मंगलवार, 23 जुलाई 2013

सदस्यों पर है विकास की जिम्मेवारी

पंचायनामा डेस्क

पंचायतनामा के पिछले अंक में अबतक आप पढ़ चुके हैं कि मुखिया, प्रमुख व जिला परिषद अध्यक्ष के क्या अधिकार, कर्तव्य व दायित्व होते हैं. अब आप इस अंक में पढि़ए पंचायत निकाय के अन्य जनप्रतिनिधियों के अधिकार, दायित्व व कर्तव्य के संबंध में. ये जनप्रतिनिधि भी अपने क्षेत्र व पंचायत निकाय के प्रति व अंतिम रूप से आम आदमी के प्रति उत्तरदायी होते हैं.
वार्ड सदस्य की जिम्मेवारियां बतायें?
वार्ड सदस्य ग्राम पंचायत का सदस्य होता है. वह अपनी पंचायत की बैठक में अपने वार्ड व गांव का प्रतिनिधित्व करता है. वह विभिन्न समितियों के गठन में भाग लेता है  और सर्वसम्मति से उसे जिस समिति का अध्यक्ष चुना गया हो, उसकी अध्यक्षता भी करता है. गांव वासियों के विकास के लिए योजनाओं के चयन व क्रियान्वयन की प्राथमिकता तय करना, ग्राम पंचायत के विकास के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध राशियों के समुचित आवंटन में मुखिया की मदद करना उसकी जिम्मेवारी है.  पंचायती राज के तहत सौंपे गये अन्य दायित्वों का निर्वाह भी उसे करना होता है. उसके कई सामाजिक दायित्व भी होते हैं. जैसे उसे अपने वार्ड-गांव की ग्रामसभा के साथ बैठक कर योजना तैयार करना होता है. गांव में ग्रामसभा द्वारा तैयार की गयी योजनाओं को ग्राम पंचायत की बैठक में भी प्रस्तुत करना होता है. ग्राम पंचायत की बैठक में योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए प्राथमिकता तय करते समय अपने वार्ड-गांव के लिए योजनाओं को प्राथमिकता दिलाना भी उसका दायित्व होता है. योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद, ग्रामसभा के लिए निर्णय व प्रस्ताव को ग्राम पंचायत व मुखिया तक पहुंचाना, गांव या वार्ड क्षेत्र के संबंध में पंचायत सचिवालय या मुखिया द्वारा लिये गये निर्णय के संबंध में लोगों को बताना, पंचायत में उपलब्ध मद की राशि की जानकारी गांव को देना, ग्रामसभा द्वारा पंचायत से मांगी गयी उन समस्त जानकारियों को उपलब्ध कराना, जो गांव अथवा पंचायत के ग्रामीणों से संबंधित हों, उसकी जिम्मेवारी है. ग्रामसभा और ग्राम पंचायत के बीच प्रगाढ़ कड़ी का काम करना उसका दायित्व है.
पंचायत समिति सदस्यों के अधिकार, कर्तव्य एवं दायित्व क्या हैं?
पंचायत समिति में अपनी पंचायत के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में पंचायत समिति सदस्य प्रतिनिधित्व करता है. स्थायी समिति के दायित्व का निर्वहन, पंचायत समिति की प्रत्येक बैठक में भाग लेना, गांव की बुनियादी समस्याओं के प्रति पंचायत समिति का ध्यान आकृष्ट कराना उसकी जिम्मेवारी है. सरकारी योजनाओं की जानकारी पंचायत एवं गांव स्तर पर लोगों को प्रदान करना, पंचायत समिति स्तर पर प्रखंड क्षेत्र एवं ग्राम पंचायत के लिए योजनाओं की प्राथमिकता तय करते समय अपनी पंचायत की योजनाओं को प्राथमिकता सूची में सम्मिलित कराने में विशेष भूमिका निभाना, अपनी पंचायत के जरूरतमंदों को सरकार की ओर से मिलने वाली विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाना एवं शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, कृषि विकास के लिए योजनाओं के निर्माण एवं क्रियान्वयन में योगदान देना उसके कर्तव्य हंै.
जिला परिषद सदस्य के क्या कर्तव्य, अधिकार व दायित्व हैं?
जिला परिषद सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं, जरूरतों व आवश्यक योजनाओं की मांग जिला परिषद की बैठक में उठाता है. उसे जिला परिषद की बैठक में भी शामिल होना होता है व वहां अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना होता है. उसे जिला परिषद द्वारा गठित स्थायी समितियों के सदस्य, सभापति, उपसभापति के रूप में दायित्व निभाना होता है. जिला परिषद के अधीनस्थ कार्यालयों, उनके अधिकारियों, कर्मचारियों का पर्यवेक्षण व नियंत्रण करने में जिला परिषद अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का सहयोग करना, समय-समय पर ऐसे कर्मचारियों-अधिकारियों का स्वयं भी पर्यवेक्षण, निरीक्षण व नियंत्रण करना उसकी जिम्मेवारी है. जिला परिषद सदस्यों के कई सामाजिक दायित्व भी होते हैं. उसे अपने निर्वाचन क्षेत्र अथवा प्रखंड की बुनियादी समस्याओं को जिला परिषद के समक्ष प्रस्तुत करना होता है, प्रखंड स्तर पर पूरी नहीं हो सकने वाली योजनाओं-परियोजनाओं को जिला परिषद विकास निधि के द्वारा क्रियान्वित कराना, प्रखंड के लोगों के विकास के लिए अधिकाधिक योजनाओं को जिला परिषद से स्वीकृति दिलाना और उन्हें प्रखंड क्षेत्र में क्रियान्वित कराना, अपने प्रखंड केविकास लिए अधिकाधिक राशि का आवंटन पाना, प्रखंड के विकास से संबंधित किसी भी प्रकार की योजनाओं को जिला स्तर पर पास कराने के लिए लगातार सक्रिय रहना, अपने क्षेत्र अथवा प्रखंड के ग्राम वासियों के व्यक्तिगत अथवा सामूहिक कार्यों को जिला स्तर पर शीघ्र कराने में मदद करना उसका दायित्व है. बुनियादी जरूरतों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सिंचाई, जल प्रबंधन, सड़क, बिजली आदि की सुविधा समुचित तौर पर उपलब्ध हो इसके लिए प्रयास करना, पंचायत समिति व जिला परिषद के बीच सामंजस्य कायम कराना, सरकार की योजनाओं, नीतियों की जानकारी पंचायत समिति को देना, भ्रष्टाचार को खत्म करने का प्रयास करना उसका दायित्व होता है.

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

झारखंडी भाषाओं को सम्मान दिलाने में जुटी महिलाएं



कहते हैं आदिवासियों का चलना नृत्य और बोलना ही गीत है. झारखंड की संस्कृति और परंपरा काफी धनी है. यहां का आदिवासी समाज अन्य समुदाय के लोगों के साथ लंबे समय से साथ रहने के कारण धीरे-धीरे अपनी परंपरा से दूर होता जा रहा है. आदिवासियों की परंपरा को बचाने और उनकी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विकास की दिशा में प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन कार्य कर रहा है. फाउंडेशन से जुड़ी आदिवासी महिलाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. इनका उद्देश्य आदिवासियों में जागरुकता लाना, घरेलू हिंसा को रोकना और आदिवासी समाज को विकास पथ पर लाना है.

झारखंड की नौ भाषाओं के विकास, लोगों के बीच इन भाषाओं के साहित्यकारों की पहुंच और इनका अधिक से अधिक प्रयोग हो, इसके लिए त्रैमासिक पत्रिका झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा का प्रकाशन किया जा रहा है. इसकी शुरुआत वर्ष 2004 में हुई थी. पत्रिका में सभी नौ भाषाओं नागपुरी, संताली, हो, खडि़या, मुंडारी, कुड़ुख, पंचपरगनिया, खोरठा और कुरमाली के लेख, कविता और कहानियां प्रकाशित होती हैं. इसका उद्देश्य विभिन्न भाषा के आदिवासी समुदाय के लोगों को अपनी भाषा-साहित्य के प्रति जागरूक करना है, ताकि वह अपना इतिहास अपनी ही भाषा में पढ़ें और स्वयं में गर्व महसूस करें. फाउंडेशन झारखंड की भाषाओं के विकास व झारखंड के गुमनाम रहे शिक्षाविद व साहित्यकारों को समाज के सामने लाने का कार्य कर रहा है. साथ ही भाषा, साहित्य व संस्कृति के विकास के लिए फाउंडेशन का अखड़ा मंच काम कर रहा है. संस्था का मानना है कि कृषि को परंपरा और विज्ञान से जोड़कर राज्य में विकास की गंगा बहायी जा सकती है. समाज को आगे ले जानेवाली परंपराओं को बढ़ावा मिले, ताकि राज्य से विस्थापन व पलायन पर विराम लग सके.
विभिन्न आदिवासी भाषा के लेखकों के लिए अखड़ा एक मंच है.  झारखंड की भाषाओं से जुड़ी पांडुलिपि को प्रकाशन के लिए रांची विश्वविद्यायल और टीआरआइ (ट्राइबल रिसर्च इंस्टीच्यूट) ने लिया था, लेकिन आज तक इनका प्रकाशन नहीं किया जा सका. इन अनमोल धरोहरों से आदिवासी समाज को जो गति मिलनी चाहिए थी, वह अबतक नहीं मिली है. संस्था उसे गति देने का कार्य कर रही है.
संताली भाषा के स्क्रप्टि पर काफी कार्य हो चुके हैं और इसका प्रचार-प्रसार भी हुआ है. हर भाषा के लिए एक-एक परिषद है और हर परिषद अपनी-अपनी भाषा की उन्नति के लिए कार्य कर रही है.
आदिवासी हितों व संस्कृति से जुड़े अगुवों पर संस्था डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने का कार्य भी करती है. संस्था ने भाषा के विकास के लिए राज्यभर के लोगों से संपर्क कर अभियान चलाया. अभियान का ही प्रतिफल है कि झारखंड की नौ भाषाओं को सरकार ने द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया. संस्था अब इन भाषाओं के लिए अकादमी के गठन को लेकर प्रयासरत है. ऐसा होने से रोजगार के अवसरों का सृजन होगा और पलायन रुकेगा.
संस्था से जुड़ी महिलाएं आदिवासी समाज के बीच जागरुकता लाने का भी प्रयास कर रही हैं. इस अभियान के तहत महिलाओं के अधिकारों पर चर्चा की जाती है. आदिवासी समाज कृषक समाज है. महिलाएं भी खेतों में काम करती हैं. संस्था महिलाओं को किसान का दर्जा दिलाने के लिए प्रयासरत है. यदि कोई आदिवासी महिला अकेली है, अविवाहित है या फिर वृद्धा है तो भी वह आत्मनिर्भर नहीं होती. उसे भी पुरुष की तरह आत्मनिर्भर बनने का अधिकार दिलाने के लिए संस्था कार्यरत है. आदिवासी समाज में बेटी बोझ नहीं समझी जाती और यहां दहेज प्रथा जैसी कुरीति भी नहीं है. समाज की महिलाएं अभी भी घरेलू हिंसा की शिकार होती है. संस्था यह मानती है कि गांवों में इसका मुख्य कारण हडि़या है, जिसके कारण कई घर बरबाद हुए हैं. वैसे समाज कुछ तथाकथित अगुवाओं ने इसे सांस्कृतिक पेय की संज्ञा दी है. संस्था गांवों में रहने वाली महिलाओं ही नहीं, बल्कि पुरुषों को भी इस दिशा में जागरुक कर रही हैं. सभी को हडि़या के अतिसेवन से दूर रहने की सलाह दी जाती है, ताकि समाज के पुरुष इसमें पैसे को बरबाद न करें, जो उन्हें शारीरिक व आर्थिक रूप से कमजोर बनाता है.

कैसे भारत को कह दूं महान?

रूपाझा


मेरी पांच साल की बेटी नयी क्लास में गयी है. नयी टीचर और नयी-नयी बातें भी खूब करती है. स्कूल की दिनचर्या बताते हुए अचानक कहने लगी, आज एक नया गाना सिखाया गया- भारत सबसे महान है.
ये महान क्या होता है और भारत है क्या महान... अगर अखबार पढ़ते हुए उस खबर पर नजर ना जाती तो शायद टालने के लिए मैं कह ही देती कि हां सबसे महान है भारत.
लेकिन जैसे मुंह पर ताले पड़ गए थे. आप सबने भी पढ़ी होगी वो खबर- एक बार फिर कम उम्र की घरेलू नौकरानी के साथ डाक्टर दंपती का दुर्व्यवहार, प्रताड़ना. खबर में उस लड़की के हवाले से लिखा था कि उसे भर पेट खाना नहीं दिया जाता था. चिकोटी काटी जाती थी और उसकी चीख बाहर न पहुंचे इसके लिए मुंह को कपड़े से ठूंस कर बंद किया जाता था. कभी-कभी जूता भी ठूंस दिया जाता था.
ऐसी घटनाएं तो छपती ही रहती हैं. एनजीओ ने बढ़ा-चढ़ा कर रिपोर्ट लिखवाई होगी. नौकरानियों का तो यही हाल है जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो.
अगर मैंने पिछले पांच साल से एजेंसी के जरिए मेड्स न रखी होती तो शायद पड़ोस की महिलाओं की इन दलीलों को सच भी मान बैठती पर आलोक धन्वा की एक कविता की एक पंक्ति उधार ले सकूं, मुझे भी मालूम है  कुलीनता की हिंसा. जूलियानी की याद बरबस ही आ गई. जब मेरे घर एक एजेंट के जरिए वो पहली बार आयी तो मुझे एक लंबी स्वस्थ लड़की का इंतजार था. जूलियानी बहुत छोटी सी दुबली-पतली लड़की थी. लगता किसी ने उसे बच्ची रहने नहीं दिया और वो बड़ी हो नहीं पायी. बोलती बहुत धीमे स्वर में. घर में मदद करने के लिए एक कामकाजी मां के लिए किसी भी तरह की लड़की का मिलना मुंह-मांगे वरदान जैसा होता है. मैंने सोचा कोई बात नहीं ठीक से खायेगी पीयेगी तो स्वस्थ हो जायेगी. बोलने भी लगेगी. बोलने तो लगी पर स्वस्थ नहीं हो पा रही थी. डाक्टरी जांच से पता चला टीबी है. और लंबे अरसे से. मैंने पूछा पहले जहां काम करती थी, वहां बीमार होती थी. उसने जवाब दिया जो मैं शायद जानती थी, हां थोड़ा बुखार होता रहता था. फिर ठीक हो जाता था. कभी डाक्टर के पास नहीं गयी. एक साल में कभी ले नहीं गयी मैडम. इलाज शुरू होने के तुरंत बाद ही वो स्वस्थ होने लगी. खुश भी रहती थी और फिर एक दिन वो भाग गयी. एक पहचान के लड़के के साथ.
फिर लौट भी आयी दो दिनो बाद. लड़का शादीशुदा परिवार वाला था. उसे लेने एजेंट आया और उससे पहले कि मैं उसे रोकती कस कर उसे तमाचा मारा.
मैं झट से उसे अंदर ले गयी. पूछा आगे क्या करना है... एजेंट के साथ जाना है या घर वापस जाना है. आश्चर्य था कि उसका चेहरा एक दम सपाट था.
घर चली जाओ जूलियानी, मै इंतजाम कर देती हूं, नहीं दीदी वहां जाकर क्या करना है. एजेंट के साथ जाओगी. मन तो नहीं है.. वो भी मुझसे ज़बरदस्ती करता है. कई बार मना करती हूं फिर भी. कहता है जीजा साली का रिश्ता है, छेडूंगा.
चुपचाप मेरी तरफ देखने लगी. कातर दृष्टि से....
मुझे पता था वो जानना चाहती थी कि क्या वो मेरे पास काम करती रह सकती है?
मुझे अपनी छोटी बच्ची की सुरक्षा याद आयी, मेरे पीछे बिल्कुल सुनसान मेरा घर फिर किसी का आना जाना शुरू कर दिया इसने तो... लड़की का मामला है किसी बड़ी मुसीबत मे ना पड़ जाऊं..
जूलियानी को मेरी खामोशी से मेरे जवाब का अंदाज़ा हो गया होगा. दुल्हन की तरह सजी जूलियानी झट उठ कर बोली, एजेंट के साथ जाउंगी. जनवरी की ठंडी और गहरी रात में गुम होती चली गयी जुलियानी. केवल उसके दुपट्टे का गोटा दूर तक झिलमिलाता रहा.
और मुझे याद आयी कुलीनता की हिंसा वाली पंक्ति.... अपनी बिटिया को ये कहने में शर्म सी महसूस हुई कि भारत सबसे महान है अगर महान होना कोई पोज़िटिव बात है तो......

