बुधवार, 26 जून 2013

मिलजुल कर लायें जीवन में बदलाव


 हर  अथवा गांवों में रहनेवाली ऐसी महिलाएं, जो गरीब हैं या फिर जिनके पास पूंजी का अभाव हो, बहुत कुछ करना चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती. थोड़ी सी समझदारी अपनाकर वह भी अपनी जीवन शैली में बदलाव ला सकती हैं. याद रखिए, हर किसी के जीवन में अच्छे और खराब समय आते हैं. इसलिए विपरीत परिस्थिति आने पर भी उसका सामना करने के लिए बचत करना जरूरी है. बचत की आदत और जमा पूंजी ही आपकी सफलता का राज है. आइए हम आपको यह जानकारी दे रहे हैं कि कैसे गांव की गरीब महिलाएं स्वयं सहायता समूह (सेल्फ हेल्प ग्रुप, एसएचजी) का गठन कर अपने जीवन स्तर में सुधार लाकर इसका लाभ उठा सकती हैं. महिलाओं और पुरुषों के स्वयं सहायता समूह अलग-अलग होते हैं.
गरीब महिलाओं को बचत की आवश्यकता शायद सबसे अधिक होती है, पर कई कारणों से वह बचत नहीं कर पाती हैं. उनमें एक प्रमुख कारण यह भी है कि अपनी बचत सुरक्षित रखने के साधन उनके पास नहीं होते. स्वयं सहायता समूह उनकी इस जरूरत को पूरा करता है. स्वयं सहायता समूह (सेल्फ हेल्प ग्रुप, एसएचजी) गरीब महिलाओं के छोटे-छोटे समूह होते हैं. एक जैसी परिस्थिति में रहनेवाली गरीब महिलाएं एकत्रित होकर स्वयं सहायता समूह बना सकती हैं. एक बार समूह का सदस्य हो जाने के बाद आपको एक-दूसरे की मदद करनी होती है. समूह अपनी महिला सदस्यों को छोटी-छोटी बचत करने के लिए प्रेरित करता है. इस प्रकार सामूहिक जमा राशि से महिला सदस्य छोटे-छोटे ॠण ले सकती हैं. शेष बची हुई राशि को बैंक के खाते में जमा कर दिया जाता है. बैंक में जमा राशि स्वयं सहायता समूह के नाम पर होती है, जो समूह की सामूहिक निधि का हिस्सा होता है. इस तरह करीब छह माह तक नियमित बचत करने, ॠण बांटने और स्वयं सहायता समूह गुणवत्ता की जांच संबंधित बैंक करता है. बैंक समूह के कार्यों से संतुष्ट होने के बाद स्वयं सहायता समूह को ॠण देता है.
एक स्वयं सहायता समूह का आदर्श आकार 10 से 20 महिला सदस्यों का होता है. समूह का रजिस्ट्रेशन कराने की आवश्यकता नहीं होती है. महिला सदस्य एक समान सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि वाली होती हैं. एक परिवार से केवल एक ही महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य हो सकती है. ताकि एक समूह में अधिक से अधिक परिवारों को जोड़ा जा सके. समूह में सिर्फ महिलाएं होती हैं. महिलाओं का समूह बेहतर कार्य करता है, क्योंकि महिलाएं बचत करने में बेहतर होती हैं और ॠण का समुचित उपयोग भी करती हैं.
कोई शिक्षित या जनहित की भावना से प्रेरित महिला गरीबों की मदद के लिए स्वयं सहायता समूह का गठन कर सकती है. वह अन्य महिलाओं को कम खर्च और समूह के लाभों के बारे में जानकारी देती है. ऐसी महिला को हम उत्प्रेरक या मददगार कहते हैं. सामान्यतया उत्प्रेरक वह होता है, जिसे गांव के लोग पहले से जानते हैं. इसमें सेवानिवृत्त शिक्षक, सरकारी कर्मचारी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, राज्य सरकार के विभाग या विकास एजेंसी की कार्यकर्ता, बैंक अधिकारी या कर्मचारी, गैर सरकारी संगठन की कार्यकर्ता, शिक्षित बेरोजगार आदि हो सकती हैं. उत्प्रेरक महिला या पुरुष कोई भी हो सकता है.
समूह की सप्ताह में एक बार बैठक होती है. बैठक में सभी सदस्यों के उपस्थित होने से समूह को स्थापित करने में सहायता मिलती है. समूह के सदस्यता रजिस्टर, बही खातों आदि में नियमित प्रविष्टियों से समूह के कामकाज में पारदर्शिता बनी रहती है. ऐसा करने से बैंका का भी समूह पर विश्वास बना रहता है.
सभी प्रकार के लेन-देन के लिए सरल और स्पष्ट लेखा बहियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. यदि समूह के सभी सदस्य लेखा-बही के रखरखाव में समर्थ नहीं हैं तो इस कार्य के लिए किसी अन्य की सहायता ली जा सकती है. गांव के पढ़े लिखे बच्चे भी इस कार्य को मन लगाकर करते हैं, जिन्हें कुछ माह बाद पारितोषिक के रूप में कुछ राशि दे दी जाती है, जिससे कार्य में सहयोग के लिए उनका मनोबल बना रहे.
रजिस्टर में बैठकों की कार्यवाही, समूह के नियमों, सदस्यों के नामों आदि का रिकार्ड रखा जाता है. इसमें सदस्यों की अलग-अलग और पूरे समूह की एक साथ बचत दिखायी जाती है. ॠणों, चुकौतियों, एकत्रित ब्याज की प्रविष्टियां इसमें दर्ज होती हैं. प्रत्येक सदस्य का अलग-अलग पासबुक होता है, जिसमें बचत और ॠण की जानकारी नियमित लिखी जाती है.


