साइकिलवाली सहिया दीदी

साइकिल वाली सहिया बहन. जी हां, यही पहचान है किस्वंती देवी की. पलामू के सतबरवा इलाके के योगियापोखरी गांव की रहने वाली किस्वंती पेशे से सहिया हैं और अपने समर्पण व सेवा भाव से उन्होंने क्षेत्र में अलग पहचान बनायी है. इस इलाके में सरकारी स्वास्थ्य सेवा लेस्लीगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ही उपलब्ध है. ऐसे में वे बिना दूरी की परवाह किये जरूरत पड़ने पर मरीजों को साइकिल पर बैठा कर 30 किमी दूर लेस्लीगंज पहुंचत जाती हैं. मैट्रिक तक शिक्षित किस्वंती देवी साइकिल पर बैठाकर अकसर महिलाओं को अस्पताल में भी भरती भी करवाती हैं. वह साइकिल से पूरे क्षेत्र का भ्रमण करती है और सुबह ही घर से निकल पड़ती हैं. किस्वतंती कहती हैं कि सेवा से जो संतुष्टि मिलती है, उससे थकान दूर हो जाती है. कम पारिश्रमिक मिलने के कारण वे बेहतर आय के लिए नन बैंकिंग कंपनी से जड़ी हैं. उनके पति विनेश चंद्रवंशी भी उनके काम में मदद करते हैं.
निर्मला पुतुल
संताली भाषा की जानी-पहचानी कवियित्री निर्मला पुतुल संघर्ष व जीवटता की मिसाल हैं. आधी आबादी (महिलाओं) के हक की पैरोेकार निर्मला कहती हैं शहरी क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति थोड़ी सुधरी है. पर, गांव की महिलाएं अभी भी पिछड़ी हैं, उपेक्षित हैं, शोषण की शिकार हैं. समाज में महिलाओं की स्थिति की मजबूती के लिए उनका आर्थिक स्वावलंबन जरूरी है. अगर वे आर्थिक रूप से सशक्त होंगी, मजबूत होंगी, तभी वे अपने जीवन से जुड़े फैसले खुद ले सकेंगी. निर्मला कहती हैं : पंचायत राज व्यवस्था से झारखंड की महिलाओं को आगे बढ़ने का बड़ा अवसर मुहैया कराया है. यह बात भी सही है कि बड़ी संख्या में आरक्षण की वजह से महिलाएं जीत कर आयी हैं, लेकिन उनके पीछे बिचौलिये घूम रहे हैं यह भी सही है. यह कड़वा सच है कि पंचायत राज निकायों में चुनी गयी बहनें पुरुषों के हाथ में खेल रही हैं. इससे बचने के लिए उन्हें खुद को मजबूत करना जरूरी है.
पुनीता के संघर्ष से बचा बाकुलिया झरना
देवघर जिले के मधुपुर की एक साधारण-सी महिला पुनीता ने कभी बाकुलिया झरने को बचाने का सपना देखा था. आज वह सच है. उनके संघर्ष से बाकुलिया झरना अब स्वच्छ कल-कल बहता है. पुनीता कब रसोई के बरतनों को छोड़ बाकुलिया झरना बचाओ आंदोलन से जुड़ गयीं और बैनर आदि बांधने व आंदोलन के साथियों के लिए व्यवस्था का काम संंभालने लगीं, यह उन्हें भी नहीं याद. इस संघर्ष की एक कहानी है. पुनीता प्रकृति के इस धरोहर को बचाने के लिए वहां के आसपास की ग्रामीण महिलाओं से मिलीं. मजदूरों और उनकी पत्नियों को संगठित किया. बाकुलिया में गाछ लगाने का उत्साह उन्होंने ही जगाया. गत वर्ष बाकुलिया उत्सव में पहली बार पांच गाछ लगाने की सोच भी इनकी ही थी. ये पांच गाछ ग्रामीणों के सहयोग व सहभागिता के प्रतीक हैं. इस कार्य में उनके पति उत्तम पीयूष का मार्गदर्शन व दोनों बेटियां हर्षिता व स्नेहिल का सहयोग मिला. पहली बार बाकुलिया उत्सव का आयोजन भी कई मायने में महत्वपूर्ण है. वीरान-सुनसान जगह पर उत्सव. सैकड़ों लोगों का जुटान. पुनीता बाकुलिया संघर्ष की सच्ची साथी बनकर उभरीं. आज देवघर जिला ही नहीं, बल्कि पूरे संताल परगना में बाकुलिया झरने को पहचान दिलाने का श्रेय पुनीता को जाता है.
