हाल के वर्षों में कृषि उत्पादकता बढ़ने के साथ ही उसका संकट भी गहराया है. ऐसे में कृषि से जुड़ी चुनौतियांे की लंबे समय तक उपेक्षा घातक साबित होगी. झारखंड में भी अगर ऐसी चुनौतियां का हल नहीं निकाला गया, तो यहां खेती की बेहतर संभावनाओं पर ग्रहण लगते देर नहीं लगेगी. हाल में रांची के ठाकुरगांव व पलामू में दो किसानों की आत्महत्या की घटना ने इस संकट के गहराने के संकेत दे दिये हैं. इससे पूर्व भी बीते वर्ष सिमडेगा के एक टमाटर किसान ने महाजनों के कर्ज व खेती में हो रहे निरंतर नुकसान से तंग होकर आत्महत्या कर ली थी. डर है कि कहीं विकसित राज्यों का यह रोग झारखंड में भी गहरा न हो जाये. आंकड़े बताते हैं कि उदारीकरण के बाद देश में 25 लाख किसानों ने अबतक आत्महत्या की है. ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिले.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिनेशानंद गोस्वामी कृषि से जुड़े संकट के लिए केंद्र की यूपीए सरकार को दोष देते हुए कहते हैं कि खेती के लिए अगले 50 सालों के लिए अब एक रोडमैप तैयार करने की जरूरत है. वे कहते हैं कि देश में रोजगार देने वाला सबसे बड़ा सेक्टर खेती ही है, इसके बावजूद केंद्र सरकार उद्योग जगत को सब्सिडी दे रही है, किसानों को नहीं. वे खेती की दशा व दिशा सुधारने के लिए ग्रामसभा को मजबूत बनाने व जैविक खेती को प्रश्रय देने की जरूरत पर भी बल देते हैं.
सरकारी अध्ययन के अनुसार, झारखंड में 25 प्रतिशत फल, सब्जियां व फूल बर्बाद हो जाते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यहां फूड प्रोसेसिंग यूनिट व पर्याप्त मात्रा में कोल्ड स्टोरेज का नहीं होना है. राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी फूड पार्क योजना ठंडे बस्ते में है. राज्य के प्रमुख कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय के केंद्र में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री रहते हुए भी राज्य इस क्षेत्र में कोई बढ़त हासिल नहीं कर सका. किसान तिलेश्वर साहू राज्य में फूड प्रोसेसिंग यूनिट की जरूरत पर बल देते हुए केंद्र व राज्य दोनों सरकार की नीति को किसानों के लिए उपेक्षापूर्ण बताते हैं. साहू अफसोस प्रकट करते हुए कहते हैं कि झारखंड में पर्याप्त सब्जी उत्पादन होने के बावजूद इस राज्य को नेशनल वेजीटेबल (सब्जी) हब में शामिल नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. उल्लेखनीय है कि दो माह पूर्व केंद्र सरकार ने नेशनल सब्जी हब का गठन किया है, जिसमें उत्तरप्रदेश, बिहार सहित देश के आठ-नौ राज्यों को शामिल किया गया है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु राज्य में खेती के लिए बिहार की तर्ज पर रोडमैप तैयार करने की जरूरत बताते हैं. बलमुचु सवाल उठाते हैं कि बीते 11 सालों में सिंचाई या खेती के विकास के लिए कोई पहल नहीं की गयी, ऐसे में राज्य गठन का फायदा ही क्या है? वे कहते हैं खेती अगर फायदे का धंधा साबित नहीं होगी, तो बेचारा किसान डिप्रेशन में जायेगा और ऐसे में अनहोनी का डर बना ही रहेगा. वे कहते हैं कि भले ही राज्य की पहचान एक औद्योगिक व खनिज उत्पादक राज्य के रूप में हो, लेकिन जमीनी सच यह है कि राज्य के तीन चौथाई लोग खेती से ही अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं.
