मंगलवार, 23 जुलाई 2013

सदस्यों पर है विकास की जिम्मेवारी

पंचायनामा डेस्क

पंचायतनामा के पिछले अंक में अबतक आप पढ़ चुके हैं कि मुखिया, प्रमुख व जिला परिषद अध्यक्ष के क्या अधिकार, कर्तव्य व दायित्व होते हैं. अब आप इस अंक में पढि़ए पंचायत निकाय के अन्य जनप्रतिनिधियों के अधिकार, दायित्व व कर्तव्य के संबंध में. ये जनप्रतिनिधि भी अपने क्षेत्र व पंचायत निकाय के प्रति व अंतिम रूप से आम आदमी के प्रति उत्तरदायी होते हैं.
वार्ड सदस्य की जिम्मेवारियां बतायें?
वार्ड सदस्य ग्राम पंचायत का सदस्य होता है. वह अपनी पंचायत की बैठक में अपने वार्ड व गांव का प्रतिनिधित्व करता है. वह विभिन्न समितियों के गठन में भाग लेता है  और सर्वसम्मति से उसे जिस समिति का अध्यक्ष चुना गया हो, उसकी अध्यक्षता भी करता है. गांव वासियों के विकास के लिए योजनाओं के चयन व क्रियान्वयन की प्राथमिकता तय करना, ग्राम पंचायत के विकास के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध राशियों के समुचित आवंटन में मुखिया की मदद करना उसकी जिम्मेवारी है.  पंचायती राज के तहत सौंपे गये अन्य दायित्वों का निर्वाह भी उसे करना होता है. उसके कई सामाजिक दायित्व भी होते हैं. जैसे उसे अपने वार्ड-गांव की ग्रामसभा के साथ बैठक कर योजना तैयार करना होता है. गांव में ग्रामसभा द्वारा तैयार की गयी योजनाओं को ग्राम पंचायत की बैठक में भी प्रस्तुत करना होता है. ग्राम पंचायत की बैठक में योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए प्राथमिकता तय करते समय अपने वार्ड-गांव के लिए योजनाओं को प्राथमिकता दिलाना भी उसका दायित्व होता है. योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद, ग्रामसभा के लिए निर्णय व प्रस्ताव को ग्राम पंचायत व मुखिया तक पहुंचाना, गांव या वार्ड क्षेत्र के संबंध में पंचायत सचिवालय या मुखिया द्वारा लिये गये निर्णय के संबंध में लोगों को बताना, पंचायत में उपलब्ध मद की राशि की जानकारी गांव को देना, ग्रामसभा द्वारा पंचायत से मांगी गयी उन समस्त जानकारियों को उपलब्ध कराना, जो गांव अथवा पंचायत के ग्रामीणों से संबंधित हों, उसकी जिम्मेवारी है. ग्रामसभा और ग्राम पंचायत के बीच प्रगाढ़ कड़ी का काम करना उसका दायित्व है.
पंचायत समिति सदस्यों के अधिकार, कर्तव्य एवं दायित्व क्या हैं?
पंचायत समिति में अपनी पंचायत के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में पंचायत समिति सदस्य प्रतिनिधित्व करता है. स्थायी समिति के दायित्व का निर्वहन, पंचायत समिति की प्रत्येक बैठक में भाग लेना, गांव की बुनियादी समस्याओं के प्रति पंचायत समिति का ध्यान आकृष्ट कराना उसकी जिम्मेवारी है. सरकारी योजनाओं की जानकारी पंचायत एवं गांव स्तर पर लोगों को प्रदान करना, पंचायत समिति स्तर पर प्रखंड क्षेत्र एवं ग्राम पंचायत के लिए योजनाओं की प्राथमिकता तय करते समय अपनी पंचायत की योजनाओं को प्राथमिकता सूची में सम्मिलित कराने में विशेष भूमिका निभाना, अपनी पंचायत के जरूरतमंदों को सरकार की ओर से मिलने वाली विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाना एवं शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, कृषि विकास के लिए योजनाओं के निर्माण एवं क्रियान्वयन में योगदान देना उसके कर्तव्य हंै.
जिला परिषद सदस्य के क्या कर्तव्य, अधिकार व दायित्व हैं?
जिला परिषद सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं, जरूरतों व आवश्यक योजनाओं की मांग जिला परिषद की बैठक में उठाता है. उसे जिला परिषद की बैठक में भी शामिल होना होता है व वहां अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना होता है. उसे जिला परिषद द्वारा गठित स्थायी समितियों के सदस्य, सभापति, उपसभापति के रूप में दायित्व निभाना होता है. जिला परिषद के अधीनस्थ कार्यालयों, उनके अधिकारियों, कर्मचारियों का पर्यवेक्षण व नियंत्रण करने में जिला परिषद अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का सहयोग करना, समय-समय पर ऐसे कर्मचारियों-अधिकारियों का स्वयं भी पर्यवेक्षण, निरीक्षण व नियंत्रण करना उसकी जिम्मेवारी है. जिला परिषद सदस्यों के कई सामाजिक दायित्व भी होते हैं. उसे अपने निर्वाचन क्षेत्र अथवा प्रखंड की बुनियादी समस्याओं को जिला परिषद के समक्ष प्रस्तुत करना होता है, प्रखंड स्तर पर पूरी नहीं हो सकने वाली योजनाओं-परियोजनाओं को जिला परिषद विकास निधि के द्वारा क्रियान्वित कराना, प्रखंड के लोगों के विकास के लिए अधिकाधिक योजनाओं को जिला परिषद से स्वीकृति दिलाना और उन्हें प्रखंड क्षेत्र में क्रियान्वित कराना, अपने प्रखंड केविकास लिए अधिकाधिक राशि का आवंटन पाना, प्रखंड के विकास से संबंधित किसी भी प्रकार की योजनाओं को जिला स्तर पर पास कराने के लिए लगातार सक्रिय रहना, अपने क्षेत्र अथवा प्रखंड के ग्राम वासियों के व्यक्तिगत अथवा सामूहिक कार्यों को जिला स्तर पर शीघ्र कराने में मदद करना उसका दायित्व है. बुनियादी जरूरतों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सिंचाई, जल प्रबंधन, सड़क, बिजली आदि की सुविधा समुचित तौर पर उपलब्ध हो इसके लिए प्रयास करना, पंचायत समिति व जिला परिषद के बीच सामंजस्य कायम कराना, सरकार की योजनाओं, नीतियों की जानकारी पंचायत समिति को देना, भ्रष्टाचार को खत्म करने का प्रयास करना उसका दायित्व होता है.

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

झारखंडी भाषाओं को सम्मान दिलाने में जुटी महिलाएं



कहते हैं आदिवासियों का चलना नृत्य और बोलना ही गीत है. झारखंड की संस्कृति और परंपरा काफी धनी है. यहां का आदिवासी समाज अन्य समुदाय के लोगों के साथ लंबे समय से साथ रहने के कारण धीरे-धीरे अपनी परंपरा से दूर होता जा रहा है. आदिवासियों की परंपरा को बचाने और उनकी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विकास की दिशा में प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन कार्य कर रहा है. फाउंडेशन से जुड़ी आदिवासी महिलाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. इनका उद्देश्य आदिवासियों में जागरुकता लाना, घरेलू हिंसा को रोकना और आदिवासी समाज को विकास पथ पर लाना है.

झारखंड की नौ भाषाओं के विकास, लोगों के बीच इन भाषाओं के साहित्यकारों की पहुंच और इनका अधिक से अधिक प्रयोग हो, इसके लिए त्रैमासिक पत्रिका झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा का प्रकाशन किया जा रहा है. इसकी शुरुआत वर्ष 2004 में हुई थी. पत्रिका में सभी नौ भाषाओं नागपुरी, संताली, हो, खडि़या, मुंडारी, कुड़ुख, पंचपरगनिया, खोरठा और कुरमाली के लेख, कविता और कहानियां प्रकाशित होती हैं. इसका उद्देश्य विभिन्न भाषा के आदिवासी समुदाय के लोगों को अपनी भाषा-साहित्य के प्रति जागरूक करना है, ताकि वह अपना इतिहास अपनी ही भाषा में पढ़ें और स्वयं में गर्व महसूस करें. फाउंडेशन झारखंड की भाषाओं के विकास व झारखंड के गुमनाम रहे शिक्षाविद व साहित्यकारों को समाज के सामने लाने का कार्य कर रहा है. साथ ही भाषा, साहित्य व संस्कृति के विकास के लिए फाउंडेशन का अखड़ा मंच काम कर रहा है. संस्था का मानना है कि कृषि को परंपरा और विज्ञान से जोड़कर राज्य में विकास की गंगा बहायी जा सकती है. समाज को आगे ले जानेवाली परंपराओं को बढ़ावा मिले, ताकि राज्य से विस्थापन व पलायन पर विराम लग सके.
विभिन्न आदिवासी भाषा के लेखकों के लिए अखड़ा एक मंच है.  झारखंड की भाषाओं से जुड़ी पांडुलिपि को प्रकाशन के लिए रांची विश्वविद्यायल और टीआरआइ (ट्राइबल रिसर्च इंस्टीच्यूट) ने लिया था, लेकिन आज तक इनका प्रकाशन नहीं किया जा सका. इन अनमोल धरोहरों से आदिवासी समाज को जो गति मिलनी चाहिए थी, वह अबतक नहीं मिली है. संस्था उसे गति देने का कार्य कर रही है.
संताली भाषा के स्क्रप्टि पर काफी कार्य हो चुके हैं और इसका प्रचार-प्रसार भी हुआ है. हर भाषा के लिए एक-एक परिषद है और हर परिषद अपनी-अपनी भाषा की उन्नति के लिए कार्य कर रही है.
आदिवासी हितों व संस्कृति से जुड़े अगुवों पर संस्था डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने का कार्य भी करती है. संस्था ने भाषा के विकास के लिए राज्यभर के लोगों से संपर्क कर अभियान चलाया. अभियान का ही प्रतिफल है कि झारखंड की नौ भाषाओं को सरकार ने द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया. संस्था अब इन भाषाओं के लिए अकादमी के गठन को लेकर प्रयासरत है. ऐसा होने से रोजगार के अवसरों का सृजन होगा और पलायन रुकेगा.
संस्था से जुड़ी महिलाएं आदिवासी समाज के बीच जागरुकता लाने का भी प्रयास कर रही हैं. इस अभियान के तहत महिलाओं के अधिकारों पर चर्चा की जाती है. आदिवासी समाज कृषक समाज है. महिलाएं भी खेतों में काम करती हैं. संस्था महिलाओं को किसान का दर्जा दिलाने के लिए प्रयासरत है. यदि कोई आदिवासी महिला अकेली है, अविवाहित है या फिर वृद्धा है तो भी वह आत्मनिर्भर नहीं होती. उसे भी पुरुष की तरह आत्मनिर्भर बनने का अधिकार दिलाने के लिए संस्था कार्यरत है. आदिवासी समाज में बेटी बोझ नहीं समझी जाती और यहां दहेज प्रथा जैसी कुरीति भी नहीं है. समाज की महिलाएं अभी भी घरेलू हिंसा की शिकार होती है. संस्था यह मानती है कि गांवों में इसका मुख्य कारण हडि़या है, जिसके कारण कई घर बरबाद हुए हैं. वैसे समाज कुछ तथाकथित अगुवाओं ने इसे सांस्कृतिक पेय की संज्ञा दी है. संस्था गांवों में रहने वाली महिलाओं ही नहीं, बल्कि पुरुषों को भी इस दिशा में जागरुक कर रही हैं. सभी को हडि़या के अतिसेवन से दूर रहने की सलाह दी जाती है, ताकि समाज के पुरुष इसमें पैसे को बरबाद न करें, जो उन्हें शारीरिक व आर्थिक रूप से कमजोर बनाता है.

कैसे भारत को कह दूं महान?

