर भूमि के विकास के लिए राशि देने को कहा गया है. खाद की आपूर्ति बढ़ाने का आग्रह किया गया है.
राज्य में मात्र एक ही कृषि विवि है. कृषि के विकास में इसकी भूमिका कैसी है?
कृषि विश्वविद्यालय की भूमिका मिलीजुली है. बहुत अच्छी नहीं है. नये कुलपति आये हैं, उनसे कहा गया कि तय करें कि वैज्ञानिक किसानों के खेत तक जायें. किसानों की सुविधा के हिसाब से तकनीक का विकास हो. विश्वविद्यालय को अपनी भूमिका तय करनी चाहिए.
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