मंगलवार, 25 जून 2013

अपनी बोली, अपनी पढ़ाई

झारखंड के अधिकांश क्षेत्र में स्थानीय भाषा बोली जाती है जबकि यहां के स्कूलों में मानक भाषा में पढ़ाई होती है. दुर्गम इलाकों में शिक्षा बिल्कुल ही नदारद है. हम देखते हैं कि सरकारी विद्यालयों में नामांकन 90 प्रतिशत तक है, लेकिन बच्चों की उपस्थिति नगण्य है. ग्रामीण क्षेत्रों में बसी बस्तियां बिखरी हुई हैं. प्राथमिक विद्यालयों में स्थानीय भाषा में पढ़ाई नहीं होती है. ऐसे में बच्चे लगन के साथ पढ़ाई नहीं कर पाते हैं और स्कूल जाने से भी कतराते हैं.
लांकि ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों में ज्यादा से ज्यादा उपस्थिति दर्ज हो, इसके लिए सरकार और एनजीओ के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं. इस दिशा में गैर सरकारी संस्था नालंदा का प्रयास सराहनीय है. प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र के कार्य कर रही नालंदा ने झारखंड की संस्कृति, भाषा आदि को अपनी गतिविधियों में शामिल किया है, ताकि बच्चों में शिक्षा के अलख जगाने का उद्देश्य पूरा हो सके.
नालंदा प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में झारखंड और उत्तर प्रदेश में कार्यरत एक शैक्षिक नवाचार केंद्र है. नालंदा के मुख्य कार्य प्रशिक्षण सामग्री प्रारूपों का निर्माण, पाठ्यक्रम निर्माण, अनुपूरक पाठ्य सामग्री निर्माण, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए नयी विधाओं सामग्रियों का विकास करना हैं. इसके अलावा अनुश्रवण, शैक्षिक शोध, अध्ययन, प्रकाशन, कार्यशाला, सेमिनार और बच्चों के लिए नवाचार विद्यायल (विशेष रूप से बालिका शिक्षण) का संचालन किया जाता है.
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में कुछ बुद्धिजीवियों ने मिलकर वर्ष 1996 में शैक्षिक नवाचार के एक संदर्भ केंद्र के रूप में नालंदा संस्था की स्थापना की थी. लगभग एक दशक बाद वर्ष 2004 के दिसंबर माह में नालंदा का विस्तार कार्यालय रांची में खोला गया. इसका मुख्य उद्देश्य झारखंड, बिहार छत्तीसगढ़ में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं को तकनीकी सहयोग प्रदान करना था. संस्था का लक्ष्य सभी बच्चों को गुणात्मक प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराना है. चाहे वह किसी भी जाति, धर्म और लिंग का हो.
प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में इस संस्था ने उल्लेखनीय कार्य किये हैं. खास तौर पर बालिका शिक्षा के लिए. सर्व शिक्षा अभियान के तहत साहिबगंज में प्रभावी पुस्तकालय कार्यक्रम का क्रियान्यवन, प्रभावी स्कूल पुस्तकालय पैकेज का निर्माण इसके अंतर्गत 48 सीआरपी एवं 48 शिक्षकों का प्रशिक्षण रिसोर्स पुल का निर्माण  किया गया है. प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से 600 विद्यालयों तक नालंदा ने अपनी पहुंच बना ली है. राज्य की स्वयंसेवी संस्थाओं को तकनीकी सहयोग दिया, संदर्भ समूह का निर्माण संस्थाओं में शिक्षक प्रशिक्षकों को तैयार किया और रीच इंडिया प्रोजेक्ट के सहयोगी 17 स्वयंसेवी संस्थाओं को झारखंड एवं छत्तीसगढ़ में प्रशिक्षण और तकनीकी सहयोग दिया है. नालंदा वर्तमान में रांची के दो प्रखंड रातू बेड़ो के मकतब/मदरसों में प्राथमिक शिक्षा के सुदृढ़ीकरण का कार्य कर रही है.
ग्रामीण परिवेश में रहनेवाली ऐसी बच्चियां जो कभी स्कूल गयी ही नहीं या किसी कारण से, जिन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया हो. नालंदा के शिक्षक उन बच्चियों के घरों में जाकर उनके अभिभावकों से मिलते हैं और घर के बच्चों, खासकर लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए अभिभावकों को प्रेरित करते हैं. शिक्षक गांव के ही पढ़े-लिखे युवा होते हैं, जो गांव में ही बच्चों को पढ़ाते हैं और शेष समय में अपना कार्य करते हैं. अध्ययन कार्य के लिए भवन गांव के लोग ही उपलब्ध करा देते हैं. इन शिक्षकों को लड़कियों को पढ़ाने के लिए विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया जाता हैं. शिक्षकों के लिए साल में 20 दिनों का प्रशिक्षण होता है. सभी कार्यों में गांववालों की सहभागिता होती है. शिक्षिकों के चयन, बालिकाओं के नामांकन आदि में गांव के लोगों से सलाह लिया जाता है. सेंटर नियमित रूप से संचालित हों, इसकी मॉनिटरिंग भी की जाती है. तुलनात्मक रूप से देखा गया है कि नालंदा के सेंटर में जिन लड़कियों को कक्षा पांच तक की शिक्षा दी गयी, या जो कक्षा दो या तीन में पढ़ रही हैं, उन लड़कियों का प्रदर्शन अन्य विद्यालयों के उन्हीं कक्षाओं में पढ़ रही लड़कियों से प्रदर्शन कहीं बेहतर था. झारखंड के रांची जिला स्थित बेड़ो में प्रमुखता के साथ कार्य कर रही नालंदा के 30 सेंटर हैं. ये सेंटर बेड़ो के बारीडीह, करंजटोली, सेमरा, गड़गांव आदि गांवों में हैं. इन सेंटरों पर पढ़ाई करनेवाले कुल बच्चों की संख्या 818 है. जिनमें कक्षा पांच में 225, कक्षा चार में 193, कक्षा तीन में 169, कक्षा दो में 105 और कक्षा एक में 105 बच्चे हैं. इससे पहले इंट्री फेज होता है, जिसमें छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल आने के लिए रुचि जगायी जाती है. कक्षा एक से तीन तक के लिए एक साल का कोर्स कराया जाता है. वर्ष 2008 से 2012 तक में कुछ 1454 बच्चे नालंदा के विभिन्न सेंटरों से पढ़ाई कर लाभान्वित हुए है. सेंटर में कक्षा पांच तक की पढ़ाई होती है. इसके बाद बच्चे-बच्चियां आगे की पढ़ाई के लिए सरकारी विद्यालयों या प्राइवेट स्कूलों में नामांकन कराते हैं.