रूपाझा


मेरी पांच साल की बेटी नयी क्लास में गयी है. नयी टीचर और नयी-नयी बातें भी खूब करती है. स्कूल की दिनचर्या बताते हुए अचानक कहने लगी, आज एक नया गाना सिखाया गया- भारत सबसे महान है.
ये महान क्या होता है और भारत है क्या महान... अगर अखबार पढ़ते हुए उस खबर पर नजर ना जाती तो शायद टालने के लिए मैं कह ही देती कि हां सबसे महान है भारत.
लेकिन जैसे मुंह पर ताले पड़ गए थे. आप सबने भी पढ़ी होगी वो खबर- एक बार फिर कम उम्र की घरेलू नौकरानी के साथ डाक्टर दंपती का दुर्व्यवहार, प्रताड़ना. खबर में उस लड़की के हवाले से लिखा था कि उसे भर पेट खाना नहीं दिया जाता था. चिकोटी काटी जाती थी और उसकी चीख बाहर न पहुंचे इसके लिए मुंह को कपड़े से ठूंस कर बंद किया जाता था. कभी-कभी जूता भी ठूंस दिया जाता था.
ऐसी घटनाएं तो छपती ही रहती हैं. एनजीओ ने बढ़ा-चढ़ा कर रिपोर्ट लिखवाई होगी. नौकरानियों का तो यही हाल है जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो.
अगर मैंने पिछले पांच साल से एजेंसी के जरिए मेड्स न रखी होती तो शायद पड़ोस की महिलाओं की इन दलीलों को सच भी मान बैठती पर आलोक धन्वा की एक कविता की एक पंक्ति उधार ले सकूं, मुझे भी मालूम है  कुलीनता की हिंसा. जूलियानी की याद बरबस ही आ गई. जब मेरे घर एक एजेंट के जरिए वो पहली बार आयी तो मुझे एक लंबी स्वस्थ लड़की का इंतजार था. जूलियानी बहुत छोटी सी दुबली-पतली लड़की थी. लगता किसी ने उसे बच्ची रहने नहीं दिया और वो बड़ी हो नहीं पायी. बोलती बहुत धीमे स्वर में. घर में मदद करने के लिए एक कामकाजी मां के लिए किसी भी तरह की लड़की का मिलना मुंह-मांगे वरदान जैसा होता है. मैंने सोचा कोई बात नहीं ठीक से खायेगी पीयेगी तो स्वस्थ हो जायेगी. बोलने भी लगेगी. बोलने तो लगी पर स्वस्थ नहीं हो पा रही थी. डाक्टरी जांच से पता चला टीबी है. और लंबे अरसे से. मैंने पूछा पहले जहां काम करती थी, वहां बीमार होती थी. उसने जवाब दिया जो मैं शायद जानती थी, हां थोड़ा बुखार होता रहता था. फिर ठीक हो जाता था. कभी डाक्टर के पास नहीं गयी. एक साल में कभी ले नहीं गयी मैडम. इलाज शुरू होने के तुरंत बाद ही वो स्वस्थ होने लगी. खुश भी रहती थी और फिर एक दिन वो भाग गयी. एक पहचान के लड़के के साथ.
फिर लौट भी आयी दो दिनो बाद. लड़का शादीशुदा परिवार वाला था. उसे लेने एजेंट आया और उससे पहले कि मैं उसे रोकती कस कर उसे तमाचा मारा.
मैं झट से उसे अंदर ले गयी. पूछा आगे क्या करना है... एजेंट के साथ जाना है या घर वापस जाना है. आश्चर्य था कि उसका चेहरा एक दम सपाट था.
घर चली जाओ जूलियानी, मै इंतजाम कर देती हूं, नहीं दीदी वहां जाकर क्या करना है. एजेंट के साथ जाओगी. मन तो नहीं है.. वो भी मुझसे ज़बरदस्ती करता है. कई बार मना करती हूं फिर भी. कहता है जीजा साली का रिश्ता है, छेडूंगा.
चुपचाप मेरी तरफ देखने लगी. कातर दृष्टि से....
मुझे पता था वो जानना चाहती थी कि क्या वो मेरे पास काम करती रह सकती है?
मुझे अपनी छोटी बच्ची की सुरक्षा याद आयी, मेरे पीछे बिल्कुल सुनसान मेरा घर फिर किसी का आना जाना शुरू कर दिया इसने तो... लड़की का मामला है किसी बड़ी मुसीबत मे ना पड़ जाऊं..
जूलियानी को मेरी खामोशी से मेरे जवाब का अंदाज़ा हो गया होगा. दुल्हन की तरह सजी जूलियानी झट उठ कर बोली, एजेंट के साथ जाउंगी. जनवरी की ठंडी और गहरी रात में गुम होती चली गयी जुलियानी. केवल उसके दुपट्टे का गोटा दूर तक झिलमिलाता रहा.
और मुझे याद आयी कुलीनता की हिंसा वाली पंक्ति.... अपनी बिटिया को ये कहने में शर्म सी महसूस हुई कि भारत सबसे महान है अगर महान होना कोई पोज़िटिव बात है तो......

