गुरुवार, 6 जून 2013

आमुख कथा
पंचायतनामा डेस्क

झारखंड में पंचायत राज निकाय के गठन के बाद से सबसे ज्यादा चर्चा पंचायत राज जनप्रतिनिधियों को मिलने वाले अधिकारों की है. राजनीतिक दल, सामाजिक कार्यकर्ता, मीडिया व अन्य कई फोरमों पर इसको लेकर बहस जारी है. भारतीय संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में 29 ऐसे विषय हैं, जिनसे संबंधित अधिकार व उसके तहत होने वाले कामकाज की जिम्मेवारी सीधे पंचायत निकायों को दी जानी चाहिए. पर, झारखंड में पंचायत निकायों के गठन के 13 महीने बाद तक उन्हें महज पांच विषयों से जुड़े अधिकार ही मिले हैं. इन पांच अधिकारों से भी राज्य की सभी पंचायतें लाभान्वित नहीं हो पा रही हैं. मसलन, सांस्कृतिक कार्यक्रम व खेलकूद के लिए मात्र 400 पंचायतों को ही जारी वित्तीय वर्ष में थोड़ा-बहुत लाभ मिला सका, जबकि चार हजार से ज्यादा पंचायत इससे वंचित रहीं. मनरेगा के तहत होने वाले काम पंचायतों को दिये गये हैं, पर  ग्रामसभा की ओर से मनरेगा मद से अनुशंसित हजारों योजनाएं राज्य में लंबित हैं. दरअसल, जनप्रतिनिधि किसी योजना के तकनीकी पक्ष को अच्छी तरह से नहीं समझ पा रहे हैं. अगर ग्रामसभा द्वारा मनरेगा के प्रावधानों के तहत योजना पारित नहीं की गयी, तो जाहिर है उस पर अमल नहीं हो सकेगा.

पंचायती राज निकाय से जुड़े जनप्रतिनिधि को  झारखंड में पंचायत राज कानून 2001 के तहत निरीक्षण, दिशा-निर्देश व अपने पंचायत क्षेत्र, पंचायत समिति क्षेत्र व जिला परिषद क्षेत्र में व्यवस्था बनाये रखने का हक है. वे संबंधित विभाग से जानकारी ले सकते हैं व त्रुटियों की ओर जिम्मेवार अधिकारी या कर्मी का ध्यान खींच सकते हैं. सरकारी संपत्ति को अतिक्रमण से बचाना, सामुदायिक कार्यो में अपनी इच्छा से सहयोग करना, खुले पशुओं के विरुद्ध कार्रवाई व उसकी रोकथाम, ग्रामीण स्वच्छता को बढ़ावा देना आदि जैसे कार्य खुद की प्रेरणा से भी किये जा सकते हैं. इनके लिए ग्राम पंचायतें अपने अधिकार क्षेत्र में अपने स्तर पर भी एक व्यवस्था बना सकती हैं.
हालांकि यह बेहद जरूरी है कि उन्हें वे अधिकार भी स्थानांतरित किये जायें, जिसके माध्यम से वे वित्तीय मामलों पर व योजनाओं के क्रियान्वयन में सीधी भागीदारी निभा सकें. हेमंत सोरेन राज्य सरकार के पहले ऐसे मंत्री हैं, जिन्होंने अपने विभाग के कई अधिकार पंचायत निकायों को स्थानांतरित किये. पंचायत चुनाव संपन्न होने के तेरह महीनों में झारखंड में पंचायत निकायों को मनरेगा, पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (बीआरजीएफ), लाडली लक्ष्मी योजना व ग्रामीण जलापूर्ति योजना जैसे काम सौंपे गये हैं. जिला जल एवं स्वच्छता मिशन का अध्यक्ष जिला परिषद अध्यक्ष व जल एवं स्वच्छता समिति का अध्यक्ष मुखिया को बनाया गया है. साथ ही पानी के लिए जागरूकता लाने के लिए जल सहिया का चयन भी ग्रामसभा के माध्यम से हो रहा है. इसके अलावा पाइका खेलकूद(पंचायत युवा क्रीड़ा एवं खेल अभियान), आपदा राहत कोष के लिए दो लाख रुपये व ग्राम पंचायत को पांच लाख, पंचायत समिति को दस लाख व जिला परिषद को 25 लाख रुपये तक की योजनाओं की स्वीकृति देने का भी अधिकार दिया गया है. हालांकि पाइका के तहत जारी वित्तीय वर्ष में 400 ग्राम पंचायतों को ही राशि उपलब्ध करायी जा सकी है. विभाग की कोशिश है कि अगले वित्तीय वर्ष में 1000 और ग्राम पंचायतों को इस योजना से जोड़ दिया जाय. 13वें वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुरूप वित्तीय वर्ष 2010-2011 व 2011-2012 में केंद्र से आये 400-400 करोड़ रुपये पंचायत राज निकायों को आवंटित किये गये. हालांकि यह दिगर बात है कि खर्च कितना हुआ.

झारखंड में पंचायत राज विभाग के निदेशक गणोश प्रसाद कहते हैं कि जिला परिषद अध्यक्ष कई महत्वपूर्ण समितियों के अध्यक्ष व सदस्य होते हैं, उन्हें इस रूप में विभिन्न विभागों की योजनाओं के निर्माण व अनुमोदन का अधिकार है. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो केंद्रीय सहायता रुक सकती है. गणोश प्रसाद के अनुसार, अनुसूचित क्षेत्र में आने वाली पंचायतों में लघु वन उपज का अधिकार पंचायत निकाय को देने के संबंध में संशोधन की प्रक्रिया जारी है. बीआरजीएफ  व मनरेगा के तहत पंचायत निकायों के माध्यम से होने वाले कार्यो की अधिसूचना जारी की गयी है.

