अब तक लोहा और कोयला खनन के लिए दुनिया भर में मशहूर रहे झारखंड के किसानों ने इस साल नया रुतबा हासिल किया है. पहली बार झारखंड की घरती से इतना हरा सोना उपजा कि वह देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का आधार बन गया. दूसरे राज्यों से चावल मंगाकर खाने वाले झारखंड के पास इस बार अपनी जरूरत का डबल चावल होगा. भले ही यह जादू बेहतर बारिश के कारण मुमकिन हुआ, मगर फिलहाल तो जश्न मनाने का वक्त है.
मनोज सिंह
ची के निकटवर्ती गांव बुढमू के निवासी गनणत महतो आम तौर पर धान की खेती को लेकर अधिक गंभीर नहीं रहते हैं. उनका मुख्य जोर सब्जी और फलों के उत्पादन पर ही रहता है. इससे बहुत कम समय में छोटी जोत में भी वे अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं. मगर पिछले साल उन्होंने उलटी चाल चली. तकरीबन आठ एकड़ जमीन में धान बो दिया. ऊपर वाले ने भी उनके भरोसे पर जैसे अपनी मुहर लगा दी. जमकर बारिश हुई और नतीजा यह हुआ कि उनके खलिहाल में पहली बार 350 क्विंटल के करीब धान जमा हो गया. साल भर के खाने के लिए धान रख कर जब उन्होंने दो से ढाई लाख रुपये का धान बेच डाला है. यह उनका बोनस है, इन पैसों के बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं था.
तकरीबन ऐसी ही कहानी राज्य के हर इलाके की है. धान की बंपर पैदावार हासिल कर किसान गदगद हैं. अब तक खदानों से लोहा और कोयला हासिल करने के लिए मशहूर झारखंड राज्य पहली बार न सिर्फ खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ है, बल्कि हमारे पास उतना धान सरप्लस बचेगा जितना पिछले साल उपजा भी नहीं था.
सरकारी आंकड़ोंं के मुताबिक इस खरीफ में राज्य में 65 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ है. इसमें 51 लाख टन से अधिक धान उपजा है. यह अब तक का रिकार्ड है. इससे पहले राज्य में धान का अधिकतम उत्पादन 34 लाख टन ही था. पिछले खरीफ के मौसम में तो बारिश के अभाव में हम महज 14 लाख टन धान ही उपजा पाये थे.
पड़ोसी राज्यों पर निर्भरता खत्म
अब तक हम उसना चावल के लिए छत्तीसगढ़, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों पर निर्भर रहे हैं. झारखंड में इन राज्यों से औसतन 20 लाख टन उसना चावल हर साल आता है. मगर इस बार कहानी बदली-बदली है. हमने 51 लाख टन धान उपजाया है. हमारी जरूरत लगभग 30 लाख टन चावल की है, जिसमें से 15 लाख टन चावल की जरूरत विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत राशन दुकानों में बंटने के लिए हैं. इस तरह हमारे पास लगभग 21 लाख टन धान सरप्लस होगा.
1200 मिमी से अधिक बारिश
इस वर्ष खरीफ के मौसम में 1200 मिमी से अधिक बारिश हुई थी. जून माह के अंत से ही बारिश की शुरुआत हो गयी थी, जो नवंबर तक होती रही. अच्छी बारिश होने के कारण खरीफ में खेती भी अच्छी हुई. आम तौर पर राज्य में जून से सितंबर के दौरान औसत वर्षा
1083.7 मिमी होती है. इस बार किसी भी जिले में इस औसत से कम बारिश नहीं दर्ज की गयी.
राज्य सरकार ने भी इस अवसर का लाभ उठाया. समय से करीब-करीब सभी जिलों को बीज पहुंचा दिया था. बीज वितरण के लिए सहकारिता विभाग के साथ तालमेल कर लैंपस व पैक्स के माध्यम से बीज बांट दिया गया.
जरूरत 50 लाख टन खाद्यान्न की
राज्य की करीब तीन करोड़ 29 लाख आबादी के लिए 50 लाख टन खाद्यान्न की जरूरत है. किसानों ने 65 लाख टन खाद्यान्न उपजा लिया है. पहली बार राज्य सरकार किसानों से धान की खरीद कर रही है. इसके लिए लैंपस व पैक्स को अधिकृत किया गया है. किसान वहां 1080 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से धान बेच रहे हैं.
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