क्रियेटिव कोर्स करें



मैट्रिक की परीक्षा खत्म हो गयी है. कैरियर बनाने की यह पहली सीढ़ी है. रिजल्ट निकलने और कालेजों में नामांकन लेने में लगभग दो-तीन माह लग जायेंगे. इस दो-तीन माह का सदुपयोग जरूर करें. प्रतियोगिता के इस दौर में अंगरेजी का महत्व बढ़ा है. अच्छा होगा कि आप किसी अच्छे संस्थान से अंगरेजी बोलने व लिखने के लिए कोचिंग करें. लड़कियां टेलरिंग सीख सकती हैं. कंप्यूटर का बेसिक कोर्स कर सकते हैं. कोई इंजीनियर, तो कोई डॉक्टर या फिर आइएएस, आइपीएस बनने का सपना देखते हैं. मैट्रिक के बाद ही अपना लक्ष्य बनायें.  स्टाफ सलेक्शन कमीशन व रेलवे में कई जॉब मैट्रिक स्तर पर ही मिलते हैं. तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में जानेवाले विद्यार्थी अभी से ही आइटीआइ व पॉलिटेक्निक प्रवेश परीक्षा की तैयारी शुरू कर सकते हैं. इसलिए तैयारी शुरू कर दें. बिना समय गंवाए.
बेसिक स्किल डेवलपं करें
बेहतर कै रियर की चाहत सभी को होती है लेकिन उसके लिए जो सबसे आवश्यक चीज बेसिक स्किल है जिसे डेवलप करना जरूरी है.इसी से छात्र अपना व्यक्तित्व निर्माण कर लेता है और समाज में अपनी एक बेहतर छवि बनाने में कामयाब हो सकता है. चार तरह  के बेसिक स्किल होते हैं. कम्युनिकेशन, रीडिंग, राइटिंग व कंप्यूटिंग (एरिथमेटिकल) स्किल. कम्युनिकेशन स्किल को डेवलप करने के लिए अपने समान विचार रखने वालों के साथ लगातार राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय विषयों या अखबार में छपी रिपोर्ट को पढ़ कर उस पर चर्चा करें. एक दूसरे से लगातार विषय के अनुसार बातचीत करें. सिर्फ अपनी बात ही कहने या थोपने की कोशिश बिलकुल न करें.   दूसरे की पूरी बात सुनना और उसके अनुसार जवाब देने का अभ्यास करें. जब आप किसी बात को ठीक से सुनेंगे, तभी उसका सही जवाब दे सकेंगे. इसलिए लिसनिंग स्किल (सुनने की क्षमता) डेवलप करना बहुत जरूरी है. इसके लिए अपने समान सोचवाले विद्यार्थियों का एक ग्रुप बना लें और अभ्यास करना शुरू करें. रीडिंग के साथ राइटिंग का भी लगातार अभ्यास करें.
मेहंदी डिजाइनिंग
मेहंदी  डिजाइनिंग आज डिमांडिग कोर्स बनता जा रहा है. इसे 15 दिन से एक महीने में सीखा जा सकता है. मेहंदी पार्लर में 800 से लेकर 1500 रुपये में यह कोर्स सिखाया जाता है. इसके तहत बेसिक डिजाइनिंग, बेल, जैनी, दुल्हन, अरेबिक आदि डिजाइन सिखाये जाते हैं.
ब्यूटीशियन
तीन महीने की अवधि में फुल टाइम ब्यूटिशियन कोर्स किया जा सकता है. यदि आप शौक के लिए यह कोर्स करना चाहती हैं, तो सेल्फ कोर्स बेहतर ऑप्शन होगा. इसके तहत मेकअप, हेयर ड्रेस, मेनिक्योर, पेडिक्योर, आइब्रो, साड़ी रैपिंग सिखायी जाती है. वहीं फुल टर्म कोर्स में कटिंग से लेकर ब्यूटी लाइन की हर चीज की ट्रेनिंग दी जाती है. सेल्फ कोर्स के लिए सामान्य पार्लर में तीन से पांच हजार व फुल टाइम कोर्स के लिए आठ से 15 हजार रुपये फीस देने होते हैं. कोर्स करने के बाद  किसी भी अच्छे पार्लर में ब्यूटीशियन,  काउंसेलर, हेयर एक्सपर्ट, ब्यूटी मैनेजर के पद पर काम कर सकती हैं.
कंप्यूटर बेसिक कोर्स
आज के दौर में कंप्यूटर का ज्ञान जरूरी है. इस अवधि में कंप्यूटर का बेसिक कोर्स सीखा जा सकता हैं. लड़कों के लिए हार्डवेयर का कोर्स करने के बाद वे कंप्यूटर रिपयरिंग का काम कर सकते हैं. आफिस में काम करने के लिए आफिस के लिए उपयोगी साफ्टवेयर की पढ़ाई की जा सकती है. इसके तहत फंडामेंटल ऑफ कंप्यूटर, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर क्या है, कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम, विंडो क्या है, एमएस आफिस, एमएस वर्ड, एक्सेल, पावर प्वाइंट एवं इंटरनेट की शिक्षा दी जाती  है. इसके लिए कंप्यूटर सेंटर में ढाई से तीन हजार रुपये चार्ज किया जाता है. जिनको कंप्यूटर में ग्राफिक्स या डिजाइन बनाने में ज्यादा रूचि हो तो वे डीटीपी या एनिमेशन इत्यादि के कोर्स भी कर सकते हैं.
मोबाइल रिपेयरिंग
इलेक्ट्रिशियन या मोबाइल रिपयेरिंग के कोर्स भी इसी तरह के छोटे-छोटे कोर्स होते हैं जिसे दो-तीन महीने में पूरा किया जा सकता है.
इसे करने के बाद से ही काम मिलने शुरू हो जाते हैं और अतिरिक्त समय में आमदनी कर सकते हैं. लड़कियां नर्सिंग को भी अपना कै रियर बना सकतीं हैं.  इसके लिए मैट्रिक स्तर पर भी कोर्स उपलब्ध है. इसको पूरा कर आप नर्सिंग होम में तुरत नौकरी भी पा सकती हैं.
टेलरिंग
लड़कियां टेलरिंग का काम आसानी से सीख सकतीं हैं. समीज, सलवार सूट, ब्लाउज, पेटीकोट, फ्रॉक बना सकती हैं. इसके लिए सिलाई सेंटर से प्रशिक्षण लिया जा सकता है. तीन महीने के इस कोर्स के लिए शहर के विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों में 600-800 रुपये फीस लिया जाता है. यह काम सीखकर वे दूसरों का काम करके आय भी कर सकती हैं.
(प्रस्तुति- राकेश कुमार)

सुदेश के गांव की बात ही निराली

जहां राज्य के दूसरे राजनेता शहरों में बस गये हैं और अपने पैतृक गांव पर कम ही ध्यान देते हैं, उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो आज भी अपने गांव से जुड़े हैं. वे हर हफ्ते कम से कम दो बार अपने गांव जाते हैं. इसका असर भी नजर आता है. चिकनी सड़कें, 80 फीसदी पक्के मकान, पेयजल की समुचित व्यवस्था और साफ-सफाई. जिसे देखकर आंखें निहाल हो जाती हैं. इस बार सुदेश के गांव लगाम की कहानी बता रहे हैं सुरंेद्र मोहन और वहां की तसवीरें राजीव ने खीची हैं:

