बाबूगीरी से बेबस एमबीए सरपंच
पंचायती राज व्यवस्था की पोस्टर गर्ल के रूप में मशहूर देश की पहली एमबीए महिला सरपंच(पंचायत प्रधान) छवि राजावत इन दिनों सरकारी बाबुओं की दखलअंदाजी से परेशान है. उनका कहना है कि आज भी पंचायती राज व्यवस्था ब्लॉक के बाबुओं की मोहताज है और जब तक इनका दबदबा खत्म नहीं होती पंचायतें स्वतंत्र और आत्मनिर्भर साबित नहीं हो पायेंगी.
देश के बड़े संस्थान से एमबीए की डिग्री लेने के बाद एक बड़े कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर छवि राजावत ने राजस्थान के सोडा पंचायत के सरपंच(वहां मुखिया के पद को सरपंच कहा जाता है) पद के लिए चुनाव लड़ा. जीत के बाद उन्होंने जिस इमानदारी से अपनी पंचायत के लिए काम करना शुरू किया उससे जल्द ही देश भर में उनकी ख्याति हो गयी. उन्हंे संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया, जहां उन्होंने भारतीय पंचायत व्यवस्था के मसले पर लोगों को संबोधित किया.
मगर इन दिनों छवि अपने ब्लॉक और सब डिविजन के अधिकारियों से जूझ रही हैं. उनका कहना है कि वे कई बार बेवजह काम में अड़ंगा डालते हैं और पंचयात प्रतिनिधियों को बार-बार उनके दफ्तर का चक्कर लगाना पड़ता है. वे बताती हैं कि मनरेगा के तहत उनके पंचायत को 3 करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं मगर अब तक इसका 25 फीसदी फंड ही जारी हुआ है. वे अपने पंचायत में मनरेगा का कंप्यूटरीकृत दफ्तर बनाना चाहती हैं, मगर एसडीओ इसमें रोड़े अटका रहे हैं.
वहीं गांव के एक बाहुबली व्यक्ति ने पंचायत की जलापूर्ति को बाधित करने के उद्देश्य से बीच रास्ते मंे तालाब खुदवा दिया है. मगर इसे रोकने में प्रशासन उनकी कोई मदद नहीं कर रहा. वे आगे बताती हैं कि सरकार एक सरपंच को सिर्फ 3 हजार रुपये प्रतिमाह का मानदेय देती है. मगर उसे जितनी बार कामकाज के सिलसिले में शहर जाना पड़ता है, यह पैसा उसी में खर्च हो जाता है. ऐसे में एक सामान्य आय वर्ग का इमानदार सरपंच अपना परिवार कैसे चला सकता है?
जल संरक्षण के लिए पीएम का आह्वान
परंपरा, कानून और कीमतों पर जोर
पहली बार देश में जल सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है. मंगलवार, 10 अप्रैल को इस समारोह के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री के व्याख्यान के प्रमुख अंश-
जल से संबंधित विषयों से निपटने के लिए जो हमारे देश में मौजूदा संस्थागत एवं कानूनी ढांचे हैं वह अपर्याप्त हैं तथा उसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है. इसके लिए एक सुझाव है कि जल पर सामान्य सिद्धांतों की एक वृहत राष्ट्रीय कानूनी रूपरेखा तैयार की जाए, जो सभी राज्यों में जल शासन पर आवश्यक विधान तैयार करने में मददगार हो सके. राष्ट्रीय जल मिशन ने जल उपयोग क्षमता में 20 प्रतिशत सुधार का लक्ष्य रखा है. इसकी दशा सबसे अधिक कृषि क्षेत्र में दयनीय है, जो कि हमारे सभी जल संसाधनों का तीन-चौथाई हिस्सा इस्तेमाल करता है और जहां जल उपयोग क्षमता अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों की तुलना में कम है. सिंचाई प्रणाली के लिए संकीर्ण अभियांत्रिकी-निर्माण केन्द्रित दृष्टिकोण से निकल कर हमें अधिक बहुपक्षीय एवं भागीदारी वाला दृष्टिकोण अपनाना होगा. जलापूर्ति के लिए प्राथमिक हितधारकों द्वारा कीमतों के निर्धारण में हमें अधिक पारदर्शी एवं सहभागी तंत्र की जरूरत है. हमारी कुल जरूरत के दो-तिहाई से अधिक निर्भरता भू-जल पर ही है. देश के सभी भागों में घटता जल स्तर एक गंभीर चिंता का विषय है. वर्तमान कानून प्रत्येक भू-मालिक को बोरवेल के द्वारा असीमति जल-दोहन का अधिकार देता है. बिजली एवं जल के लिए अपर्याप्त एवं कम कीमतों से भी इनके दुरुपयोग को बढ़ावा मिलता है. हमें ऐसी स्थिति का निर्माण करना है जहां भू-जल संसाधन को सार्वजनिक संपत्ति के रूप में स्वीकार किया जा सके. हमें जलीय स्तरों की भागीदारी प्रबंधन को प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है, ताकि जल के दोहन के तौर-तरीकों को बढ़ावा दिया जा सके और उनका टिकाऊ तथा समान उपयोग सुनिश्चित किया जा सके. यह वास्तविक रूप में उपलब्ध भू-जल से जुड़ा है. हमें भू-जल के दुर्लभ स्रोतों के उपयोग योग संबंधी स्पष्ट कानूनी ढांचा तैयार करने के प्रस्ताव पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए. हमारे पूर्वजों ने पानी को एकत्र करने के शानदार आधार तैयार किये, जो तकनीकी रूप से विविध और इंजीनियरी के सुदृढ़ सिद्धांतों पर निर्मित थे. ये स्थानीय परिस्थितियों के लिए तैयार किये गए थे और प्रत्येक जल व्यवस्था को स्थानीय भागीदारी और सामुदायिक नियंत्रण के जरिए प्रबंध किए जाते थे. हमें इस चातुर्य को अपनाने की आवश्यकता है, जो हमारे बीच विद्यमान थी और हमें मिलकर समाधान निकालने में सहयोग करना चाहिए, जिससे पानी के पुनर्चक्र ीकरण, पुर्न उपयोग और रीचार्ज में सहायता मिलेगी.
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