क्रियेटिव कोर्स करें



मैट्रिक की परीक्षा खत्म हो गयी है. कैरियर बनाने की यह पहली सीढ़ी है. रिजल्ट निकलने और कालेजों में नामांकन लेने में लगभग दो-तीन माह लग जायेंगे. इस दो-तीन माह का सदुपयोग जरूर करें. प्रतियोगिता के इस दौर में अंगरेजी का महत्व बढ़ा है. अच्छा होगा कि आप किसी अच्छे संस्थान से अंगरेजी बोलने व लिखने के लिए कोचिंग करें. लड़कियां टेलरिंग सीख सकती हैं. कंप्यूटर का बेसिक कोर्स कर सकते हैं. कोई इंजीनियर, तो कोई डॉक्टर या फिर आइएएस, आइपीएस बनने का सपना देखते हैं. मैट्रिक के बाद ही अपना लक्ष्य बनायें.  स्टाफ सलेक्शन कमीशन व रेलवे में कई जॉब मैट्रिक स्तर पर ही मिलते हैं. तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में जानेवाले विद्यार्थी अभी से ही आइटीआइ व पॉलिटेक्निक प्रवेश परीक्षा की तैयारी शुरू कर सकते हैं. इसलिए तैयारी शुरू कर दें. बिना समय गंवाए.
बेसिक स्किल डेवलपं करें
बेहतर कै रियर की चाहत सभी को होती है लेकिन उसके लिए जो सबसे आवश्यक चीज बेसिक स्किल है जिसे डेवलप करना जरूरी है.इसी से छात्र अपना व्यक्तित्व निर्माण कर लेता है और समाज में अपनी एक बेहतर छवि बनाने में कामयाब हो सकता है. चार तरह  के बेसिक स्किल होते हैं. कम्युनिकेशन, रीडिंग, राइटिंग व कंप्यूटिंग (एरिथमेटिकल) स्किल. कम्युनिकेशन स्किल को डेवलप करने के लिए अपने समान विचार रखने वालों के साथ लगातार राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय विषयों या अखबार में छपी रिपोर्ट को पढ़ कर उस पर चर्चा करें. एक दूसरे से लगातार विषय के अनुसार बातचीत करें. सिर्फ अपनी बात ही कहने या थोपने की कोशिश बिलकुल न करें.   दूसरे की पूरी बात सुनना और उसके अनुसार जवाब देने का अभ्यास करें. जब आप किसी बात को ठीक से सुनेंगे, तभी उसका सही जवाब दे सकेंगे. इसलिए लिसनिंग स्किल (सुनने की क्षमता) डेवलप करना बहुत जरूरी है. इसके लिए अपने समान सोचवाले विद्यार्थियों का एक ग्रुप बना लें और अभ्यास करना शुरू करें. रीडिंग के साथ राइटिंग का भी लगातार अभ्यास करें.
मेहंदी डिजाइनिंग
मेहंदी  डिजाइनिंग आज डिमांडिग कोर्स बनता जा रहा है. इसे 15 दिन से एक महीने में सीखा जा सकता है. मेहंदी पार्लर में 800 से लेकर 1500 रुपये में यह कोर्स सिखाया जाता है. इसके तहत बेसिक डिजाइनिंग, बेल, जैनी, दुल्हन, अरेबिक आदि डिजाइन सिखाये जाते हैं.
ब्यूटीशियन
तीन महीने की अवधि में फुल टाइम ब्यूटिशियन कोर्स किया जा सकता है. यदि आप शौक के लिए यह कोर्स करना चाहती हैं, तो सेल्फ कोर्स बेहतर ऑप्शन होगा. इसके तहत मेकअप, हेयर ड्रेस, मेनिक्योर, पेडिक्योर, आइब्रो, साड़ी रैपिंग सिखायी जाती है. वहीं फुल टर्म कोर्स में कटिंग से लेकर ब्यूटी लाइन की हर चीज की ट्रेनिंग दी जाती है. सेल्फ कोर्स के लिए सामान्य पार्लर में तीन से पांच हजार व फुल टाइम कोर्स के लिए आठ से 15 हजार रुपये फीस देने होते हैं. कोर्स करने के बाद  किसी भी अच्छे पार्लर में ब्यूटीशियन,  काउंसेलर, हेयर एक्सपर्ट, ब्यूटी मैनेजर के पद पर काम कर सकती हैं.
कंप्यूटर बेसिक कोर्स
आज के दौर में कंप्यूटर का ज्ञान जरूरी है. इस अवधि में कंप्यूटर का बेसिक कोर्स सीखा जा सकता हैं. लड़कों के लिए हार्डवेयर का कोर्स करने के बाद वे कंप्यूटर रिपयरिंग का काम कर सकते हैं. आफिस में काम करने के लिए आफिस के लिए उपयोगी साफ्टवेयर की पढ़ाई की जा सकती है. इसके तहत फंडामेंटल ऑफ कंप्यूटर, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर क्या है, कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम, विंडो क्या है, एमएस आफिस, एमएस वर्ड, एक्सेल, पावर प्वाइंट एवं इंटरनेट की शिक्षा दी जाती  है. इसके लिए कंप्यूटर सेंटर में ढाई से तीन हजार रुपये चार्ज किया जाता है. जिनको कंप्यूटर में ग्राफिक्स या डिजाइन बनाने में ज्यादा रूचि हो तो वे डीटीपी या एनिमेशन इत्यादि के कोर्स भी कर सकते हैं.
मोबाइल रिपेयरिंग
इलेक्ट्रिशियन या मोबाइल रिपयेरिंग के कोर्स भी इसी तरह के छोटे-छोटे कोर्स होते हैं जिसे दो-तीन महीने में पूरा किया जा सकता है.
इसे करने के बाद से ही काम मिलने शुरू हो जाते हैं और अतिरिक्त समय में आमदनी कर सकते हैं. लड़कियां नर्सिंग को भी अपना कै रियर बना सकतीं हैं.  इसके लिए मैट्रिक स्तर पर भी कोर्स उपलब्ध है. इसको पूरा कर आप नर्सिंग होम में तुरत नौकरी भी पा सकती हैं.
टेलरिंग
लड़कियां टेलरिंग का काम आसानी से सीख सकतीं हैं. समीज, सलवार सूट, ब्लाउज, पेटीकोट, फ्रॉक बना सकती हैं. इसके लिए सिलाई सेंटर से प्रशिक्षण लिया जा सकता है. तीन महीने के इस कोर्स के लिए शहर के विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों में 600-800 रुपये फीस लिया जाता है. यह काम सीखकर वे दूसरों का काम करके आय भी कर सकती हैं.
(प्रस्तुति- राकेश कुमार)

सुदेश के गांव की बात ही निराली

जहां राज्य के दूसरे राजनेता शहरों में बस गये हैं और अपने पैतृक गांव पर कम ही ध्यान देते हैं, उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो आज भी अपने गांव से जुड़े हैं. वे हर हफ्ते कम से कम दो बार अपने गांव जाते हैं. इसका असर भी नजर आता है. चिकनी सड़कें, 80 फीसदी पक्के मकान, पेयजल की समुचित व्यवस्था और साफ-सफाई. जिसे देखकर आंखें निहाल हो जाती हैं. इस बार सुदेश के गांव लगाम की कहानी बता रहे हैं सुरंेद्र मोहन और वहां की तसवीरें राजीव ने खीची हैं:

झारखंड के उप मुख्यमंत्री सह जल संसाधन मंत्री सुदेश महतो का गांव लगाम एक सुविधा संपन्न गांव है. सिल्ली मुख्य पथ से करीब दो किलोमीटर अंदर जाने के लिए पीसीसी पथ है. गांव की शुरुआत पक्के मकानों से होती है. गांव की सड़कें भी पक्की हैं. लगाम गांव में हर बुनियादी सुविधा उपलब्ध है. 80 प्रतिशत मकान पक्के हैं.
लगाम गांव रांची जिला के सिल्ली प्रखंड स्थित कोंचो पंचायत अंतर्गत आता है. गांव में एक प्राथमिक सरकारी विद्यालय एलपी स्कूल है. दो आंगनबाड़ी केंद्र हैं. आंगनबाड़ी केंद्र की स्थिति भी ठीक है. करीब 500 घरों वाले लगाम की आबादी 2500 है. गांव की सड़कें पक्की हैं. मुख्य पथ तक जाने के लिए पहुंच पथ भी पीसीसी पथ है. गांव में बिजली वर्ष 1974 से है. जल संसाधन विभाग की ओर से जलापूर्ति के लिए गांव तक पाइप लाइन बिछायी जा चुकी है. गांव में 18 से 19 की संख्या में महिला एसएचजी (स्वयं सहायता समूह) काम कर रहे हैं. पुरुष व महिला साक्षरता दर क्रमश 80 व 70 प्रतिशत है.
विकसित गांव का आधार अल्यूमीनियम कंपनी
गांव के सुविधा संपन्न होने का एक प्रमुख कारण गांव से सटे हिंडालको अल्यूमीनियम कंपनी लिमिटेड है. वर्ष 1973 में कंपनी ने ग्रामीणों से उनकी जमीन ली थी और बदले में मुआवजा राशि का भुगतान भी किया था. गांव के 126 लोगों को अल्यूमीनियम कंपनी में रोजगार दिया गया था. इसी कंपनी में उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो के पिता भी काम करते थे और वर्ष 2008 में सेवानिवृत्त हुए. सेवानिवृत्ति के बाद अभी भी अनुबंध पर कार्य कर रहे हैं. इसके अलावा गांव के लोग अन्य सरकारी नौकरियों जैसे रेलवे, शिक्षक, पुलिस और सेना में काम कर रहे हैं.
बन रही है पानी की टंकी
उपमुख्यमंत्री सह जल संसाधन मंत्री सुदेश महतो के प्रयास से गांव में पेयजल के लिए एक पानी की टंकी बनायी जा रही है. इसके अलावा मंत्री जी के प्रयास से ही गांव की पक्की सड़क व गांव से मुख्यपथ तक पहुंचने के लिए पक्का पहुंच पथ बना. मंत्री ने गांव के तालाब का सुंदरीकरण व गहरीकरण भी कराया है. गांव के लोगों के लिए वे हमेशा उपलब्ध रहते हैं और समस्या लेकर पहुंचने वाले लोगों की समस्या भी सुनते हैं.
गांव में ही रहते हैं माता पिता
उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो के परिवार में पिता श्याम सुंदर महतो, माता देवकी देवी गांव में ही रहते हैं. मंत्री सुदेश महतो रांची स्थित सरकारी आवास में रहते हैं. पत्नी नेहा ने मुंबई से वकालत की पढ़ाई की है और फिलहाल घर पर अपने बेटों की देखभाल में व्यस्त रहती हैं. छोटे भाई मुकेश कुमार महतो का वर्ष 2008 में झारखंड पुलिस में डीएसपी के पद पर चयन हुआ था. बाद में नियुक्ति को लेकर हुए विवाद में मामला अभी न्यायालय में चल रहा है. दो बहनें गीता महतो व माया महतो की शादी हो
चुकी है.

पिता इंजीनियर बनाना चाहते थे
पिता श्याम सुंदर महतो बताते हैं कि वे बेटे सुदेश महतो को इंजीनियर बनाना चाहते थे. वर्ष 1997 में उन्होंने सुदेश महतो का दाखिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, हेहल में कराया था. रांची में ही रहकर वे छात्र राजनीति में सक्रिय हुए. शुरुआत में तो उन्होंने राजनीति करने से मना किया था, लेकिन बाद में सुदेश की जनसेवा की भावना और लोगों के बीच अच्छी पकड़ को देखते हुए उन्होंने प्रोत्साहन दिया. वर्ष 2000 में सिल्ली विधानसभा सीट से सुदेश महतो पहली बार चुनाव लड़े. अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के केशव महतो कमलेश को करीब 15000 मतों से पराजित किया. इसके बाद सिल्ली विधानसभा में विकास के कई कार्य किये. वर्ष 2000 से अब तक हुए सभी विधानसभा चुनाव में लगातार जीत हासिल की है. कहते हैं बेटे की उपलब्धियों को देख काफी खुशी होती है.
(उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो के पिता श्याम सुंदर महतो ने जैसा कि बातचीत में बताया)
वैसे गांव में बिजली, पानी, सड़क आदि बुनियादी सुविधाएं हैं.  मुखिया होने के नाते स्वास्थ्य और आंगनबाड़ी केंद्र के तहत किये जानेवाले कार्य को लेकर हम गंभीर हैं गांव में एक स्वास्थ्य केंद्र की जरूरत है, क्योंकि गांव की हर महिला के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर सिल्ली जाये. गांव के करीब 60 से 70 लोगों का मनरेगा जॉब कार्ड बन चुका है.  बीपीएल कार्ड को लेकर गांव में अभी जागरुकता की कमी है, क्योंकि संपन्न लोग भी बीपीएल कार्ड बनाने की जिद करते हैं.
सरस्वती देवी, मुखिया, लगाम गांव
गांव में सभी बुनियादी सुविधााएं हैं. गांव के विकास से संबंधित कार्य के लिए हम मंत्री जी से बात करते हैं. मंत्री जी गांव के लिए पूरा समय देते हैं और गांववालों से जुड़े रहते हैं. गांववालों की मदद के लिए हमेशा खड़े रहते हैं. यहां तक कि गांव के किसी गरीब परिवार में शादी ब्याह के अवसर पर भी अपनी ओर से सहायता राशि भी देकर सहयोग करते हैं.
बादल सिंह मुंडा, ग्राम प्रधान, लगाम
गांव में किसी भी चीज की तकलीफ नही हैं. बिजली, पानी, सड़क सबकुछ है. गांव में करीब 15 से 20 चापानल हैं. 50 प्रतिशत घर में कुआं है. सुदेश बाबू के मंत्री बनने से हमलोगों को फायदा हुआ है. गांव घर का भी नाम होता है. स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए.
पवन महतो, ग्रामीण, लगाम
गांव में सब सुविधा है. पुस्तकालय तो नहीं है. एक प्राथमिक विद्यालय है. गांव के बच्चे भी नजदीक में पढ़ने के लिए जाते हैं. अधिकतर बच्चे प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ते हैं. बिजली, सड़क, पानी सबकुछ है. कोई कमी नहीं है.
शोभा कुमारी, छात्रा, लगाम