झारखंड के उप मुख्यमंत्री सह जल संसाधन मंत्री सुदेश महतो का गांव लगाम एक सुविधा संपन्न गांव है. सिल्ली मुख्य पथ से करीब दो किलोमीटर अंदर जाने के लिए पीसीसी पथ है. गांव की शुरुआत पक्के मकानों से होती है. गांव की सड़कें भी पक्की हैं. लगाम गांव में हर बुनियादी सुविधा उपलब्ध है. 80 प्रतिशत मकान पक्के हैं.
लगाम गांव रांची जिला के सिल्ली प्रखंड स्थित कोंचो पंचायत अंतर्गत आता है. गांव में एक प्राथमिक सरकारी विद्यालय एलपी स्कूल है. दो आंगनबाड़ी केंद्र हैं. आंगनबाड़ी केंद्र की स्थिति भी ठीक है. करीब 500 घरों वाले लगाम की आबादी 2500 है. गांव की सड़कें पक्की हैं. मुख्य पथ तक जाने के लिए पहुंच पथ भी पीसीसी पथ है. गांव में बिजली वर्ष 1974 से है. जल संसाधन विभाग की ओर से जलापूर्ति के लिए गांव तक पाइप लाइन बिछायी जा चुकी है. गांव में 18 से 19 की संख्या में महिला एसएचजी (स्वयं सहायता समूह) काम कर रहे हैं. पुरुष व महिला साक्षरता दर क्रमश 80 व 70 प्रतिशत है.
विकसित गांव का आधार अल्यूमीनियम कंपनी
गांव के सुविधा संपन्न होने का एक प्रमुख कारण गांव से सटे हिंडालको अल्यूमीनियम कंपनी लिमिटेड है. वर्ष 1973 में कंपनी ने ग्रामीणों से उनकी जमीन ली थी और बदले में मुआवजा राशि का भुगतान भी किया था. गांव के 126 लोगों को अल्यूमीनियम कंपनी में रोजगार दिया गया था. इसी कंपनी में उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो के पिता भी काम करते थे और वर्ष 2008 में सेवानिवृत्त हुए. सेवानिवृत्ति के बाद अभी भी अनुबंध पर कार्य कर रहे हैं. इसके अलावा गांव के लोग अन्य सरकारी नौकरियों जैसे रेलवे, शिक्षक, पुलिस और सेना में काम कर रहे हैं.
बन रही है पानी की टंकी
उपमुख्यमंत्री सह जल संसाधन मंत्री सुदेश महतो के प्रयास से गांव में पेयजल के लिए एक पानी की टंकी बनायी जा रही है. इसके अलावा मंत्री जी के प्रयास से ही गांव की पक्की सड़क व गांव से मुख्यपथ तक पहुंचने के लिए पक्का पहुंच पथ बना. मंत्री ने गांव के तालाब का सुंदरीकरण व गहरीकरण भी कराया है. गांव के लोगों के लिए वे हमेशा उपलब्ध रहते हैं और समस्या लेकर पहुंचने वाले लोगों की समस्या भी सुनते हैं.
गांव में ही रहते हैं माता पिता
उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो के परिवार में पिता श्याम सुंदर महतो, माता देवकी देवी गांव में ही रहते हैं. मंत्री सुदेश महतो रांची स्थित सरकारी आवास में रहते हैं. पत्नी नेहा ने मुंबई से वकालत की पढ़ाई की है और फिलहाल घर पर अपने बेटों की देखभाल में व्यस्त रहती हैं. छोटे भाई मुकेश कुमार महतो का वर्ष 2008 में झारखंड पुलिस में डीएसपी के पद पर चयन हुआ था. बाद में नियुक्ति को लेकर हुए विवाद में मामला अभी न्यायालय में चल रहा है. दो बहनें गीता महतो व माया महतो की शादी हो
चुकी है.

पिता इंजीनियर बनाना चाहते थे
पिता श्याम सुंदर महतो बताते हैं कि वे बेटे सुदेश महतो को इंजीनियर बनाना चाहते थे. वर्ष 1997 में उन्होंने सुदेश महतो का दाखिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, हेहल में कराया था. रांची में ही रहकर वे छात्र राजनीति में सक्रिय हुए. शुरुआत में तो उन्होंने राजनीति करने से मना किया था, लेकिन बाद में सुदेश की जनसेवा की भावना और लोगों के बीच अच्छी पकड़ को देखते हुए उन्होंने प्रोत्साहन दिया. वर्ष 2000 में सिल्ली विधानसभा सीट से सुदेश महतो पहली बार चुनाव लड़े. अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के केशव महतो कमलेश को करीब 15000 मतों से पराजित किया. इसके बाद सिल्ली विधानसभा में विकास के कई कार्य किये. वर्ष 2000 से अब तक हुए सभी विधानसभा चुनाव में लगातार जीत हासिल की है. कहते हैं बेटे की उपलब्धियों को देख काफी खुशी होती है.
(उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो के पिता श्याम सुंदर महतो ने जैसा कि बातचीत में बताया)
वैसे गांव में बिजली, पानी, सड़क आदि बुनियादी सुविधाएं हैं.  मुखिया होने के नाते स्वास्थ्य और आंगनबाड़ी केंद्र के तहत किये जानेवाले कार्य को लेकर हम गंभीर हैं गांव में एक स्वास्थ्य केंद्र की जरूरत है, क्योंकि गांव की हर महिला के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर सिल्ली जाये. गांव के करीब 60 से 70 लोगों का मनरेगा जॉब कार्ड बन चुका है.  बीपीएल कार्ड को लेकर गांव में अभी जागरुकता की कमी है, क्योंकि संपन्न लोग भी बीपीएल कार्ड बनाने की जिद करते हैं.
सरस्वती देवी, मुखिया, लगाम गांव
गांव में सभी बुनियादी सुविधााएं हैं. गांव के विकास से संबंधित कार्य के लिए हम मंत्री जी से बात करते हैं. मंत्री जी गांव के लिए पूरा समय देते हैं और गांववालों से जुड़े रहते हैं. गांववालों की मदद के लिए हमेशा खड़े रहते हैं. यहां तक कि गांव के किसी गरीब परिवार में शादी ब्याह के अवसर पर भी अपनी ओर से सहायता राशि भी देकर सहयोग करते हैं.
बादल सिंह मुंडा, ग्राम प्रधान, लगाम
गांव में किसी भी चीज की तकलीफ नही हैं. बिजली, पानी, सड़क सबकुछ है. गांव में करीब 15 से 20 चापानल हैं. 50 प्रतिशत घर में कुआं है. सुदेश बाबू के मंत्री बनने से हमलोगों को फायदा हुआ है. गांव घर का भी नाम होता है. स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए.
पवन महतो, ग्रामीण, लगाम
गांव में सब सुविधा है. पुस्तकालय तो नहीं है. एक प्राथमिक विद्यालय है. गांव के बच्चे भी नजदीक में पढ़ने के लिए जाते हैं. अधिकतर बच्चे प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ते हैं. बिजली, सड़क, पानी सबकुछ है. कोई कमी नहीं है.
शोभा कुमारी, छात्रा, लगाम