स्वयं सहायता समूह के प्रमुख कार्य हैं

स्वयं सहायता समूह बचत राशि का उपयोग महिला सदस्यों को ॠण प्रदान करने के लिए करता है. ॠण का प्रयोजन, राशि, ब्याज दर, चुकौती के तरीके आदि का निर्धारण खुद स्वयं सहायता समूह ही करता है. समूह आंतरिक ॠण का समुचित रूप से हिसाब-किताब रखता है. प्रत्येक बैठक में समूह अपनी महिला सदस्यों की समस्याओं पर विचार-विमर्श और उनके निदान का प्रयास करता है. गरीब महिलाओं में अपनी समस्याओं से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधनों का अभाव होता है. ऐसी स्थिति में समूह की मदद से वह कठिनाइयों का सामना आसानी से कर लेती हैं.
स्वयं सहायता समूहों को बचत खाते खोलने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अनुदेश जारी किये हैं. बैंक में बचत खाता खोलने संबंधी निर्णय का एक प्रस्ताव स्वयं सहायता समूह की बैठक में सभी सदस्यों के हस्ताक्षर से पारित होता है. यह प्रस्ताव बैंक अपने पास रखता है. समूह कम से कम अपनी तीन महिला सदस्यों को प्राधिकृत करता है, जिनमें से कोई दो महिलाएं संयुक्त रूप से खाते को ऑपरेट करती हैं. उक्त प्रस्ताव और प्रवर्त्तक द्वारा विधिवत रूप से परिचय के लिए हस्ताक्षरित पूर्णत: भरा हुआ आवेदन पत्र बैंक शाखा अपनी फाइल में रखती है. बचत खाते का पासबुक स्वयं सहायता समूह के नाम पर दिया जाता है. किसी सदस्य के नाम पर नहीं.
महिला सदस्यों को उधार देने की शर्तें, उद्देश्य, ब्याज दर, अदायगी का समय आदि का निर्णय समूह की होनेवाली बैठकों में की गयी चर्चा के अनुसार तय की जाती है. भारतीय रिजर्व बैंक और नाबार्ड के दिशानिर्देश समूह के इन अधिकारों की पुष्टि करते हैं. प्राय: ॠण पर मासिक ब्याज दो या तीन रुपये सैकड़ा रखा जाता है. गांवों में लोग मासिक ब्याज आसानी से समझते हैं.
ॠण हमेशा समूह के नाम से स्वीकृत किया जाता है. ॠण दो वर्ष या अधिक की अवधि के लिए मियादी ॠण के रूप में हो सकता है. सामान्यत: स्वयं सहायता समूह को सामूहिक बचत राशि के एक से चार गुना तक ॠण बैंक दे सकता है. बैंक यदि स्वयं सहायता समूह के बारे में संतुष्ट है तो इससे ज्यादा ॠण भी दे सकता है.
बैंकों द्वारा स्वयं सहायता समूह जिस ॠण की स्वीकृति प्रदान करते हैं, का उपयोग समूह के सदस्यों द्वारा दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए, काम धंधा शुरू करने के लिए या फिर लंबे समय तक काम में आनेवाली जरूरी वस्तुएं जैसे घर आदि खरीदने के लिए किया जा सकता है, जो कि समूह द्वारा बैठक में लिए गये निर्णय पर निर्भर करता है. ॠण चुकौती के लिए समूह सामूहिक रूप से जिम्मेदार है. भारतीय रिजर्व बैंक और नाबार्ड के अनुदेशों के अनुसार स्वयं सहायता समूहों से कोई जमानत नहीं ली जाती है. स्वयं सहायता समूह के सदस्य यह समझते हैं कि बैंक से लिया गया ॠण उनकी बचत के जैसा ही उनका पैसा है. इसलिए बैंक ॠण की चुकौती के लिए वे संयुक्त रूप से जिम्मेवार हैं. समूह के सदस्य उधारकर्ता सदस्य पर सामूहिक रूप से दबाव बनाये रखते हैं.
भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंको को छूट दे रखी है कि वे स्वयं सहायता समूह से ली जानेवाली ब्याज दर को स्वयं तय करें. भारतीय रिजर्व बैंक और नाबार्ड के अनुदेशों के अनुसार स्वयं सहायता समूहों द्वारा अपने सदस्यों से ली जानेवाली ब्याज दर का मसला समूह पर ही छोड़ दिया गया है. भले ही वह मासिक या तिमाही आधार पर वसूली करें. आमतौर पर ब्याज दर दो से तीन रुपये प्रति सैकड़ा प्रति माह होती है



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