24 मार्च को हर साल विश्व यक्ष्मा दिवस के रूप में मनाया जाता है. हालांकि कुछ साल पहले तक जानलेवा मानी जाने वाली इस बीमारी को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है. मगर इसके बावजूद देश के लोग इस बीमारी के शिकार होकर असमय काल-कलवित हो रहे हैं. सिर्फ जानकारी के अभाव में झराखंड में हर रोज 40 लोग टीबी के कारण बेमौत मारे जा रहे हैं. जबकि हर जिले में यक्ष्मा विभाग है, जिसका काम एक-एक रोगी को तलाश कर उसकी मुफ्त चिकित्सा करना है. अधिकांश मामलों में तो रोगियों को पता ही नहीं चलता है कि वे टीबी के शिकार हो चुके हैं. ऐसे में इस बीमारी का मुकाबला करने के लिए जागरुकता ही सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकती है.
क्या है टीबी- टीबी एक संक्रामक रोग है, जो रोगी के खांसने, कफ, छींक आदि स फैलता है. 80 फीसदी मामले में यह रोगी के फेफड़े को नुकसान पहुंचाता है और अन्य मामलों में यह दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाता है. इसका रोगी धीरे-धीरे कमजोर होता है और खून की उल्टियां करने लगता है. फिर कई मामलों में उसकी मौत हो जाती है.
रोग के लक्षण
1. तीन हफ्ते से अधिक समय से खांसी होना.
2. शाम को बुखार आना.
3. वजन घटना.
4. दम फूलना.
5. छाती में दर्द.
6. कफ में खून आना.
7. रात में पसीना आना.
8. भूख नहीं लगना.
अगर किसी रोगी में ये लक्षण पाये जायें तो उसे जांच कराने के लिए टीबी केंद्र में ले जाया जाना चाहिए. राज्य में इस वक्त कुल 68 टीबी केंद्र और 298 उपकें्रद काम कर रहे हैं. ये केंद्र न सिर्फ मरीज की जांच करते हैं बल्कि उसे मुफ्त दवाइयां भी उपलब्ध कराते हैं. आजकल टीबी का इलाज डॉट पद्धति से किया जाता है. अगर इस पद्धति से इलाज कराया जाये तो अधिकांश मामलों में टीबी ठीक हो जाता है.
डॉट पद्धति
डॉट का अर्थ है डायरेक्ट ऑब्जर्व थेरेपी यानी प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की देख रेख में उपचार. टीबी के इलाज में डॉट पद्धति को काफी सफल माना जा रहा है. ऐसा देखा गया है कि खुद अपने स्तर पर इलाज करने वाले 61 फीसदी रोगी ही पूरी तरह ठीक हो पाते हैं, जबकि डॉट के जरिये इलाज करवाने वाले 86 से 90 फीसदी रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो पाते हैं. इससे रोग के जल्द ठीक होने में तो मदद मिलती ही है, साथ ही दूसरे लोगों तक इस रोग का प्रसार भी नहीं होता है. झारखंड के हर जिले में यक्ष्मा विभाग के कर्मी कार्यरत हैं जो हर चिित टीबी के रोगी को डॉट के जरिये दवा उपलब्ध कराते हैं.
अत: आवश्यक यह है कि जरा सी भी आशंका होने पर लोग अस्पताल में जाकर रोग की जांच करायें और रोग का पता चलने पर सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों के निरीक्षण में अपना उपचार करायें
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