पंचायती राज के पैरोकार विनोदा बाबू

डा. मोहनानंद मिश्र
चिताभूमि, चंद्रदत्त द्वारी रोड, पीटी- बिलासी 814117, देवघर
पंचायती राज के माध्यम से जनकल्याण के कार्यक्रमों को प्रत्येक घर में पहुंचाने के लिए विनोदा बाबू सदा तत्पर रहे. उनके कार्ययोजना की प्रशंसा हारून रसीद ने भी की है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकारों कृषि राज्यस्व की दृष्टि से पंचायती राज्य बहुत ही महत्वपूर्ण था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने इनके मरणो उपरान्त कहा था- जिन्होंने भी विनोदा बाबू के साथ काम किया है वे गम्भीर रूप से उनसे प्रभावित हुए. वे महान देशभक्त विद्वान और अनुभवी सहकर्मी थे, जो अपनी निष्ठा और ईमानदारी के कारण सम्माननीय थे. बिहार में विनोदानन्द झा जी पितृकल्प पुरुष थे, जिनकी विधायक तथा मुख्यमंत्री के रूप में प्रांत की सेवा और दूरदृष्टि वाले राजनेता के रूप में समस्त देश की सेवा सर्वज्ञात थी.
यहां हम आपके सामने पंचायत को लेकर उनके विचारों को भी प्रस्तुत कर रहे हैं:
विनोदा बाबू कहते थेे
मूल उद्देश्य है पंचायत स्थापना का, वह उद्देश्य अभी दूर है और लक्ष्य स्थान से भी बहुत दूरी पर है. इसलिए, किसी भाई को यदि वतर्मान प्रगति से असंतोष होता है, तो उस असंतोष को समझना चाहिए, उसकी कदर करनी चाहिए. पंचायत यद्यपि शासन-यंत्र तथा विकास-कार्य के लिए इतना ही नहीं कि पंचायत कानून के अन्तर्गत जो कुछ अधिकार उसे दिया गया, उसको काम में लाने के लिए एक छोटा-सा संगठन गांव में हो. पंचायत स्कीम की जो आत्मा है, जो स्पिरिट है, उसको काम मेें लाने के लिए हमें  कोशिश करनी होगी. सफलता सभी हमलोगों को मिलेगी. यदि हम संगठन का सामंजस्य, जो मौजूदा संगठन-शासन संगठन के रूप में है, उसके साथ हो यानी मौजूदा शासन भी ऐसी मौलिक जगह पर हो, इस तरह से उसमें परिवर्तन होते जायें कि पंचायत का काम एक अनहोनी-सा, एक असम्भव नहीं प्रतीत हो, लेकिन नये भारतवर्ष की नवीन शासन-पद्धति का एक वास्तविक, व्यावहारिक और ठोस अंग के रूप में हो, तो यह काम तो आसान नही है.
फिर भी कोई शासन-यंत्र है. अभी उसमें और आप में बहुत सी बुराई की बातें हैं. यदि आज उनके पुन:संगठन की बात सोची जाती है, तो इसलिए नहीं कि उसमें बुराई भरी हुई हैं. ऐसी बात नहीं, बल्कि इसलिए कि जिन दिनों में यह शासन-यंत्र लाया गया था, उस दिन राज्य का उद्देश्य था सिर्फ पशु-शक्ति से, ताकत से, बंदूक की ताकत से, लाठी की ताकत से जनता के ऊपर हुकूमत करना और उसकी व्यवस्था थी पुलिस स्टेट की, यानी उस समय पुलिस की मदद से फौज की मदद से, आदमियों को अपने कब्जे में रखना था. आज हमारे देश में जो क्रान्ति आयी और उस क्रान्ति के परिणामस्वरूप हमें जो नया संविधान मिला, उस संविधान में पुलिस स्टेट की जगह पर एक वेलफेयर स्टेट, एक डेमोक्रेटिक स्टेट का ही यदि लक्ष्य आज रखा गया हमारे संविधान में तो जितना ऐडमिनिस्ट्रेशन का सिलसिला है, शासन करने का सिलसिला है, उसमें भी इस दृष्टिकोण से आवश्यक सामंजस्य लाना चाहिए.
लाठी और बन्दूक की प्रधानता अब शासन में नही रही. लाठी और बन्दूक तो रहेगी. जब तक कुछ-न कुछ ऐसे आदमी है. जिनको युक्ति से रास्ते पर नही लाया जा सकता. ये लोग जो हमेशा समाज में उलट-पलट करने की बात हिंसात्मक रीति से सोचने है, उनके मुकाबले के लिए, हिंसात्मक तरीका अख्तियार करने को स्टेट भी बाध्य होता है लेकिन अमूमन हम प्रजातांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करते है, फिर वेलफेयर स्टेट की स्थापना करते है, तो नागरिक की भलाई के सिवा, उनके विकास के सिवा दूसरा कोई काम नही. तो, स्टेट के फंक्शन करने का, इसके काम करने का जो तरीका है, इसमें भी, एडमिनिस्ट्रेशन का जो तरीका है, उसमें भी उसके उद्देश्य के साथ सामंजस्य नही होगा. तो ऐसी हालत में दोनों में जो संघर्ष होता है, उसी तरह का एक व्यावहारिक संघर्ष एक नैतिक संघर्ष जैसा संघर्ष अभी देखते है वैसा होता है.
आज मैैने क्यों चुनाव बन्द किया, क्योंकि पंचायत में जो 900 चुनाव बाकी है, यदि मै होने दूँ तो हमें डर है कि दूषित वातावरण पैदा हो जायेगा. जेनरल एलेक्शन, जो आने वाला है, 5-6 महीने के बाद इसका असर जेनरल एलेक्शन पर पड़ेगा. जेनरल एलेक्शन में निर्वाचन के समय, आदमियों के सामने उनके देश का सवाल रखूंगा, उसके बच्चों को पढ़ाने का सवाल रखूंगा, उनकी बेकारी दूर करने का सवाल रखूंगा और अपने देश की रक्षा की बात रखूँगा. इन सारी बातों  को जब उनके सामने फैलने के लिए रखूंगा, उस समय यदि पंचायत का चुनाव, जैसा हो रहा था, जैसा चुनाव अमहरा में हुआ, जैसा चुनाव सेवरा गांव, मुंगेर में हुआ, जैसा चुनाव मुजफ्फरपुर में किसी तरह हुआ, जिसकी रिपोर्ट हमें याद है, तो एक ही चीज सामने आती है कि किस जाति को जगह पर जाना चाहिए.
एक नया समाज बनाने की जो प्रथम चिंगारी होती है, आप वही एक चिंगारी हैं. आप उसी काम को कर रहे है जो कि जमीन को पहले-पहले खेती के लिए तोड़ने वाला करता है. उसकी जो कृति होती है, उसकी जो प्रतिष्ठा होती है,आपकी प्रतिष्ठा वही है. इसमें जहाँ-जहाँ बाधाएं हो, कठिनाइयां हो, आपस में पहले बातें करें, अधिकार से बाद में. ठंडे से, घबराहट से नही. कभी कम्प्लेक्स लेकर बात नही करनी चाहिए. किसी के पास जायें बात करने के लिए तो अपने को छोटा समझ कर भी नही जाना चाहिए और न अपने को बहुत बड़ा समझ कर ही जाना चाहिए. इसे बार-बार आपसे कहा है और आज भी दोहराता हूँ कि हर पंचायत को किताब रखनी चाहिए. उस किताब में बीडीओं से क्या बातें हुई, क्या परिणाम निकला? उन्होने  क्या राय दी, नोट करना चाहिए. आज जो मुखिया हो, हो सकता है वे कल चले जाये. आज जो बीडीओं है, हो सकता है कल बदल जायें, तो दूसरे के लिए,गाइडेंस के लिए, किताब रखनी चाहिए साथ-साथ काम का इंस्पेक्शन होते रहना चाहिए. इंस्पेक्शन के लिए उन्होंने कहा, साल में एक मरतबे होगा, तो उससे संतोष नही करना चाहिए. इनके पास स्टाफ कम है, ये साल में एक मरतबे जरूर देखें. लेकिन मुखिया को अपना दफ्तर प्रति माह देखना चाहिए. इनको माह में सिनेमा नहीं देखना चाहिए. उसके ऑफिस में ग्राम-सेवक कमर्चारी रक्षा दल के सेवकों को मालूम होना चाहिए कि महीने में पहला रविवार, रविवार को काम नही होता है, उस दिन मुखिया दो घंटा, सरपंच दो घंटा बैठक कर दफ्तर देखेगा. कितना पन्ना खर्च है? कितनी नीबें है, कितनी खर्च हुई, कितनी रोशनाई है, कितनी खर्च हुई, कितना पैसा है और कहां गया? यह सब खूब मजबूती के साथ इंस्पेक्शन करना चाहिए और इंस्पेक्शन करके  उसके परिणाम को रखना चाहिए. यह पंचायत कमेटी के सामने पेश होना चाहिए, तो उससे सिलसिला आ जायेगा और कहीं यदि कुछ गफलत हो, भूल हो, तो वह दुरुस्त हो जायेगा. यह मेथड आयेगा, आपस में एक तसल्ली भी होगी. लोगों के ऊपर, जो काम नही करते है, उनके ऊपर एक दहशत भी होगा कि मालिक चैतन्य है, देखता है. उसी तरह से एक महीने में हो, दो महीने में हो, जैसा भी हो करना चाहिए. कभी पड़ोस की पंचायत के मुखिया को निमंत्रण देना चाहिए कि आओ और हमारी पंचायत को देख जाओ. कुछ गलती तुम्हें मालूम हो, कुछ भी कमी हो या कुछ और हम कर सकते है या नहीं इस पर परामर्श दे जाओ. तो इस तरह से बराबर आना-जाना चाहिए, उनसे राय-मशवरा लेना चाहिए. पंचायतों को अपने अन्दर की जो ताकत है, उसको डेवलप करना चाहिए. उसका विकास करना चाहिए. यदि वह विकसित होगी, तो बाहर की पंचायत की मांग बहुत कम होगी, आवश्यकता भी कम हो जायेगी, जरूरत भी नही रहेगी और कुछ बढि़या, सुन्दर समाज नीचे से बनता हुआ आयेगा. तो हमलोग सब अपने ढंग से काम करें. सब कोई सुन्दर ढंग से, अपने-अपने तरीेके से अपने तरीके को बनवावें और चलावें. इसी तरह के काम होता हैं. किस तरह से सरल ढंग से बढि़या से काम हो, यह देखना है. बहुत ज्यादा फाइल का महत्व नहीं रखना चाहिए. हमलोग सेक्रेटेरियट में फाइल के अन्दर हैं. इतनी फाइलों को हमलोगों ने बनाया है और दस्तखत किया है कि 1936 से जितनी फाइलें एक हमारे हाथ में गुजरी है, वे हमारी लाश को जलाने के लिए काफी हो सकती है, लेकिन कितना कागज इसमें व्यर्थ खर्च हुआ है, इसका भी असर हम पर है. एक बगल के कमरे में रहता है ऑफिसर, वह तीन पन्ने का नोट लिखता है और उसकी कटान में हम दस लाइन, छह लाइन लिखते हैं. इसी तरह से चलता रहेगा छह महीने तक. बैठक करके, गुफ्तगू से मामला तय कर ले. आपस में दो लाइन में बात खत्म हो जाए, यह परिपाटी होनी चाहिए क्योंकि, हम बहुत बुद्धिमतापूर्ण साहित्य से भरे हुए नोटों से पेट भरने वाले नही हैं. उन नोटों से परिणाम क्या निकलता है, उसी से हमारा सिर्फ सरोकार है. तो, यह चीज आपके अन्दर नहीं है. अपने ढंग से चीज निकालें सभी चीजों में, आपस में बात करके जो रास्ता हो, निकालो.

कृषि में काम आने वाले सौर उपकरण


थ्री इन वन सौर एकीकृत उपकरण
यह एक अनोखा बहुउपयोगी उपकरण है. इसका उपयोग जाड़े के दिनों मेंे पानी गर्म करने, साफ आसमान के दिनों में सोलर कूकर के रूप में व फलों या सब्जियों  को सुखाने वाले उपकरण के रूप में होता है. यह सूर्य की ट्रैकिंग के बिना भी जाड़े के दिनों में सूर्य का तीखापन कम होने की स्थिति में सौर कूकर के रूप में इस्तेमाल करने पर 50 से 60 डिग्री सेंटीग्रेड पर लगभग 50 लीटर गर्म पानी दे सकता है. बहुउपयोगी होने के कारण इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है. सुखाने के उपकरण के रूप में तापमान पर नियंत्रण रखते हुए दिन में फलों एवं सब्जियों से पानी निकाला जा सकता है. इस प्रकार एक तरह से यह उपकरण फलों व सब्जियों के प्रसंस्करण के काम से जुड़े लोगों के लिए भी मददगार हो सकता है.

बगीचों के लिए पीवी जेनेरेटर
यह प्राथमिक तौर पर एक सौर पीवी पंप संचालित ड्रिप सिंचाई प्रणाली है. इसमें 900 वॉट की पीवी की कतार होती है और 800 वॉट डीसी मोनोब्लॉक पंप व ओएलपीसी ड्रिप होते हैं, जिससे पानी का किफायत से उपयोग होता है. यह बगीचों के लिए उपयुक्त है. इस प्रणाली का डिजाइन पौधे की पानी की आवश्यकता, ऊर्जा की जरूरत व विकिरण में बदलाव के कारण दबाव में परिवर्तन को रोकने के हिसाब से किया जाना चाहिए, ताकि खेत में पानी की एक समान उपलब्धता सुनिश्चित हो. यह प्रणाली उन खेतों के लिए वरदान है, जहां पानी व उपजाऊ भूमि तो है, लेकिन बिजली का अभाव है. सिंचाई के लिए पीवी प्रणाली अब डीसी-डीसी परिवर्तक, भंडारण बैटरियों एवं इनवर्टर जैसे उपभागों द्वारा जेनेरेटर में परिवर्तित की जा चुकी है. ताकि फसल कटाई के बाद के प्रचालनों के लिए छोटी मशीनों को चलाने के साथ-साथ पंप के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जा सके.

पीवी डस्टर
पौधों की सुरक्षा कृषि कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. सौर पीवी डस्टर फसलों पर से कीटनाशकों की डस्टिंग के लिए एक उपयोगी नया यंत्र है. इसमें अनिवार्य रूप से पीवी पैनल कैरियर, एक भंडारण बैटरी एवं एक विशेष रूप से डिजाइन की गयी डस्टिंग इकाई होती है. पीवी पैनल, जो एक कैरियर की मदद से सिर के ऊपर रख कर ले जाया जाता है, मजदूर को छाया देता है और साथ ही साथ डस्टर को चलाने के लिए बैटरी को भी चार्ज करता है. इस प्रणाली को एक अल्ट्रा लो वॉल्यूम (यूएलवी) छिड़काव यंत्र के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके साथ ही इसे एक लाइट इमिटिंग डायोट (एलइडी) चलाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस यंत्र को साल भर घर में रोशनी करने के लिए व आवश्यकतानुसार डस्टर-स्प्रेयर चलान के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

पीवी मोबाइल इकाई
स्वयं को चलाने वाली पीवी मोबाइल इकाई एक चलायमान प्रणाली है, जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग हिस्से के घरों में, खासकर सूखे क्षेत्रों में घरेलू, कृषिगत व ग्रामीण कार्यों में उपयोग किया जा सकता है. इस इकाई में 70 वॉट के दो पॉलीक्रिस्टलाइन पीवी मॉडयूल होते हैं, जो एक चार्ज नियंत्रक से जुड़े होते हैं. इष्टतम कोण पर पीवी पैनल्स (70 वॉट) को रखने के लिए स्व-लॉकिंग व्यवस्था के साथ फोल्डिंग प्रणाली, एक इनवर्टर एवं एक डीसी मोटर चालित ड्राइव प्रणाली होती है. इस इकाई को आसानी से चलाया जा सकता है और इसे एसी व डीसी दोनों भारों के लिए प्रयुक्त किया जा जा सकता है. इस प्रणाली को मक्खन निकालने की मथनी, ब्लोअर, अनाज पछारने की मशीन, अलोवेरा निकासन आदि को चलाने के लिए सफलतापूर्वक परीक्षित किया गया है. इस प्रकार की पीवी मोबाइल इकाइयों को आवश्यकतानुसार गांव में किराये पर लिया जा सकता है.
ये उपकरण आपके खेत व दैनिक जीवन में उपयोगी हो सकते हैं. ऐसे और भी कई सौर उपकरण हैं. कई उपकरणों को लेकर अभी शोध चल रहा है, ताकि ग्रामीण जीवन को सुगम भी बनाया जा सके व अक्षय ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके. अगर आप उपरोक्त उपकरणों या ऐसे ही अन्य उपकरणों के विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो इस पते व फोन नंबर पर संपर्क करें :
सेंट्रल ऐरिड जोन रिसर्च इंस्टिट्यूट, जोधपुर - 32003, राजस्थान.
फोन नंबर : 0291-2786584., फैक्स नंबर : 0291-2788706.

स्पाईरुलीना भोजन कल के लिए


विपिन मिश्रा
दो ग्राम स्पाईरुलीना दिनभर के भोजन के बराबर है. सुनने में भले ही यह हैरान करने वाला हो, लेकिन सच्चाई यही है. यही कारण है कि स्पाईरुलीना को भविष्य का भोजन कहा जा रहा है. अंतरिक्ष यात्री भोजन के तौर पर इसके कैप्सूल का उपयोग करते हैं.
क्या है स्पाईरुलीना
स्पाईरुलीना स्पाईरल आकार का दिखने वाला शैैवाल है. यह शत-प्रतिशत मीठे जल का सूक्ष्म पादप है. दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के क्षारीय झीलों में प्राकृतिक रूप में, जबकि भारत में दक्षिण व लातूर में पाया जाता है. यह सदियों से मानव जाति का खाद्य स्त्रोत रहा है. पृथ्वी पर पाये जाने-वाले सभी पोषक खाद्य सामग्री में सर्वश्रेष्ठ है. इसमें विटामिन ई एवं कैरोटिन भी पाया जाता है. यह एंटी ऑक्सीडेंट फाईकोसायनिन का प्राकृतिक स्रोत है. इसमें 55 से 63 प्रतिशत प्रोटीन है. इसके अलावा इसमें 7-13 प्रतिशत मिनरल, 8-10 प्रतिशत रेशा, विटामिन बी, विटामिन बी 1, बी 2, बी 3, बी 6 , बी 12, 15-25 प्रतिशत काबार्ेहाइड्रेट, वसा, क्लोरोफिल, केल्सियम व लोहा आदि पाया जाता है. सबसे बड़ी बात है कि ये किसी भी स्थिति में दूषित नहीं होता है.
स्पाईरुलीना का उपयोग
इसमें क्लोरोफिल एवं फाइकोसाइनिन पाया जाता है जो शक्तिवर्द्घक का कार्य करता है. ये शाकाहारी लोगों के लिए अपज बी 12, लोहा, एमिनो एसिड का एकमात्र स्रोत है. शरीर में पीएच स्तर को सामान्य करता है, जिससे प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है. यह मधुमेह, रक्तचाप, रक्त की कमी, कमजोरी, गठिया में काफी उपयोगी होता है. गर्भवती महिलाओं, बच्चों एवं वृद्घों के लिए भी उपयोगी है.  इसमें कैंसर, एड्स के प्रतिरोधी के गुण पाए गए हैं. पेनक्रियाटिस, डेपेटाइटिस, सिरोसिस रोगों में लाभदायक है. मोतियाबिंद एवं ग्लूकोमा में उपयोगी साबित होता है. मोटापा घटाने में या फिर वजन बढ़ाने में भी लाभदायक हो सकता है. वहीं गैस्टिक, अल्सर में भी लाभदायक है. वृद्घ को प्रतिदिन 2-5 ग्राम, युवाओं को 1-2 ग्राम, बच्चों को 2-3 ग्राम व गर्भवती महिलाओं को 2-5 ग्राम सेवन करना चाहिए.

अब देवघर में हो रहा उत्पादन

नाबार्ड व स्वयं सेवी संस्थान रचना के सहयोग से स्पाईरुलीना का उत्पादन देवघर जिले के मोहनपुर प्रखंड के मुसफा ग्राम में हो रहा है. संस्थान के बिपिन मिश्र का कहना है कि काफी कम पैसे में ये अच्छी आमदनी का स्रोत हो सकता है. अभी यहां जो उत्पादन हो रहा है वह स्थानीय लोग ही खरीद रहे हैं. अगर बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाए तो इसे दवा या अन्य कम्पनियां खरीद लेंगी. नाबार्ड के डीडीएम पीआर झा कहना है कि बिहार-झारखंड में यह अपने तरह का पहला प्रयोग है. इसका लाभ स्वयं सहायता समूह को भी मिलने लगा है. इसका प्रयोग सरासनी पंचायत के पिंडरा गांव में किया गया है.
सेहत के साथ आमदनी भी
स्पाईरुलीना से सेहत ही नहीं बनता बल्कि यह आमदनी का बढि़या जरिया भी है. रचना के संजय कुमार उपाध्याय का कहना है कि किसान इसका उत्पादन करके अच्छी आमदनी भी कर सकते हैं. इसके लिए एक किसान अगर 8 फीट लंबा, 2 फीट चौड़ा व 2 फीट ऊंचा टैंक बनाता है तो उसमें तीन हजार खर्च होगा. इसके अलावा उसे तीन हजार और खर्च करना होगा. बाद में हर माह करीब 300 रुपया खर्च होगा. हर दिन एक टैंक से 50 ग्राम तैयार स्पाईरुलीना मिलेगा. श्री उपाध्याय ने बताया कि एक वर्ष में 8 माह इसका उत्पादन हो सकता है. इस दौरान एक किसान का करीब आठ हजार खर्च होगा. जबकि वह हर माह 1.50 किलो की दर से आठ माह में 12 किलो का उत्पादन करेगा. स्पाईरुलीना 3000 रुपया प्रति किलो बिकेगा और एक वर्ष में किसान 36,000 रुपये का माल बेचकर लगभग चौबीस हजार कमा लेगा. अगर ज्यादा टैंक बनाया जाय तो आमदनी भी बढ़ जाएगी. वहीं अगर कैप्सूल, क्रीम, बिस्कुट, चॉकलेट, पेय पदार्थ आदि तैयार कर बेचा जाए तो आमदनी काफी बढ़ सकती है. अगर किसान बेहतर माल नहीं तैयार कर पाते तो भी इसे पशु आहार के तौर पर दो हजार रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जा सकता है.
महिलाएं बनेंगी स्वावलंबी
मोहनपुर के मुसफा गांव में झारखंड के पहला स्पाईरुलीना उत्पादन केंद्र का उद्घाटन नाबार्ड, रांची के जीएम डा एचके घोष ने किया. रचना संस्थान केंद्र में स्पाईरुलीना उत्पादन की एक प्रत्यक्षण इकाई की स्थापना की गई है. यहां ग्रामीण महिलाओं व आगन्तुकों को स्पाईरुलीना उत्पादन की सरल तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाएगा. नाबार्ड प्रायोजित इस परियोजना में एसएचजी के 20 महिलाओं को इसके उत्पादन से जोड़ा जाएगा.
100 एसएचजी उपजाएंगे स्पाईरुलीना
देवघर में स्पाईरुलीना का बड़े पैमाने पर उत्पादन होगा. 100 स्वयं सहायता समूह इसका उत्पादन करेंगे.

फायदे सेकेंड इनिंग के



वरिष्ठ नागरिक समाज की अमूल्य निधि होते हैं. उन्होंने अपने जीवन में राष्ट्र और समुदाय के विकास के लिए कड़ी मेहनत की है. उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों  का व्यापक अनुभव होता है. आज का युवा वर्ग राष्ट्र को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए वरिष्ठ नागरिकों के अनुभव से लाभ उठा सकता है. अपने जीवन की इस अवस्था में उन्हें देखभाल और यह अहसास कराये जाने की जरु रत होती है कि वे हमारे लिए खास महत्व रखते हैं.
पंचायतनामा डेस्क
भारत सरकार ने बुजुर्गों को अपनी योजना के माध्यम से दैनिक जीवन और उम्र के इस पड़ाव में जीवन में अर्जित धन के सुरक्षित निवेश के लिए कई प्रयोजन किये हैं. गांव के बुजुर्गों को सरकार की इन योजनाओं का लाभ उठाकर निश्चित ही जीवन में खुशी का अहसास होगा.
पैसे का करें सुरक्षित निवेश
चाहे आपने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना में पैसा प्राप्त किया हो अथवा कई वर्षों तक वेतन और पेंशन में पैसा बचाया हो. इस पैसे का निवेश करने के कई रास्ते हैं. इनमें स्टॉक, बाण्ड, सोना खरीदना, स्थायी संपदा, भारतीय यूनिट ट्रस्ट, म्युचुअल फंड, सावधिक जमा राशियां और डाकघर योजनाएं शामिल हैं.
इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिक भारतीया रिजर्व बैंक द्वारा प्रस्तुत कर-रहित बाण्डों की खरीद भी कर सकते हैं. यह योजना उनकी जीवन भर की बचतों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है. इससे भी अच्छी बात यह है कि कर-रहित बाण्डों पर अर्जित ब्याज आय का एक नियमति स्रोत भी       बन जाता है.
एफडी में अतिरिक्त लाभ
वरिष्ठ नागरिकों को बचत योजनाओं और उन पर अर्जित ब्याज के रूप में अतिरिक्त लाभ दिया जाता है. एक विशेष अवधि के लिए जमा की गयी राशि पर बैंक या डाकघर ब्याज प्रदान करते हैं. ब्याज की दरों में वर्ष दर वर्ष परिवर्तन होता रहता है. अधिकांश बैंक वरिष्ठ नागरिकों को आम जनता को उपलब्ध दर से अधिक ब्याज दर प्रदान करते हैं. खाता खोलने से पहले वरिष्ठ नागरिकों को आयु प्रमाणपत्र की फोटो कॉपी देनी होती है. भारतीय रिजर्व बैंक ने वरिष्ठ नागरिकों की बचत योजनाओं पर ब्याज की ऊंची दरों की अनुमति दी है. एक साल, दो साल, तीन साल, पांच साल या फिर दस साल के लिए जमा राशियों पर अधिक ब्याज प्रदान किया जाता है. इससे निवेश का यह रूप बुजुर्गों के लिए कर मुक्त आय का एक उपयोगी रूप बन जाता है. बुजुर्गों के जीवन भर की जमा पूंजी और नियमित मासिक आय का यह सबसे सुरक्षित माध्यम होता है.

मासिक आय योजना में अधिक ब्याज दर
वरिष्ठ नागरिकों के लिए मासिक आय योजना के तहत डाकघरों में अधिक ब्याज दिया जाता है. यह ब्याज तिमाही होता है और इसका ब्याज दर 9.30 प्रतिशत सालाना है. वहीं यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया में जमा राशियों पर एक से दो वर्ष के लिए 10 प्रतिशत, दो से तीन वर्ष के लिए 10 प्रतिशत, तीन से पांच वर्ष के लिए 10.10 प्रतिश और पांच वर्ष के लिए 10.10 प्रतिशत सालाना है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में यूबीआई की तुलना में जमा राशियों पर .50 प्रतिशत सालाना कम है.
रेलगाड़ी से यात्रा में लाभ
भारतीय रेलवे सभी रेलगाडि़यों की सभी श्रेणयिों के सवारी डिब्बों में यात्रा किराये में वरिष्ठ नागरिकों को 40 फीसदी छूट देता और महिला वरिष्ठ नागरिकों के लिए 50 फीसदी छूट प्रदान करता है. इनमें शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस सहित सभी रेलगाडि़यों की स्लीपर श्रेणी, प्रथम श्रेणी, वातानुकूलित (एसी) चेयर और प्रथम श्रेणी एसी शामिल हैं. इस विशेष छूट के लिए पुरु ष वरिष्ठ नागरिकों के लिए निर्धारित न्यूनतम आयु 60 वर्ष है, जबकि महिला वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह 58 वर्ष है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए रेलवे में विशेष बुकिंग काउंटर होता है, जिससे उन्हें परेशानी न हो और लंबी कतारों में खड़े रहने पर उनके स्वास्थ्य को कोई नुकसान न हो. यहां कतार काफी छोटी होती है और काफी आराम से टिकट बुक करा सकते हैं. भारतीय रेल की ऑन लाइन आरक्षण प्रणाली के जरिए भी टिकट बुक कराने का विकल्प प्राप्त होता है. कुछ दिनों बाद टिकटों की डिलीवरी भी घर पर आ जायेगी.

संत की सदिच्छा से निर्मल हुई नदी


सिखों के पहले गुरु नानक देव के जीवन से जुड़ी पवित्र नदी काली बेई का 160 किलोमीटर लंबा प्रवाह मार्ग कभी गंदे नाले जैसा दिखता था. गांवों- शहरों के गंदे पानी, आसपास के खेतों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग, कीचड़ और जंगली घासफूस से तबाह हो चुकी थी. मगर आज यह नदी एक कर्मयोगी संत के संकल्प से रमणीय नदी का रूप ले चुकी है. देश-विदेश से बड़ी संख्या में पर्यावरणविदों ने वहां पहुंचकर उनके इस काम की तारीफ की है. पूर्व राष्ट्रपति डा एपीजे अब्दुल कलाम ने खुद इस संत सीचेवाल के भागीरथ प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा की है. इस नदी के कायाकल्प की असाधारण कथा उतनी ही रोचक है.

कारसेवा से हुई शुरुआत
संत बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल बताते हैं कि जब भी वे काली बेई नदी की हालत देखते तो उनका मन भारी हो जाता. उन्हंे दुख होता कि जो नदी उनके धर्म के लिए इतन पावन है हकीकत में उसकी हालत कितनी बुरी है. एक दिन पर्यावरण पर आयोजित सेमिनार के दौरान उन्होंने मन ही मन इस बात का संकल्प लिया कि वे किसी भी कीमत पर काली बेई को पुरानी स्थिति में लाएंगे. उन्होंने अकेले ही सफर शुरू किया था, लोग जुड़ते गए और आज एक बड़ा कारवां बन गया है. गुरुद्वारों में की जाने वाली कारसेवा को उन्होंने नदी के पुनरोद्धार के लिए प्रयोग किया. पिछले लगभग दस-बारह सालों से यह नित्यक्र म बन चुका है. सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और स्वप्रेरणा से कस्सी, बट्ठल, फावड़ा, गेंती उठाकर श्रमदान में जुट जाते हैं.
आसान नहीं थी कारसेवा
संत बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल ने अकेले ही सफर शुरू किया, परंतु लोग जुड़ते गए और आज एक बड़ा कारवां बन गया है. सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और श्रमदान में जुट जाते हैं. ये कारसेवक नदी से गाद, जलबूटी, झाड़फूस निकालते हैं और इसके किनारे पक्के करते हैं. यह कोई आसान काम नहीं है क्योंकि सदियों से किसी ने इसकी सफाई नहीं की है, जिसके कारण यहां कई तरह के बिच्छु, सांप, कई जहरीले कीड़े मकोड़े निकलते हैं जो कई बार कारसेवकों को दंश मार चुके हैं. इन कारसेवकों को उन किसानों व ग्रामीणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा जिन्होंने काली बेई की खाली पड़ी
जमीनों पर कब्जा किया हुआ है. इसके बावजूद कारसेवा निरंतर जारी है. कारसेवा के कारण उनको विभिन्न गांवों में सड़कें और पगडंडियां तक बनवानी पड़ीं. कई गांवों में सीवेज प्रणाली बनवाई और कई जलस्रोतों का पुनरोद्धार किया.
ऐसा नहीं है कि संत जी का काम बड़ी सुगमता के साथ चल रहा है. उनको कई जगहों पर लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा है और सरकार से भी उनको कोई अधिक सहयोग नहीं मिला है. बाबा जी बताते हैं कि आज भी 160 किलोमीटर लंबे रास्ते में लगभग 76 गांवों व कस्बों के सीवेज का पानी इसमें गिरता है जिसको केवल सरकार ही रोक सकती है. नदी को प्राकृतिक रूप में लाने के लिए नदी के दोनों ओर हरी पट्टी होनी जरूरी है. इसके लिए नदी के दोनों ओर कम से कम एक-एक एकड़ सपाट जमीन की जरूरत है जहां पर वृक्षारोपण और पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित किया जा सके. नदी के दोनों ओर बहुत सी जगह पर लोगों ने कब्जा किया हुआ है और कई जगहों पर किसानों ने जमीनों की रजिस्ट्रियां करवा रखी हैं. इन्हंे हटाने का काम केवल सरकार ही कर सकती हैं. परंतु इन बाधाओं के बावजूद कलियुग के इस भागीरथ के भागीरथ प्रयास जारी हैं.