पंचायती राज के पैरोकार विनोदा बाबू

डा. मोहनानंद मिश्र
चिताभूमि, चंद्रदत्त द्वारी रोड, पीटी- बिलासी 814117, देवघर
पंचायती राज के माध्यम से जनकल्याण के कार्यक्रमों को प्रत्येक घर में पहुंचाने के लिए विनोदा बाबू सदा तत्पर रहे. उनके कार्ययोजना की प्रशंसा हारून रसीद ने भी की है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकारों कृषि राज्यस्व की दृष्टि से पंचायती राज्य बहुत ही महत्वपूर्ण था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने इनके मरणो उपरान्त कहा था- जिन्होंने भी विनोदा बाबू के साथ काम किया है वे गम्भीर रूप से उनसे प्रभावित हुए. वे महान देशभक्त विद्वान और अनुभवी सहकर्मी थे, जो अपनी निष्ठा और ईमानदारी के कारण सम्माननीय थे. बिहार में विनोदानन्द झा जी पितृकल्प पुरुष थे, जिनकी विधायक तथा मुख्यमंत्री के रूप में प्रांत की सेवा और दूरदृष्टि वाले राजनेता के रूप में समस्त देश की सेवा सर्वज्ञात थी.
यहां हम आपके सामने पंचायत को लेकर उनके विचारों को भी प्रस्तुत कर रहे हैं:
विनोदा बाबू कहते थेे
मूल उद्देश्य है पंचायत स्थापना का, वह उद्देश्य अभी दूर है और लक्ष्य स्थान से भी बहुत दूरी पर है. इसलिए, किसी भाई को यदि वतर्मान प्रगति से असंतोष होता है, तो उस असंतोष को समझना चाहिए, उसकी कदर करनी चाहिए. पंचायत यद्यपि शासन-यंत्र तथा विकास-कार्य के लिए इतना ही नहीं कि पंचायत कानून के अन्तर्गत जो कुछ अधिकार उसे दिया गया, उसको काम में लाने के लिए एक छोटा-सा संगठन गांव में हो. पंचायत स्कीम की जो आत्मा है, जो स्पिरिट है, उसको काम मेें लाने के लिए हमें  कोशिश करनी होगी. सफलता सभी हमलोगों को मिलेगी. यदि हम संगठन का सामंजस्य, जो मौजूदा संगठन-शासन संगठन के रूप में है, उसके साथ हो यानी मौजूदा शासन भी ऐसी मौलिक जगह पर हो, इस तरह से उसमें परिवर्तन होते जायें कि पंचायत का काम एक अनहोनी-सा, एक असम्भव नहीं प्रतीत हो, लेकिन नये भारतवर्ष की नवीन शासन-पद्धति का एक वास्तविक, व्यावहारिक और ठोस अंग के रूप में हो, तो यह काम तो आसान नही है.
फिर भी कोई शासन-यंत्र है. अभी उसमें और आप में बहुत सी बुराई की बातें हैं. यदि आज उनके पुन:संगठन की बात सोची जाती है, तो इसलिए नहीं कि उसमें बुराई भरी हुई हैं. ऐसी बात नहीं, बल्कि इसलिए कि जिन दिनों में यह शासन-यंत्र लाया गया था, उस दिन राज्य का उद्देश्य था सिर्फ पशु-शक्ति से, ताकत से, बंदूक की ताकत से, लाठी की ताकत से जनता के ऊपर हुकूमत करना और उसकी व्यवस्था थी पुलिस स्टेट की, यानी उस समय पुलिस की मदद से फौज की मदद से, आदमियों को अपने कब्जे में रखना था. आज हमारे देश में जो क्रान्ति आयी और उस क्रान्ति के परिणामस्वरूप हमें जो नया संविधान मिला, उस संविधान में पुलिस स्टेट की जगह पर एक वेलफेयर स्टेट, एक डेमोक्रेटिक स्टेट का ही यदि लक्ष्य आज रखा गया हमारे संविधान में तो जितना ऐडमिनिस्ट्रेशन का सिलसिला है, शासन करने का सिलसिला है, उसमें भी इस दृष्टिकोण से आवश्यक सामंजस्य लाना चाहिए.
लाठी और बन्दूक की प्रधानता अब शासन में नही रही. लाठी और बन्दूक तो रहेगी. जब तक कुछ-न कुछ ऐसे आदमी है. जिनको युक्ति से रास्ते पर नही लाया जा सकता. ये लोग जो हमेशा समाज में उलट-पलट करने की बात हिंसात्मक रीति से सोचने है, उनके मुकाबले के लिए, हिंसात्मक तरीका अख्तियार करने को स्टेट भी बाध्य होता है लेकिन अमूमन हम प्रजातांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करते है, फिर वेलफेयर स्टेट की स्थापना करते है, तो नागरिक की भलाई के सिवा, उनके विकास के सिवा दूसरा कोई काम नही. तो, स्टेट के फंक्शन करने का, इसके काम करने का जो तरीका है, इसमें भी, एडमिनिस्ट्रेशन का जो तरीका है, उसमें भी उसके उद्देश्य के साथ सामंजस्य नही होगा. तो ऐसी हालत में दोनों में जो संघर्ष होता है, उसी तरह का एक व्यावहारिक संघर्ष एक नैतिक संघर्ष जैसा संघर्ष अभी देखते है वैसा होता है.
