एक कहावत है- दोस्त बनायें जानकर, पानी पीयें छानकर. पानी छानकर पीना कितना जरूरी है, यह उस व्यक्ति से पूछिए, जो पेट की बीमारियों से घिरा हुआ है. जल ही जीवन है. शुद्ध जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती.
प्रशांत जयवर्धने
गांवों में जब पानी को छानकर पीने की बात आती है, तो अक्सर लोग पानी को कपड़े से छानकर पीते हैं. घर के बरतन में भी कपड़े से छानकर पानी का संग्रहित किया जाता है. गांवों में शुद्ध और ठंडा जल मिलना मुश्किल होता है. अभी भी अधिकतर ग्रामीण तालाब और पोखरों का जल पीने को विवश हैं. बिना फिल्टर किया हुआ पानी शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है. कृषि ग्राम विकास केंद्र ने ग्रामीणों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए लो कॉस्ट वाटर फिल्टर का मॉडल पेश किया है. यह वाटर फिल्टर बाजार में उपलब्ध किसी भी वाटर फिल्टर की तुलना में बेहद सस्ता और बहुपयोपी है. इस तरह के वाटर फिल्टर दो प्रकार के हैं.
सीमेंट के गमलों या मटकों में तैयार और देसी घड़ों में तैयार किया गया सिंगल कैंडल फिल्टर.
सीमेंट के गमलों और मिट्टी से बने देसी घड़ों में सिंगल कैंडल के बनाये गये वाटर फिल्टर अपनी कम कीमत और अनोखी बनावट के कारण ग्रामीण जनजीवन के लिए बेहद उपयोगी हैं.
बेकार पानी का सिंचाई में उपयोग
रूक्का डैम से फिल्टर होने के बाद बेकार बचे पानी को खेतों तक पहुंचाकर पानी का सदुपयोग किया जा रहा है. झारखंड राज्य जलछाजन मिशन और स्वयंसेवी संस्था कृषि ग्राम विकास विकास केंद्र द्वारा यह अनोखा प्रयास किया जा रहा है. डैम से निकले और बेकार गये पानी को खेतों तक पहुंचाने के लिए जलछाजन समिति और केजीवीके द्वारा अबतक 300 फीट लंबे चैनल (नाली) का निर्माण किया गया है, जिसमें रूक्का से सटे आस-पास के इलाकों में गरमा धान की खेती शुरू की गयी है. इस चैनल की कुल लंबाई 1800 फीट होनी है. चैनल के पूरी तरह से तैयार हो जाने पर लगभग 30 हेक्टेयर यानी 75 एकड़ जमीन पर खेती की जा सकेगी. अभी इसी चैनल से खेती की जा रही है. जल छाजन समिति और केजीवीके के इस प्रसास से रूक्का डैम के आस-पास बेकार पड़ी जमीनों पर फिर से खेती की जा रही है. इस चैनल के बनने से बेकार पड़ी जमीन पर किसान तीन-तीन फसल उगा सकेंगे.
पंचायत जगें तो दूर हो सकती है
आपकी पेयजल समस्या
उमेश यादव
ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार की योजना है : राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी). इसके तहत गांवों में नये चापानल एवं पाइप जलापूर्ति सिस्टम की स्थापना और पुराने चापानल के रख-रखाव का काम किया जाता है. इस योजना की शुरुआत 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान की गयी है. एनआरडीडब्ल्यूपी के दिशा-निर्देशों के तहत योजना बनाने, उसका कार्यान्वयन करने, निगरानी रखने, संचालित करने और रख-रखाव का पूरा दायित्व ग्रामसभा एवं पंचायत का है. पंचायतों के जागृत होने पर ग्रामीणों की पेयजल समस्या का काफी हद तक निदान हो सकता है. झारखंड सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने सबसे पहले पंचायतों को अधिकार हस्तांतरित किया है. हालांकि राज्य के विधायकों ने नये चापानल अधिष्ठापन के मामले में ग्रामसभा एवं पंचायत के अधिकार का अपहरण कर लिया और पांच चापानल के स्थल का चयन अपने मरजी से कर दीा है. फिर भी सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल समस्या के समाधान में ग्रामसभा एवं पंचायतों को जिम्मेवारी दे रही है. चापानलों की मरम्मत के लिए प्रति चापानल 300 रुपये की दर से राशि सीधे ग्रामसभा की स्थायी समिति ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति के बैंक खाते में दी जाती है. राज्य सरकार के नियमानुसार ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति के बैंक खाता का संचालन मुखिया, समिति के उपाध्यक्ष एवं जल सहिया में से किन्ही दो के नाम से होगा. राज्य के लगभग सभी जिलों में अब तक सभी ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति का बैंक खाता नहीं खुल सका है. जहां खाता खुल गया है और इसकी सूचना जिला कार्यालय को दे दी गयी है, वहां प्रति चापानल 300 रुपये की दर से राशि हस्तांतरित कर दी गयी है. जहां पर खाता नहीं खुला है उसका पैसा अभी भी जिलों में पड़ा हुआ है. पंचायत प्रतिनिधि के सक्रिय होने पर पेयजल समस्या का समाधान आसानी से हो सकता है. किसी गांव में पांच चापानल है, तो उस गांव को 1500 रुपये मिलेंगे. इस राशि से खराब पड़े चापानलों की मरम्मत कर काफी हद तक समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.