सदस्यों पर है विकास की जिम्मेवारी



पंचायनामा डेस्क
पंचायतनामा के पिछले अंक में अबतक आप पढ़ चुके हैं कि मुखिया, प्रमुख व जिला परिषद अध्यक्ष के क्या अधिकार, कर्तव्य व दायित्व होते हैं. अब आप इस अंक में पढि़ए पंचायत निकाय के अन्य जनप्रतिनिधियों के अधिकार, दायित्व व कर्तव्य के संबंध में. ये जनप्रतिनिधि भी अपने क्षेत्र व पंचायत निकाय के प्रति व अंतिम रूप से आम आदमी के प्रति उत्तरदायी होते हैं.
वार्ड सदस्य की जिम्मेवारियां बतायें?
वार्ड सदस्य ग्राम पंचायत का सदस्य होता है. वह अपनी पंचायत की बैठक में अपने वार्ड व गांव का प्रतिनिधित्व करता है. वह विभिन्न समितियों के गठन में भाग लेता है  और सर्वसम्मति से उसे जिस समिति का अध्यक्ष चुना गया हो, उसकी अध्यक्षता भी करता है. गांव वासियों के विकास के लिए योजनाओं के चयन व क्रियान्वयन की प्राथमिकता तय करना, ग्राम पंचायत के विकास के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध राशियों के समुचित आवंटन में मुखिया की मदद करना उसकी जिम्मेवारी है.  पंचायती राज के तहत सौंपे गये अन्य दायित्वों का निर्वाह भी उसे करना होता है. उसके कई सामाजिक दायित्व भी होते हैं. जैसे उसे अपने वार्ड-गांव की ग्रामसभा के साथ बैठक कर योजना तैयार करना होता है. गांव में ग्रामसभा द्वारा तैयार की गयी योजनाओं को ग्राम पंचायत की बैठक में भी प्रस्तुत करना होता है. ग्राम पंचायत की बैठक में योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए प्राथमिकता तय करते समय अपने वार्ड-गांव के लिए योजनाओं को प्राथमिकता दिलाना भी उसका दायित्व होता है. योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद, ग्रामसभा के लिए निर्णय व प्रस्ताव को ग्राम पंचायत व मुखिया तक पहुंचाना, गांव या वार्ड क्षेत्र के संबंध में पंचायत सचिवालय या मुखिया द्वारा लिये गये निर्णय के संबंध में लोगों को बताना, पंचायत में उपलब्ध मद की राशि की जानकारी गांव को देना, ग्रामसभा द्वारा पंचायत से मांगी गयी उन समस्त जानकारियों को उपलब्ध कराना, जो गांव अथवा पंचायत के ग्रामीणों से संबंधित हों, उसकी जिम्मेवारी है. ग्रामसभा और ग्राम पंचायत के बीच प्रगाढ़ कड़ी का काम करना उसका दायित्व है.
पंचायत समिति सदस्यों के अधिकार, कर्तव्य एवं दायित्व क्या हैं?
पंचायत समिति में अपनी पंचायत के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में पंचायत समिति सदस्य प्रतिनिधित्व करता है. स्थायी समिति के दायित्व का निर्वहन, पंचायत समिति की प्रत्येक बैठक में भाग लेना, गांव की बुनियादी समस्याओं के प्रति पंचायत समिति का ध्यान आकृष्ट कराना उसकी जिम्मेवारी है. सरकारी योजनाओं की जानकारी पंचायत एवं गांव स्तर पर लोगों को प्रदान करना, पंचायत समिति स्तर पर प्रखंड क्षेत्र एवं ग्राम पंचायत के लिए योजनाओं की प्राथमिकता तय करते समय अपनी पंचायत की योजनाओं को प्राथमिकता सूची में सम्मिलित कराने में विशेष भूमिका निभाना, अपनी पंचायत के जरूरतमंदों को सरकार की ओर से मिलने वाली विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाना एवं शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, कृषि विकास के लिए योजनाओं के निर्माण एवं क्रियान्वयन में योगदान देना उसके कर्तव्य हंै.
जिला परिषद सदस्य के क्या कर्तव्य, अधिकार व दायित्व हैं?
जिला परिषद सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं, जरूरतों व आवश्यक योजनाओं की मांग जिला परिषद की बैठक में उठाता है. उसे जिला परिषद की बैठक में भी शामिल होना होता है व वहां अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना होता है. उसे जिला परिषद द्वारा गठित स्थायी समितियों के सदस्य, सभापति, उपसभापति के रूप में दायित्व निभाना होता है. जिला परिषद के अधीनस्थ कार्यालयों, उनके अधिकारियों, कर्मचारियों का पर्यवेक्षण व नियंत्रण करने में जिला परिषद अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का सहयोग करना, समय-समय पर ऐसे कर्मचारियों-अधिकारियों का स्वयं भी पर्यवेक्षण, निरीक्षण व नियंत्रण करना उसकी जिम्मेवारी है. जिला परिषद सदस्यों के कई सामाजिक दायित्व भी होते हैं. उसे अपने निर्वाचन क्षेत्र अथवा प्रखंड की बुनियादी समस्याओं को जिला परिषद के समक्ष प्रस्तुत करना होता है, प्रखंड स्तर पर पूरी नहीं हो सकने वाली योजनाओं-परियोजनाओं को जिला परिषद विकास निधि के द्वारा क्रियान्वित कराना, प्रखंड के लोगों के विकास के लिए अधिकाधिक योजनाओं को जिला परिषद से स्वीकृति दिलाना और उन्हें प्रखंड क्षेत्र में क्रियान्वित कराना, अपने प्रखंड केविकास लिए अधिकाधिक राशि का आवंटन पाना, प्रखंड के विकास से संबंधित किसी भी प्रकार की योजनाओं को जिला स्तर पर पास कराने के लिए लगातार सक्रिय रहना, अपने क्षेत्र अथवा प्रखंड के ग्राम वासियों के व्यक्तिगत अथवा सामूहिक कार्यों को जिला स्तर पर शीघ्र कराने में मदद करना उसका दायित्व है. बुनियादी जरूरतों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सिंचाई, जल प्रबंधन, सड़क, बिजली आदि की सुविधा समुचित तौर पर उपलब्ध हो इसके लिए प्रयास करना, पंचायत समिति व जिला परिषद के बीच सामंजस्य कायम कराना, सरकार की योजनाओं, नीतियों की जानकारी पंचायत समिति को देना, भ्रष्टाचार को खत्म करने का प्रयास करना उसका दायित्व होता है.

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

सबसे सस्ता वाटर फिल्टर

एक कहावत है- दोस्त बनायें जानकर, पानी पीयें छानकर. पानी छानकर पीना कितना जरूरी है, यह उस व्यक्ति से पूछिए, जो पेट की बीमारियों से घिरा हुआ है. जल ही जीवन है. शुद्ध जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती.
प्रशांत जयवर्धने
गांवों में जब पानी को छानकर पीने की बात आती है, तो अक्सर लोग पानी को कपड़े से छानकर पीते हैं. घर के बरतन में भी कपड़े से छानकर पानी का संग्रहित किया जाता है. गांवों में शुद्ध और ठंडा जल मिलना मुश्किल होता है. अभी भी अधिकतर ग्रामीण तालाब और पोखरों का जल पीने को विवश हैं. बिना फिल्टर किया हुआ पानी शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है. कृषि ग्राम विकास केंद्र ने ग्रामीणों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए लो कॉस्ट वाटर फिल्टर का मॉडल पेश किया है. यह वाटर फिल्टर बाजार में उपलब्ध किसी भी वाटर फिल्टर की तुलना में बेहद सस्ता और बहुपयोपी है. इस तरह के वाटर फिल्टर दो प्रकार के हैं.
सीमेंट के गमलों या मटकों में तैयार और देसी घड़ों में तैयार किया गया सिंगल कैंडल फिल्टर.
सीमेंट के गमलों और मिट्टी से बने देसी घड़ों में सिंगल कैंडल के बनाये गये वाटर फिल्टर अपनी  कम कीमत और अनोखी बनावट के कारण ग्रामीण जनजीवन के लिए बेहद उपयोगी हैं.

बेकार पानी का सिंचाई में उपयोग
रूक्का डैम से फिल्टर होने के बाद बेकार बचे पानी को खेतों तक पहुंचाकर पानी का सदुपयोग किया जा रहा है. झारखंड राज्य जलछाजन मिशन और स्वयंसेवी संस्था कृषि ग्राम विकास विकास केंद्र द्वारा यह अनोखा प्रयास किया जा रहा है. डैम से निकले और बेकार गये पानी को खेतों तक पहुंचाने के लिए जलछाजन समिति और केजीवीके द्वारा अबतक 300 फीट लंबे चैनल (नाली) का निर्माण किया गया है, जिसमें रूक्का से सटे आस-पास के इलाकों में गरमा धान की खेती शुरू की गयी है. इस चैनल की कुल लंबाई 1800 फीट होनी है. चैनल के पूरी तरह से तैयार हो जाने पर लगभग 30 हेक्टेयर यानी 75 एकड़ जमीन पर खेती की जा सकेगी. अभी इसी चैनल से खेती की जा रही है. जल छाजन समिति और केजीवीके के इस प्रसास से रूक्का डैम के आस-पास बेकार पड़ी जमीनों पर फिर से खेती की जा रही है. इस चैनल के बनने से बेकार पड़ी जमीन पर किसान तीन-तीन फसल उगा सकेंगे.

पंचायत जगें तो दूर हो सकती है
आपकी पेयजल समस्या

उमेश यादव
ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिकों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार की योजना है : राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी).  इसके तहत गांवों में नये चापानल एवं पाइप जलापूर्ति सिस्टम की स्थापना और पुराने चापानल के रख-रखाव का काम किया जाता है. इस योजना की शुरुआत 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान की गयी है. एनआरडीडब्ल्यूपी के दिशा-निर्देशों के तहत योजना बनाने, उसका कार्यान्वयन करने, निगरानी रखने, संचालित करने और रख-रखाव का पूरा दायित्व ग्रामसभा एवं पंचायत का है. पंचायतों के जागृत होने पर ग्रामीणों की पेयजल समस्या का काफी हद तक निदान हो सकता है. झारखंड सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने सबसे पहले पंचायतों को अधिकार हस्तांतरित किया है. हालांकि राज्य के विधायकों ने नये चापानल अधिष्ठापन के मामले में ग्रामसभा एवं पंचायत के अधिकार का अपहरण कर लिया और पांच चापानल के स्थल का चयन अपने मरजी से कर दीा है. फिर भी सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल समस्या के समाधान में ग्रामसभा एवं पंचायतों को जिम्मेवारी दे रही है. चापानलों की मरम्मत के लिए प्रति चापानल 300 रुपये की दर से राशि सीधे ग्रामसभा की स्थायी समिति ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति के बैंक खाते में दी जाती है. राज्य सरकार के नियमानुसार ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति के बैंक खाता का संचालन मुखिया, समिति के उपाध्यक्ष एवं जल सहिया में से किन्ही दो के नाम से होगा. राज्य के लगभग सभी जिलों में अब तक सभी ग्राम पेयजल एवं स्वच्छता समिति का बैंक खाता नहीं खुल सका है. जहां खाता खुल गया है और इसकी सूचना जिला कार्यालय को दे दी गयी है, वहां प्रति चापानल 300 रुपये की दर से राशि हस्तांतरित कर दी गयी है. जहां पर खाता नहीं खुला है उसका पैसा अभी भी जिलों में पड़ा हुआ है. पंचायत प्रतिनिधि के सक्रिय होने पर पेयजल समस्या का समाधान आसानी से हो सकता है. किसी गांव में पांच चापानल है,  तो उस गांव को 1500 रुपये मिलेंगे. इस राशि से खराब पड़े चापानलों की मरम्मत कर काफी हद तक समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.    

पंचायत-परिक्रमा

नशापान के खिलाफ मुखर हैं तोरपा की महिलाएं

हंडि़या-दारू बंद करो.....बंद करो का नारा इन दिनों तोरपा के विभिन्न टोलों में गूंज रहा है. नशापान के खिलाफ प्रखंड की महिलाएं गोलबंद हो  रही हैं. प्रखण्ड के बड़काटोली की महिलाओं ने अभियान चलाकर शराब की कई भट्ठियों को तोड़ दिया. वहां बनाकर रखी गयी शराब को जमीन पर बहा दिया. उन्होंने भविष्य में शराब का निर्माण नहीं करने की चेतावनी भी लोगों को  दी. इन लोगों को महिलाओं द्वारा पूर्व में शराब का निर्माण व बिक्री नहीं करने की चेतावनी दी थी, परंतु नहीं मानने  पर महिलाओं  ने उनके खिलाफ अभियान चलाया. उन्होेंने लोगों से शराब का सेवन नहीं करने को कहा. महिलाओं ने कहा कि शराब परिवार का दुश्मन है.  नशापान की चपेट में आकर आज कई परिवार बरबाद हो गये हैं. साथ ही इससे समाज में अपराध भी बढ़ता है. इस दौरान महिलाओ द्वारा चलाये गये अभियान का साथ तोरपा पश्चिमी के  मुखिया जोन तोपनो तथा ग्राम प्रधान मंगा पहान ने भी दिया. इसके पूर्व तोरपा पश्चिमी की मुखिया विनीता नाग के नेतृत्व में भी कुम्हारटोली,गांधीनगर में बैठक कर शराब का उत्पादन व सेवन नहीं करने का निर्णय लिया गया.

तोरपा में ग्राम सभा को मजबूत बनाने का संकल्प
तोरपा मंे पंचायत के प्रतिनिधि व ग्राम सभा मिलकर गांव के विकास में भागीदारी निभायेंगे. इस संबंध में विचार विमर्श करने के लिए प्रखंड के किसान भवन में 26 मार्च को ग्राम प्रधान व पंचायत प्रतिनिधियों का सम्मेलन प्रमुख सामड़ोम तोपनो की अध्यक्षता में आयोजित किया गया. सम्मेलन का संचालन उपप्रमुख सामड़ोम तोपनो ने किया. सम्मेलन में ग्राम प्रधान व पंचायत के प्रतिनिधियों ने मिलकर गांव के  विकास का संकल्प लिया. सम्मेलन मंे गांव के विकास का खाका तैयार किया गया. तय किया गया कि ग्राम सभा को अधिक से अधिक सशक्त बनाया जायेगा. गांव के विकास की योजना ग्राम सभा में तय की जायेगी. इस अवसर पर वक्ताओं ने भी ग्राम सभा को मजबूत बनाने पर बल दिया. प्रमुख सामडोम तोपनो ने कहा कि विकास में ग्राम सभा को सक्रिय भूमिका निभानी होगी तभी योजनाएं धरातल पर उतर पायेगी. उपप्रमुख अनिल भगत ने कहा कि ग्राम सभा व पंचायत प्रतिनिधियों के बीच तालमेल जरूरी है. दोनों के आपसी सहयोग से गांव में विकास का काम तेजी से होगा. इस अवसर पर विभिन्न गांवों से आये ग्राम प्रधान, विभिन्न पंचायत के मुखिया व पंचायत समिति के सदस्यों ने भी अपने-अपने विचार रखे. मौके पर पंचायत समिति सदस्य मृदुला मित्रा, मरसा मुंडाइन, मंगल गुडिया, लीला देवी, मुखिया एमेल्डा भेंगरा, जुनिका तोपनो, जुनिका मुंडाइन, रीता गुडिया, रेडा मुंडा, श्याम आइंद आदि उपस्थित थे.

मॉडल तालाब बनेगा गोविंदपुर का राम जानकी सरोवर
जमशेदपुर के छोटा गोविंदपुर में निर्माणाधीन राम जानकी सरोवर झारखंड का मॉडल तालाब होगा. जिला परिषद सदस्य सुनीता साह की पहल पर करीब 39 वर्ष पुराने सूखे तालाब का जीर्णोद्धार टाटा पावर कंपनी की ओर से किया जा रहा है. जल संरक्षण के लिए मशहूर मुंबई के गोपीनाथ द्वारा संचालित केआरजी फाउंडेशन के द्वारा सुझाये गये प्रोजेक्ट के हिसाब से काम किया जा रहा है. टाटा पावर के जमशेदपुर प्लांट हेड दिनेश कुदालकर पूरे प्रोजेक्ट पर नजर रखे हुए हैं और प्रबंधन का कहना है कि ग्रामवासियों की सुविधा व जल जागरूकता के क्षेत्र में कंपनी ने यह प्रोजेक्ट लिया है, जिसका असर दीर्घकालीन होगा.  प्रोजेक्ट देख रहे वरुण कुमार ने बताया कि 50,000-60,000 वर्गफीट क्षेत्र में पानी को इसमें संरक्षित किया जायेगा. तालाब में वर्षा के पानी को संरक्षण करने के लिए ऐसी व्यवस्था की जा रही है जिससे कि बरसात में भी नाले का गंदा पानी इसमें शामिल नहीं हो सके. इसमें यह भी व्यवस्था की जा रही है कि कुएं में भी इससे पानी छनकर जाये और वह नहीं सूखे. इसके तहत बरसात का पानी को संरक्षण के लिए चारों तरफ से ऊंचा कर पाइप के भी माध्यम से अंडर ग्राउंड रिचार्ज करने की व्यवस्था है जहां से बरसात का पानी बहकर बरबाद हो जाता है. इससे आसपास के कुएं और चापानल को भी रिचार्ज करने की योजना है. खास तौर पर गर्मियों में जब कुएं और चापानल सूखने लगते हैं आसपास के लोगों के लिए यह तालाब वरदान साबित होगा. टाटा पावर की ओर से बनने वाले इस तालाब की लागत का खुलासा नहीं किया जा रहा है. जिला परिषद सदस्य सुनीता साह ने कहा कि तालाब का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के पश्चात पुराने जमाने की तरह सौदर्यीकरण के बाद ग्रामीण लुक में दिखेगा यह तालाब. तब इस तालाब पर लोग आश्रित हो सकेंगे.
(गोविंदपुर से रमण झा की रिपोर्ट)

पूर्वी सिंहभूम जिला परिषद की स्थायी समिति गठित

पूर्वी सिंहभूम जिला परिषद की स्थायी समिति का गठन 26 मार्च को बैठक आयोजित कर किया गया. इस समिति का गठन काफी दिनों से लंबित था. इसके पूर्व एक बार समिति की घोषणा की गयी थी, लेकिन सभी सदस्यों के बीच एक राय नहीं बन पायी थी, जिसका कारण 26 मार्च को सर्वसम्मति से समिति बनाने का प्रयास किया गया.

समिति इस प्रकार है
सामान्य प्रशासन समिति
अध्यक्ष सोनिया सामंत (अध्यक्ष, जिला परिषद
पूर्वी सिंहभूम)
सदस्य दुखनीमाई सरदार, सुनाराम हांसदा,
लक्ष्मी मुर्मू, शिखा महतो, स्वपन
मजुमदार, लक्ष्मी देवी एवं सुमित्रा हेंब्रोम
वित्त अंंकेक्षण तथा योजना एवं विकास समिति
अध्यक्ष सोनिया सामंत (अध्यक्ष, जिला परिषद
पूर्वी सिंहभूम)
सदस्य दांदुराम बेसरा, संजीव सरदार, राजु
कर्मकार, शांति देवी, सुमित्रा हेंब्रोम एवं
अनीता महतो
महिला शिशु एवं समाजिक कल्याण समिति
अध्यक्ष अनीता देवी (उपाध्यक्ष, जिला परिषद
पूर्वी सिंहभूम)
सदस्य स्वपन मजुमदार, लक्ष्मी देवी, संजीव
सरदार, सुमित्रा हेंब्रोम, सुप्रिती सीट
एवं सुनीता साह
शिक्षा एवं स्वास्थ्य समिति
अध्यक्ष अनीता देवी (उपाध्यक्ष, जिला परिषद
पूर्वी सिंहभूम)
सदस्य करूणामय मंडल, प्रदीप बेसरा, दांदुराम
बेसरा, लक्ष्मी देवी, सुप्रिती सीट एवं गीता मुर्मू
वन एवं पर्यावरण समिति
अध्यक्ष दुखनी माई सरदार
सदस्य पार्वती गोप, गणेश सोलंकी, लक्ष्मी मुर्मू,
सुकलाल हेंब्रोम, सुमित्रा हेंब्रोम
एवं शांति देवी
कृषि एवं उद्योग समिति
अध्यक्ष सुनाराम हांसदा
सदस्य सुप्रिती सीट, स्वपन मजुमदार, राजु
कर्मकार, सुकलाल हेंब्रोम, सुमित्रा
हेंब्रोम एवं गीता मुर्मू
संचार एवं संकर्म समिति
अध्यक्ष लक्ष्मी मुर्मू
सदस्य राजकुमार सिंह, पार्वती गोप, दुखनीमाई
सरदार, लक्ष्मी देवी, सुनाराम हांसदा
एवं शांति देवी
सहकारिता समिति
अध्यक्ष शिखा महतो
सदस्य लक्ष्मी मुर्मू, सुप्रिती सीट, राजकुमार
सिंह, राजू कर्मकार, करूणामय मंडल
एवं अनीता महतो,
ग्रामीण विकास एवं विद्युतीकरण समिति
अध्यक्ष स्वपन मजुमदार
सदस्य सुकलाल हेंब्रोम, राजु कर्मकार, प्रदीप
बेसरा, संजीव सरदार, करूणामय मंडल
एवं शिखा महतो
जन वितरण प्रणाली समिति
अध्यक्ष लक्ष्मी देवी
सदस्य संजीव सरदार, प्रदीप बेसरा, शिखा महतो, सुनाराम हांसदा, लक्ष्मी मुर्मू एवं अनीता महतो
पेयजल एवं स्वच्छता समिति
अध्यक्ष : सुमीत्रा बेसरा
सदस्य : गीता मुर्मू, शांति देवी, राजकुमार सिंह, गणेश सोलंकी, लक्ष्मी देवी एवं दुखनी माई सरदार
गठन काफी समय से लंबित था : संजीव सरदार
जिला परिषद सदस्य संजीव सरदार ने बताया कि जिला परिषद की स्थायी समिति का गठन काफी दिनों से लंबित था, इसके पूर्व भी स्थायी समिति गठन करने का प्रयास किया गया था, लेकिन तालमेल नहीं बैठक ने कारण मामला फंस गया था. अंतत: 26 मार्च को जिला समिति के बैठक में सर्वसम्मति से समिति का गठन कर दिया गया.

टेंकर द्वारा पानी का वितरण
पोटका प्रखंड के खापरसाई (पूर्वी सिंहभूम) स्थित शाह स्पंज एंड पावर लिमिटेड कंपनी ने अपने पोषक क्षेत्र के दस गांवों में टेंकर के द्वारा पानी का नि:शुल्क वितरण शुरू किया है. कंपनी यह वितरण अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत कर रही है. कंपनी के पर्सनल मैनेजर एके मित्रा ने पोषक क्षेत्र के गांव के लोगों से अपील है कि कहीं भी पेयजल की समस्या हो, तो तत्काल इसकी सूचना कंपनी को दें.
कहां-कहां हो रहा वितरण
जुड़ी, सामरसाई, भुमरी, रांगामाटिया, नुतनडीह, तेंतला, तुड़ी, हाता, पावरू एवं खापरसाई गांव
(पोटका, पूर्वी सिंहभूम से
संजय सरदार की रिपोर्ट)

नहरों में पानी की एक बूंद भी नहीं

लोहरदगा जिले के कैरो प्रखंड क्षेत्र में स्थित नंदनी जलाशय का निर्माण 1983-84 में क्षेत्र के किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से करोड़ों की लागत से कराया गया था. नंदनी डैम से तीन नहर निकालकर 10-12 गांवों के हजारों एकड़ भूमि सिंचित करने का लक्ष्य था. किंतु विभागीय लापरवाही के कारण आज भी नहर में पानी प्रवाहित नहीं हो रहा है. नतीजा नहर के किनारे की हजारों एकड़ भूमि परती पड़ी है. मुख्य नहर में अकाशी, नरौली, खंडा, उतका, कैरो, नयाटोली, एड़ादोन, पतराटोल, सिंजो, सुकुरहुटू, बारडीह गांवों के खेतों को सिंचित करने का लक्ष्य था. किंतु मिट्टी भर जाने और मेठों के बीच-बीच में टूट जाने के कारण जल प्रवाह नहीं हो पाता. पश्चिमी नहर से अकाशी, बंडा, उरांव बंडा, नगड़ा, बिराजपुर, जामुन, टोली आदि गांवों के खेतों में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गयी थी. शुरुआत के कुछ वर्षों तक इससे किसानों को लाभ मिला. किंतु अकाशी के पास पुल टूट जाने के बाद नहर बेकार पड़ी है. पूर्वी नहर से ख्वास अंबआ, पचागांई, नरौली, खंडा, उतका, कैरो, नयाटोली, एड़ादोन, पतराटोली के किसानों को सिंचाई सुविधा देने की योजना थी. किंतु नहर का लेबल बराबर न होने के कारण यह बेकार पड़ी है. आज तक इस नहर में पानी प्रवाह नहीं कराया जा सका है.
जारी है टैक्स वसूली
किसानों से प्रत्येक वर्ष विभाग द्वारा टैक्स वसूली की जाती है. खरीफ फसल पर 75 रुपये प्रति एकड़ एवं रवि फसल के नाम से 60 रुपये प्रति एकड़ टैक्स निर्धारित किया
गया है.
जनप्रतिनिधि उदासीन
चुनाव के समय सभी पार्टियों का कैरो क्षेत्र के लिए नहर की सफाई, डैम की मरम्मत तीनों नहरों से लाभांवित किसानों को सिंचाई सुविधा देना मुख्य मुद्दा होता है. किंतु चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि निष्क्रिय हो जाते हैं.
21.46 लाख की लागत से हुई मरम्मत बेकार
प्रखंड कार्याजय से मनरेगा के अंतर्गत 21.46 लाख की लागत से कैरो क्षेत्र में नहर मरम्मत करायी गयी. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. चंूकि डैम के मुहाने पर नहर सफाई न होने से जलप्रवाह संभव है ही नहीं. दूसरी तरफ नहर का मेठ जगह-जगह पर टूटा हुआ है.
नहर पर बनी पुलियों की स्थिति ठीक नहीं
नहर पर बनी पुलियों में मिट्टी भरी पड़ी है एवं बहुत पुरानी होने के कारण अधिकतर पुलियां टूटी हुई है. जिससे पानी का बहाव रुक जाता है तथा टूटे मेठों से पानी बेवजह बह जाता है.  
              (लोहरदगा से गोपी कृष्ण कुंअर की रिपोर्ट)

कातिकोड़ा के किसानों का कमाल

कहते हैं जब मन में लगन और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो रेत से भी तेल निकाला जा सकता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है पश्चिम सिंहभूम के कातिकोड़ा के किसान डेविड मुदुइया व रोशन मुदुइया ने. ब्रिटिश हुकूमत के समय वर्ष 1914 मे 70 एकड़ 50 डिसमिल क्षेत्रफल में बना बड़ा तालाब किसानों के लिए आज भी जीवन दायिानी साबित हो रहा है. यह बांध 35 फीट गहरा है. टाटा स्टील ग्रामीण विकास समिति द्वारा बड़ा बांध का जीर्णोद्धार किया गया है. डेविड व रोशन इस बांध से दो हेक्टेयर मे सिंचाई कर खेती कर रहे हैं. वे कहते हंै कि साल में दो से तीन लाख रुपये की आमदनी हो जाती है. श्रीविधि से धान की खेती के अलावा गेहूं, सरसों, दलहन व सब्जियों की खेती भी किसान करते हैं. इस बांध का न तो बिहार सरकार के समय और न ही झारखंड गठन के बाद कभी जीर्णोद्धार किया गया. बांध में इतना पानी है कि सालों भर इससे सिंचाई की जाती है. तालाब को अस्सी फीट गहरा करने की योजना है. ऐसा हो जाने से पूरे गांव के अलावा आसपास के खेतों को भी पानी मिलेगा. अभी कातिकोड़ा के ग्रामीण इससे आत्मनिर्भर हैं. किसानों को समिति की ओर से पचास फीसदी अनुदान पर खाद व बीज दिया जाता है. वे बताते हैं कि बांध के चारों  ओर जंगल है. सरकार चाहे तो इसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित कर सकती है. यहां शिवलिंग भी है. मकर संक्राति के दौरान यहां दो दिन का मेला लगता है.
(नोवामंुडी से रवींद्र यादव की रिपोर्ट और तसवीर)

विशेष बातचीत: आप योजना बनायें, पैसे सरकार देगी

झारखंड वासियों के लिए जल कभी भी पर्याप्त मात्रा में आसानी से उपलब्ध होने वाला वस्तु नहीं रहा. मगर कुएं और पोखर जैसे परंपरागत जल स्रोतों के जरिये हम लोग खेती और पीने के लिए पर्याप्त पानी हमेशा से जुटाते रहे हैं. हाल के वर्षों में हमारी निर्भरता इन स्रोतों के बदले हैंडपंपों पर ज्यादा होने लगी है. तभी हैंडपंपों का औसत पूरे देश में सबसे अधिक झारखंड में है. इसी का नतीजा है कि जहां गरमियों की शुरुआत में ही बड़ी संख्या में हैंडपंप सूखने लगते हैं और लोग पीने के पानी के लिए यहां वहां भटकने को मजबूर हो जाते हैं वहीं  कई इलाकों में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की अधिक मात्रा के कारण लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. इन हालातों में झारखंड का पेयजल एवं स्वच्छता विभाग नई-नई योजनाओं के साथ राज्यवासियों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है. इस प्रयास में विभाग के प्रधान सचिव सुधीर प्रसाद का महत्वपूर्ण योगदान हैं.  वे लगातार पूरे राज्य में घूम कर लोगों की समस्याओं को समझने और निदान निकालने में जुटे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि वे इस पूरी प्रक्रिया में पंचायतों की ओर बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं. वे उनसे योजनाओं से लेकर क्रियान्वयन तक और उससे आगे की भी उम्मीद रखते हैं. जल सहिया की अनोखी योजना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है. सुधीर प्रसाद से पंचायतनामा के लिए पुष्यमित्र ने पेयजल से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत बात की. प्रस्तुत है बातचीत का प्रमुख अंश:

