रूपाझा
मेरी पांच साल की बेटी नयी क्लास में गयी है. नयी टीचर और नयी-नयी बातें भी खूब करती है. स्कूल की दिनचर्या बताते हुए अचानक कहने लगी, आज एक नया गाना सिखाया गया- भारत सबसे महान है.
ये महान क्या होता है और भारत है क्या महान... अगर अखबार पढ़ते हुए उस खबर पर नजर ना जाती तो शायद टालने के लिए मैं कह ही देती कि हां सबसे महान है भारत.
लेकिन जैसे मुंह पर ताले पड़ गए थे. आप सबने भी पढ़ी होगी वो खबर- एक बार फिर कम उम्र की घरेलू नौकरानी के साथ डाक्टर दंपती का दुर्व्यवहार, प्रताड़ना. खबर में उस लड़की के हवाले से लिखा था कि उसे भर पेट खाना नहीं दिया जाता था. चिकोटी काटी जाती थी और उसकी चीख बाहर न पहुंचे इसके लिए मुंह को कपड़े से ठूंस कर बंद किया जाता था. कभी-कभी जूता भी ठूंस दिया जाता था.
ऐसी घटनाएं तो छपती ही रहती हैं. एनजीओ ने बढ़ा-चढ़ा कर रिपोर्ट लिखवाई होगी. नौकरानियों का तो यही हाल है जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो.
अगर मैंने पिछले पांच साल से एजेंसी के जरिए मेड्स न रखी होती तो शायद पड़ोस की महिलाओं की इन दलीलों को सच भी मान बैठती पर आलोक धन्वा की एक कविता की एक पंक्ति उधार ले सकूं, मुझे भी मालूम है कुलीनता की हिंसा. जूलियानी की याद बरबस ही आ गई. जब मेरे घर एक एजेंट के जरिए वो पहली बार आयी तो मुझे एक लंबी स्वस्थ लड़की का इंतजार था. जूलियानी बहुत छोटी सी दुबली-पतली लड़की थी. लगता किसी ने उसे बच्ची रहने नहीं दिया और वो बड़ी हो नहीं पायी. बोलती बहुत धीमे स्वर में. घर में मदद करने के लिए एक कामकाजी मां के लिए किसी भी तरह की लड़की का मिलना मुंह-मांगे वरदान जैसा होता है. मैंने सोचा कोई बात नहीं ठीक से खायेगी पीयेगी तो स्वस्थ हो जायेगी. बोलने भी लगेगी. बोलने तो लगी पर स्वस्थ नहीं हो पा रही थी. डाक्टरी जांच से पता चला टीबी है. और लंबे अरसे से. मैंने पूछा पहले जहां काम करती थी, वहां बीमार होती थी. उसने जवाब दिया जो मैं शायद जानती थी, हां थोड़ा बुखार होता रहता था. फिर ठीक हो जाता था. कभी डाक्टर के पास नहीं गयी. एक साल में कभी ले नहीं गयी मैडम. इलाज शुरू होने के तुरंत बाद ही वो स्वस्थ होने लगी. खुश भी रहती थी और फिर एक दिन वो भाग गयी. एक पहचान के लड़के के साथ.
फिर लौट भी आयी दो दिनो बाद. लड़का शादीशुदा परिवार वाला था. उसे लेने एजेंट आया और उससे पहले कि मैं उसे रोकती कस कर उसे तमाचा मारा.
मैं झट से उसे अंदर ले गयी. पूछा आगे क्या करना है... एजेंट के साथ जाना है या घर वापस जाना है. आश्चर्य था कि उसका चेहरा एक दम सपाट था.
घर चली जाओ जूलियानी, मै इंतजाम कर देती हूं, नहीं दीदी वहां जाकर क्या करना है. एजेंट के साथ जाओगी. मन तो नहीं है.. वो भी मुझसे ज़बरदस्ती करता है. कई बार मना करती हूं फिर भी. कहता है जीजा साली का रिश्ता है, छेडूंगा.
चुपचाप मेरी तरफ देखने लगी. कातर दृष्टि से....
मुझे पता था वो जानना चाहती थी कि क्या वो मेरे पास काम करती रह सकती है?
मुझे अपनी छोटी बच्ची की सुरक्षा याद आयी, मेरे पीछे बिल्कुल सुनसान मेरा घर फिर किसी का आना जाना शुरू कर दिया इसने तो... लड़की का मामला है किसी बड़ी मुसीबत मे ना पड़ जाऊं..
जूलियानी को मेरी खामोशी से मेरे जवाब का अंदाज़ा हो गया होगा. दुल्हन की तरह सजी जूलियानी झट उठ कर बोली, एजेंट के साथ जाउंगी. जनवरी की ठंडी और गहरी रात में गुम होती चली गयी जुलियानी. केवल उसके दुपट्टे का गोटा दूर तक झिलमिलाता रहा.
और मुझे याद आयी कुलीनता की हिंसा वाली पंक्ति.... अपनी बिटिया को ये कहने में शर्म सी महसूस हुई कि भारत सबसे महान है अगर महान होना कोई पोज़िटिव बात है तो......
