एडस पीडि़तों की आस हैं सिस्टर ब्रीटो

नया जीवन लेकर आयीं दीदी
सलाउद्दीन
द्रह फरवरी, 2005
को उन्होंने स्नेह दीप सामुदायिक देखभाल केेंद्र की स्थापना की. जहां झारखंड भर के एचआइवी पीडि़त पुरुष-महिला को रख कर वे उनकी देखभाल करती हैं. सामान्य संक्रमण का इलाज एक सप्ताह करने के बाद वे रोगी को वापस घर भेजती हैं. दूसरे स्टेज में उसके घर में जाकर परामर्श व दवाइयां उपलब्ध कराती हैं. अभी तक 2700 एचआइवी पीडि़तों को केेंद्र में रख कर इलाज किया जा चुका है. वर्तमान में तरवा सामुदायिक केेंद्र में 30 एचआइवी पीडि़त इलाजरत हैं. इसके अलावा एचआइवी पीडि़त पति के साथ सामान्य महिलाओं को रहना सिखाया जा रहा है. वे एचआइवी पीडि़त पुरुष व महिला के बच्चों और अनाथ एचआइवी बच्चों के लिये हजारीबाग में ज्ञान दीप आवासीय विद्यालय चला रही हंै. वर्तमान में कक्षा एक से पांच तक में 70 बच्चे आवासीय सुविधा के साथ पढ़ाई कर रहे हैं.
इसके अलावा हजारीबाग जिले में चुरचू प्रखंड, चौपारण, बरका, बिष्णुगढ़, इचाक व चतरा जिले के इटखोरी प्रखंड और गिरिडीह जिले के बगोदर प्रखंड में ड्रॉप इन सेंटर (सामुदायिक देखभाल उप केेंद्र) संचालित कर रही हैं. गांव, पंचायत व प्रखंड स्तर पर एचआइवी एड्स पीडि़त महिला पुरुष की प्रारंभिक जांच के बाद दवा दी जाती है. परामर्श व जागरूकता का काम होता है. गंभीर रोगी को देखभाल के लिए हजारीबाग स्थिति केंद्र में लाया जाता है. सिस्टर ब्रीटो ने एचआइवी पॉजिटिव नेटवर्क का गठन किया है. एसपी के नेतृत्व यह कानूनी सेल का काम करता है. जहां एचआइवी पीडि़त महिला-पुरुष के अधिकारों का हनन होता है तो यह नेटवर्क उसकी लड़ाई लड़ता है. संपत्ति की सुरक्षा भी की जाती है.
तीन महिला परामर्शी पुष्पा टोप्पो, आश्रिता कुजूर, नेहा कुमारी समेत कई महिला स्वयं सहायता समूह की प्रधान महिला को एचआइवी एडस जागरूकता जैसे कार्यों से जोड़ा गया है. जो गांव-गांव जाकर विशेष कर महिलाओं को एचआइवी एडस के खतरों व उसके विभिन्न पक्षों के संबंध में सचेत करती हैं. छोटी सी भूल जीवन भर व आनेवाली पीढ़ी के लिये परेशानी का सबब नहीं बन जाये इसकी काउंसलिंग की जाती है. गांव में महिलाओं के बीच बताया जाता है कि झाड़-फूक, अंधविश्वास और छुआछूत का संबंध एचआइवी एडस से नहीं है.
सिस्टर ब्रीटो एचआइवी पीडि़त प्रखंडों के सुदूरवर्ती गांव में महिला समूह के साथ लगातार बैठक करती हैं. एचआइवी पीडि़त महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाने में भी सफल हुई हैं. यह समूह महिला नेटवर्किंग का काम कर रहा हैं. अन्य महिलाओं को बता रही हैं कि एचआइवी पीडि़त होने के बाद भी बेहतर जीवन जिया जा सकता है. एचआइवी पीडि़त विधवा को बकरी पालन, मछली पालन व अगरबत्ती बनाने एवं जीवकोपार्जन के लिये रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण दिया जा रहा है
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