<< पंचायतनामा डेस्क >>
योजना आयोग की ओर से लघु सिंचाई व जलछाजन के प्रबंधन के लिए गठित कार्यबल (वर्किंग ग्रुप) ने 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के लिए प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट में पानी के संचय व इसके माध्यम से गरीबी उन्मूलन के संबंध में कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं. संभावना है कि हमारी सरकार कार्यबल की सिफारिशों पर अमल करने की भरपूर कोशिश करेगी. सूखा, गरीबी उन्मूलन, आजीविका के साधन बढ़ाने व खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर ऐसा किया जाना जरूरी है. यानी बारिश का जल बचाकर आम आदमी के जीवन स्तर को ऊंचा किया जाना संभव है. कार्यबल ने अध्ययन के आधार अपनी 110 पृष्ठ की रिपोर्ट में इस बात को चिह्नित किया है कि देश के सबसे गरीब 100 जिलों में गरीबी उन्मूलन की कोशिशें इसलिए सार्थक नहीं हो सकीं, क्योंकि वहां जल संचयन व लघु सिंचाई की बेहतर व्यवस्था नहीं की गयी. जबकि ये जिले सिंचाई के लिए मुख्य रूप से बारिश के जल पर ही निर्भर हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडि़शा, मध्यप्रदेश की आधी से अधिक ग्रामीण आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है. यह हाल तब है, जब इस क्षेत्र में अच्छी बारिश होती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर जल प्रबंधन के माध्यम से इस क्षेत्र के साथ ही देश के अन्य राज्य में भी बेहतर कृषि उपज हासिल की जा सकती है व लोगों के लिए आजीविका के साथ खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकती है. भारत की 55 फीसदी खेती बारिश के पानी पर निर्भर करती है. केंद्र की ओर से 1995 में नेशनल वाटर शेड प्रोग्राम लागू तो किया गया, लेकिन पानी या इससे संबंधित कार्यों के लिए जिम्मेवार विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल के अभाव में लक्ष्य को नहीं पाया जा सका. ऐसे में कार्यबल ने सिफारिश की है कि नेशनल रेनफीड एरिया ऑथोरिटी (एनआरएए : राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण) के संयोजन में मनरेगा, लघु सिंचाई विभाग, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन आदि के तहत पानी के लिए होने वाले वाले काम हों. सिंचाई के लिए पूरी तरह से वर्षा जल पर निर्भर करने वाले राज्य ज्यादातर पर्वतीय या असमतल भूमि वाले हैं, जहां बड़ी सिंचाई परियोजनाएं की सफलता संदिग्ध होती हैं. ऐसे में वैसे क्षेत्रों में लघु सिंचाई व वर्षा जल संचय के माध्यम से बेहतर नतीजे हासिल किया जा सकता है.
कार्यबल ने रिपोर्ट में इस बिंदु को भी चिह्नित किया है कि देश में लघु सिंचाई व जलछाजन जैसी लाभकारी योजनाओं को पर्याप्त बजट नहीं मिला. बड़ी व मध्यम सिंचाई परियोजनाओं पर 5.5 लाख करोड़ रुपये की तुलना में जलछाजन के लिए मात्र 40 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. राज्य व जिले स्तर पर बारिश के पानी के संचय के लिए मैकेनिज्म तैयार करने की भी सिफारिश की गयी है. इस मैकेनिज्म की अध्यक्षता राज्य स्तर पर मुख्य सचिव व जिला स्तर पर जिलाधिकारी (उपायुक्त) करें. पानी को लेकर लोगों में जागरूकता लाने में पंचायती राज संस्थाओं व स्वयंसेवी समूहों की भूमिका को बढ़ाने की भी सिफारिश की गयी है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें