गुरुवार, 4 जुलाई 2013

विशेष बातचीत: आप योजना बनायें, पैसे सरकार देगी

झारखंड वासियों के लिए जल कभी भी पर्याप्त मात्रा में आसानी से उपलब्ध होने वाला वस्तु नहीं रहा. मगर कुएं और पोखर जैसे परंपरागत जल स्रोतों के जरिये हम लोग खेती और पीने के लिए पर्याप्त पानी हमेशा से जुटाते रहे हैं. हाल के वर्षों में हमारी निर्भरता इन स्रोतों के बदले हैंडपंपों पर ज्यादा होने लगी है. तभी हैंडपंपों का औसत पूरे देश में सबसे अधिक झारखंड में है. इसी का नतीजा है कि जहां गरमियों की शुरुआत में ही बड़ी संख्या में हैंडपंप सूखने लगते हैं और लोग पीने के पानी के लिए यहां वहां भटकने को मजबूर हो जाते हैं वहीं  कई इलाकों में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की अधिक मात्रा के कारण लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. इन हालातों में झारखंड का पेयजल एवं स्वच्छता विभाग नई-नई योजनाओं के साथ राज्यवासियों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है. इस प्रयास में विभाग के प्रधान सचिव सुधीर प्रसाद का महत्वपूर्ण योगदान हैं.  वे लगातार पूरे राज्य में घूम कर लोगों की समस्याओं को समझने और निदान निकालने में जुटे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि वे इस पूरी प्रक्रिया में पंचायतों की ओर बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं. वे उनसे योजनाओं से लेकर क्रियान्वयन तक और उससे आगे की भी उम्मीद रखते हैं. जल सहिया की अनोखी योजना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है. सुधीर प्रसाद से पंचायतनामा के लिए पुष्यमित्र ने पेयजल से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत बात की. प्रस्तुत है बातचीत का प्रमुख अंश:

पंचायतों को पेयजल संरक्षण के मसले से जोड़ने की कोशिश विभाग की ओर से की जा रही है, इसके लिए जल सहिया का पद भी सृजित किया गया है. विभाग की इस बारे में क्या सोच है?
हम चाहते हैं कि पंचायतों के स्तर पर गठित जल एवं स्वच्छता समिति खुद योजना बनाये और उसे विभाग को प्रस्तावित करे. इस बारे में विभाग की यही राय है और संभवत: यही पंचायती राज व्यवस्था की भी मूल धारणा है. विभाग के लोग जमीनी स्तर की परिस्थितियों को उतना नहीं समझ सकते इसके अलावा हमारे पास इतने कर्मी भी तो नहीं हैं. हमारे कर्मी अधिक से अधिक ब्लॉक स्तर पर पदस्थापित हैं. वे जलापूर्ति संसाधनों का संचालन और देखरेख उतना बेहतर नहीं कर सकते जितना पंचायत स्तर पर सक्रिय जल एवं स्वच्छता समिति के लोग. अतक्ष समिति खुद योजना बना कर प्रस्तावित करें. वे चाहें तो योजनाएं सीधे हमारे पते पर भी भेज सकते हैं(प्रधान सचिव का पता साक्षात्कार के अंत में). हमने इस समिति में एक सक्रिय सदस्य के रूप में जल सहिया का पद सृजित किया है. यह समिति की कोषाध्यक्ष होगी. इसके चयन में हमने निर्देश जारी किया है कि परंपरागत रूप से पानी भरने के व्यवसाय में जुड़े लोगों को ही यह पद दिया जाये. उनके मना करने पर ही दूसरे समुदाय के लोगों को इस पद से जोड़ा जाये.  जल सहिया का काम पंचायत में जल एवं स्वच्छता से जुड़ी योजनाओं का निर्माण, उनका संचालन और देखरेख होगा. उन्हें विभाग की ओर से प्रशिक्षण दिया जायेगा तथा हैंडपंप सुधारने के लिए टूल किट भी दिया जा रहा है.
हैंडपंपों के बदले पाइप लाइन के जरिये पेयजल आपूर्ति को बढ़ावा देने के प्रयास किये जा रहे हैं. इसके पीछे क्या सोच है?
दरअसल हैंडपंप के मामले में हम काफी समृद्ध हैं. झारखंड में हैंडपंपों की औसत संख्या देश में सबसे अधिक है. मगर इस व्यवस्था की दो बड़ी खामियां हैं. पहली गरमियों में अक्सर हैंडपंप सूख जाते हैं, वहीं आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन जैसे तत्वों की अधिकता के मामले अक्सर हैंडपंपों में ही नजर आते हैं. इसके अलावा जलस्तर नीचे जाने की समस्या तो है ही. इसलिए भूसतह पर उपलब्ध पानी की आपूर्ति को ही आदर्श व्यवस्था माना जाता है. आप देखेंगे कि देश के सभी विकसित राज्यों इसी व्यवस्था को लागू किया जा रहा है.
बंद पड़ी खदानों से जलापूर्ति की योजना बड़ी रोचक है. मगर खनन क्षेत्र में होने के कारण इसका स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक असर तो नहीं पड़ेगा?
कतई नहीं. हम ट्रीटमेंट के बाद ही पानी की आपूर्ति करते हैं. सबसे बड़ी बात है कि यह योजना काफी सफल रही है. गिरिडीह में दो बंद खदानों(चैताडीह माइंस और महादेव तालाब) के जरिये गिरिडीह शहर को 17 लाख लीटर पानी प्रतिदिन उपलब्ध कराया जा रहा है. हम इस योजना को लेकर काफी उत्साहित हैं. आने वाले समय में गिरिडीह और धनबाद के 26 बंद पड़े खदानों से जलापूर्ति की योजना है.
कई क्षेत्रों में पेयजल में आर्सेनिक और प्लोराइड होने के कारण लोग कई बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. सरकार इन क्षेत्रों के बारे में क्या योजना बना रही है?
झारखंड के छह जिले इस तरह की परेशानियों से जूझ रहे हैं. गढ़वा और पलामू में पेयजल में फ्लोराइड की शिकायत है, तो साहिबगंज-पाकुड़ में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा है. वहीं दो अन्य जिले में आयरन की मात्रा ज्यादा है. आर्सेनिक और फ्लोराइड से प्रभावित जिलों में हमने ट्रीटेड वाटर सप्लाई की योजना शुरू की है. गढ़वा और पलामू में ऐसी 120 योजनाएं चल रही हैं. इन योजनाओं के तहत प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी प्रति दिन उपलब्ध कराया जा रहा है. वहीं साहिबगंज और पाकुड़ में ऐसी 30 योजनाएं संचालित हो रही हैं. साहिबगंज में 140 करोड़ की योजना पर काम चल रहा है जिससे जिले के 4 प्रखंड के 60 गांवों को पेयजल की आपूर्ति की जायेगी. आगे चल कर गढ़वा-पलामू में भी ऐसी ही योजना पर काम होगा. मगर देखरेख को लेकर कुछ समस्या सामने आ रही है. हम चाहते हैं कि इसमें हमें पंचायतों से कुछ सहयोग मिले. हम चाहते हैं कि इन योजनाओं का परिचालन पंचायत की जल एवं स्वच्छता समिति अपने हाथ में ले ले. विभाग इसके लिए उन्हें आर्थिक सहयोग भी उपलब्ध करायेगा. इसके अलावा अगर लाभार्थियों की ओर से कुछ राशि मसलन 30 पैसे प्रति लीटर की दर से इसके लिए पंचायतों को भुगतान किया जाये तो समितियों को भी काम करने में सहूलियत होगी.
विभाग ने कई अच्छी योजनाएं बनाई हैं मगर इसके बावजूद राज्य के कई इलाकों में महिलाओं को दो-दो, तीन-तीन किमी दूर से ढोकर पानी लाना पड़ता है. देश की महिला हॉकी टीम की कप्तान असुंता लकड़ा तक को अपने गांव में पानी ढोकर लाना पड़ता है. इन महिलाओं का कष्ट कब दूर होगा?
आपकी बातों में सच्चाई है. राज्य के 2500 टोलों में आज भी ऐसे हालात हैं. मगर इस मामले में भी हम पूरी तरह पंचायतों पर ही निर्भर हैं. हम चाहते हैं कि पंचायतों से हमारे पास प्रस्ताव आये कि उनके गांव की पेयजल की समस्या को कैसे खत्म किया जा सकता है. उनके प्रस्ताव ही अपने क्षेत्र के लिए ज्यादा कारगर होंगे. पानी के लिए मैगसेसाय पुरस्कार पाने वाले राजेंद्र सिंह भी मानते रहे हैं कि गांव के लोगों की योजनाएं ही ज्यादा कारगर होती हैं. इसके अलावा अगर इन गांवों में कोई पुराना कुआं हो तो पंचायत इसके जीर्णोद्धार की योजना का प्रस्ताव भेज सकते हैं. हम उसे पूरा करायेंगे. वैसे भी झारखंड के लोग कुएं का पानी पीना पसंद करते हैं. यह बात जनगणना के ताजा आकड़े में भी उभर कर सामने आयी है. राज्य के 42 फीसदी लोग जहां हैंडपंप का इस्तेमाल करते हैं वहीं आज भी 36 फीसदी लोग कुआं का पानी पीते हैं. यह इसलिए नहीं कि उनके पास हैंडपंप नहीं है बल्कि इसलिए कि लोग मानते हैं कि कुओं का पानी मीठा होता है. मगर राज्य में बड़ी संख्या में पुराने कुएं बेकार पड़े हैं. अगर कोई पंचायत इसका प्रस्ताव बनाकर भेजती है तो हम उसे जरूर स्वीकृत करेंगे. वैसे जहां तक असुंता वाले प्रश्न की बात है, उनके गांव में उनके घर के सामने एक नलकूप लगा है, जो वर्ष 2010-11 में बना है. इसलिए पहले वे जरूर पानी के लिए दूर जाती रही होंगी अब यह समस्या नहीं होनी चाहिए.
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग का पता
प्रधान सचिव
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, झारखंड सरकार,
नेपाल हाउस, रांची.

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