..बदलाव की बेचैनी

पंचायत निकायों को लेकर सरकारी स्तर पर समन्वय व संवादहीनता का आलम यह है कि कई जिलों में जिला योजना समिति की पहली बैठक पंचायत निकाय के गठन के  साल भर बाद हुई. पाकुड़ में तो अधिकार नहीं मिलने से नाखुश जिला परिषद सदस्यों ने जिला परिषद की बैठक का बहिष्कार भी किया है. ग्राम स्वराज मंच के अध्यक्ष अशोक भगत कहते हैं कि सरकार पंचायत निकायों को अधिकार स्थानांतरित कर रही है. नवंबर में ग्रामसभा महापंचायत के आयोजन के बाद इसमें तेजी आयी है. वहीं मंच के संयोजक शिव शंकर उरांव कहते हैं कि हमारी कोशिश है कि गांव जागृत हों व वहां के लोग विकास योजनाओं में सीधे भागीदार बनें. ग्राम स्वराज मंच ने महात्मा गांधी ग्राम स्वराज दूत बनाने का भी नया प्रयोग शुरू किया है. मंच गांव के लोगों को इसके लिए एक पहचान पत्र जारी करता है व उन्हें विकास योजनाओं पर निगरानी रखने व गड़बड़ी पाये जाने के बाद उसकी सूचना देने के लिए प्रशिक्षण भी दे रहा है.

मालूम हो कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कई बार राज्य में ग्रामीण विकास योजनाओं की सुस्त गति व गड़बड़ियों पर चिंता व नाराजगी प्रकट कर चुके हैं. बीते वर्ष जब कुछ पंचायत प्रतिनिधि उनके पास शिकायत रखने दिल्ली पहुंचे तो उस समय उन्होंने राज्य सरकार द्वारा नियमावली नहीं बनाने व अधिकारों का हस्तांतरण नहीं किये जाने की स्थिति में केंद्रीय सहायता रोकने की चेतावनी दी थी. केंद्रीय पंचायती राज मंत्री वी किशोर चंद्र देव ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर राज्य में पंचायती राज व्यवस्था की मशीनरी को दुरुस्त करने को कहा. देव ने चार नवंबर 2011 को लिखे अपने पत्र में कहा कि राशि के उचित प्रवाह व विकास योजनाओं में गति लाने के लिए पंचायत निकायों को मजबूत करने की जरूरत है. उन्होंने अपने पत्र में कहा था कि ऐसा नहीं करने पर राज्य को नुकसान होगा. उसके बाजवूद स्थिति नहीं बदली है.

केंद्रीय पंचायती राज मंत्रलय की रिपोर्ट बताती है कि देश की 25 प्रतिशत पंचायतों के पास अपना भवन नहीं है. ऐसे में डाटा बेस रखने, योजना बनाने उनकी निगरानी करने में दिक्कतें आती हैं. झारखंड में यह आकड़ा इससे भी काफी पीछे है. सरकारी दावा है कि राज्य की 4565 पंचायत में 2100 में पंचायत भवन या तो बन गये हैं या उनका निर्माण अंतिम चरण में हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इस जुदा है.  ई-पंचायत योजना से पिछले वित्तीय वर्ष में ही राज्य की 1610 पंचायतों को जोड़ने का लक्ष्य था. पर, राज्य लक्ष्य से काफी पीछे है. सरकार जारी वित्तीय वर्ष के दिसंबर में रांची जिले की टुटकी पंचायत को ई तकनीक से जोड़ कर इस योजना की शुरुआत कर सकी.


पंचायत निकायों को मिलनेवाले अधिकारों की मौजूदा स्थिति

कृषि, प्रसार सहित-प्रक्रिया जारी
भू-सुधार एवं मृदा संरक्षण--
लघु सिंचाई, जल प्रबंधन एवं संभरण विकास-अधिकार प्राप्त
पशुपालन, दुग्धशाला एवं मुर्गीपालन--
मत्स्यपालन--
सामाजिक वानिकी एवं फॉर्म वानिकी--
लघु वन उत्पाद- मिल सकता है
खाद्य संसाधन उपयोगों सहित लघु उद्योग--
खादी, ग्राम एवं कुटीर उद्योग--
ग्रामीण विकास--
पेयजल-अधिकार प्राप्त
ईंधन--
सड़कें, पुलिया, सेतु घाट जलमार्ग एवं संचार --
विद्युत वितरण सहित ग्रामीण विद्युतीकरण--
ऊर्जा के गैर परंपरागत स्नेत--
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम--
प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों सहित शिक्षा--
तकनीकी प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक शिक्षा--
प्रौढ़ एवं अनौपचारिक शिक्षा--
पुस्तकालय--
बाजार एवं मेले--
सांस्कृतिक क्रियाकलाप व खेलकूद-आंशिक
प्राथमिक चिकित्सा केंद्र एवं स्वास्थ्य व स्वच्छता-प्रक्रिया जारी
परिवार कल्याण--
महिला एवं बाल कल्याण--
कमजोर वर्गो का कल्याण, विशेषकर एससी -प्रक्रिया जारी
जल वितरण व्यवस्थाअधिकार प्राप्त
सामुदायिक संपत्ति अनुरक्षण-अधिकार प्राप्त



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें