
ग्रामसभा के अधिकार का अपहरण
विधायकों के दबाव में झुकी सरकार
देवघर प्रकल्प की बैठक में लिये गये असंवैधानिक निर्णय को पूरे राज्य में किया लागू
चापानल के लिए स्थल का चयन करना था ग्रामसभा को
विधायकों ने मनमाने ढंग से कराया सूची का अनुमोदन
किसी ने घर बैठे तो किसी ने जेल से तय किया चापानल का स्थल चयन
मला पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के 602 करोड़ की योजना से संबंधित है. भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी)
के तहत पूरे राज्य में 4,197 लघु ग्रामीण पाइप जलापूर्ति योजनाओं का कार्यान्वयन एवं प्रति पंचायत 10-10 की संख्या में कुल 45,620 चापानल लगना है. इन दोनों प्रकार की योजनाओं का कार्यान्वयन तीन वित्तीय वर्षों
2011-12, 2012-13 एवं 2013-14 के दौरान किया जाना है. राज्य सरकार ने दोनों योजनाओं की कुल प्राक्कलित राशि 6028902866 में से वित्तीय वर्ष 2011-12 में 200 करोड़, वर्ष
2012-13 में 200 करोड़ और वर्ष
2013-14 में अवशेष राशि खर्च करने का लक्ष्य निर्धारत किया है और इसी अनुरूप राशि भी आवंटित की है. भारत सरकार की मार्गदर्शिका एवं झारखंड सरकार के स्वीकृत्यादेश के मुताबिक इन योजनाओं के लिए ग्राम एवं टोलों का चयन विधायकों की अनुशंसा पर एवं स्थल का चयन ग्रामसभा के जरिये होना है, लेकिन माननीय विधायकगण अपने अधिकार के इस्तेमाल में मनमानी तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि संवैधानिक निकाय ग्रामसभा के अधिकार का अपहरण करते हुए योजनाओं का स्थल चयन किन्हीं ने घर बैठे तो किन्हीं ने जेल से कर लिया. और इसमें वहीं किया गया है, जिससे उनके कार्यकर्ताओं, मित्रों एवं रिश्तेदारों के हितों की पूर्ति होती है. हमने देवघर जिले के विधायकों द्वारा चापानल के लिए चयनित ग्राम/टोलों एवं स्थल की सूची को खंगाला. कई चौंकानेवाले तथ्य सामने आये. देवघर जिले में एक भी ऐसा पंचायत नहीं है, जिसमें 10 या इससे अधिक गांव नहीं हैं, लेकिन विधायकों ने खासकर चापानल के लिए जो सूची तैयार की है, उसके अनुसार किसी गांव में चार, किसी गांव में तीन तो किसी गांव में एक तो किसी गांव में शून्य है. अगर इस मामले में ईमानदारी बरती जाती तो पूरे पंचायत के सभी गांवों में तो नहीं, कम से कम 10 गांव में एक-एक नया चापानल जरूर लग जाता है, लेकिन बिचौलियों एवं अपने कार्यकर्ताओं के लिए विधायकों ने खूब मनमानी की. देवघर जिले के मधुपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक सह राज्य के सहकारिता एवं कल्याण मंत्री हाजी हुसैन अंसारी ने देवघर जिला जल एवं स्वच्छता मिशन को जो सूची सौंपी है, उसमें करौं पंचायत के लिए स्वीकृत 10 चापानल में पांच चापानल सिर्फ करौं गांव में दे दी गयी है. टेकरा पंचायत के लिए स्वीकृत 10 चापानल में सात के लिए स्थल चयन किया गया है, जिसमें तीन चापानल टेकरा गांव के लिए आरक्षित कर दिया गया है. इसी प्रकार जरमुंडी विधानसभा क्षेत्र के विधायक सह पूर्व मंत्री हरिनारायण राय की ओर से देवघर जिले के सोनारायठाढ़ी के लिए नौ, असुरबंधा गांव में चार, ठाढ़ीलपरा में तीन, कुसुमथर गांव में दो आदि हैं. देवघर विधायक सुरेश पासवान और सारठ विधायक शशांक शेखर भोक्ता ने भी यही किया है. किसी गांव में चार-चार तो किसी गांव में एक भी नहीं. यह तो है गांव एवं टोले के चयन का. स्थल चयन में आधे से ज्यादा चापानल कार्यकर्ताओं के घर के पास दिये गये हैं. कई चापानल तो लोगों के आंगन में दे दिये गये हैं.
गांव में किसी भी योजना के चयन, क्रियान्वयन एवं निगरानी का पूरा-पूरा अधिकार ग्रामसभा को है. राज्य के पंचायत राज अधिनियम एवं केंद्र के पंचायत राज अधिनियम में इस बात का स्पष्ट प्रावधान है. मुखिया या विधायक योजनाओं के चयन में ग्रामसभा के मददगार हो सकते हैं, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकते. अगर चापानल के स्थल चयन में विधायकों ने ग्रामसभा के अधिकार में हस्तक्षेप किया है तो यह सरासर कानून का उल्लंघन है. विधायकों का यह कृत्य दर्शाता है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण में उनलोगों का विश्वास नहीं है. मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप नहीं होता तो झारखंड में पंचायत चुनाव में और विलंब होता.
घनश्याम, सामाजिक कार्यकर्ता, झारखंड.
ग्रामसभा के भरोसे रहता तो राशि सरेंडर हो जाती. ग्रामसभा में चापानल के लिए स्थल चयन में सिर फुटौव्वल होता, इसलिए हमलोगों ने रातोंरात स्थल चयन कर जिला पेयजल एवं स्वच्छता कमेटी को सूची सौंप दी और अनुमोदन करा लिया. देवघर के इस फॉर्मूले को ही पूरे राज्य में लागू किया गया. 10 चापानल में हमलोगों ने पांच का ही स्थल चयन किया है. शेष पांच का स्थल चयन ग्रामसभा को ही करना है. मैं दावे के साथ कहता हूं कि ग्रामसभा इन पांच का भी स्थल चयन आसानी से नहीं कर पायेगी और भविष्य में वहां मारपीट के मामले सामने आयेंगे.शशांक शेखर भोक्ता, विधायक, सत्ता पक्ष
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