झारखंड की धरती में दबा पानी का खजाना अब खाली होने को है. एक से दो साल के अंदर ही चापाकलों से पानी के बदले बालू निकलने लगता है. ड्रिप बोरिंग फेल हो रहे हैं. यह स्थिति तब है, जब इस साल गरमी देर से आयी है और पिछले साल जमकर बारिश हुई थी. राज्य में पानी का संकट कितना गहरा है, इसका अंदाजा धरती विज्ञानियों की रिपोर्ट से लगता है. राज्य के 80 प्रतिशत से अधिक हिस्से में भू जल का स्तर खतरे के लाल निशान को पार कर गया है. धड़ाधड़ लग रहे चापानलों के बावजूद गांव प्यासे हैं. चुइयां भी सूख रही हैं. अगर, इस बार मानसून ने धोखा दिया, तो खेती का संकट और गहरा हो जायेगा. झारखंड में पानी के अंधाधुंध दोहन ने न केवल पेयजल संकट पैदा कर दिया बल्कि खेती के लिए भी गंभीर संकट पैदा हो रहा है. जमीन के अंदर का पानी निकालने से भूगर्भीय संकट भी पैदा होने की आशंका प्रबल हो रही है. भूगर्भ शास्त्री लगातार इस आशंका के कारण आने वाले समय में भूकंप की चेतावनी जारी कर रहे हैं. खेती का संकट बड़े पैमाने पर बेरोजगारों की फौज खड़ी कर देगा. इस स्थिति में राज्य के सकल उत्पाद पर भी असर पड़ेगा.
राहत की बात यह है कि राज्य में पानी को बचाने को लेकर बहुत कुछ हो रहा है. सरकार पहली बार चापानलों के बदले गांवों में कुओं व तालाबों के रख-रखाव का खर्च उठाने को तैयार हुई है. पानी बचाने के दूसरे उपायों पर स्वयंसेवी संगठनों से लेकर पंचायतें भी सक्रिय हो रही हैं. लेकिन यह सारा काम बिखरा-बिखरा है. अब तक जल संकट से निपटने के सभी तैयारियां अलग-अलग विभाग कर रहे हैं. इससे बात नहीं बनने वाली हैं. पंचायत स्तर पर पानी बचाने से लेकर पानी के समुचित उपयोग का कार्यक्रम बनना चाहिए. राज्य के पेयजल व स्वच्छता विभाग ने गांव के सारे कार्यक्रमों को पंचायती राज के हाथों सौंप दिया है. मुखिया से लेकर वार्ड सदस्य तक को शिक्षित-प्रशिक्षित किया जा रहा है. अब जिम्मेवारी पंचायतों की बनती है. अब तक मुखिया जी से लेकर जिला परिषद के सदस्य चापानलों के लिए विधायक जी का चक्कर लगाते थे. अब निर्णय उनके हाथों में है. फैसला ग्राम सभाओं को करना है. देश भर में जल सप्ताह मनाया जा रहा है. इस दौरान झारखंड में जल की स्थिति पर यह खास अंक पंचायती राज के प्रतिनिधियों को समर्पित है. जल संकट पर केवल चिंता जताने से कुछ नहीं होगा. इस बात को समझने का सही समय यही है. बारिश के पानी को सहेजने के छोटे व गंभीर प्रयास बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.
पाठकों की राय पर पंचायतनामा को और पठनीय बनाने की कोशिश की गयी है. पंचायतनामा के अक्षरों को पढ़ने में आ रही दिक्कतों को दूर करने का प्रयास किया गया है. इसके लुक में भी थोड़ा बदलाव किया गया है. उम्मीद है, यह आपको पसंद आयेगा. हर अंक आपके लिए संग्रहणीय बन सके. इसकी कोशिश जारी रहेगी. बस, हमें आप अपनी शिकायतों व सुझाव से अवगत कराते रहें. नमस्कार
संजय मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें