संजय
इस इलाके में लोग सरसों के साग के साथ मकई की रोटी तो नहीं, लेकिन गेहूं की रोटी व चावल लोग खूब खाते हंै. साथ ही सरसों व उसके तेल का भी उत्पादन करते हैं. सरसों की खेती के लिहाज से अनगड़ा प्रखंड के 14 गांव मिनी पंजाब बन गये हैं. प्रखंड के अन्य गांवों में भी सरसों की छिटपुट खेती होती है, लेकिन इन 14 गांवों का लगभग हर परिवार न्यूनतम 20 डिसमिल व अधिकतम 50 डिसमिल जमीन पर हर वर्ष सरसों जरूर लगाता है. यही वजह है कि यहां के लोगों को सरसों तेल खरीदने की जरूरत नहीं होती. जरूरत भर सरसों घर में रखने के बाद किसान इसे खुले बाजार में बेच देते हैं. इन सभी गांवों में एक बात समान है कि यहां विवेकानंद सेवा संघ की पहुंच है. रामकृष्ण मिशन आश्रम से इन्हें प्रेरणा मिलती है.
काशी टोली के महेंद्र महतो की मानें, तो कम पूंजी की लागत व कम मेहनत भी सरसों की खेती करने को प्रेरित करती है. बाजार में सरसों तेल की ऊंची कीमत व इसमें मिलावट की शिकायत भी इसकी एक वजह है. सितंबर-अक्तूबर से खेत में सरसों के बीज बोये जाने लगते हैं. देर से फसल दिसंबर तक भी लगती है. फरवरी-मार्च में कटने तक सरसों को दो-तीन सिंचाई की ही जरूरत होती है. बढि़या फसल होने पर 10 डिसमिल जमीन से करीब एक क्विंटल सरसों होता है. उक्त 14 गांव के करीब 1200 परिवार 30 हजार 700 डिसमिल जमीन पर सरसों लगाते है. इससे इन्हें हर वर्ष लगभग तीन हजार क्विंटल सरसांे मिलता है. ढाई किलो सरसों से एक लीटर तेल निकलता है. इस लिहाज से इन 14 गांवों में करीब 1.25 लाख लीटर सरसों तेल का उत्पादन होता है.
पहले सरसों की पेराई में काफी परेशानी होती थी. ग्रामीणों को इसके लिए गोला-चितरपुर जाना पड़ता था, लेकिन अब प्रखंड के कुटे गांव में तेल पेराई की मशीन लग गयी है. यहां पांच रुपये किलो की दर से सरसों की पेराई होती है. पेराई के बाद बची खली नौ रुपये किलो की दर से बिक जाती है. ग्रामीण खली मिल में ही छोड़ देते हैं, तो इन्हें पेराई शुल्क नहीं देना होता व खली की कीमत में से पांच रुपये किलो पेराई शुल्क काट कर इन्हें शेष चार रुपये प्रति किलो के हिसाब से पैसे भी मिल जाते हैं.
14 गांव व खेतिहर परिवार
गांवपरिवार
काशीटोली18
नगराबेड़ा160
महुआ टुंगरी55
गुंदली टोली40
साहेदा60
जशपुर60
हरातू105
जैलमा100
रेशम-बनादाग100
सोसो (नवागढ़)110
बरवाटोली65
ओबर200
बदरी70
लेप्सर-धुलेटा85
(नोट : परिवार की संख्या अनुमानित है.)
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