शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

संत की सदिच्छा से निर्मल हुई नदी


सिखों के पहले गुरु नानक देव के जीवन से जुड़ी पवित्र नदी काली बेई का 160 किलोमीटर लंबा प्रवाह मार्ग कभी गंदे नाले जैसा दिखता था. गांवों- शहरों के गंदे पानी, आसपास के खेतों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग, कीचड़ और जंगली घासफूस से तबाह हो चुकी थी. मगर आज यह नदी एक कर्मयोगी संत के संकल्प से रमणीय नदी का रूप ले चुकी है. देश-विदेश से बड़ी संख्या में पर्यावरणविदों ने वहां पहुंचकर उनके इस काम की तारीफ की है. पूर्व राष्ट्रपति डा एपीजे अब्दुल कलाम ने खुद इस संत सीचेवाल के भागीरथ प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा की है. इस नदी के कायाकल्प की असाधारण कथा उतनी ही रोचक है.

कारसेवा से हुई शुरुआत
संत बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल बताते हैं कि जब भी वे काली बेई नदी की हालत देखते तो उनका मन भारी हो जाता. उन्हंे दुख होता कि जो नदी उनके धर्म के लिए इतन पावन है हकीकत में उसकी हालत कितनी बुरी है. एक दिन पर्यावरण पर आयोजित सेमिनार के दौरान उन्होंने मन ही मन इस बात का संकल्प लिया कि वे किसी भी कीमत पर काली बेई को पुरानी स्थिति में लाएंगे. उन्होंने अकेले ही सफर शुरू किया था, लोग जुड़ते गए और आज एक बड़ा कारवां बन गया है. गुरुद्वारों में की जाने वाली कारसेवा को उन्होंने नदी के पुनरोद्धार के लिए प्रयोग किया. पिछले लगभग दस-बारह सालों से यह नित्यक्र म बन चुका है. सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और स्वप्रेरणा से कस्सी, बट्ठल, फावड़ा, गेंती उठाकर श्रमदान में जुट जाते हैं.
आसान नहीं थी कारसेवा
संत बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल ने अकेले ही सफर शुरू किया, परंतु लोग जुड़ते गए और आज एक बड़ा कारवां बन गया है. सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और श्रमदान में जुट जाते हैं. ये कारसेवक नदी से गाद, जलबूटी, झाड़फूस निकालते हैं और इसके किनारे पक्के करते हैं. यह कोई आसान काम नहीं है क्योंकि सदियों से किसी ने इसकी सफाई नहीं की है, जिसके कारण यहां कई तरह के बिच्छु, सांप, कई जहरीले कीड़े मकोड़े निकलते हैं जो कई बार कारसेवकों को दंश मार चुके हैं. इन कारसेवकों को उन किसानों व ग्रामीणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा जिन्होंने काली बेई की खाली पड़ी
जमीनों पर कब्जा किया हुआ है. इसके बावजूद कारसेवा निरंतर जारी है. कारसेवा के कारण उनको विभिन्न गांवों में सड़कें और पगडंडियां तक बनवानी पड़ीं. कई गांवों में सीवेज प्रणाली बनवाई और कई जलस्रोतों का पुनरोद्धार किया.
ऐसा नहीं है कि संत जी का काम बड़ी सुगमता के साथ चल रहा है. उनको कई जगहों पर लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा है और सरकार से भी उनको कोई अधिक सहयोग नहीं मिला है. बाबा जी बताते हैं कि आज भी 160 किलोमीटर लंबे रास्ते में लगभग 76 गांवों व कस्बों के सीवेज का पानी इसमें गिरता है जिसको केवल सरकार ही रोक सकती है. नदी को प्राकृतिक रूप में लाने के लिए नदी के दोनों ओर हरी पट्टी होनी जरूरी है. इसके लिए नदी के दोनों ओर कम से कम एक-एक एकड़ सपाट जमीन की जरूरत है जहां पर वृक्षारोपण और पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित किया जा सके. नदी के दोनों ओर बहुत सी जगह पर लोगों ने कब्जा किया हुआ है और कई जगहों पर किसानों ने जमीनों की रजिस्ट्रियां करवा रखी हैं. इन्हंे हटाने का काम केवल सरकार ही कर सकती हैं. परंतु इन बाधाओं के बावजूद कलियुग के इस भागीरथ के भागीरथ प्रयास जारी हैं.

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