प्रशांत जयवर्धने
गांवों में जब पानी को छानकर पीने की बात आती है, तो अक्सर लोग पानी को कपड़े से छानकर पीते हैं. घर के बरतन में भी कपड़े से छानकर पानी का संग्रहित किया जाता है. गांवों में शुद्ध और ठंडा जल मिलना मुश्किल होता है. अभी भी अधिकतर ग्रामीण तालाब और पोखरों का जल पीने को विवश हैं. बिना फिल्टर किया हुआ पानी शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है. कृषि ग्राम विकास केंद्र ने ग्रामीणों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए लो कॉस्ट वाटर फिल्टर का मॉडल पेश किया है. यह वाटर फिल्टर बाजार में उपलब्ध किसी भी वाटर फिल्टर की तुलना में बेहद सस्ता और बहुपयोपी है. इस तरह के वाटर फिल्टर दो प्रकार के हैं.
सीमेंट के गमलों या मटकों में तैयार और देसी घड़ों में तैयार किया गया सिंगल कैंडल फिल्टर.
सीमेंट के गमलों और मिट्टी से बने देसी घड़ों में सिंगल कैंडल के बनाये गये वाटर फिल्टर अपनी कम कीमत और अनोखी बनावट के कारण ग्रामीण जनजीवन के लिए बेहद उपयोगी हैं.
बेकार पानी का सिंचाई में उपयोग
रूक्का डैम से फिल्टर होने के बाद बेकार बचे पानी को खेतों तक पहुंचाकर पानी का सदुपयोग किया जा रहा है. झारखंड राज्य जलछाजन मिशन और स्वयंसेवी संस्था कृषि ग्राम विकास विकास केंद्र द्वारा यह अनोखा प्रयास किया जा रहा है. डैम से निकले और बेकार गये पानी को खेतों तक पहुंचाने के लिए जलछाजन समिति और केजीवीके द्वारा अबतक 300 फीट लंबे चैनल (नाली) का निर्माण किया गया है, जिसमें रूक्का से सटे आस-पास के इलाकों में गरमा धान की खेती शुरू की गयी है. इस चैनल की कुल लंबाई 1800 फीट होनी है. चैनल के पूरी तरह से तैयार हो जाने पर लगभग 30 हेक्टेयर यानी 75 एकड़ जमीन पर खेती की जा सकेगी. अभी इसी चैनल से खेती की जा रही है. जल छाजन समिति और केजीवीके के इस प्रसास से रूक्का डैम के आस-पास बेकार पड़ी जमीनों पर फिर से खेती की जा रही है. इस चैनल के बनने से बेकार पड़ी जमीन पर किसान तीन-तीन फसल उगा सकेंगे.
पंचायत जगें तो दूर हो सकती है
आपकी पेयजल समस्या
उमेश यादव
ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार की योजना है : राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी). इसके तहत गांवों में नये चापानल एवं पाइप जलापूर्ति सिस्टम की स्थापना और पुराने चापानल के रख-रखाव का काम किया जाता है. इस योजना की शुरुआत 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान की गयी है. एनआरडीडब्ल्यूपी के दिशा-निर्देशों के तहत योजना बनाने, उसका कार्यान्वयन करने, निगरानी रखने, संचालित करने और रख-रखाव का पूरा दायित्व ग्रामसभा एवं पंचायत का है. पंचायतों के जागृत होने पर ग्रामीणों की पेयजल समस्या का काफी हद तक निदान हो सकता है. झारखंड सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने सबसे पहले पंचायतों को अधिकार हस्तांतरित किया है. हालांकि राज्य के विधायकों ने नये चापानल अधिष्ठापन के मामले में ग्रामसभा एवं पंचायत के अधिकार का अपहरण कर लिया और पांच चापानल के स्थल का चयन अपने मरजी से कर दीा है. फिर भी सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल समस्या के समाधान में ग्रामसभा एवं पंचायतों को जिम्मेवारी दे रही है. चापानलों की मरम्मत के लिए प्रति चापानल 300 रुपये की दर से राशि सीधे ग्रामसभा की स्थायी समिति ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति के बैंक खाते में दी जाती है. राज्य सरकार के नियमानुसार ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति के बैंक खाता का संचालन मुखिया, समिति के उपाध्यक्ष एवं जल सहिया में से किन्ही दो के नाम से होगा. राज्य के लगभग सभी जिलों में अब तक सभी ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति का बैंक खाता नहीं खुल सका है. जहां खाता खुल गया है और इसकी सूचना जिला कार्यालय को दे दी गयी है, वहां प्रति चापानल 300 रुपये की दर से राशि हस्तांतरित कर दी गयी है. जहां पर खाता नहीं खुला है उसका पैसा अभी भी जिलों में पड़ा हुआ है. पंचायत प्रतिनिधि के सक्रिय होने पर पेयजल समस्या का समाधान आसानी से हो सकता है. किसी गांव में पांच चापानल है, तो उस गांव को 1500 रुपये मिलेंगे. इस राशि से खराब पड़े चापानलों की मरम्मत कर काफी हद तक समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.
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