आज मैैने क्यों चुनाव बन्द किया, क्योंकि पंचायत में जो 900 चुनाव बाकी है, यदि मै होने दूँ तो हमें डर है कि दूषित वातावरण पैदा हो जायेगा. जेनरल एलेक्शन, जो आने वाला है, 5-6 महीने के बाद इसका असर जेनरल एलेक्शन पर पड़ेगा. जेनरल एलेक्शन में निर्वाचन के समय, आदमियों के सामने उनके देश का सवाल रखूंगा, उसके बच्चों को पढ़ाने का सवाल रखूंगा, उनकी बेकारी दूर करने का सवाल रखूंगा और अपने देश की रक्षा की बात रखूँगा. इन सारी बातों  को जब उनके सामने फैलने के लिए रखूंगा, उस समय यदि पंचायत का चुनाव, जैसा हो रहा था, जैसा चुनाव अमहरा में हुआ, जैसा चुनाव सेवरा गांव, मुंगेर में हुआ, जैसा चुनाव मुजफ्फरपुर में किसी तरह हुआ, जिसकी रिपोर्ट हमें याद है, तो एक ही चीज सामने आती है कि किस जाति को जगह पर जाना चाहिए.
एक नया समाज बनाने की जो प्रथम चिंगारी होती है, आप वही एक चिंगारी हैं. आप उसी काम को कर रहे है जो कि जमीन को पहले-पहले खेती के लिए तोड़ने वाला करता है. उसकी जो कृति होती है, उसकी जो प्रतिष्ठा होती है,आपकी प्रतिष्ठा वही है. इसमें जहाँ-जहाँ बाधाएं हो, कठिनाइयां हो, आपस में पहले बातें करें, अधिकार से बाद में. ठंडे से, घबराहट से नही. कभी कम्प्लेक्स लेकर बात नही करनी चाहिए. किसी के पास जायें बात करने के लिए तो अपने को छोटा समझ कर भी नही जाना चाहिए और न अपने को बहुत बड़ा समझ कर ही जाना चाहिए. इसे बार-बार आपसे कहा है और आज भी दोहराता हूँ कि हर पंचायत को किताब रखनी चाहिए. उस किताब में बीडीओं से क्या बातें हुई, क्या परिणाम निकला? उन्होने  क्या राय दी, नोट करना चाहिए. आज जो मुखिया हो, हो सकता है वे कल चले जाये. आज जो बीडीओं है, हो सकता है कल बदल जायें, तो दूसरे के लिए,गाइडेंस के लिए, किताब रखनी चाहिए साथ-साथ काम का इंस्पेक्शन होते रहना चाहिए. इंस्पेक्शन के लिए उन्होंने कहा, साल में एक मरतबे होगा, तो उससे संतोष नही करना चाहिए. इनके पास स्टाफ कम है, ये साल में एक मरतबे जरूर देखें. लेकिन मुखिया को अपना दफ्तर प्रति माह देखना चाहिए. इनको माह में सिनेमा नहीं देखना चाहिए. उसके ऑफिस में ग्राम-सेवक कमर्चारी रक्षा दल के सेवकों को मालूम होना चाहिए कि महीने में पहला रविवार, रविवार को काम नही होता है, उस दिन मुखिया दो घंटा, सरपंच दो घंटा बैठक कर दफ्तर देखेगा. कितना पन्ना खर्च है? कितनी नीबें है, कितनी खर्च हुई, कितनी रोशनाई है, कितनी खर्च हुई, कितना पैसा है और कहां गया? यह सब खूब मजबूती के साथ इंस्पेक्शन करना चाहिए और इंस्पेक्शन करके  उसके परिणाम को रखना चाहिए. यह पंचायत कमेटी के सामने पेश होना चाहिए, तो उससे सिलसिला आ जायेगा और कहीं यदि कुछ गफलत हो, भूल हो, तो वह दुरुस्त हो जायेगा. यह मेथड आयेगा, आपस में एक तसल्ली भी होगी. लोगों के ऊपर, जो काम नही करते है, उनके ऊपर एक दहशत भी होगा कि मालिक चैतन्य है, देखता है. उसी तरह से एक महीने में हो, दो महीने में हो, जैसा भी हो करना चाहिए. कभी पड़ोस की पंचायत के मुखिया को निमंत्रण देना चाहिए कि आओ और हमारी पंचायत को देख जाओ. कुछ गलती तुम्हें मालूम हो, कुछ भी कमी हो या कुछ और हम कर सकते है या नहीं इस पर परामर्श दे जाओ. तो इस तरह से बराबर आना-जाना चाहिए, उनसे राय-मशवरा लेना चाहिए. पंचायतों को अपने अन्दर की जो ताकत है, उसको डेवलप करना चाहिए. उसका विकास करना चाहिए. यदि वह विकसित होगी, तो बाहर की पंचायत की मांग बहुत कम होगी, आवश्यकता भी कम हो जायेगी, जरूरत भी नही रहेगी और कुछ बढि़या, सुन्दर समाज नीचे से बनता हुआ आयेगा. तो हमलोग सब अपने ढंग से काम करें. सब कोई सुन्दर ढंग से, अपने-अपने तरीेके से अपने तरीके को बनवावें और चलावें. इसी तरह के काम होता हैं. किस तरह से सरल ढंग से बढि़या से काम हो, यह देखना है. बहुत ज्यादा फाइल का महत्व नहीं रखना चाहिए. हमलोग सेक्रेटेरियट में फाइल के अन्दर हैं. इतनी फाइलों को हमलोगों ने बनाया है और दस्तखत किया है कि 1936 से जितनी फाइलें एक हमारे हाथ में गुजरी है, वे हमारी लाश को जलाने के लिए काफी हो सकती है, लेकिन कितना कागज इसमें व्यर्थ खर्च हुआ है, इसका भी असर हम पर है. एक बगल के कमरे में रहता है ऑफिसर, वह तीन पन्ने का नोट लिखता है और उसकी कटान में हम दस लाइन, छह लाइन लिखते हैं. इसी तरह से चलता रहेगा छह महीने तक. बैठक करके, गुफ्तगू से मामला तय कर ले. आपस में दो लाइन में बात खत्म हो जाए, यह परिपाटी होनी चाहिए क्योंकि, हम बहुत बुद्धिमतापूर्ण साहित्य से भरे हुए नोटों से पेट भरने वाले नही हैं. उन नोटों से परिणाम क्या निकलता है, उसी से हमारा सिर्फ सरोकार है. तो, यह चीज आपके अन्दर नहीं है. अपने ढंग से चीज निकालें सभी चीजों में, आपस में बात करके जो रास्ता हो, निकालो.