मेरी पांच साल की बेटी नयी क्लास में गयी है. नयी टीचर और नयी-नयी बातें भी खूब करती है. स्कूल की दिनचर्या बताते हुए अचानक कहने लगी, आज एक नया गाना सिखाया गया- भारत सबसे महान है.
ये महान क्या होता है और भारत है क्या महान... अगर अखबार पढ़ते हुए उस खबर पर नजर ना जाती तो शायद टालने के लिए मैं कह ही देती कि हां सबसे महान है भारत.
लेकिन जैसे मुंह पर ताले पड़ गए थे. आप सबने भी पढ़ी होगी वो खबर- एक बार फिर कम उम्र की घरेलू नौकरानी के साथ डाक्टर दंपती का दुर्व्यवहार, प्रताड़ना. खबर में उस लड़की के हवाले से लिखा था कि उसे भर पेट खाना नहीं दिया जाता था. चिकोटी काटी जाती थी और उसकी चीख बाहर न पहुंचे इसके लिए मुंह को कपड़े से ठूंस कर बंद किया जाता था. कभी-कभी जूता भी ठूंस दिया जाता था.
ऐसी घटनाएं तो छपती ही रहती हैं. एनजीओ ने बढ़ा-चढ़ा कर रिपोर्ट लिखवाई होगी. नौकरानियों का तो यही हाल है जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो.
अगर मैंने पिछले पांच साल से एजेंसी के जरिए मेड्स न रखी होती तो शायद पड़ोस की महिलाओं की इन दलीलों को सच भी मान बैठती पर आलोक धन्वा की एक कविता की एक पंक्ति उधार ले सकूं, मुझे भी मालूम है कुलीनता की हिंसा. जूलियानी की याद बरबस ही आ गई. जब मेरे घर एक एजेंट के जरिए वो पहली बार आयी तो मुझे एक लंबी स्वस्थ लड़की का इंतजार था. जूलियानी बहुत छोटी सी दुबली-पतली लड़की थी. लगता किसी ने उसे बच्ची रहने नहीं दिया और वो बड़ी हो नहीं पायी. बोलती बहुत धीमे स्वर में. घर में मदद करने के लिए एक कामकाजी मां के लिए किसी भी तरह की लड़की का मिलना मुंह-मांगे वरदान जैसा होता है. मैंने सोचा कोई बात नहीं ठीक से खायेगी पीयेगी तो स्वस्थ हो जायेगी. बोलने भी लगेगी. बोलने तो लगी पर स्वस्थ नहीं हो पा रही थी. डाक्टरी जांच से पता चला टीबी है. और लंबे अरसे से. मैंने पूछा पहले जहां काम करती थी, वहां बीमार होती थी. उसने जवाब दिया जो मैं शायद जानती थी, हां थोड़ा बुखार होता रहता था. फिर ठीक हो जाता था. कभी डाक्टर के पास नहीं गयी. एक साल में कभी ले नहीं गयी मैडम. इलाज शुरू होने के तुरंत बाद ही वो स्वस्थ होने लगी. खुश भी रहती थी और फिर एक दिन वो भाग गयी. एक पहचान के लड़के के साथ.
फिर लौट भी आयी दो दिनो बाद. लड़का शादीशुदा परिवार वाला था. उसे लेने एजेंट आया और उससे पहले कि मैं उसे रोकती कस कर उसे तमाचा मारा.
मैं झट से उसे अंदर ले गयी. पूछा आगे क्या करना है... एजेंट के साथ जाना है या घर वापस जाना है. आश्चर्य था कि उसका चेहरा एक दम सपाट था.
घर चली जाओ जूलियानी, मै इंतजाम कर देती हूं, नहीं दीदी वहां जाकर क्या करना है. एजेंट के साथ जाओगी. मन तो नहीं है.. वो भी मुझसे ज़बरदस्ती करता है. कई बार मना करती हूं फिर भी. कहता है जीजा साली का रिश्ता है, छेडूंगा.
चुपचाप मेरी तरफ देखने लगी. कातर दृष्टि से....
मुझे पता था वो जानना चाहती थी कि क्या वो मेरे पास काम करती रह सकती है?
मुझे अपनी छोटी बच्ची की सुरक्षा याद आयी, मेरे पीछे बिल्कुल सुनसान मेरा घर फिर किसी का आना जाना शुरू कर दिया इसने तो... लड़की का मामला है किसी बड़ी मुसीबत मे ना पड़ जाऊं..
जूलियानी को मेरी खामोशी से मेरे जवाब का अंदाज़ा हो गया होगा. दुल्हन की तरह सजी जूलियानी झट उठ कर बोली, एजेंट के साथ जाउंगी. जनवरी की ठंडी और गहरी रात में गुम होती चली गयी जुलियानी. केवल उसके दुपट्टे का गोटा दूर तक झिलमिलाता रहा.
और मुझे याद आयी कुलीनता की हिंसा वाली पंक्ति.... अपनी बिटिया को ये कहने में शर्म सी महसूस हुई कि भारत सबसे महान है अगर महान होना कोई पोज़िटिव बात है तो......
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