खूब पढ़ने की ललक पूरी हुई

लगन की आयु लगभग 13 वर्ष है. वह अपने नौ भाई-बहनों में सबसे बड़ी है. परिवार का मुख्य पेशा मजदूरी एवं कृषि है. खेत से सालभर के लिए खाने के लिए अनाज की पैदावार नहीं होने के कारण अपने भरण-पोषण के लिए यह परिवार ईंट ों में पलायन कर जाता था. आज भी माता-पिता और लगन में से किसी एक को अवश्य ही जाना पड़ता है. लगन के पढ़ने लिखने की उम्र में उसका परिवार मौसमी पलायन कर जाता था. ऐसे में बड़ी होने के नाते छोटे भाई बहनों की देखभाल की जिम्मेवारी लगन पर होती थी. पांच साल की उम्र में जब वह अपने माता-पिता के साथ ईंटा पर गयी तो उसे अपने भाई-बहनों के साथ अन्य बच्चों की भी देखभाल करनी होती थी. इस काम के एवज में उसे भी कुछ पैसे मिल जाते थे. लगन से पढ़ाई के बारे में पूछने पर उसने कहा कि घर में खाने के लिए रहे, तब पढ़ाई किया जाये.
लगन को बचपन से पढ़ने का शौक था और वह पढ़ना भी चाह रही थी. हालांकि परिवार की स्थिति अब पहले से बेहतर है. ईंट में काम करके हर साल 10 से 12 हजार रुपये भी कमा लेती थी, लेकिन लगन अब पढ़ाई कर रही है. वह खूब पढ़ना चाहती है. लगन की इस इच्छा को इंपैक्ट नालंदा ने पूरा किया. निर्मला मैडम ने लगन का दाखिला सेंटर में कराया. अब लगन रोज नालंदा के शिक्षा केंद्र बलरामपुर में पढ़ाई के लिए जाती है. उसके माता पिता ने भी लगन के लगन को देखते हुए उसे ईंटा पर नहीं ले जाने की हामी भर दी. लगन अपनी इच्छाओं को पूरा होता देख काफी खुश है. अब वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए आगे की पढ़ाई भी करना चाहती है



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