गुरुवार, 4 जुलाई 2013

नहरों में पानी की एक बूंद भी नहीं

लोहरदगा जिले के कैरो प्रखंड क्षेत्र में स्थित नंदनी जलाशय का निर्माण 1983-84 में क्षेत्र के किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से करोड़ों की लागत से कराया गया था. नंदनी डैम से तीन नहर निकालकर 10-12 गांवों के हजारों एकड़ भूमि सिंचित करने का लक्ष्य था. किंतु विभागीय लापरवाही के कारण आज भी नहर में पानी प्रवाहित नहीं हो रहा है. नतीजा नहर के किनारे की हजारों एकड़ भूमि परती पड़ी है. मुख्य नहर में अकाशी, नरौली, खंडा, उतका, कैरो, नयाटोली, एड़ादोन, पतराटोल, सिंजो, सुकुरहुटू, बारडीह गांवों के खेतों को सिंचित करने का लक्ष्य था. किंतु मिट्टी भर जाने और मेठों के बीच-बीच में टूट जाने के कारण जल प्रवाह नहीं हो पाता. पश्चिमी नहर से अकाशी, बंडा, उरांव बंडा, नगड़ा, बिराजपुर, जामुन, टोली आदि गांवों के खेतों में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गयी थी. शुरुआत के कुछ वर्षों तक इससे किसानों को लाभ मिला. किंतु अकाशी के पास पुल टूट जाने के बाद नहर बेकार पड़ी है. पूर्वी नहर से ख्वास अंबआ, पचागांई, नरौली, खंडा, उतका, कैरो, नयाटोली, एड़ादोन, पतराटोली के किसानों को सिंचाई सुविधा देने की योजना थी. किंतु नहर का लेबल बराबर न होने के कारण यह बेकार पड़ी है. आज तक इस नहर में पानी प्रवाह नहीं कराया जा सका है.
जारी है टैक्स वसूली
किसानों से प्रत्येक वर्ष विभाग द्वारा टैक्स वसूली की जाती है. खरीफ फसल पर 75 रुपये प्रति एकड़ एवं रवि फसल के नाम से 60 रुपये प्रति एकड़ टैक्स निर्धारित किया
गया है.
जनप्रतिनिधि उदासीन
चुनाव के समय सभी पार्टियों का कैरो क्षेत्र के लिए नहर की सफाई, डैम की मरम्मत तीनों नहरों से लाभांवित किसानों को सिंचाई सुविधा देना मुख्य मुद्दा होता है. किंतु चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि निष्क्रिय हो जाते हैं.
21.46 लाख की लागत से हुई मरम्मत बेकार
प्रखंड कार्याजय से मनरेगा के अंतर्गत 21.46 लाख की लागत से कैरो क्षेत्र में नहर मरम्मत करायी गयी. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. चंूकि डैम के मुहाने पर नहर सफाई न होने से जलप्रवाह संभव है ही नहीं. दूसरी तरफ नहर का मेठ जगह-जगह पर टूटा हुआ है.
नहर पर बनी पुलियों की स्थिति ठीक नहीं
नहर पर बनी पुलियों में मिट्टी भरी पड़ी है एवं बहुत पुरानी होने के कारण अधिकतर पुलियां टूटी हुई है. जिससे पानी का बहाव रुक जाता है तथा टूटे मेठों से पानी बेवजह बह जाता है.  
              (लोहरदगा से गोपी कृष्ण कुंअर की रिपोर्ट)

कातिकोड़ा के किसानों का कमाल

कहते हैं जब मन में लगन और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो रेत से भी तेल निकाला जा सकता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है पश्चिम सिंहभूम के कातिकोड़ा के किसान डेविड मुदुइया व रोशन मुदुइया ने. ब्रिटिश हुकूमत के समय वर्ष 1914 मे 70 एकड़ 50 डिसमिल क्षेत्रफल में बना बड़ा तालाब किसानों के लिए आज भी जीवन दायिानी साबित हो रहा है. यह बांध 35 फीट गहरा है. टाटा स्टील ग्रामीण विकास समिति द्वारा बड़ा बांध का जीर्णोद्धार किया गया है. डेविड व रोशन इस बांध से दो हेक्टेयर मे सिंचाई कर खेती कर रहे हैं. वे कहते हंै कि साल में दो से तीन लाख रुपये की आमदनी हो जाती है. श्रीविधि से धान की खेती के अलावा गेहूं, सरसों, दलहन व सब्जियों की खेती भी किसान करते हैं. इस बांध का न तो बिहार सरकार के समय और न ही झारखंड गठन के बाद कभी जीर्णोद्धार किया गया. बांध में इतना पानी है कि सालों भर इससे सिंचाई की जाती है. तालाब को अस्सी फीट गहरा करने की योजना है. ऐसा हो जाने से पूरे गांव के अलावा आसपास के खेतों को भी पानी मिलेगा. अभी कातिकोड़ा के ग्रामीण इससे आत्मनिर्भर हैं. किसानों को समिति की ओर से पचास फीसदी अनुदान पर खाद व बीज दिया जाता है. वे बताते हैं कि बांध के चारों  ओर जंगल है. सरकार चाहे तो इसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित कर सकती है. यहां शिवलिंग भी है. मकर संक्राति के दौरान यहां दो दिन का मेला लगता है.
(नोवामंुडी से रवींद्र यादव की रिपोर्ट और तसवीर)

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