गुरुवार, 6 जून 2013

आमुख कथा
पंचायतनामा डेस्क
लंबे इंतजार व संघर्ष के बाद राज्य में पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई है, मगर इसका लाभ तभी मिल पायेगा जब हम इस व्यवस्था को ठीक तरह से समझ पायेंगे. चाहे मुखिया हो या जिला परिषद अध्यक्ष या फिर आम ग्रामीण सबको यह पता होना चाहिए कि इस कानून के अंदर उन्हें क्या-क्या अधिकार मिले हैं. साथ ही उनसे क्या-क्या अपेक्षा की जाती है. पंचायतनामा के जरिये आपके अधिकार और कर्तव्यों के बारे में हम आपको नियमित जानकारी देना चाहते हैं. इसी सिलसिले में पहली कड़ी के रूप में हम यह जानकारी सवाल-जवाब के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.
त्रिस्तरीय पंचायती राज निकाय क्यों कहा जाता है? इसके तीन स्तर से क्या मतलब निकलता है, क्या तीनों स्तर एक-दूसरे से जुड़े हैं?

त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था तीन स्तरों पर काम करती है. जैसा कि आपने चुनाव के दौरान भी महसूस किया होगा कि आपने तीन स्तर पर प्रतिनिधियों को चुना. पंचायत के लिए, ब्लॉक के स्तर पर और जिला स्तर पर. पंचायत के स्तर पर वार्ड सदस्य और मुखिया होते हैं. प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति सदस्य और प्रमुख होते हैं, वहीं जिला स्तर पर जिला परिषद सदस्य और उनके अध्यक्ष(जिला परिषद अध्यक्ष). जैसा कि आप जानते हैं हर ग्राम पंचायत कई वाडरें से बनता है, उसी तरह पंचायत समिति और जिला परिषद के क्षेत्र अलग-अलग होते हैं. आप जिन लोगों को पंचायत समिति सदस्य के रूप में चुनते हंै, वे ही प्रमुख को चुनते हैं. उसी तरह जिला परिषद अध्यक्ष को हमारे द्वारा चुने गये जिला परिषद सदस्य चुनते हैं. ग्राम पंचायत व पंचायत समिति को जिला परिषद से संबद्ध किया गया है, लेकिन तीनों ही निकाय अलग-अलग फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं.
ग्राम पंचायत व ग्रामसभा में क्या अंतर है. ग्रामसभा की कौन-सी विशेषता उसे लोकसभा, विधानसभा से भी विशिष्ट बनाती है?

ग्राम पंचायत पंचायती राज व्यवस्था की आधारभूत इकाई है, इसके सभी सदस्य वार्ड क्षेत्रों से निर्वाचित होते हैं. पर, जब ग्राम पंचायत की बैठक बुलायी जाती है, तो उस बैठक को ग्रामसभा कहते हैं. ग्रामसभा के सदस्य पंचायत के सभी मतदाता होते हैं. मगर लोकसभा या विधानसभा के सदस्य सभी मतदाता नहीं बल्कि उनके द्वारा चुने गये प्रतिनिधि होते हैं. आप अपनी बात ग्रामसभा में तो सीधे उठा सकते हंै, पर लोकसभा और विधानसभा में अपने प्रतिनिधियों के जरिये ही अपना पक्ष रख सकते  हंै. लोकसभा, विधानसभा, जिला परिषद व पंचायत समिति की बैठक में उसके निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं, उनकी संख्या कोरम का आधार होती हैं और नियम भी वही बनाते हैं व फैसले भी वही लेते हैं.
पंचायतों के गठन का आधार क्या होता है?
सरकार किसी स्थानीय क्षेत्र जिसमें एक या अधिक गांव व टोले शामिल हो, को ग्राम पंचायत घोषित कर सकती है. पंचायत क्षेत्र की आबादी पांच हजार के लगभग होनी चाहिए. अगर एक पंचायत में दो या अधिक गांव हों तो सबसे अधिक जनसंख्या वाले गांव का नाम ही पंचायत का नाम होगा. जिलाधिकारी को पंचायतों के स्वरूप में बदलाव करने का अधिकार है. वह पंचायत क्षेत्र के नाम में भी परिवर्तन कर सकता है.
ग्राम पंचायत की कार्य अवधि क्या है?

