पंचायत चुनाव में झारखंड की महिलाओ ने चुपके-चुपके इतिहास रचा है. डायन-बिसाही के कारण मारी जानेवाली झारखंड की महिलाओ की चर्चाओ के बीच सफलता की इस कहानी को फिर से याद करना जरूरी है. इस सफलता पर सवाल खड़े करने वाले भी अधिक हैं. वे कहते हैं, राज्य की महिलाओ ने आरक्षण की नैया पर ही पंचायती राज चुनाव में अपनी जगह बनायी है. इसके बावजूद यह भी सच है कि पिछले एक साल में गांव की सरकार को अपने बलबूते चलाने का हुनर भी राज्य की आधी आबादी ने दिखाया है. तमाम परेशानियो से निपट कर पंचायत चुनाव में गांव से लेकर जिला परिषद तक की कुरसी तक पहुंचीं युवा महिलाओ के इरादे बुलंद हैं. महिला दिवस (8 मार्च) को लेकर हमने कोशिश की कि अपनी नयी नेता की नयी तसवीर पेश करें. बहरहाल मुखिया से लेकर जिला परिषद तक आधी आबादी ने अपनी हिस्सेदारी से अधिक हासिल किया है. आंकड़ो में यह तसवीर और भी चमकदार है. जिला परिषद की 24 में से 19, प्रखंड स्तर पर 211 पंचायत समिति में से 172 की प्रमुख महिलाएं हैं. 4423 में 2335 मुखिया महिलाएं हैं. जिप अध्यक्ष के करीब 80 प्रतिशत पद, प्रखंड प्रमुख के करीब 82 प्रतिशत और मुखिया के करीब 53 प्रतिशत पद पर महिलाएं बैठी हैं. तीनों निकायों में उनका प्रतिशत 57.35 है. यह राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा और बेहतर है.
पंचायत चुनाव से सामाजिक जागृति आयी है. इससे महिला के अंदर यह भूख पैदा हुई है कि कैसे वे फैसलों व विकास कार्यों में अपनी भागीदारी निभायें. पर, सरकार को अपने स्तर पर उन्हें सशक्त करने के लिए कदम उठाने होंगे. झारखंड में अबतक पंचायत महिला युवा शक्ति अभियान शुरू नहीं हुआ है, जबकि देश के कई राज्यों में इस अभियान चलाया जा रहा है. केरल व पंजाब में इसके बेहतर नतीजे देखने काीे मिले हैं.
वासवी किड़ो
सामाजिक कार्र्यकर्ता व झारखंड महिला आयोग की सदस्य
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