बुधवार, 3 जुलाई 2013

आमुख कथा



झारखंड की कई बड़ी सिंचाई परियोजना का यही हाल है. इन योजनाओँ के नाम के साथ ही सिंचाई परियोजना जुड़ा है मगर इसका लाभ किसानों को न के बराबर मिलता है. ऐसी ही एक परियोजना है
बोकारो जिले के बेरमो अनुमंडल मुख्यालय के निकट तेनुघाट डैम जो एशिया का सबसे बड़ा कच्चा डैम है. झारखंड की जीवन रेखा कही जाने वाली दामोदर नदी पर बांध कर इसे बनाया गया है. लगभग 12 हजार एकड़ भू-भाग में फैले इस बांध के बनने में वर्ष 1965 से 1971 तक का समय लगा था. इसके जल का बंटवारा झारखंड, पश्चिम बंगाल व दामोदर घाटी निगम के बीच क्रमश: 52.21 प्रतिशत, 16.67 प्रतिशत व 27.12 प्रतिशत किया गया है. इस परियोजना के मूल उद्देश्यांें में बोकारो स्टील प्लांट को पानी आपूर्ति करने व पावर प्लांट का निर्माण के साथ-साथ यहां की हजारों एकड़ भूमि की सिंचाई करना भी शामिल है. लेकिन, तेनुघाट जलाशय के पानी का उपयोग बिजली उत्पादन के अलावा बोकारो स्टील प्लांट को 40 किमी लंबी नहर के माध्यम से सिंचित करने तक सीमित रह गया. सिंचाई के लिए तय भूमि में पानी नहीं मिलता है. जबकि, सिंचाई प्रथम उद्देश्य होने के कारण ही यह परियोजना आज भी सिंचाई विभाग के अधीन है. बांध बनने के बाद जितनी जमीन की सिंचाई होनी थी, वह गरमी के दिनों में बिलकुल सूखी होती है और बरसात के दिनों में चंूकि डैम के अधिकांश फाटक खोल दिये जाते हैं, इसलिए इन खेतों में कमर भर पानी जमा रहता है. फाटक नहीं खोलने पर भी यही स्थिति बन जाती है. तब उन गांवों के खेत पानी में डूब जाते हैं, जो डैम से विस्थापित या पुनवार्सित हैं.
गुवई बराज परियोजना भी खेतों में पानी पहुंचाने में विफल रही है. चास प्रखंड के पिंडराजोरा गांव के पास चास-पुरुलिया मुख्य पथ के किनारे गुवई नदी बांध कर विशाल जलाशय का निर्माण किया गया. लगभग 40 साल पहले बनी इस परियोजना का उद्देश्य चास व चंदनकियारी प्रखंड के दर्जनों गांवों को कच्चे नहर से सिंचाई का पानी उपलब्ध कराना था. आज तक एक भी गांव को पानी नहीं पहुंच सका है. कच्चा नहर में पानी बमुश्किल दो किमी दूर जाकर ठहर जाता है. अब तो चास-चंदनकियारी के गांवों में नहर भी नहीं दिखाई पड़ता है. सरकार और प्रशासन ने इसके पुनरुद्धार की बात कई बार कही. शिबू सोरेन जब मुख्यमंत्री बने तो इसका हवाई सर्वेक्षण किया और इस परियोजना का लाभ गांवों को देने का निर्देश अधिकारियों को दिया. प्रशासन ने कुछ सक्रियता भी दिखाई थी. पर, उनके सत्ता से हटते ही सब कुछ जहां-का-तहां ठहर गया.
(बोकारो से दीपक सवाल की रिपोर्ट)

खेतों में कब तक पहुंचेगा सुरु सिंचाई योजना का पानी !

राज्य सरकार की ओर से सुरु सिंचाई योजना को पुन: शुरू करने की घोषणा से क्षेत्र के किसानों की बांछे खिल गई है. इस योजना के पूरा हो जाने से खरसावां सिंचाई के क्षेत्र में आत्म निर्भर हो जायेगी. दो बार इस योजना को शुरू तो किया गया, परंतु किसी न किसी अड़चन के कारण यह आगे नहीं बढ़ सका. वर्ष 2012-13 के लिये राज्य सरकार ने सिंचाई बजट में 1905 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है.  इस परियोजना के पूरा हो जाने से सिंचाई के क्षेत्र में खरसावां पूरी तरह से आत्म निर्भर हो जायेगा. इस योजना पर अब तक करोड़ों रुपये खर्च हो चुके है. 1982 में इस योजना को तत्कालिन बिहार सरकार ने मंजूरी दी थी. इस समय इसका प्राक्कलन राशि 11.37 करोड़ रखा गया था. योजना का कार्य कुछ आगे बढ़ा ही था कि वन विभाग ने योजना में पेड़ों के कटने व वन भूमि डूबने का मामले बता कर इसका विरोध कर दिया. तब वन कानून का हवाला देते हुए वन विभाग ने इस पर रोक लगा दी थी. इस दौरान योजना पर  करीब 55 लाख रुपये खर्च हो चुके थे. उस समय लाये गये सीमेंट के बड़े बड़े पाईप आज भी जहां तहां पड़े हुए है. योजना में विस्थापितों के पुर्नवास पर भी करीब 70 लाख रुपये का वितरण किया जा चुका था. इसके पश्चात पुन 2004 में अर्जुन मुंडा की सरकार ने 49.6 करोड़ से इस योजना को मंजूरी दी. इस राशि से वन विभाग को वन भूमि के लिये 9.84 करोड़ व वन भूमि पर लगाये गये पेड़ों की क्षतिपूर्ति के लिये करीब 69.93 लाख रुपया का भुगतान किया गया. योजना के संवेदक रहे नागार्जुन कंस्ट्रक्सन को 13.54 करोड़ का भुगातन किया गया था. इसी बीच मुंडा सरकार के जाने व मधु कोड़ा सरकार के बनने के बाद योजना का कार्य पांच फिसदी भी नहीं हुआ था पुन 148 एकड़ वन विभाग ने वन भूमि का हवाला दे कर पुन दूसरी बार योजना पर रोक लगा दी. अब पुन एक बार मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने वन विभाग से जुड़े सभी विवादों को दूर कर योजना को शीघ्र ही पूरा करने की घोषणा की है. योजना के पूरा होने से खरसावां व कुचाई प्रखंड के दो दर्जन से अधिक गांवों में सिंचाई की सुविधा मिलने लगेगी. योजना को पूरा होने में चार साल का समय लग सकता है.
(सरायकेला-खरसावां से शचिंद्र कुमार दाश की रिपोर्ट)

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