बुधवार, 3 जुलाई 2013

प्यासे खेत


झारखंड की छवि जरूर एक खनिज संपन्न औद्योगिक राज्य की रही है, मगर आज भी यहां की 77 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है. खनिज संपन्न औद्योगिक राज्य की छवि का नुकसान राज्य के किसानों को लगातार उठाना पड़ा. सरकारों ने किसानों की मदद और खेती को विकसित करने की योजनाओं पर कभी ठीक से ध्यान नहीं दिया. राज्य की कृषि योग्य भूमि पर सिंचाई की व्यवस्था इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. सरकारी वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक यहां की महज 24 फीसदी खेती के लायक जमीन पर ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो पायी है. शेष 76 फीसदी जमीन से अगर अनाज उपजता है तो यह झारखंड के किसानों की जीवटता का ही परिणाम है. हैरत तो यह जान कर होता है कि सिंचित भूमि के मामले में देश का औसत 70 फीसदी है. यानी देश में औसतन 70 फीसदी जमीन पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है.

राज्य के जल संसाधन विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक झारखंड राज्य की कुल कृषि योग्य भूमि 29.74 लाख हेक्टेयर है. द्वितीय बिहार सिंचाई आयोग के आंकड़े बताते हैं कि अपने राज्य की 12.765 लाख हेक्टेयर जमीन को बृहत एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के जरिये सिंचित किया जा सकता है, जबकि शेष भूमि की सिंचाई के लिए लघु सिंचाई परियोजनाओं की मदद लेनी होगी. मगर ताजा आंकड़ों के मुताबिक इन दोनों परियोजनाओं की मदद से भी 7.40 लाख हेक्टेयर(2.3364 लाख हेक्टेयर बृहत एवं मध्यम तथा 5.06394 लाख हेक्टेयर लघु सिंचाई परियोजनाओं की मदद से) से भी कम जमीन सिंचित हो पायी है. यहां यह ध्यान देने लायक तथ्य है कि ये आंकड़े राज्य सरकार के हैं, धरातल पर उतरने पर इन आंकड़ों के गलत होने की संभावना भी रहती है. सिंचाई परियोजनाओं के लक्ष्य कम ही पूरे होते हैं. जितना बताया जाता है वहां तक भी ससमय समुचित पानी पहुंच जाये यह कम ही होता है. फिलहाल राज्य में सात बड़ी और 21 मझोली सिंचाई परियोजनाओं पर काम चल रहा है. अगर ये परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं तो और 5.6054 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित हो पायेगी. इसके बावजूद 4.76 लाख हेक्टेयर के करीब जमीन असिंचित ही रह जायेगी. राज्य सरकार के पास इस जमीन की सिंचाई के लिए कोई परियोजना नहीं है.
वहीं लघु सिंचाई परियोजना के तहत लगभग 17 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई का लक्ष्य है, जिसमें आज भी लगभग 12 लाख हेक्टेयर जमीन असिंचित है.  

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