पंचायतों को पेयजल संरक्षण के मसले से जोड़ने की कोशिश विभाग की ओर से की जा रही है, इसके लिए जल सहिया का पद भी सृजित किया गया है. विभाग की इस बारे में क्या सोच है?
हम चाहते हैं कि पंचायतों के स्तर पर गठित जल एवं स्वच्छता समिति खुद योजना बनाये और उसे विभाग को प्रस्तावित करे. इस बारे में विभाग की यही राय है और संभवत: यही पंचायती राज व्यवस्था की भी मूल धारणा है. विभाग के लोग जमीनी स्तर की परिस्थितियों को उतना नहीं समझ सकते इसके अलावा हमारे पास इतने कर्मी भी तो नहीं हैं. हमारे कर्मी अधिक से अधिक ब्लॉक स्तर पर पदस्थापित हैं. वे जलापूर्ति संसाधनों का संचालन और देखरेख उतना बेहतर नहीं कर सकते जितना पंचायत स्तर पर सक्रिय जल एवं स्वच्छता समिति के लोग. अतक्ष समिति खुद योजना बना कर प्रस्तावित करें. वे चाहें तो योजनाएं सीधे हमारे पते पर भी भेज सकते हैं(प्रधान सचिव का पता साक्षात्कार के अंत में). हमने इस समिति में एक सक्रिय सदस्य के रूप में जल सहिया का पद सृजित किया है. यह समिति की कोषाध्यक्ष होगी. इसके चयन में हमने निर्देश जारी किया है कि परंपरागत रूप से पानी भरने के व्यवसाय में जुड़े लोगों को ही यह पद दिया जाये. उनके मना करने पर ही दूसरे समुदाय के लोगों को इस पद से जोड़ा जाये.  जल सहिया का काम पंचायत में जल एवं स्वच्छता से जुड़ी योजनाओं का निर्माण, उनका संचालन और देखरेख होगा. उन्हें विभाग की ओर से प्रशिक्षण दिया जायेगा तथा हैंडपंप सुधारने के लिए टूल किट भी दिया जा रहा है.
हैंडपंपों के बदले पाइप लाइन के जरिये पेयजल आपूर्ति को बढ़ावा देने के प्रयास किये जा रहे हैं. इसके पीछे क्या सोच है?
दरअसल हैंडपंप के मामले में हम काफी समृद्ध हैं. झारखंड में हैंडपंपों की औसत संख्या देश में सबसे अधिक है. मगर इस व्यवस्था की दो बड़ी खामियां हैं. पहली गरमियों में अक्सर हैंडपंप सूख जाते हैं, वहीं आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन जैसे तत्वों की अधिकता के मामले अक्सर हैंडपंपों में ही नजर आते हैं. इसके अलावा जलस्तर नीचे जाने की समस्या तो है ही. इसलिए भूसतह पर उपलब्ध पानी की आपूर्ति को ही आदर्श व्यवस्था माना जाता है. आप देखेंगे कि देश के सभी विकसित राज्यों इसी व्यवस्था को लागू किया जा रहा है.
बंद पड़ी खदानों से जलापूर्ति की योजना बड़ी रोचक है. मगर खनन क्षेत्र में होने के कारण इसका स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक असर तो नहीं पड़ेगा?
कतई नहीं. हम ट्रीटमेंट के बाद ही पानी की आपूर्ति करते हैं. सबसे बड़ी बात है कि यह योजना काफी सफल रही है. गिरिडीह में दो बंद खदानों(चैताडीह माइंस और महादेव तालाब) के जरिये गिरिडीह शहर को 17 लाख लीटर पानी प्रतिदिन उपलब्ध कराया जा रहा है. हम इस योजना को लेकर काफी उत्साहित हैं. आने वाले समय में गिरिडीह और धनबाद के 26 बंद पड़े खदानों से जलापूर्ति की योजना है.
कई क्षेत्रों में पेयजल में आर्सेनिक और प्लोराइड होने के कारण लोग कई बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. सरकार इन क्षेत्रों के बारे में क्या योजना बना रही है?
झारखंड के छह जिले इस तरह की परेशानियों से जूझ रहे हैं. गढ़वा और पलामू में पेयजल में फ्लोराइड की शिकायत है, तो साहिबगंज-पाकुड़ में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा है. वहीं दो अन्य जिले में आयरन की मात्रा ज्यादा है. आर्सेनिक और फ्लोराइड से प्रभावित जिलों में हमने ट्रीटेड वाटर सप्लाई की योजना शुरू की है. गढ़वा और पलामू में ऐसी 120 योजनाएं चल रही हैं. इन योजनाओं के तहत प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी प्रति दिन उपलब्ध कराया जा रहा है. वहीं साहिबगंज और पाकुड़ में ऐसी 30 योजनाएं संचालित हो रही हैं. साहिबगंज में 140 करोड़ की योजना पर काम चल रहा है जिससे जिले के 4 प्रखंड के 60 गांवों को पेयजल की आपूर्ति की जायेगी. आगे चल कर गढ़वा-पलामू में भी ऐसी ही योजना पर काम होगा. मगर देखरेख को लेकर कुछ समस्या सामने आ रही है. हम चाहते हैं कि इसमें हमें पंचायतों से कुछ सहयोग मिले. हम चाहते हैं कि इन योजनाओं का परिचालन पंचायत की जल एवं स्वच्छता समिति अपने हाथ में ले ले. विभाग इसके लिए उन्हें आर्थिक सहयोग भी उपलब्ध करायेगा. इसके अलावा अगर लाभार्थियों की ओर से कुछ राशि मसलन 30 पैसे प्रति लीटर की दर से इसके लिए पंचायतों को भुगतान किया जाये तो समितियों को भी काम करने में सहूलियत होगी.
विभाग ने कई अच्छी योजनाएं बनाई हैं मगर इसके बावजूद राज्य के कई इलाकों में महिलाओं को दो-दो, तीन-तीन किमी दूर से ढोकर पानी लाना पड़ता है. देश की महिला हॉकी टीम की कप्तान असुंता लकड़ा तक को अपने गांव में पानी ढोकर लाना पड़ता है. इन महिलाओं का कष्ट कब दूर होगा?
आपकी बातों में सच्चाई है. राज्य के 2500 टोलों में आज भी ऐसे हालात हैं. मगर इस मामले में भी हम पूरी तरह पंचायतों पर ही निर्भर हैं. हम चाहते हैं कि पंचायतों से हमारे पास प्रस्ताव आये कि उनके गांव की पेयजल की समस्या को कैसे खत्म किया जा सकता है. उनके प्रस्ताव ही अपने क्षेत्र के लिए ज्यादा कारगर होंगे. पानी के लिए मैगसेसाय पुरस्कार पाने वाले राजेंद्र सिंह भी मानते रहे हैं कि गांव के लोगों की योजनाएं ही ज्यादा कारगर होती हैं. इसके अलावा अगर इन गांवों में कोई पुराना कुआं हो तो पंचायत इसके जीर्णोद्धार की योजना का प्रस्ताव भेज सकते हैं. हम उसे पूरा करायेंगे. वैसे भी झारखंड के लोग कुएं का पानी पीना पसंद करते हैं. यह बात जनगणना के ताजा आकड़े में भी उभर कर सामने आयी है. राज्य के 42 फीसदी लोग जहां हैंडपंप का इस्तेमाल करते हैं वहीं आज भी 36 फीसदी लोग कुआं का पानी पीते हैं. यह इसलिए नहीं कि उनके पास हैंडपंप नहीं है बल्कि इसलिए कि लोग मानते हैं कि कुओं का पानी मीठा होता है. मगर राज्य में बड़ी संख्या में पुराने कुएं बेकार पड़े हैं. अगर कोई पंचायत इसका प्रस्ताव बनाकर भेजती है तो हम उसे जरूर स्वीकृत करेंगे. वैसे जहां तक असुंता वाले प्रश्न की बात है, उनके गांव में उनके घर के सामने एक नलकूप लगा है, जो वर्ष 2010-11 में बना है. इसलिए पहले वे जरूर पानी के लिए दूर जाती रही होंगी अब यह समस्या नहीं होनी चाहिए.
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग का पता
प्रधान सचिव
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, झारखंड सरकार,
नेपाल हाउस, रांची.

खोज-खबर

हेमंत सोरेन का गांव भी प्यासा

गुरुजी यानी शिबू सोरेन व राज्य के उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के गांव नेमरा को भी पानी के संकट का सामना करना पड़ता है. रामगढ़ जिले गोला प्रखंड क्षेत्र में स्थित इस गांव में सात चापानल लगे हैं, इसमें दो खराब हैं. एक का हैंडिल व एक की बेयरिंग खराब है. दो चापानल से धूलकण मिला पानी निकलता है. गुरुजी के घर के सामने दो तालाब हैं, वह भी गरमी में सूख जाते हंै. इसमें एक तालाब गुरुजी का ही है. गांव में लगभग 125 परिवार हैं, सभी संताल आदिवासी हैं. गरमी के दिनों में जब कुएं भी सूख जाते हैं, तो इन लोगों को बड़का नदी में चुआं खोद कर अपनी प्यास बुझानी होती है. गांव के मुखिया प्रताप सिंह मुंडा ने अपने मद से यहां एक चापानल लगवाया है. मुंडा कहते हैं कि गांव में पानी की समस्या है. वे कहते हैं कि इसे जल्द ही दूर किया जायेगा. मनरेगा से बनने वाले कुआं का निर्माण अधूरा है, उसे भी पूरा किया जायेगा.       गोला से सुरेंद्र की रिपोर्ट

लगाम में पानी की कमी नहीं
झारखंड के उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो का गांव लगाम विकसित गांव की श्रेणी में आता है. गांव की आबादी 2500 है और 50 प्रतिशत से अधिक घरों में कुआं है. गांव में 15 से 20 चापानल हैं और सभी चालू हालत में हैं. पानी के मामले में उपमुख्यमंत्री का गांव संपन्न है. सुदेश महतो वर्तमान में राज्य के जल संसाधन मंत्री भी हैं. जल संसाधन विभाग की ओर से जलापूर्ति के लिए गांव में पाइप लाइन बिछायी जा चुकी है. मंत्री सुदेश महतो के प्रयास से गांव में एक पानी की टंकी बनायी जा रही है. टंकी अभी निर्माणाधीन है. मंत्री ने गांव के तालाब का सुंदरीकरण व गहरीकरण भी कराया है. इसका लाभ भी गांव वालों को मिल रहा है. ग्रामीण खेतों में सिंचाई कार्य के लिए कुओं का इस्तेमाल करते हैं. निर्माणाधीन टंकी में पानी का भंडारण कर इसका उपयोग सिंचाई कार्य में किये जाने की योजना है. भंडारण के लिए पानी स्वर्णरेखा नदी से पंप की सहायता से लाया जायेगा. इस योजना को शुरू होने में अभी करीब डेढ़ माह विलंब है.        
सुरेंद्र मोहन की रिपोर्ट
विमला व हाजी के गांव भी प्यासे
राज्य की पर्यटन मंत्री विमला प्रधान के सिमडेगा जिला स्थित गांव बागेडेगा में पानी की स्थिति बेहतर नहीं है. इस गांव को गर्मियों में पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ता है. यहां लगे तीन चापानल में दो खराब हैं, जबकि गरमी चढ़ते ही कुएं सूख जाते हैं. वहीं, मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के देवघर जिले के मधुपुर प्रखंड क्षेत्र स्थित पिपरा गांव में लोगों को गर्मियों में पेयजल के संकट का सामना करना पड़ता है. गांव में 15 चापानल व 10 कुआं हैं. गांव का जलस्तर काफी नीचे जा चुका है.

चंद्रप्रकाश के गांव की स्थिति औसत
राज्य सरकार के भवन निर्माण मंत्री का चितरपुर प्रखंड स्थित संडी गांव में पानी की स्थिति बेहतर है. यहां ग्रामीण पेयजल आपूर्ति व्यवस्था है. गांव में चार-पांच चापानल भी लगे हुए हैं. मंत्री जी के घर के सामने एक तालाब है. इस तालाब के कारण आसपास जलस्तर बने रहने में भी मदद मिलती है. हालांकि गरमी के दिनों में यह तालाब भी सूख जाता है. गांव के लगभग हर घर में कुआं है, जिससे जरूरत लायक पानी मिलता रहता है. गांववासियों के सीसीएल विस्थापित होने के कारण हर किसी के पास नौकरी व पैसे हैं. इस कारण इन लोगों ने व्यवस्था भी बेहतर बना रखी है. बावजूद इसके अगर पेयजल आपूर्ति व्यवस्था किसी कारण से सप्ताह भर या उससे अधिक समय के लिए खराब होती है, तो गांव में पानी की किल्लत हो जाती है.

मंत्री के गांव में पेयजल से बन रही ईंट

झारखंड में पर्याप्त बारिश होने के बावजूद जल संकट है. नीति निर्माता व सरकार में शामिल लोग जल बचाने व उसके संरक्षण को लेकर लंबी-चौड़ी बातें किया करते हैं. पर, ऐसा नहीं है कि हर मंत्री का गांव पानी को लेकर खुशहाल हो. कुछ मंत्रियों के गांव में पानी की स्थिति अच्छी है, तो कई के गांव में बदतर. कुल मिलाकर मंत्रियों के गांवों की मिलीजुली तसवीर बनती है. हमारे प्रतिनिधियों ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित मंत्रियों के गांव का जायजा लिया व जाना कि वहां पानी की क्या स्थिति है और लोगों की क्या पीड़ा है. प्रस्तुत है विभिन्न मंत्रियों के गांव से भेजी गयी रिपोर्ट :

हेमलाल का गांव अप्रैल में ही प्यासा

सूबे के स्वास्थ्य मंत्री हेमलाल मुर्म का गोड्डा जिले के सदर प्रखंड स्थित गांव घाट बंका के लोगों के हलक प्यास से अप्रैल माह के शुरुआत में ही सूखने लगे हैं. ऐसे में ग्रामीण दूर के चापानल से पानी ढोकर अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं. करीब पचास लाख रुपये की लरागत से बना वाटर टावर 200 लोगों को भी ढंग से पानी उपलब्ध नहीं करा पाता है. वर्ष 2005-06 में करीब पचास लाख की लागत से ग्रामीण पेयजलापूर्ति योजना के तहत यहां बड़ा जल मीनार बनाने का काम शुरू हुआ, जो तीन सालों में पूरा हुआ. वाटर टावर से लगा हुआ पंप हाउस भी है, जहां मोटर है. पर, ग्रामीणों को पेयजल नहीं मिल पा रहा है. बड़ा टोला, नदी टोला, राय टोला, जोहार टोला की करीब पांच हजार की आबादी को ध्यान में रख कर यहां वाटर टावर बनाया गया. मंत्री जी का गांव जोहार टोला में ही स्थित है.
गांव में पांच चापानल लगाये गये हैं. इसमें से बड़ा टोला के बाउरी परिवार, पंडित, सूडी तथा हरिजन और संताल आदिवासी परिवार के लोग पेयजल के लिए मात्र दो चापानल पर आश्रित हैं. बाउरी टोला के चापानल महीनों से खराब हैं, वहीं मुखिया घर के सामने का चापानल भी खराब बताया जाता है.
ग्रामीण व जलापूर्ति योजना की समिति के अध्यक्ष राजकुमार भगत, सचिव अशोक भगत, सहित नरसिंह बाउरी, संजीत बाउरी आदि कहते हैं कि पेयजल के लिए सभी लोग परेशान हैं. खैरियत है कि दुर्गा मंदिर के पास चापानल ठीक है, नहीं तो समस्या और गंभीर हो जाती. हैरत की बात यह कि गांव से करीब आधा किमी दूर स्थित ईंट भट्टे को पानी जल मीनार से ही मिलता है.
गोड्डा से निरभ किशोर की रिपोर्ट

घरों में पानी की दिक्कत, सड़कों पर जल जमाव

मानव संसाधन विकास मंत्री बैजनाथ राम के लातेहार के शहीद चौक स्थित मुहल्ले में गरमी चढ़ने के साथ पानी की दिक्कत हो जाती है. मंत्री जी के पद नाम पर ही यह गली मंत्री गली के नाम से चर्चित हो गयी है. भले ही लोगों के घर में पानी की दिक्कत हो, लेकिन गलियों में पानी का काफी जमावड़ा रहता है. पिछले तीन सालों से यहां पानी का जमावड़ा है. मुहल्ले के लोगों के घरों से निकले पानी के निकास की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण पानी जमा हो जाता है. इस कारण वहां लोगों का रहना दूभर हो गया है. काफी बदबू होती है. मच्छरों का प्रकोप बढ़ने से महामारी की भी आशंका है. हालांकि नगर पंचायत के द्वारा नाली के पानी की सप्ताह में एक बार में सफाई की जाती है. मुहल्ले में एक सप्लाई नल है. उस पर सवेरे होते ही लोगों की लंबी कतार लग जाती है. चापानल दो-तीन हैं, उसी पर लोग निर्भर हैं. कुछ घरों में कुआं हैं. मंत्री के प्रति लोगों के मन में नाराजगी है. मूलभूत समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया है. मंत्री के क्षेत्र में लोग आज भी चुआंड़ी खोदकर पानी पीते हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि उन्हें गर्व है कि उनका नेता मंत्री है, लेकिन जब पेयजल जैसी आधारभूत जरूरतें पूरी नहीं  होती, तो मन छोटा हो जाता है. वित्तीय वर्ष 2011-12 में जिले में 5765 कूप निर्माण की योजना थी, लेकिन सिर्फ 1398 कूप ही पूर्ण हो सके. इसमें पेयजल व सिंचाई दोनों प्रकार के कूप शामिल हैं.
लातेहार से सुनील कुमार व आशीष टैगोर की रिपोर्ट

बुधवार, 3 जुलाई 2013

आमुख कथा



झारखंड की कई बड़ी सिंचाई परियोजना का यही हाल है. इन योजनाओँ के नाम के साथ ही सिंचाई परियोजना जुड़ा है मगर इसका लाभ किसानों को न के बराबर मिलता है. ऐसी ही एक परियोजना है
बोकारो जिले के बेरमो अनुमंडल मुख्यालय के निकट तेनुघाट डैम जो एशिया का सबसे बड़ा कच्चा डैम है. झारखंड की जीवन रेखा कही जाने वाली दामोदर नदी पर बांध कर इसे बनाया गया है. लगभग 12 हजार एकड़ भू-भाग में फैले इस बांध के बनने में वर्ष 1965 से 1971 तक का समय लगा था. इसके जल का बंटवारा झारखंड, पश्चिम बंगाल व दामोदर घाटी निगम के बीच क्रमश: 52.21 प्रतिशत, 16.67 प्रतिशत व 27.12 प्रतिशत किया गया है. इस परियोजना के मूल उद्देश्यांें में बोकारो स्टील प्लांट को पानी आपूर्ति करने व पावर प्लांट का निर्माण के साथ-साथ यहां की हजारों एकड़ भूमि की सिंचाई करना भी शामिल है. लेकिन, तेनुघाट जलाशय के पानी का उपयोग बिजली उत्पादन के अलावा बोकारो स्टील प्लांट को 40 किमी लंबी नहर के माध्यम से सिंचित करने तक सीमित रह गया. सिंचाई के लिए तय भूमि में पानी नहीं मिलता है. जबकि, सिंचाई प्रथम उद्देश्य होने के कारण ही यह परियोजना आज भी सिंचाई विभाग के अधीन है. बांध बनने के बाद जितनी जमीन की सिंचाई होनी थी, वह गरमी के दिनों में बिलकुल सूखी होती है और बरसात के दिनों में चंूकि डैम के अधिकांश फाटक खोल दिये जाते हैं, इसलिए इन खेतों में कमर भर पानी जमा रहता है. फाटक नहीं खोलने पर भी यही स्थिति बन जाती है. तब उन गांवों के खेत पानी में डूब जाते हैं, जो डैम से विस्थापित या पुनवार्सित हैं.
गुवई बराज परियोजना भी खेतों में पानी पहुंचाने में विफल रही है. चास प्रखंड के पिंडराजोरा गांव के पास चास-पुरुलिया मुख्य पथ के किनारे गुवई नदी बांध कर विशाल जलाशय का निर्माण किया गया. लगभग 40 साल पहले बनी इस परियोजना का उद्देश्य चास व चंदनकियारी प्रखंड के दर्जनों गांवों को कच्चे नहर से सिंचाई का पानी उपलब्ध कराना था. आज तक एक भी गांव को पानी नहीं पहुंच सका है. कच्चा नहर में पानी बमुश्किल दो किमी दूर जाकर ठहर जाता है. अब तो चास-चंदनकियारी के गांवों में नहर भी नहीं दिखाई पड़ता है. सरकार और प्रशासन ने इसके पुनरुद्धार की बात कई बार कही. शिबू सोरेन जब मुख्यमंत्री बने तो इसका हवाई सर्वेक्षण किया और इस परियोजना का लाभ गांवों को देने का निर्देश अधिकारियों को दिया. प्रशासन ने कुछ सक्रियता भी दिखाई थी. पर, उनके सत्ता से हटते ही सब कुछ जहां-का-तहां ठहर गया.
(बोकारो से दीपक सवाल की रिपोर्ट)

खेतों में कब तक पहुंचेगा सुरु सिंचाई योजना का पानी !