रिटायरमेंट के पैसे से बनवाया स्कूल
स्कूल तो बहुतों ने बनवाया, लेकिन अपनी सेवानिवृत्ति के पैसों से बहुत कम ने ही स्कूल बनवाया होगा. पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड के किशोरीपुर की सेवानिवृत्त शिक्षिका मालती मांझी ने ऐसा ही एक आदर्श प्रस्तुत किया. उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के सात लाख रुपये से जोड़ाम में एक स्कूल बनवाया. किशोरीपुर व जोड़ाम के बीच की दूरी लगभग पांच किलोमीटर है. पिछले साल मालती मांझी वीणा पाणि शिशु विद्या मंदिर भवन का उदघाटन मालती मांझी से ही गांव के लोगों ने करवाया. फिलाहल इस स्कूल में 150 बच्चे पढ़ रहे हैं, जिनकी संख्या आने वाले दिनों में और बढ़ेगी.
मालती मांझी के पति भी शिक्षक थे. उनका देहांत हो चुका है. दो बेटियां हैं, दोनों की शादी भी हो चुकी है और उनका घर बस चुका है. ऐसे में मालती ने अपने जीवन को शिक्षा के लिए समर्पित करने की ठान ली और स्कूल बनवाने का फैसला लिया. पूर्व में जोड़ाम में शिशु मंदिर विद्यालय एक झोपड़ी में चलता था, अब उनके प्रयासों से विद्यालय का अपना भवन है. उन्होंने विद्यालय का नाम अपने नाम पर करने की कोई इच्छा नहीं जतायी थी, बल्कि ग्रामीणों ने उनके सम्मान में इस विद्यालय का नाम उनके नाम पर कर दिया. मालती मांझी कहती हैं : ग्रामीण इलाकों में भी शिक्षा का विकास हो, बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले व वे जीवन में आगे बढ़ें.
महिला की स्थिति सुधारने की हो पहल
अपने सिद्धांतों व फैसलों के लिए पहचानी जाने वाली पूर्व आइएएस अधिकारी लक्ष्मी सिंह राज्य में माध्यमिक व इंटरमीडिएट तक की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने में जुटी हैं. अपने काम व समाज को लेकर संवेदनशील झारखंड अधिविद्य परिषद की अध्यक्ष लक्ष्मी सिंह कहती हैं कि राज्य में शहरी क्षेत्र की महिलाओं की स्थिति तो कुछ हद तक ठीक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. वे कहती हैं कि ग्रामीण महिलाओं के पास मूलभूत सुविधा भी नहीं रहना उनके साथ बड़ा अन्याय है. प्रशासन को उनकी स्थिति सुधारने के लिए पहल करनी चाहिए. वे कहती हैं पंचायती राज निकाय में महिलाओं की भागीदारी मजबूत होनी चाहिए. इसके लिए सिस्टम को ठीक करना होगा. उनके अनुसार, अलग-अलग क्षेत्र की महिलाओं की आवश्यकता भी अलग-अलग होती है, इसलिए महिलाओं से संबंधित योजनाओं के लिए बजट तैयार करने के दौरान पंचायत निकायों की सलाह लेने का एक तंत्र बनाना चाहिए व उनकी सलाह को महत्व भी देना चाहिए.
छवि के साथ लोगों की सुरक्षा की भी चिंता
झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी देवघर में सालों भर श्रद्धालुओं-पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है. देवघर में ट्रैफिक कांस्टेबल के रूप में यातायात व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए हमेशा तत्पर मार्शिला मुर्मू (पुलिस संख्या 622) बताती हैं कि हमारी कोशिश बेहतर परिवहन व्यवस्था के साथ लोगों के जीवन की सुरक्षा की भी होती है. वे बताती हैं कि उनकी कोशिश ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर आमलोगों की मानसिकता में बदलाव लाने की होती है. सड़क सुरक्षा अभियान से जुड़ी मार्शिला बेहतर कार्य कर लोगों के मन मंे पुलिस की छवि भी सुधारना चाहती हैं. वे कहती हैं कि इसी से जनता का विश्वास बढ़ेगा. बिना हेलमेट, लाइसेंस व कागजात के वाहन चलाने वालों के खिलाफ सख्त मार्शिला कहती हैं : लोगों को समझना चाहिए कि हेलमेट पहनना उनके खुद के जीवन की रक्षा के लिए जरूरी है, न कि पुलिस के फाइन से बचने के लिए. एक और महिला ट्रैफिक कांस्टेबल सावित्री मुर्मू (पुलिस संख्या 620) इनकी बातों से सहमति जताते हुए कहती हैं कि ट्रैफिक नियमों का पालन हमारी पहली प्राथमिकता है.
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