कहानी झारखंड मेगा फूड पार्क की
प्रदेश में जब भी सब्जियों की बरबादी या कीमत कम मिलने का मुद्दा उठता है अनगड़ा में प्रस्तावित मेगा फूड पार्क का जवाब पेश कर दिया जाता है. मगर मेगा फूड पार्क खुलने से प्रदेश के सब्जी या फल उत्पादकों को कितना लाभ मिलेगा यह सवालों के घेरे में है. झारखंड में मेगा पार्क की कहानी 2005 से गूंज रही है. शुरुआत में इसका बजट 16 करोड़ तय किया गया था जिसमें 4 करोड़ रुपये केंद्र से सब्सिडी के रूप में मिलना था. 2009
तक आते आते इस योजना का स्वरूप ही बदल गया. इसने 113 करोड़ की भारी भरकम योजना का रूप ले लिया. उस वक्त सुबोध कांत सहाय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री थे, लिहाजा योजना में गजब की तेजी आयी. योग गुरु बाबा रामदेव ने 40 फीसदी हिस्सेदारी की घोषणा कर दी, जेन एक्स वेंचर कैपिटल की 15 फीसदी और लूनर जेनरल ट्रेडिंग की हिस्सेदारी 10 फीसदी तय हुई. मगर झारखंड राज्य उद्योग विभाग इस परियोजना में 50 फीसदी हिस्सेदारी चाहता था. लिहाजा परियोजना के सब लीज का मामला लंबे समय के लिए अटक गया. फिर नंवबर 2011 में इसका सब लीज फाइनल किया गया है. यह पार्क 56 एकड़ जमीन में बनेगा. मगर यह कब तक आकार लेगा इसकी तसवीर अभी साफ नहीं है.
अधिकांश किसान यही समझते हैं कि आलू और गाजर को छोड़ कर दूसरी सब्जियां कोल्ड स्टोरेज में नहीं रखी जा सकती. मगर देश के कई इलाकों में सब्जियों के लिए कोल्ड स्टोरेज बने हैं. अगर सही प्रक्रिया अपना कर सब्जियों को इनमंे रखा जाये तो गोभी चार हफ्ते और टमाटर को तीन हफ्ते तक सुरक्षित रखा जा सकता हैं. किसानों को अगर इतना वक्त भी मिले तो उनकी ठीक-ठाक कीमत मिल सकती है. अगर ठाकुरगांव में सब्जियों का कोल्ड स्टोरेज होता तो वहां के किसानों की अपनी सब्जियां रुपये-आठ आने में नहीं बेचनी पड़ती. मगर उस इलाके का एक मात्र कोल्ड स्टोरेज रातू में है जो वहां से 15 किमी दूर है वह भी आलू से अटा पड़ा रहता है. यह स्थिति पूरे राज्य की है, किसान खेती जम कर करते हैं मगर कोल्ड स्टोरेज गिनती पर गिनने लायक होती है, वह भी किसानों का शोषण ही करती है.
राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम किसान समितियों को कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के लिए 25 फीसदी तक का अनुदान देता है. ठाकुरगांव समेत अन्य क्षेत्रों की किसान समितियां अगर चाहें तो छोटा कोल्ड स्टोरेज आराम से खोल सकते हैं.
आदर्श है त्रिचुरापल्ली का मिनी कोल्ड स्टोरेज
त्रिचूर इंजीनियरिंग कालेज ने तमिलनाडु के आसपास के इलाकों में कई मिनी कोल्ड स्टोरेज बनवाये हैं. सामान्य लागत में बनने वाले ये कोल्ड स्टोरेज किसानों के लिए काफी मददगार साबित हो रहे हैं. ये कोल्ड स्टोरेज छोटी-छोटी मंडियों के पास बने हैं, जिससे सब्जी विक्रेता अपनी बची हुई सब्जियों वहां आसानी से जमा कर सकता है. यहां सब्जियां न्यूनतम एक हफ्ते तक सुरक्षित रह जाती हैैं.
सिर्फ 50 हजार में सिफेट का इसी रूम
छोटे-छोटे किसानों और छोटी सहकारिता समितियों के लिए सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ पोस्ट हारवेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी(सिफेट) ने महज 50 हजार की लागत में मिनी कोल्ड स्टोरेज का मॉडल पेश किया है. एक बड़ा सब्जी उत्पादक या एक टोले के आठ-दस किसान मिलकर इसे आसानी से बनवा सकते हैं. यह सब्जी उत्पादक किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है.
सिफेट ने इसे ईसी रूम(इरेपोरेटेड कूल) का नाम दिया है. गर्मियों में इस रूम का तापमान बाहर के तापमान से 10 से 12 डिग्री सेल्सियस कम रहता है.
नमी भी 85 फीसदी के करीब रहती है, जिससे सब्जियां ताजा रहती हैं. इसमें बिजली का भी कोई खर्च नहीं. इस ईसी रूम में दोहरी दीवार होती है, जिसके बीच 15 सेमी का फर्क रखा जाता है और उस खाली जगह को अच्छी गुणवत्ता वाले बालू से भर दिया जाता है.
दीवार के ऊपरी हिस्से में ड्रिप सिस्टम लगा रहता है जिससे बीच में भरा बालू हमेशा गीला रहे. इसके अलावा इस कमरे में प्राकृतिक वेंटिलेशन भी रहता है. इस तरह के ईसी रूम में 2 टन फल या सब्जियां आसानी से स्टोर की जा
सकती हैं
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