शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

स्पाईरुलीना भोजन कल के लिए


विपिन मिश्रा
दो ग्राम स्पाईरुलीना दिनभर के भोजन के बराबर है. सुनने में भले ही यह हैरान करने वाला हो, लेकिन सच्चाई यही है. यही कारण है कि स्पाईरुलीना को भविष्य का भोजन कहा जा रहा है. अंतरिक्ष यात्री भोजन के तौर पर इसके कैप्सूल का उपयोग करते हैं.
क्या है स्पाईरुलीना
स्पाईरुलीना स्पाईरल आकार का दिखने वाला शैैवाल है. यह शत-प्रतिशत मीठे जल का सूक्ष्म पादप है. दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के क्षारीय झीलों में प्राकृतिक रूप में, जबकि भारत में दक्षिण व लातूर में पाया जाता है. यह सदियों से मानव जाति का खाद्य स्त्रोत रहा है. पृथ्वी पर पाये जाने-वाले सभी पोषक खाद्य सामग्री में सर्वश्रेष्ठ है. इसमें विटामिन ई एवं कैरोटिन भी पाया जाता है. यह एंटी ऑक्सीडेंट फाईकोसायनिन का प्राकृतिक स्रोत है. इसमें 55 से 63 प्रतिशत प्रोटीन है. इसके अलावा इसमें 7-13 प्रतिशत मिनरल, 8-10 प्रतिशत रेशा, विटामिन बी, विटामिन बी 1, बी 2, बी 3, बी 6 , बी 12, 15-25 प्रतिशत काबार्ेहाइड्रेट, वसा, क्लोरोफिल, केल्सियम व लोहा आदि पाया जाता है. सबसे बड़ी बात है कि ये किसी भी स्थिति में दूषित नहीं होता है.
स्पाईरुलीना का उपयोग
इसमें क्लोरोफिल एवं फाइकोसाइनिन पाया जाता है जो शक्तिवर्द्घक का कार्य करता है. ये शाकाहारी लोगों के लिए अपज बी 12, लोहा, एमिनो एसिड का एकमात्र स्रोत है. शरीर में पीएच स्तर को सामान्य करता है, जिससे प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है. यह मधुमेह, रक्तचाप, रक्त की कमी, कमजोरी, गठिया में काफी उपयोगी होता है. गर्भवती महिलाओं, बच्चों एवं वृद्घों के लिए भी उपयोगी है.  इसमें कैंसर, एड्स के प्रतिरोधी के गुण पाए गए हैं. पेनक्रियाटिस, डेपेटाइटिस, सिरोसिस रोगों में लाभदायक है. मोतियाबिंद एवं ग्लूकोमा में उपयोगी साबित होता है. मोटापा घटाने में या फिर वजन बढ़ाने में भी लाभदायक हो सकता है. वहीं गैस्टिक, अल्सर में भी लाभदायक है. वृद्घ को प्रतिदिन 2-5 ग्राम, युवाओं को 1-2 ग्राम, बच्चों को 2-3 ग्राम व गर्भवती महिलाओं को 2-5 ग्राम सेवन करना चाहिए.

अब देवघर में हो रहा उत्पादन

नाबार्ड व स्वयं सेवी संस्थान रचना के सहयोग से स्पाईरुलीना का उत्पादन देवघर जिले के मोहनपुर प्रखंड के मुसफा ग्राम में हो रहा है. संस्थान के बिपिन मिश्र का कहना है कि काफी कम पैसे में ये अच्छी आमदनी का स्रोत हो सकता है. अभी यहां जो उत्पादन हो रहा है वह स्थानीय लोग ही खरीद रहे हैं. अगर बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाए तो इसे दवा या अन्य कम्पनियां खरीद लेंगी. नाबार्ड के डीडीएम पीआर झा कहना है कि बिहार-झारखंड में यह अपने तरह का पहला प्रयोग है. इसका लाभ स्वयं सहायता समूह को भी मिलने लगा है. इसका प्रयोग सरासनी पंचायत के पिंडरा गांव में किया गया है.
सेहत के साथ आमदनी भी
स्पाईरुलीना से सेहत ही नहीं बनता बल्कि यह आमदनी का बढि़या जरिया भी है. रचना के संजय कुमार उपाध्याय का कहना है कि किसान इसका उत्पादन करके अच्छी आमदनी भी कर सकते हैं. इसके लिए एक किसान अगर 8 फीट लंबा, 2 फीट चौड़ा व 2 फीट ऊंचा टैंक बनाता है तो उसमें तीन हजार खर्च होगा. इसके अलावा उसे तीन हजार और खर्च करना होगा. बाद में हर माह करीब 300 रुपया खर्च होगा. हर दिन एक टैंक से 50 ग्राम तैयार स्पाईरुलीना मिलेगा. श्री उपाध्याय ने बताया कि एक वर्ष में 8 माह इसका उत्पादन हो सकता है. इस दौरान एक किसान का करीब आठ हजार खर्च होगा. जबकि वह हर माह 1.50 किलो की दर से आठ माह में 12 किलो का उत्पादन करेगा. स्पाईरुलीना 3000 रुपया प्रति किलो बिकेगा और एक वर्ष में किसान 36,000 रुपये का माल बेचकर लगभग चौबीस हजार कमा लेगा. अगर ज्यादा टैंक बनाया जाय तो आमदनी भी बढ़ जाएगी. वहीं अगर कैप्सूल, क्रीम, बिस्कुट, चॉकलेट, पेय पदार्थ आदि तैयार कर बेचा जाए तो आमदनी काफी बढ़ सकती है. अगर किसान बेहतर माल नहीं तैयार कर पाते तो भी इसे पशु आहार के तौर पर दो हजार रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जा सकता है.
महिलाएं बनेंगी स्वावलंबी
मोहनपुर के मुसफा गांव में झारखंड के पहला स्पाईरुलीना उत्पादन केंद्र का उद्घाटन नाबार्ड, रांची के जीएम डा एचके घोष ने किया. रचना संस्थान केंद्र में स्पाईरुलीना उत्पादन की एक प्रत्यक्षण इकाई की स्थापना की गई है. यहां ग्रामीण महिलाओं व आगन्तुकों को स्पाईरुलीना उत्पादन की सरल तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाएगा. नाबार्ड प्रायोजित इस परियोजना में एसएचजी के 20 महिलाओं को इसके उत्पादन से जोड़ा जाएगा.
100 एसएचजी उपजाएंगे स्पाईरुलीना
देवघर में स्पाईरुलीना का बड़े पैमाने पर उत्पादन होगा. 100 स्वयं सहायता समूह इसका उत्पादन करेंगे.

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