अगर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो देश का 50 प्रतिशत से अधिक मानव श्रम खेती में लगा है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद में उसकी हिस्सेदारी महज 17 प्रतिशत है. एक ओर प्रति व्यक्ति आय के राष्ट्रीय औसत में तेजी से इजाफा हो रहा है, तो दूसरी ओर किसान की आय बढ़ने के बजाय कम हो रही है. ज्यादातर किसानों के पास दो हेक्टेयर से छोटी जोत होना, सिंचाई का संकट, पारिवारिक विवाद भी खेती के संकट को गहरा करते हैं. एक ओर आबादी लगातार बढ़ रही है, तो दूसरी ओर प्रति किसान जोत छोटी होती जा रही है. झारखंड में माओवादी व नक्सली हिंसा के कारण कई जिलों के सैकड़ों गांव के लोग पास के शहर में पलायन कर गये हैं. यह भी यहां की खेती का एक संकट है. सिंचाई के साधान का अभाव जैसी समस्याओं भी जटिल हैं. किसानों के लिए खेती को त्रासदी के बजाय खुशहाली का माध्यम बनाने के लिए केंद्र व राज्य स्तर पर नयी योजनाएं तय करना वक्त की
जरूरत है.
दूसरी हरित क्रांति एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरे देश की पूर्वी भारत से उम्मीदें जुड़ी हुई हैं. झारखंड को पूर्वी भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य होने के कारण अपनी जिम्मेवारी निभानी पड़ेगी. वास्तव में उदारीकरण व निजीकरण के दौर में कृषि संकट गहराया है. अर्थव्यवस्था में आये बदलाव के कारण कृषि में मुनाफा घटता गया और खेती का पेशा घाटे का सौदा साबित हो गया. इसमें बदलाव की जरूरत है. पूर्वी भारत में कृषि का एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थान होने के कारण बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) पर भी उत्तरादायित्व बनता है और अपनी इसी जिम्मेवारी के मद्देनजर हमने कई पहल की है.
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने राज्य के विभिन्न जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र खोले हैं. इसके माध्यम से किसानों तक खेती की नयी व बेहतर तकनीक व उससे जुड़ी सूचनाएं पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. जैसे खेत का चुनाव कैसे करें, उसे तैयार कैसे करें, खरपतवार का नाश कैसे हो व उर्वरक का उपयोग कैसे करें. राज्य में 16 कृषि विज्ञान केंद्र बीएयू ने खोलवाये हैं, जबकि छह कृषि विज्ञान केंद्र अन्य संगठनों के हैं. हॉलीक्रॉस मिशन हजारीबाग, विकास भारती गुमला, आइसीएआर कोडरमा से किसानों को मदद की जा रही है. बीएयू आत्मा के सहयोग से काम कर रहा है. साथ ही अखबार, टीवी, रेडियो, किसान कॉल सेंटर, इंटरनेट, मोबाइल, एसएमएस आदि के माध्यम से खेती से संबंधित जानकारियां व मौसम आदि की सूचनाएं दी जाती हैं. झारखंड में दस प्रतिशत भूमि के लिए ही अच्छा सिंचाई साधन उपलब्ध है. यहां बारिश होने का भी निश्चित समय नहीं है. कभी कम तो कभी ज्यादा बारिश होती है. यहां बारिश के जल का भी संचयन नहीं हो पाता है. अत: बेहतर कृषि के लिए बारिश के जल का संचय जरूरी है. पानी को रोकने के लिए कुआं, तालाब, चेकडैम आदि का निर्माण किया जाना चाहिए. किसान अपने खेत में 12 गुणा 10 फीट का गड्ढा कर उसके चारों किनारों को मजबूती से बांध कर भी जल संचय कर खेती कर सकते हैं. किसानों को अच्छी पैदावार के लिए उत्तम किस्म के बीज का उपयोग करना चाहिए. किसान बीएयू से किसी भी जानकारी के लिए संपर्क कर सकते हैं. बेहतर खेती और अच्छी फसल के लिए किसान निकटतम वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों से संपर्क कर सकते हैं.
(परवेज कुरैशी से बातचीत पर आधारित
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