ग्राम पंचायत की कार्य अवधि पांच साल की होती है. समय की गिनती पहली ग्राम सभा के दिन से शुरू होती है. अगर किसी ग्राम पंचायत को किसी कारण से विघटित कर दिया जाता है, तो विघटन के छह महीने के अंदर चुनाव करवा कर उसका गठन करवाना होता है.

केस स्टडी

1 गाड़ीखास पंचायत में पहुचंने पर आप महसूस करेंगे कि पंचायत चुनाव के बाद हमारे गांव बदल रहे हैं. यहां का पंचायत सचिवालय नवीनतम सूचनाओं से अपडेट है. पंचायत स्तर के काम का निबटारा पंचायत मुख्यालय में ही होता है. लोगों को उसके लिए प्रखंड मुख्यालय पड़वा नहीं जाना पड़ता है. प्रत्येक बुधवार को पंचायत सचिवालय में मुखिया, पंचायत सचिव व रोजगार सेवक उपस्थित रहते हैं. ये लोगों की समस्या सुनते हैं व उसे दूर करने की पहल भी करते हैं.

पंचायत में कौन-सी योजना चल रही है. इलाके के ऐसे लोग जो गरीबी रेखा से नीचे हैं, उनका नाम व क्रमांक पंचायत सचिवालय की दीवार पर अंकित है. पंचायत सचिवालय में इंदिरा आवास, वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन से जुड़े मामले निबटाये जाते हैं. पंचायत के लिए योजनाओं का चयन ग्रामसभा के माध्यम से किया जाता है. अगर योजनाओं की सूची लंबी होती है, तो उसकी प्राथमिकता तय की जाती है. चल रही योजनाओं को लेकर अपडेट जानकारी कि उसके लिए कितना काम हुआ है, कितना होना बाकी है, पंचायत सचिवालय के पास है. पंचायत के युवा मुखिया प्रमोद यादव कहते हैं कि हम सामूहिक प्रयास से अपनी पंचायत को आदर्श पंचायत बनाने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले दिनों पलामू उपायुक्त पूजा सिंघल ने इस पंचायत का दौरा कर इसकी तारीफ की थी व कहा था कि गाड़ीखास पंचायत की तरह अन्य पंचायतें भी हो जायें, तो प्रखंड कार्यालय पर दबाव कम होगा. इससे विकास की गति भी तेज होगी.
(पलामू से अविनाश की रिपोर्ट)


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 गढ़वा प्रखंड की पंचायत समिति की बैठक अबतक पांच बार हुई है. इन बैठकों में मनरेगा, शिक्षा, पेयजल एवं आंगनबाड़ी केंद्रों से संबंधित निर्णय लिये गये. पर, इन बैठकों में लिये गये निर्णय पर अबतक कार्रवाई नहीं के बराबर हुई है. पंचायत समिति की बैठकों में सामान्यत: अधिकारी उपस्थित नहीं रहते हैं. विकास योजनाओं की स्वीकृति के लिए पंचायत समिति से मंजूरी नहीं ली जाती है. पंचायत समिति के सदस्यों का कहना है कि उन्हें पंचायत राज से संबंधित अधिकार नहीं मिले हैं और बैठक सिर्फ कानूनी बाध्यता के कारण की जा रही है. पंचायत समिति के पास अपना कोई भवन नहीं है. प्रखंड कार्यालय के ही एक भवन में प्रमुख के बैठने की व्यवस्था की गयी है. सिर्फ प्रमुख व उपप्रमुख को सात-सात माह का मानदेय मिला है. पंचायत समिति संघ के अध्यक्ष व पंचायत समिति सदस्य संजय तिवारी कहते हैं कि यहां अफसरशाही हावी है और पंचायत प्रतिनिधि अबतक उपेक्षित हैं.   (गढ़वा से जितेंद्र सिंह की रिपोर्ट)


अन्य जिला परिषदों की तरह हजारीबाग जिला परिषद भी व्यवस्थति नहीं हो सकी है.  डीआरडीए की जिम्मेवारी भी नहीं मिली है. प्रस्तुत है बैठकों व कामकाज का ब्योरा :

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