राज्य सरकार की ओर से सुरु सिंचाई योजना को पुन: शुरू करने की घोषणा से क्षेत्र के किसानों की बांछे खिल गई है. इस योजना के पूरा हो जाने से खरसावां सिंचाई के क्षेत्र में आत्म निर्भर हो जायेगी. दो बार इस योजना को शुरू तो किया गया, परंतु किसी न किसी अड़चन के कारण यह आगे नहीं बढ़ सका. वर्ष 2012-13 के लिये राज्य सरकार ने सिंचाई बजट में 1905 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है.  इस परियोजना के पूरा हो जाने से सिंचाई के क्षेत्र में खरसावां पूरी तरह से आत्म निर्भर हो जायेगा. इस योजना पर अब तक करोड़ों रुपये खर्च हो चुके है. 1982 में इस योजना को तत्कालिन बिहार सरकार ने मंजूरी दी थी. इस समय इसका प्राक्कलन राशि 11.37 करोड़ रखा गया था. योजना का कार्य कुछ आगे बढ़ा ही था कि वन विभाग ने योजना में पेड़ों के कटने व वन भूमि डूबने का मामले बता कर इसका विरोध कर दिया. तब वन कानून का हवाला देते हुए वन विभाग ने इस पर रोक लगा दी थी. इस दौरान योजना पर  करीब 55 लाख रुपये खर्च हो चुके थे. उस समय लाये गये सीमेंट के बड़े बड़े पाईप आज भी जहां तहां पड़े हुए है. योजना में विस्थापितों के पुर्नवास पर भी करीब 70 लाख रुपये का वितरण किया जा चुका था. इसके पश्चात पुन 2004 में अर्जुन मुंडा की सरकार ने 49.6 करोड़ से इस योजना को मंजूरी दी. इस राशि से वन विभाग को वन भूमि के लिये 9.84 करोड़ व वन भूमि पर लगाये गये पेड़ों की क्षतिपूर्ति के लिये करीब 69.93 लाख रुपया का भुगतान किया गया. योजना के संवेदक रहे नागार्जुन कंस्ट्रक्सन को 13.54 करोड़ का भुगातन किया गया था. इसी बीच मुंडा सरकार के जाने व मधु कोड़ा सरकार के बनने के बाद योजना का कार्य पांच फिसदी भी नहीं हुआ था पुन 148 एकड़ वन विभाग ने वन भूमि का हवाला दे कर पुन दूसरी बार योजना पर रोक लगा दी. अब पुन एक बार मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने वन विभाग से जुड़े सभी विवादों को दूर कर योजना को शीघ्र ही पूरा करने की घोषणा की है. योजना के पूरा होने से खरसावां व कुचाई प्रखंड के दो दर्जन से अधिक गांवों में सिंचाई की सुविधा मिलने लगेगी. योजना को पूरा होने में चार साल का समय लग सकता है.
(सरायकेला-खरसावां से शचिंद्र कुमार दाश की रिपोर्ट)

सिंचाई परियोजनाओं का हाल


सरकारी सिंचाई परियोजनाओं के हालात पूरे प्रदेश में एक से हैं. करोड़ों-अरबों खर्च कर नहर प्रणालियां विकसित की जा रही है, मगर इन नहरों से कभी खेतों की प्यास नहीं बुझती. अधिकतर मामलों में तो पानी ही नहीं आता, अगर आता भी है तो बेमौसम. कुछ परियोजनाएं तो ऐसी हैं जिसमें नहर में नदी के बदले बरसाती पानी ही भरा रहता है. यहां राज्य की कुछ सिंचाई परियोजनाओं का जिक्र किया जा रहा है, ताकि हम इन प्रयासों की गंभीरता को ठीक से समझ सकें :

रोरो परियोजना की नहरों में बारिश का पानी
1958 में रोरो सिंचाई परियोजना का निर्माण कराया गया. इसके जरिये चाईबासा स्थित रोरो नदी के पानी को नहर के जरिए खेतों तक पहुंचाने की योजना थी. नहर से मोटर के जरिए पानी खेतों तक पहुंचाना था. करीब 134 लाख रुपये खर्च कर योजना तैयार की गई. इस परियोजना से सदर प्रखंड के चार, खूंटपानी प्रखंड के 23 व सरायकेला प्रखंड के 10 गांवों के खेतों में सिंचाई सुविधा मुहैया कराना था. उस समय कहा गया कि इस नहर से 22400 एकड़ भूमि सिंचित होगी. वर्तमान में सरकारी आंकड़ा के अनुसार इस योजना से 8000 हेक्टेयर में सिंचाई पहुंचाने का लक्ष्य है.  सरकारी आंक ड़ा बताता है कि 2011 के खरीफ मौसम में 2206 हेक्टेयर में पटवन किया गया है.  लेकिन वास्तविकता यह है कि इस नहर में रोरो नदी के पानी का बहाव होता ही नहीं है. केवल वर्षा के समय ही नहर में पानी रहता है. गहराई कम हो जाने के कारण नहर गर्मी से पहले ही सूख गयी है. इस नहर के जीर्णोद्धार के लिए बीते साल योजना तैयार कर प्राक्कलन बनाया गया. नहर की गहराई बढ़ाते हुए इसके पक्कीकरण की योजना तैयार कर स्वीकृति के लिए सरकार के पास भेजा गया. लेकिन अबतक स्वीकृति नहीं मिली.
लातेहार में 89 लिफ्ट इरिगेशन स्कीम बेकार
लातेहार जिले की 90 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन सिंचाई सुविधाओं के नाम पर यहां सिर्फ चार  सिंचाई योजनायें ही चालू हालत में हैै. सिंचाई योजनायें नहीं होने के कारण किसान यहां से अन्यत्र पलायन कर रहे हैं. वित्तीय वर्ष 1986-87 में तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा 92 लिफ्ट इरिगेशन स्कीम का जाल बिछाया गया था. लेकिन वर्तमान समय में 88 योजनायें बेकार हैं

25 लिफ्ट इरिगेशन स्कीम हैं बंद
पश्चिमी सिंहभूम के नोवामुंडी व जगन्नाथपुर के खेतों को सिंचाई सुविधा मुहैया कराने के लिए वर्षों पूर्व 25 लिफ्ट इरिगेशन स्कीम तैयार की गई लेकिन इस योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. बिजली आपूर्ति की सुविधा बहाल नहीं होने के कारण एक भी योजना चालू स्थिति में नहीं है. अनेक स्थानों पर तो मोटर भी खराब पड़े हुए हैं. विभाग का कहना है कि बिजली आपूर्ति कर योजना चालू कराने के लिए वरीय अधिकारियों के साथ पत्राचार किया गया है. लेकिन हकीकत यह है कि एक भी योजना चालू करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है. इस 25 योजना से 1250 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित है. सदर प्रखंड स्थित लुपुंगुटु की एकमात्र योजना ही चालू स्थिति में है. इस योजना का लक्ष्य 55 हेक्टेयर खेतों को सिंचित करने का है. लेकिन वर्ष 2010-11 में इससे केवल दो एकड़ खेत को ही पानी मिल सका. श्रृंखला चेक डेम, माइक्रो लिफ्ट योजना व कुओं का निर्माण कर लाभुक समिति को सौंप दिया गया है. लेकिन इन योजनाओं की क्या स्थिति है इसे देखने की जरूरत विभाग ने कभी महसूस नहीं की. बीते साल कुछ तालाबों का जीर्णोद्धार मनरेगा के तहत कराया गया है.
महज 3.7 फीसदी खेतों की ही होती है सिंचाई
पश्चिमी सिंहभूम में कुल उपलब्ध कृषि योग्य भूमि में से मात्र 3.7 फीसदी खेतोें में ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है.  शेष खेतों में सिंचाई केवल वर्षा पर ही निर्भर है. जिले में कुल उपलब्ध भूमि 2,58,844 हेक्टेयर में 2,20,725 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है. कुल भूमि का 85 फीसदी कृषि योग्य भूमि इस जिले में है. पर उपलब्ध कृषि योग्य भूमि में से मात्र 8230 हेक्टेयर खेतों को ही सिंचाई योजनाओं से पानी मिल पाता है. जिस वर्ष वर्षा ठीक हुई, उस वर्ष फसल का उत्पादन बेहतर होता है. लेकिन जब वर्षा कम या नहीं हुई, उस समय जिले में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. खेतों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं रहने के कारण ही हर साल खरीफ मौसम के बाद किसान व मजदूरों का पलायन दूसरे राज्यों में होने लगता है.

प्यासे खेत


झारखंड की छवि जरूर एक खनिज संपन्न औद्योगिक राज्य की रही है, मगर आज भी यहां की 77 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है. खनिज संपन्न औद्योगिक राज्य की छवि का नुकसान राज्य के किसानों को लगातार उठाना पड़ा. सरकारों ने किसानों की मदद और खेती को विकसित करने की योजनाओं पर कभी ठीक से ध्यान नहीं दिया. राज्य की कृषि योग्य भूमि पर सिंचाई की व्यवस्था इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. सरकारी वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक यहां की महज 24 फीसदी खेती के लायक जमीन पर ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो पायी है. शेष 76 फीसदी जमीन से अगर अनाज उपजता है तो यह झारखंड के किसानों की जीवटता का ही परिणाम है. हैरत तो यह जान कर होता है कि सिंचित भूमि के मामले में देश का औसत 70 फीसदी है. यानी देश में औसतन 70 फीसदी जमीन पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है.

राज्य के जल संसाधन विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक झारखंड राज्य की कुल कृषि योग्य भूमि 29.74 लाख हेक्टेयर है. द्वितीय बिहार सिंचाई आयोग के आंकड़े बताते हैं कि अपने राज्य की 12.765 लाख हेक्टेयर जमीन को बृहत एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के जरिये सिंचित किया जा सकता है, जबकि शेष भूमि की सिंचाई के लिए लघु सिंचाई परियोजनाओं की मदद लेनी होगी. मगर ताजा आंकड़ों के मुताबिक इन दोनों परियोजनाओं की मदद से भी 7.40 लाख हेक्टेयर(2.3364 लाख हेक्टेयर बृहत एवं मध्यम तथा 5.06394 लाख हेक्टेयर लघु सिंचाई परियोजनाओं की मदद से) से भी कम जमीन सिंचित हो पायी है. यहां यह ध्यान देने लायक तथ्य है कि ये आंकड़े राज्य सरकार के हैं, धरातल पर उतरने पर इन आंकड़ों के गलत होने की संभावना भी रहती है. सिंचाई परियोजनाओं के लक्ष्य कम ही पूरे होते हैं. जितना बताया जाता है वहां तक भी ससमय समुचित पानी पहुंच जाये यह कम ही होता है. फिलहाल राज्य में सात बड़ी और 21 मझोली सिंचाई परियोजनाओं पर काम चल रहा है. अगर ये परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं तो और 5.6054 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित हो पायेगी. इसके बावजूद 4.76 लाख हेक्टेयर के करीब जमीन असिंचित ही रह जायेगी. राज्य सरकार के पास इस जमीन की सिंचाई के लिए कोई परियोजना नहीं है.
वहीं लघु सिंचाई परियोजना के तहत लगभग 17 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई का लक्ष्य है, जिसमें आज भी लगभग 12 लाख हेक्टेयर जमीन असिंचित है.  

पानी बचाने से दूर होगी गरीबी

<< पंचायतनामा डेस्क >>


योजना आयोग की ओर से लघु सिंचाई व जलछाजन के प्रबंधन के लिए गठित कार्यबल (वर्किंग ग्रुप) ने 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के लिए प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट में पानी के संचय व इसके माध्यम से गरीबी उन्मूलन के संबंध में कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं. संभावना है कि हमारी सरकार कार्यबल की सिफारिशों पर अमल करने की भरपूर कोशिश करेगी. सूखा, गरीबी उन्मूलन, आजीविका के साधन बढ़ाने व खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर ऐसा किया जाना जरूरी है. यानी बारिश का जल बचाकर आम आदमी के जीवन स्तर को ऊंचा किया जाना संभव है.  कार्यबल ने अध्ययन के आधार अपनी 110 पृष्ठ की रिपोर्ट में इस बात को चिह्नित किया है कि देश के सबसे गरीब 100 जिलों में गरीबी उन्मूलन की कोशिशें इसलिए सार्थक नहीं हो सकीं, क्योंकि वहां जल संचयन व लघु सिंचाई की बेहतर व्यवस्था नहीं की गयी. जबकि ये जिले सिंचाई के लिए मुख्य रूप से बारिश के जल पर ही निर्भर हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडि़शा, मध्यप्रदेश की आधी से अधिक ग्रामीण आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है. यह हाल तब है, जब इस क्षेत्र में अच्छी बारिश होती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर जल प्रबंधन के माध्यम से इस क्षेत्र के साथ ही देश के अन्य राज्य में भी बेहतर कृषि उपज हासिल की जा सकती है व लोगों के लिए आजीविका के साथ खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकती है.  भारत की 55 फीसदी खेती बारिश के पानी पर निर्भर करती है. केंद्र की ओर से 1995 में नेशनल वाटर शेड प्रोग्राम लागू तो किया गया, लेकिन पानी या इससे संबंधित कार्यों के लिए जिम्मेवार विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल के अभाव में लक्ष्य को नहीं पाया जा सका. ऐसे में कार्यबल ने सिफारिश की है कि नेशनल रेनफीड एरिया ऑथोरिटी (एनआरएए : राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण) के संयोजन में मनरेगा, लघु सिंचाई विभाग, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन आदि के तहत पानी के लिए होने वाले वाले काम हों.  सिंचाई के लिए पूरी तरह से वर्षा जल पर निर्भर करने वाले राज्य ज्यादातर पर्वतीय या असमतल भूमि वाले हैं, जहां बड़ी सिंचाई परियोजनाएं की सफलता संदिग्ध होती हैं. ऐसे में वैसे क्षेत्रों में लघु सिंचाई व वर्षा जल संचय के माध्यम से बेहतर नतीजे हासिल किया जा सकता है.
कार्यबल ने रिपोर्ट में इस बिंदु को भी चिह्नित किया है कि देश में लघु सिंचाई व जलछाजन जैसी लाभकारी योजनाओं को पर्याप्त बजट नहीं मिला. बड़ी व मध्यम सिंचाई परियोजनाओं पर 5.5 लाख करोड़ रुपये की तुलना में जलछाजन के लिए मात्र 40 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. राज्य व जिले स्तर पर बारिश के पानी के संचय के लिए मैकेनिज्म तैयार करने की भी सिफारिश की गयी है. इस मैकेनिज्म की अध्यक्षता राज्य स्तर पर मुख्य सचिव व जिला स्तर पर जिलाधिकारी (उपायुक्त) करें. पानी को लेकर लोगों में जागरूकता लाने में पंचायती राज संस्थाओं व स्वयंसेवी समूहों की भूमिका को बढ़ाने की भी सिफारिश की गयी है.