शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

पंचायती राज के पैरोकार विनोदा बाबू

डा. मोहनानंद मिश्र
चिताभूमि, चंद्रदत्त द्वारी रोड, पीटी- बिलासी 814117, देवघर
पंचायती राज के माध्यम से जनकल्याण के कार्यक्रमों को प्रत्येक घर में पहुंचाने के लिए विनोदा बाबू सदा तत्पर रहे. उनके कार्ययोजना की प्रशंसा हारून रसीद ने भी की है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकारों कृषि राज्यस्व की दृष्टि से पंचायती राज्य बहुत ही महत्वपूर्ण था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने इनके मरणो उपरान्त कहा था- जिन्होंने भी विनोदा बाबू के साथ काम किया है वे गम्भीर रूप से उनसे प्रभावित हुए. वे महान देशभक्त विद्वान और अनुभवी सहकर्मी थे, जो अपनी निष्ठा और ईमानदारी के कारण सम्माननीय थे. बिहार में विनोदानन्द झा जी पितृकल्प पुरुष थे, जिनकी विधायक तथा मुख्यमंत्री के रूप में प्रांत की सेवा और दूरदृष्टि वाले राजनेता के रूप में समस्त देश की सेवा सर्वज्ञात थी.
यहां हम आपके सामने पंचायत को लेकर उनके विचारों को भी प्रस्तुत कर रहे हैं:
विनोदा बाबू कहते थेे
मूल उद्देश्य है पंचायत स्थापना का, वह उद्देश्य अभी दूर है और लक्ष्य स्थान से भी बहुत दूरी पर है. इसलिए, किसी भाई को यदि वतर्मान प्रगति से असंतोष होता है, तो उस असंतोष को समझना चाहिए, उसकी कदर करनी चाहिए. पंचायत यद्यपि शासन-यंत्र तथा विकास-कार्य के लिए इतना ही नहीं कि पंचायत कानून के अन्तर्गत जो कुछ अधिकार उसे दिया गया, उसको काम में लाने के लिए एक छोटा-सा संगठन गांव में हो. पंचायत स्कीम की जो आत्मा है, जो स्पिरिट है, उसको काम मेें लाने के लिए हमें  कोशिश करनी होगी. सफलता सभी हमलोगों को मिलेगी. यदि हम संगठन का सामंजस्य, जो मौजूदा संगठन-शासन संगठन के रूप में है, उसके साथ हो यानी मौजूदा शासन भी ऐसी मौलिक जगह पर हो, इस तरह से उसमें परिवर्तन होते जायें कि पंचायत का काम एक अनहोनी-सा, एक असम्भव नहीं प्रतीत हो, लेकिन नये भारतवर्ष की नवीन शासन-पद्धति का एक वास्तविक, व्यावहारिक और ठोस अंग के रूप में हो, तो यह काम तो आसान नही है.
फिर भी कोई शासन-यंत्र है. अभी उसमें और आप में बहुत सी बुराई की बातें हैं. यदि आज उनके पुन:संगठन की बात सोची जाती है, तो इसलिए नहीं कि उसमें बुराई भरी हुई हैं. ऐसी बात नहीं, बल्कि इसलिए कि जिन दिनों में यह शासन-यंत्र लाया गया था, उस दिन राज्य का उद्देश्य था सिर्फ पशु-शक्ति से, ताकत से, बंदूक की ताकत से, लाठी की ताकत से जनता के ऊपर हुकूमत करना और उसकी व्यवस्था थी पुलिस स्टेट की, यानी उस समय पुलिस की मदद से फौज की मदद से, आदमियों को अपने कब्जे में रखना था. आज हमारे देश में जो क्रान्ति आयी और उस क्रान्ति के परिणामस्वरूप हमें जो नया संविधान मिला, उस संविधान में पुलिस स्टेट की जगह पर एक वेलफेयर स्टेट, एक डेमोक्रेटिक स्टेट का ही यदि लक्ष्य आज रखा गया हमारे संविधान में तो जितना ऐडमिनिस्ट्रेशन का सिलसिला है, शासन करने का सिलसिला है, उसमें भी इस दृष्टिकोण से आवश्यक सामंजस्य लाना चाहिए.
लाठी और बन्दूक की प्रधानता अब शासन में नही रही. लाठी और बन्दूक तो रहेगी. जब तक कुछ-न कुछ ऐसे आदमी है. जिनको युक्ति से रास्ते पर नही लाया जा सकता. ये लोग जो हमेशा समाज में उलट-पलट करने की बात हिंसात्मक रीति से सोचने है, उनके मुकाबले के लिए, हिंसात्मक तरीका अख्तियार करने को स्टेट भी बाध्य होता है लेकिन अमूमन हम प्रजातांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करते है, फिर वेलफेयर स्टेट की स्थापना करते है, तो नागरिक की भलाई के सिवा, उनके विकास के सिवा दूसरा कोई काम नही. तो, स्टेट के फंक्शन करने का, इसके काम करने का जो तरीका है, इसमें भी, एडमिनिस्ट्रेशन का जो तरीका है, उसमें भी उसके उद्देश्य के साथ सामंजस्य नही होगा. तो ऐसी हालत में दोनों में जो संघर्ष होता है, उसी तरह का एक व्यावहारिक संघर्ष एक नैतिक संघर्ष जैसा संघर्ष अभी देखते है वैसा होता है.
आज मैैने क्यों चुनाव बन्द किया, क्योंकि पंचायत में जो 900 चुनाव बाकी है, यदि मै होने दूँ तो हमें डर है कि दूषित वातावरण पैदा हो जायेगा. जेनरल एलेक्शन, जो आने वाला है, 5-6 महीने के बाद इसका असर जेनरल एलेक्शन पर पड़ेगा. जेनरल एलेक्शन में निर्वाचन के समय, आदमियों के सामने उनके देश का सवाल रखूंगा, उसके बच्चों को पढ़ाने का सवाल रखूंगा, उनकी बेकारी दूर करने का सवाल रखूंगा और अपने देश की रक्षा की बात रखूँगा. इन सारी बातों  को जब उनके सामने फैलने के लिए रखूंगा, उस समय यदि पंचायत का चुनाव, जैसा हो रहा था, जैसा चुनाव अमहरा में हुआ, जैसा चुनाव सेवरा गांव, मुंगेर में हुआ, जैसा चुनाव मुजफ्फरपुर में किसी तरह हुआ, जिसकी रिपोर्ट हमें याद है, तो एक ही चीज सामने आती है कि किस जाति को जगह पर जाना चाहिए.
एक नया समाज बनाने की जो प्रथम चिंगारी होती है, आप वही एक चिंगारी हैं. आप उसी काम को कर रहे है जो कि जमीन को पहले-पहले खेती के लिए तोड़ने वाला करता है. उसकी जो कृति होती है, उसकी जो प्रतिष्ठा होती है,आपकी प्रतिष्ठा वही है. इसमें जहाँ-जहाँ बाधाएं हो, कठिनाइयां हो, आपस में पहले बातें करें, अधिकार से बाद में. ठंडे से, घबराहट से नही. कभी कम्प्लेक्स लेकर बात नही करनी चाहिए. किसी के पास जायें बात करने के लिए तो अपने को छोटा समझ कर भी नही जाना चाहिए और न अपने को बहुत बड़ा समझ कर ही जाना चाहिए. इसे बार-बार आपसे कहा है और आज भी दोहराता हूँ कि हर पंचायत को किताब रखनी चाहिए. उस किताब में बीडीओं से क्या बातें हुई, क्या परिणाम निकला? उन्होने  क्या राय दी, नोट करना चाहिए. आज जो मुखिया हो, हो सकता है वे कल चले जाये. आज जो बीडीओं है, हो सकता है कल बदल जायें, तो दूसरे के लिए,गाइडेंस के लिए, किताब रखनी चाहिए साथ-साथ काम का इंस्पेक्शन होते रहना चाहिए. इंस्पेक्शन के लिए उन्होंने कहा, साल में एक मरतबे होगा, तो उससे संतोष नही करना चाहिए. इनके पास स्टाफ कम है, ये साल में एक मरतबे जरूर देखें. लेकिन मुखिया को अपना दफ्तर प्रति माह देखना चाहिए. इनको माह में सिनेमा नहीं देखना चाहिए. उसके ऑफिस में ग्राम-सेवक कमर्चारी रक्षा दल के सेवकों को मालूम होना चाहिए कि महीने में पहला रविवार, रविवार को काम नही होता है, उस दिन मुखिया दो घंटा, सरपंच दो घंटा बैठक कर दफ्तर देखेगा. कितना पन्ना खर्च है? कितनी नीबें है, कितनी खर्च हुई, कितनी रोशनाई है, कितनी खर्च हुई, कितना पैसा है और कहां गया? यह सब खूब मजबूती के साथ इंस्पेक्शन करना चाहिए और इंस्पेक्शन करके  उसके परिणाम को रखना चाहिए. यह पंचायत कमेटी के सामने पेश होना चाहिए, तो उससे सिलसिला आ जायेगा और कहीं यदि कुछ गफलत हो, भूल हो, तो वह दुरुस्त हो जायेगा. यह मेथड आयेगा, आपस में एक तसल्ली भी होगी. लोगों के ऊपर, जो काम नही करते है, उनके ऊपर एक दहशत भी होगा कि मालिक चैतन्य है, देखता है. उसी तरह से एक महीने में हो, दो महीने में हो, जैसा भी हो करना चाहिए. कभी पड़ोस की पंचायत के मुखिया को निमंत्रण देना चाहिए कि आओ और हमारी पंचायत को देख जाओ. कुछ गलती तुम्हें मालूम हो, कुछ भी कमी हो या कुछ और हम कर सकते है या नहीं इस पर परामर्श दे जाओ. तो इस तरह से बराबर आना-जाना चाहिए, उनसे राय-मशवरा लेना चाहिए. पंचायतों को अपने अन्दर की जो ताकत है, उसको डेवलप करना चाहिए. उसका विकास करना चाहिए. यदि वह विकसित होगी, तो बाहर की पंचायत की मांग बहुत कम होगी, आवश्यकता भी कम हो जायेगी, जरूरत भी नही रहेगी और कुछ बढि़या, सुन्दर समाज नीचे से बनता हुआ आयेगा. तो हमलोग सब अपने ढंग से काम करें. सब कोई सुन्दर ढंग से, अपने-अपने तरीेके से अपने तरीके को बनवावें और चलावें. इसी तरह के काम होता हैं. किस तरह से सरल ढंग से बढि़या से काम हो, यह देखना है. बहुत ज्यादा फाइल का महत्व नहीं रखना चाहिए. हमलोग सेक्रेटेरियट में फाइल के अन्दर हैं. इतनी फाइलों को हमलोगों ने बनाया है और दस्तखत किया है कि 1936 से जितनी फाइलें एक हमारे हाथ में गुजरी है, वे हमारी लाश को जलाने के लिए काफी हो सकती है, लेकिन कितना कागज इसमें व्यर्थ खर्च हुआ है, इसका भी असर हम पर है. एक बगल के कमरे में रहता है ऑफिसर, वह तीन पन्ने का नोट लिखता है और उसकी कटान में हम दस लाइन, छह लाइन लिखते हैं. इसी तरह से चलता रहेगा छह महीने तक. बैठक करके, गुफ्तगू से मामला तय कर ले. आपस में दो लाइन में बात खत्म हो जाए, यह परिपाटी होनी चाहिए क्योंकि, हम बहुत बुद्धिमतापूर्ण साहित्य से भरे हुए नोटों से पेट भरने वाले नही हैं. उन नोटों से परिणाम क्या निकलता है, उसी से हमारा सिर्फ सरोकार है. तो, यह चीज आपके अन्दर नहीं है. अपने ढंग से चीज निकालें सभी चीजों में, आपस में बात करके जो रास्ता हो, निकालो.

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