बुधवार, 3 जुलाई 2013

सिंचाई परियोजनाओं का हाल


सरकारी सिंचाई परियोजनाओं के हालात पूरे प्रदेश में एक से हैं. करोड़ों-अरबों खर्च कर नहर प्रणालियां विकसित की जा रही है, मगर इन नहरों से कभी खेतों की प्यास नहीं बुझती. अधिकतर मामलों में तो पानी ही नहीं आता, अगर आता भी है तो बेमौसम. कुछ परियोजनाएं तो ऐसी हैं जिसमें नहर में नदी के बदले बरसाती पानी ही भरा रहता है. यहां राज्य की कुछ सिंचाई परियोजनाओं का जिक्र किया जा रहा है, ताकि हम इन प्रयासों की गंभीरता को ठीक से समझ सकें :

रोरो परियोजना की नहरों में बारिश का पानी
1958 में रोरो सिंचाई परियोजना का निर्माण कराया गया. इसके जरिये चाईबासा स्थित रोरो नदी के पानी को नहर के जरिए खेतों तक पहुंचाने की योजना थी. नहर से मोटर के जरिए पानी खेतों तक पहुंचाना था. करीब 134 लाख रुपये खर्च कर योजना तैयार की गई. इस परियोजना से सदर प्रखंड के चार, खूंटपानी प्रखंड के 23 व सरायकेला प्रखंड के 10 गांवों के खेतों में सिंचाई सुविधा मुहैया कराना था. उस समय कहा गया कि इस नहर से 22400 एकड़ भूमि सिंचित होगी. वर्तमान में सरकारी आंकड़ा के अनुसार इस योजना से 8000 हेक्टेयर में सिंचाई पहुंचाने का लक्ष्य है.  सरकारी आंक ड़ा बताता है कि 2011 के खरीफ मौसम में 2206 हेक्टेयर में पटवन किया गया है.  लेकिन वास्तविकता यह है कि इस नहर में रोरो नदी के पानी का बहाव होता ही नहीं है. केवल वर्षा के समय ही नहर में पानी रहता है. गहराई कम हो जाने के कारण नहर गर्मी से पहले ही सूख गयी है. इस नहर के जीर्णोद्धार के लिए बीते साल योजना तैयार कर प्राक्कलन बनाया गया. नहर की गहराई बढ़ाते हुए इसके पक्कीकरण की योजना तैयार कर स्वीकृति के लिए सरकार के पास भेजा गया. लेकिन अबतक स्वीकृति नहीं मिली.
लातेहार में 89 लिफ्ट इरिगेशन स्कीम बेकार
लातेहार जिले की 90 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन सिंचाई सुविधाओं के नाम पर यहां सिर्फ चार  सिंचाई योजनायें ही चालू हालत में हैै. सिंचाई योजनायें नहीं होने के कारण किसान यहां से अन्यत्र पलायन कर रहे हैं. वित्तीय वर्ष 1986-87 में तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा 92 लिफ्ट इरिगेशन स्कीम का जाल बिछाया गया था. लेकिन वर्तमान समय में 88 योजनायें बेकार हैं

25 लिफ्ट इरिगेशन स्कीम हैं बंद
पश्चिमी सिंहभूम के नोवामुंडी व जगन्नाथपुर के खेतों को सिंचाई सुविधा मुहैया कराने के लिए वर्षों पूर्व 25 लिफ्ट इरिगेशन स्कीम तैयार की गई लेकिन इस योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. बिजली आपूर्ति की सुविधा बहाल नहीं होने के कारण एक भी योजना चालू स्थिति में नहीं है. अनेक स्थानों पर तो मोटर भी खराब पड़े हुए हैं. विभाग का कहना है कि बिजली आपूर्ति कर योजना चालू कराने के लिए वरीय अधिकारियों के साथ पत्राचार किया गया है. लेकिन हकीकत यह है कि एक भी योजना चालू करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है. इस 25 योजना से 1250 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित है. सदर प्रखंड स्थित लुपुंगुटु की एकमात्र योजना ही चालू स्थिति में है. इस योजना का लक्ष्य 55 हेक्टेयर खेतों को सिंचित करने का है. लेकिन वर्ष 2010-11 में इससे केवल दो एकड़ खेत को ही पानी मिल सका. श्रृंखला चेक डेम, माइक्रो लिफ्ट योजना व कुओं का निर्माण कर लाभुक समिति को सौंप दिया गया है. लेकिन इन योजनाओं की क्या स्थिति है इसे देखने की जरूरत विभाग ने कभी महसूस नहीं की. बीते साल कुछ तालाबों का जीर्णोद्धार मनरेगा के तहत कराया गया है.
महज 3.7 फीसदी खेतों की ही होती है सिंचाई
पश्चिमी सिंहभूम में कुल उपलब्ध कृषि योग्य भूमि में से मात्र 3.7 फीसदी खेतोें में ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है.  शेष खेतों में सिंचाई केवल वर्षा पर ही निर्भर है. जिले में कुल उपलब्ध भूमि 2,58,844 हेक्टेयर में 2,20,725 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है. कुल भूमि का 85 फीसदी कृषि योग्य भूमि इस जिले में है. पर उपलब्ध कृषि योग्य भूमि में से मात्र 8230 हेक्टेयर खेतों को ही सिंचाई योजनाओं से पानी मिल पाता है. जिस वर्ष वर्षा ठीक हुई, उस वर्ष फसल का उत्पादन बेहतर होता है. लेकिन जब वर्षा कम या नहीं हुई, उस समय जिले में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. खेतों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं रहने के कारण ही हर साल खरीफ मौसम के बाद किसान व मजदूरों का पलायन दूसरे राज्यों में होने लगता है.

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