कृषि में काम आने वाले सौर उपकरण


थ्री इन वन सौर एकीकृत उपकरण
यह एक अनोखा बहुउपयोगी उपकरण है. इसका उपयोग जाड़े के दिनों मेंे पानी गर्म करने, साफ आसमान के दिनों में सोलर कूकर के रूप में व फलों या सब्जियों  को सुखाने वाले उपकरण के रूप में होता है. यह सूर्य की ट्रैकिंग के बिना भी जाड़े के दिनों में सूर्य का तीखापन कम होने की स्थिति में सौर कूकर के रूप में इस्तेमाल करने पर 50 से 60 डिग्री सेंटीग्रेड पर लगभग 50 लीटर गर्म पानी दे सकता है. बहुउपयोगी होने के कारण इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है. सुखाने के उपकरण के रूप में तापमान पर नियंत्रण रखते हुए दिन में फलों एवं सब्जियों से पानी निकाला जा सकता है. इस प्रकार एक तरह से यह उपकरण फलों व सब्जियों के प्रसंस्करण के काम से जुड़े लोगों के लिए भी मददगार हो सकता है.

बगीचों के लिए पीवी जेनेरेटर
यह प्राथमिक तौर पर एक सौर पीवी पंप संचालित ड्रिप सिंचाई प्रणाली है. इसमें 900 वॉट की पीवी की कतार होती है और 800 वॉट डीसी मोनोब्लॉक पंप व ओएलपीसी ड्रिप होते हैं, जिससे पानी का किफायत से उपयोग होता है. यह बगीचों के लिए उपयुक्त है. इस प्रणाली का डिजाइन पौधे की पानी की आवश्यकता, ऊर्जा की जरूरत व विकिरण में बदलाव के कारण दबाव में परिवर्तन को रोकने के हिसाब से किया जाना चाहिए, ताकि खेत में पानी की एक समान उपलब्धता सुनिश्चित हो. यह प्रणाली उन खेतों के लिए वरदान है, जहां पानी व उपजाऊ भूमि तो है, लेकिन बिजली का अभाव है. सिंचाई के लिए पीवी प्रणाली अब डीसी-डीसी परिवर्तक, भंडारण बैटरियों एवं इनवर्टर जैसे उपभागों द्वारा जेनेरेटर में परिवर्तित की जा चुकी है. ताकि फसल कटाई के बाद के प्रचालनों के लिए छोटी मशीनों को चलाने के साथ-साथ पंप के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जा सके.

पीवी डस्टर
पौधों की सुरक्षा कृषि कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. सौर पीवी डस्टर फसलों पर से कीटनाशकों की डस्टिंग के लिए एक उपयोगी नया यंत्र है. इसमें अनिवार्य रूप से पीवी पैनल कैरियर, एक भंडारण बैटरी एवं एक विशेष रूप से डिजाइन की गयी डस्टिंग इकाई होती है. पीवी पैनल, जो एक कैरियर की मदद से सिर के ऊपर रख कर ले जाया जाता है, मजदूर को छाया देता है और साथ ही साथ डस्टर को चलाने के लिए बैटरी को भी चार्ज करता है. इस प्रणाली को एक अल्ट्रा लो वॉल्यूम (यूएलवी) छिड़काव यंत्र के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके साथ ही इसे एक लाइट इमिटिंग डायोट (एलइडी) चलाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस यंत्र को साल भर घर में रोशनी करने के लिए व आवश्यकतानुसार डस्टर-स्प्रेयर चलान के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

पीवी मोबाइल इकाई
स्वयं को चलाने वाली पीवी मोबाइल इकाई एक चलायमान प्रणाली है, जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग हिस्से के घरों में, खासकर सूखे क्षेत्रों में घरेलू, कृषिगत व ग्रामीण कार्यों में उपयोग किया जा सकता है. इस इकाई में 70 वॉट के दो पॉलीक्रिस्टलाइन पीवी मॉडयूल होते हैं, जो एक चार्ज नियंत्रक से जुड़े होते हैं. इष्टतम कोण पर पीवी पैनल्स (70 वॉट) को रखने के लिए स्व-लॉकिंग व्यवस्था के साथ फोल्डिंग प्रणाली, एक इनवर्टर एवं एक डीसी मोटर चालित ड्राइव प्रणाली होती है. इस इकाई को आसानी से चलाया जा सकता है और इसे एसी व डीसी दोनों भारों के लिए प्रयुक्त किया जा जा सकता है. इस प्रणाली को मक्खन निकालने की मथनी, ब्लोअर, अनाज पछारने की मशीन, अलोवेरा निकासन आदि को चलाने के लिए सफलतापूर्वक परीक्षित किया गया है. इस प्रकार की पीवी मोबाइल इकाइयों को आवश्यकतानुसार गांव में किराये पर लिया जा सकता है.
ये उपकरण आपके खेत व दैनिक जीवन में उपयोगी हो सकते हैं. ऐसे और भी कई सौर उपकरण हैं. कई उपकरणों को लेकर अभी शोध चल रहा है, ताकि ग्रामीण जीवन को सुगम भी बनाया जा सके व अक्षय ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके. अगर आप उपरोक्त उपकरणों या ऐसे ही अन्य उपकरणों के विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो इस पते व फोन नंबर पर संपर्क करें :
सेंट्रल ऐरिड जोन रिसर्च इंस्टिट्यूट, जोधपुर - 32003, राजस्थान.
फोन नंबर : 0291-2786584., फैक्स नंबर : 0291-2788706.